Author : Nilanjan Ghosh

Published on Mar 28, 2024

संकलन - नीलांजन घोष

वर्ष 1993 से लगातार, मानव समाज और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए साफ और ताज़े पानी के महत्व को उजागर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के संरक्षण में हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. विश्व जल दिवस का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू एसडीजी-6 को प्राप्त करने के सभ्यतागत संकल्प की दिशा में दिया गया एक साफ आह्वान है जो साल 2030 तक स्वच्छ जल और स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुंच की बात करता है. संयुक्त राष्ट्र का वॉटर विभाग, हर साल विश्व जल दिवस की थीम तय करता है. वर्ष 2024 के लिए चुना गया विषय "शांति के लिए जल का लाभ उठाना" है. इस नियम का पालन करने का संबंध शांति को बढ़ावा देने और संघर्षों का समाधान ढूंढने के लिये साधन के रूप में पानी का उपयोग करने का प्रयास है. 11 लेखों की यह निबंध श्रृंखला संयुक्त राष्ट्र के उसी कथ्य के प्रति हमारा सम्मान प्रकट करना है.  

नीलांजन घोष के पहले निबंध में नदी बेसिन के पैमाने पर मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (आई.डब्ल्यू.आर.एम.) को आत्मसात करने की आवश्यकता पर ध्यान दिया गया है. विक्रम माथुर का लेख सिंधु जल संधि और कावेरी बेसिन में सूखे के मामलों का हवाला देते हुए "शांति के लिए जल" को बढ़ावा देने के लिए मांग प्रबंधन और संस्थागत तंत्र के माध्यम से स्थायी संसाधन प्रबंधन की आवश्यकता को प्रतिध्वनित करता है. रेनीता डिसूज़ा जल मूल्य निर्धारण की बहुत महत्वपूर्ण चिंता पर चर्चा करती हैं - एक ऐसा तंत्र जो स्थायी जल प्रबंधन और संघर्ष समाधान के लिए एक वस्तुनिष्ठ साधन के रूप में कार्य कर सकता है. इसी तरह सौम्य भौमिक मांग-आपूर्ति के अंतर के बारे में बात करते हैं और विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में जल मूल्य निर्धारण और शुल्कों की चर्चा करते हैं. यह हमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पर लाता है, वो ये है कि, ‘क्या बाज़ार-आधारित टैरिफ़ तंत्र, मांग व आपूर्ति के अंतर को कम करने और पानी की कमी के मूल्य की खोज करने में मदद कर सकता है?’ देबोस्मिता सरकार का लेख भारत में महिलाओं द्वारा परिवार के लिये पानी का इंतज़ाम करने पर बिताए गए समय का, ‘अवसर की लागत’ के नुकसान पर एक दिलचस्प अध्ययन प्रस्तुत करती हैं. शोभा सूरी जल और खाद्य सुरक्षा के बीच अटूट संबंध को प्रस्तुत करने वाले एक सामान्य ढांचे पर चर्चा करती हैं. 

पानी एक सामाजिक तनाव हो सकता है, और जलवायु परिवर्तन इसे बढ़ा देता है. अपर्णा रॉय और कश्मीरा पाटिल इस बारे में बात करते हैं कि कैसे बेहतर जल डेटा शासन, प्रबंधन प्रथाएं और संस्थागत तंत्र ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जल तनाव के संकट का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं. मलांचा चक्रवर्ती याद करती हैं, कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका सबसे खराब सूखे में से एक का सामना कर रहा है जो केवल ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की ताकतों से बढ़ रहा है - इससे सभी स्तरों और विभिन्न पैमानों पर संघर्ष हुए हैं. इसके दूसरी ओर, ओमन कुरियन जल संवाद में स्वास्थ्य आयाम लाते हैं और हर घर जल या हर घर तक पानी की पहुंच प्रदान करने की भारतीय सफलता की कहानी पर प्रकाश डालते हैं जैसा कि सरकार द्वारा जल जीवन मिशन (जेजेएम) के माध्यम से लागू किया गया है.

भारत में अंतरराज्यीय जल संघर्ष जटिल समस्याएं हैं, अंबर घोष संघीय और चुनावी स्तरों पर अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों पर आम सहमति का तर्क देते हैं, जिससे सभी स्तरों पर बहु-हितधारक बातचीत का आह्वान किया जाता है. बसु चंदोला ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) बिग डेटा, ब्लॉकचैन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों से जुड़े पानी के पदचिह्न या पानी की खपत के बारे में बात की (IoT).

जल सभी स्तरों पर संघर्ष के अधीन है - अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय इत्यादि. "शांति के लिए जल" केवल पानी के स्टेकहोल्डर्स या हितधारकों के बीच अधिक सहकारी दृष्टिकोण, नदी बेसिन के पैमाने पर एक एकीकृत दृष्टिकोण और एक अंतर-अनुशासनात्मक ढांचे के निर्माण के माध्यम से एक अंतःविषय दृष्टिकोण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए यहाँ प्रस्तुत निबंधों की श्रृंखला को एक एकीकृत ढांचे में देखने की आवश्यकता है, न कि केवल टुकड़ों में लिखे गए लेखों के रूप में-यही वह जगह है जहाँ यह निबंध श्रृंखला अन्य ऐसे किसी प्रकाशन से अलग है. 

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