ये लेख निबंध श्रृंखला विश्व जल दिवस 2024: शांति के लिए जल, जीवन के लिए जल का हिस्सा है.
भारत के ऊपर जल संकट मंडरा रहा है, विशेष रूप से उस समय जब बारिश नहीं होती है. ये स्थिति भविष्य में पानी की उपलब्धता की गंभीर तस्वीर पेश करती है. अनुमानों के मुताबिक 2021 में सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,486m3 (क्यूबिक मीटर) थी जो 2031 तक और गिरकर 1,367m3 होने वाली है. ये आंकड़ा डरावना है जो कि पानी की उपलब्धता के मामले में वैश्विक औसत 5,500m3 प्रति व्यक्ति से काफी कम है. ये गंभीर जल संकट की तरफ संकेत देता है. दुनिया की 16-17 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है जबकि वैश्विक मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत उसके पास है. इस तरह भारत ऐसे जल संकट का सामना कर रहा है जिस पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है.
ये लेख लिखे जाने के समय कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु गंभीर पानी की कमी का सामना कर रहा था जिसका कारण चार दशकों में आए सबसे ख़राब सूखे को बताया जा रहा है.
ये लेख लिखे जाने के समय कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु गंभीर पानी की कमी का सामना कर रहा था जिसका कारण चार दशकों में आए सबसे ख़राब सूखे को बताया जा रहा है. राज्य सरकार ने गंभीर स्थिति को उजागर करते हुए खुलासा किया कि शहर के 13,900 बोरवेल में से 6,900 सूख गए हैं जिसकी वजह से संकट बढ़ गया है. पानी की इस कमी ने अलग-अलग क्षेत्रों को प्रभावित किया है जिनमें बड़े अपार्टमेंट, कॉलोनी, स्कूल, फायर ब्रिगेड, होटल, इत्यादि शामिल हैं. बेंगलुरु के निवासी, ख़ास तौर पर अपने मकान में रहने वाले लोग, गैर-ज़रूरी उद्देश्यों के लिए पीने के पानी पर बेंगलुरु वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड की पाबंदी को लेकर चिंतित हैं. इस संकट की वजह से बेंगलुरु के लोग इस्तेमाल में आने वाले बर्तन की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं क्योंकि पानी के टैंकर की कीमत बढ़ गई है. इस तरह ये स्थिति पानी की बुनियादी ज़रूरतों पर व्यापक असर के बारे में बताती है.
भारत में पानी का संकट मांग-आपूर्ति के बीच भारी अंतर, खराब जल संसाधन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के असर से पता चलता है. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में पानी की कीमत के निर्धारण में असमानता का नतीजा कम राजस्व वसूली के रूप में निकला है, ख़ास तौर पर सिंचाई के पानी के शुल्क के तहत. भारत में पानी की मांग-आपूर्ति का अंतर तीन तरह से दिखता है. पहला, सालाना पानी की उपलब्धता की मौसमी स्थिति एक प्रमुख असमानता पैदा करती है और सूखे मौसम में पानी की उपलब्धता मांग की तुलना में काफी कम होती है. दूसरा, शहरीकरण, लंबे समय में जनसख्या में बढ़ोतरी और उभरती पानी की आवश्यकता लगातार मांग के दबाव में योगदान करती हैं.
भारतीय कृषि: चुनौतियों का एक बंधन
भारत खेती के उत्पादन के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जो कृषि में पानी की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में रेखांकित करता है. साथ ही कृषि लगभग 70 प्रतिशत लोगों को रोज़गार देता है. खेती योग्य भूमि के 55 प्रतिशत के लिए मॉनसून पर बहुत ज़्यादा निर्भरता पानी की सप्लाई को सूखे के हिसाब से अतिसंवेदनशील बनाती है. पानी की सप्लाई कृषि उत्पादकता पर असर डालती है. बार-बार आने वाला सूखा जल सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा है. इसकी वजह से भू-जल (ग्राउंडवॉटर) के संसाधनों का आवश्यकता से अधिक उपयोग होता है और उसमें कमी आती है. इसलिए खेती में जल प्रबंधन की पद्धतियों में सुधार मौजूदा जल संकट का समाधान करने के लिए निर्णायक है.
भारत में खेती में पानी के उपयोग के गलत तरीकों का समाधान करने की आवश्यकता भू-जल के संसाधनों के बहुत ज़्यादा इस्तेमाल और अप्रभावी सिंचाई प्रणाली- दोनों के समाधान के महत्व को उजागर करती है.
भारत में खेती में पानी के उपयोग के गलत तरीकों का समाधान करने की आवश्यकता भू-जल के संसाधनों के बहुत ज़्यादा इस्तेमाल और अप्रभावी सिंचाई प्रणाली- दोनों के समाधान के महत्व को उजागर करती है. जलवायु संकट पानी की आपूर्ति के लिए मॉनसून पर बहुत ज़्यादा निर्भरता को और जटिल बनाता है. इस चुनौती का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए पानी की उपलब्धता की प्रणाली में तुरंत और पर्याप्त बदलाव आवश्यक है. भारत के अलग-अलग महानगरों में पानी के शुल्क की दर में अंतर, जिसे नीचे की तालिका में दिखाया गया है, अलग-अलग शहरों में बहुत ज़्यादा कीमत में फर्क के साथ एक मानकीकृत शुल्क प्रणाली (स्टैंडर्डाइज़्ड टैरिफ सिस्टम) की गैर-मौजूदगी के बारे में बताता है.
