Published on Sep 27, 2022 Updated 24 Days ago

क्या भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की पटरी लौट आई है? वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के अनुमानों का गहनता से अध्ययन करने पर इसको लेकर कुछ सवाल उठते हैं.

Q1 GDP वृद्धि अनुमान: उत्साहजनक पर उम्मीद से थोड़ा कम

वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (Q1) के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रारंभिक अनुमान जारी हो चुके हैं. वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में स्थिर (2011-12) क़ीमतों पर वास्तविक जीडीपी 32.46 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में सालाना आधार पर 13.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ करने वाला है. वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में नॉमिनल जीडीपी (वर्तमान क़ीमतों पर) 64.95 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में पहले क्वार्टर की जीडीपी से 26.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है. नॉमिनल और वास्तविक जीडीपी के बीच का यह अंतर अर्थव्यवस्था में वर्तमान मुद्रास्फ़ीति की स्थिति को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है. हालांकि, यह वृद्धि भारतीय रिजर्व बैंक के 16.2 प्रतिशत के पूर्वानुमान और ब्लूमबर्ग द्वारा कराए गए अर्थशास्त्रियों के सर्वेक्षण के 15.5 प्रतिशत के अनुमान से कम है. लगातार दो वर्षों (2020-21 और 2021-22) की पहली तिमाही में कोविड​​-19 महामारी के नकारात्मक असर के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि इस वर्ष की पहली तिमाही में आंकड़ों की स्थित उलट होगी.

Q1 Gdp Growth Estimates Encouraging But Slightly Lower Than Expected

घरेलू खपत और निवेश (जीएफसीएफ) की वजह से वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में माहौल सुधरा हुआ नज़र आ रहा है. निर्यात वृद्धि भी काफ़ी अच्छी है. हालांकि, आयात वृद्धि 37.2 प्रतिशत के साथ बहुत ज़्यादा है. वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में विकास दर की तुलना में, तमाम बड़े व्यय घटकों में वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम लग सकती है, लेकिन यह भी याद रखना होगा कि वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही की विकास दर वर्ष 2020-21 के आधार पर बहुत कम थी (चित्र – 1). वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही का समय ऐसा था, जब देश में लॉकडाउन लगा हुआ था और उस दौरान शायद आर्थिक गतिविधियां बेहद कम हो रही थीं.

वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में नॉमिनल जीडीपी (वर्तमान क़ीमतों पर) 64.95 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में पहले क्वार्टर की जीडीपी से 26.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है.

जिस प्रकार से हाल के दिनों में अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की हालत कमज़ोर हुई है, इससे आयात बिलों में वृद्धि हुई और इसके फलस्वरूप वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 37.2 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज़ की गई. हालांकि निकट भविष्य में यह अर्थव्यवस्था के लिए एक शुरुआती समस्या साबित हो सकती है. महामारी के दौरान, सरकार की तरफ से किए जाने वाले ख़र्च ने बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को गतिमान रखा और किसी तरह की परेशानी नहीं आने दी. जीडीपी के पुनरुद्धार यानी अच्छे प्रदर्शन के साथ ही सभी घटकों में मध्यम श्रेणी की विकास दर दिखने लगी है. इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि पिछले दो वर्षों के दौरान जन कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जो भी वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा था, उसे अब चरणबद्ध तरीक़े से वापस लिया जा रहा है. हालांकि, आने यह वाला समय ही बताएगा कि ये एक समझदारी भरा क़दम है या नहीं.

जब कोई जीडीपी में ख़र्च होने वाले घटकों की हिस्सेदारी यानी शेयर्स की प्रवृत्ति को देखता है, तो काफ़ी हद तक पूरी तस्वीर साफ नज़र आने लगती है. अच्छी बात यह है कि निजी उपभोग या घरेलू खपत और निवेश में बढ़ोतरी हो रही है और इसने एक लिहाज़ से जीडीपी में नई जान फूंकने का काम किया है. अगर यह मान लिया जाए कि यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा, लेकिन सरकारी ख़र्च की बढ़ोतरी में लगातार गिरावट हो रही है. इन परिस्थियों में आयात में अप्रत्याशित वृद्धि ने सारे किए धरे पर पानी फेर दिया है. रुपये की गिरती क़ीमत ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है, यानी स्थितियों को और विकट बना दिया है. (चित्र 2).

Q1 Gdp Growth Estimates Encouraging But Slightly Lower Than Expected

हालांकि, वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में सेक्टोरल ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) के अनुमान अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को लेकर और ज़्यादा स्पष्टता प्रदान करते हैं. पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 49 प्रतिशत की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज़ हुई थी. यह अलग बात है कि इस वृद्धि का आंकलन इससे पहले के वित्तीय वर्ष को आधार मानकर किया गया था. ज़ाहिर है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में कोविड महामारी की वजह से पूर्ण लॉकडाउन लगा हुआ था और विनिर्माण गतिविधिया लगभग ठप सी थीं. वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में विनिर्माण वृद्धि दर अब गिरकर 4.8 प्रतिशत हो गई है (चित्र 3). यह एक अच्छा संकेत नहीं है.

कंस्ट्रक्शन विकास दर भी पिछले वर्ष के 71.3 प्रतिशत से कम होकर वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 16.8 प्रतिशत रह गई है. सभी सेक्टरों में आर्थिक गतिविधियों में बढ़त दिखाई दे रही है, ऐसे में बिजली, गैस, पानी और अन्य उपभोग की वस्तुओं में वृद्धि दर पिछले वर्ष के 13.8 प्रतिशत के मुक़ाबले इस वर्ष की पहली तिमाही में मामूली रूप से बढ़कर 14.7 प्रतिशत हो गई है. इसी कारण से, वित्तीय, रियल एस्टेट और अन्य पेशेवर सेवाओं में वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 9.2 प्रतिशत की बड़ी वृद्धि दर दर्ज़ की गई है. ऐसे में देखा जाए तो इन सेक्टरों की विकास दर उम्मीदों के मुताबिक़ दिखती है.

संचार और प्रसारण सेवा क्षेत्र में क्रमशः दो सबसे बड़ी वृद्धि दर दर्ज़ की गई हैं. कोविड महामारी के कारण पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में छाए मंदी के बादल छंटने के साथ ही इन सेक्टरों ने उच्च विकास दर हासिल की है. फिलहाल पर्यटन और आतिथ्य सेक्टर एक बार फिर से उठ खड़े हुए हैं.

हालांकि, सार्वजनिक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवा क्षेत्र एवं व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवा क्षेत्र में क्रमशः दो सबसे बड़ी वृद्धि दर दर्ज़ की गई हैं. कोविड महामारी के कारण पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में छाए मंदी के बादल छंटने के साथ ही इन सेक्टरों ने उच्च विकास दर हासिल की है. फिलहाल पर्यटन और आतिथ्य सेक्टर एक बार फिर से उठ खड़े हुए हैं, लेकिन भविष्य में इन सेक्टरों में उपभोक्ताओं की संख्या इसी तरह जारी रहेगी, इसको लेकर निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.

लोक प्रशासन, रक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे कई सेक्टर ऐसे हैं, जिनमें उच्चतम सेक्टोरल विकास दर देखी गई है. लेकिन इन सेक्टरों के अधिकतर ऐसे सेक्शन हैं, जो बिल्कुल भी बाज़ार-उन्मुख नहीं हैं और सरकारी सहायता पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं. जिस प्रकार से कुल सरकारी ख़र्चों में लगातार कमी हो रही है, वो भविष्य में इस सेक्टर के विकास पर प्रतिकूल असर डाल सकती है.

कृषि क्षेत्र ने वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 4.5 प्रतिशत की कम की वृद्धि दिखाई है, लेकिन यह वृद्धि स्थिर थी. हालांकि, इस साल की अनिश्चित बारिश और बाद में कम कटाई से फसल उत्पादन में कमी आने की संभावना है. यह स्थिति संभावित रूप से खाद्य मुद्रास्फ़ीति को एक बार फिर से बढ़ा सकती है. यदि ऐसा होता है, तो इसका सभी सेक्टरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

देखा जाए तो अर्थव्यवस्था में इस बात को लेकर स्पष्ट संकेत नज़र आते हैं कि अर्थव्यवस्था के सर्विस सेक्टर में अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यम महामारी के बाद आर्थिक सुधार के लिए सबसे कमज़ोर कड़ी बने हुए हैं. इसी का नतीज़ा है कि K-आकार की रिकवरी हुई है.

Q1 Gdp Growth Estimates Encouraging But Slightly Lower Than Expected

उद्योगों में निवेश, ख़ासकर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में निवेश, आर्थिक प्रगति के स्थाई मार्ग पर लौटने के लिए बहुत ज़रूरी होगा. देखा जाए तो अर्थव्यवस्था में इस बात को लेकर स्पष्ट संकेत नज़र आते हैं कि अर्थव्यवस्था के सर्विस सेक्टर में अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यम महामारी के बाद आर्थिक सुधार के लिए सबसे कमज़ोर कड़ी बने हुए हैं. इसी का नतीज़ा है कि K-आकार की रिकवरी हुई है. यानी अच्छी तरह से स्थापित बड़े व्यवसायों और उद्योगों द्वारा जीडीपी की दिशा तय की जा रही है, जबकि देश में व्यापक स्तर पर फैला अनौपचारिक क्षेत्र अभी भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. भविष्य में इससे पर्याप्त उपभोक्ता मांग पैदा करने में बड़ी समस्याएं सामने आ सकती हैं.

इन हालातों में सरकार द्वारा विभिन्न वित्तीय प्रोत्साहन उपायों को एक-एक कर वापस लेने का अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ सकता है. ज़ाहिर है कि वित्तीय प्रोत्साहन से जुड़ी योजनाओं को यह सोचकर वापस लिया जा रहा है कि अर्थव्यवस्था विकास की पटरी पर लौट चुकी है. लेकिन वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के अनुमानों का सावधानी के साथ अध्ययन करने पर इस धारणा या कल्पना को लेकर कुछ सवाल उठते हैं.

ये लेखक के निजी विचार हैं.

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