टेबल 1: भारत के बड़े शहरों में पानी का शुल्क
शहर
|
दर
|
दिल्ली
|
मासिक खपत (किलोलीटर)
|
सर्विस चार्ज (रु.)
|
मात्रा के हिसाब से चार्ज (रु. प्रति किलोलीटर)
|
0-10
|
66.55
|
2.66
|
10-20
|
133.1
|
3.99
|
20-30
|
199.65
|
19.97
|
>30
|
266.2
|
33.28
|
इसके अलावा सीवर रखरखाव चार्ज: पानी की मात्रा के चार्ज का 60%
|
अहमदाबाद
|
56.59 रु. (37.96 रु. +18.63 रु.)
|
मुंबई
|
6.9 रु./किलोलीटर
|
कोलकाता
|
6 रु./किलोलीटर
|
चेन्नई
|
पानी की मात्रा (किलोलीटर)
|
प्रति किलोलीटर दर (रु. में)
|
चार्ज किया जाने वाला न्यूनतम दर
(अन्य चार्ज शामिल, रु. में)
|
10 तक
|
5
|
हर रिहायशी इकाई का 84 रु. प्रति महीना
|
11 to 15
|
17
|
|
16 to 25
|
26
|
25 से ज्यादा
|
42
|
बेंगलुरु
|
स्लैब (किलोलीटर)
|
पानी का टैरिफ (रु. में)
|
सफाई (रु. में)
|
0-8000
|
7
|
14
|
8001-25000
|
11
|
25%
|
25001-50000
|
26
|
50000 से ज्यादा
|
45
|
हैदराबाद
|
स्लैब (किलोलीटर)
|
टैरिफ (रु. में)
|
सीवरेज सेस चार्ज
|
0-15
|
7
|
35%
|
0-15
|
10
|
16-30
|
12
|
31-50
|
22
|
51-100
|
27
|
101-200
|
35
|
>200
|
40
|
सूरत
|
कारपेट एरिया (वर्ग मीटर में)
|
प्रति परिवार सालाना पानी और सीवरेज का चार्ज (रु. में)
|
0-15
|
348
|
16-25
|
600
|
26-50
|
960
|
51-100
|
1440
|
101-200
|
2100
|
201 -500
|
3750
|
501 और ज़्यादा
|
7500
|
स्रोत: लेखक का अपना और अलग-अलग स्रोतों से डेटा
सरकार की पहल और समग्र जल प्रबंधन
सतत जल प्रबंधन की बहुत ज़्यादा ज़रूरत को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने 2019 में जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया. इस मंत्रालय ने सही फसल अभियान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सूक्ष्म सिंचाई निधि (माइक्रो इरिगेशन फंड), अटल भूजल योजना, जल संसाधन सूचना प्रणाली और राष्ट्रीय जल मिशन जैसी अलग-अलग पहल को सक्रिय रूप से लागू किया. इन योजनाओं का लक्ष्य सिंचाई की कुशलता में सुधार करना और जल संसाधनों के उचित उपयोग को बढ़ावा देना है.
इस बात को स्वीकार करना आवश्यक है कि पानी के एक भी बूंद को उसके प्राकृतिक प्रवाह से हटाना जल प्रवाह की व्यवस्था को बिगाड़ता है और इसकी वजह से पानी के द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं (इकोसिस्टम सर्विसेज़) को बहुत ज़्यादा नुकसान होता है.
पानी की व्यवस्था और मौजूदा योजनाओं के इर्द-गिर्द नीतिगत चर्चा में पानी के मूल्य का निर्धारण एक महत्वपूर्ण विचार के रूप में उभरता है. पानी के मूल्यांकन और मूल्य निर्धारण का महत्व केवल उपयोगकर्ता की लागत कवरेज (यूज़र-कॉस्ट कवरेज) से आगे तक जाता है. इस बात को स्वीकार करना आवश्यक है कि पानी के एक भी बूंद को उसके प्राकृतिक प्रवाह से हटाना जल प्रवाह की व्यवस्था को बिगाड़ता है और इसकी वजह से पानी के द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं (इकोसिस्टम सर्विसेज़) को बहुत ज़्यादा नुकसान होता है. इसके परिणामस्वरूप मूल्य निर्धारण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है जिसमें विशेष मूल्यांकन शामिल हो जिसकी मात्रात्मक (क्वांटिटेटिवली) और गुणात्मक (क्वालिटेटिवली) पहचान हो सकती है.
अंत में, आपूर्ति की तरफ के पैरामीटर पर ध्यान देकर पानी की कमी का समाधान करने की ओर भारत का ऐतिहासिक झुकाव, जिसकी वजह से भू-जल के संसाधनों का बहुत अधिक उपयोग होता है, पूरे देश में एक सख्त पानी के शुल्क की प्रणाली लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है. इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि किसी नियामक संस्था (रेगुलेटरी बॉडी) की प्रभावशीलता एक मज़बूत, सख्त और एक समान मूल्य निर्धारण की व्यवस्था पर निर्भर करती है जो कम होते संसाधनों के सटीक ढंग से स्थायी प्रबंधन में मदद करती है.
(नोट: अधिक विस्तार से विश्लेषण के लिए कृपया ORF का ओकेज़नल पेपर संख्या 422 “भारत में पानी का मूल्यांकन और मूल्य निर्धारण: सतत पानी व्यवस्था के लिए अनिवार्यता” देखें)
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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