-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
शहरों में स्वच्छ और लगातार जलापूर्ति के लिए सामूहिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ जल प्रबंधन को लेकर स्पष्ट नीतियां बनाने की ज़रूरत है. ऐसी नीतियां जो सटीक आंकड़ों पर आधारित हों. जिसमें सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भी भागीदारी हो.
ये लेख निबंध श्रृंखला विश्व जल दिवस 2024: शांति के लिए जल, जीवन के लिए जल का हिस्सा है.
सूखे नल और रोज़मर्रा के कामों के लिए भी बोतलबंद पानी पर निर्भरता अब बैंगलुरू जैसे शहरों की हक़ीकत बन चुकी है. दुनियाभर में भारत के आईटी पावरहाउस के तौर पर मशहूर बैंगलुरू में पैदा हुए जल संकट ने शहर के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं, लेकिन ये सिर्फ़ एक शहर के हालात नहीं हैं. मुंबई और चेन्नई जैसे शहर भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं. अगर जल्द ही कोई निर्णायक कदम नहीं उठाए गए तो पानी की कमी से शहरी स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वच्छता की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है.
जलवायु परिवर्तन से जल संकट की स्थिति और बिगड़ सकती है. तेज़ी से होते शहरीकरण ने भी पानी की मांग और आपूर्ति की समस्या को बढ़ाया है. नीति आयोग के संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक के मुताबिक पानी के संकट को लेकर भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है. करीब 21 भारतीय शहरों में भूजल का स्तर बहुत गिर चुका है.
'हीट आईलैंड इफेक्ट' उस स्थिति को कहते हैं जब आसपास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों का तापमान ज्यादा होने लगता है. इसने भी जल संकट को बढ़ाया है क्योंकि पानी पैदा होने के लिए ठंडा तापमान चाहिए.
बढ़ती गर्मी और फुटपाथ, ऊंची-ऊंची इमारतों, दूसरे निर्माण कार्यों और गाड़ियों की संख्या में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी ने शहरों में 'हीट आईलैंड इफेक्ट' बढ़ा दिया है. 'हीट आईलैंड इफेक्ट' उस स्थिति को कहते हैं जब आसपास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों का तापमान ज्यादा होने लगता है. इसने भी जल संकट को बढ़ाया है क्योंकि पानी पैदा होने के लिए ठंडा तापमान चाहिए. इस वक्त करीब 60 करोड़ भारतीय जल संकट का सामना कर रहे हैं. हर साल करीब 2 लाख लोगों की मौत पानी की कमी की वजह से हो रही है. अभी हालात और बिगड़ने की आशंका है क्योंकि 2050 तक पानी की मांग इसकी आपूर्ति से ज्यादा हो जाएगा.
दुख की बात ये है कि भारत में जल प्रबंधन को अभी जलवायु परिवर्तन की चिंताओं से नहीं जोड़ा गया है. शहरों के कायाकल्प लिए अटल मिशन (AMRUT), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), जल शक्ति अभियान और राष्ट्रीय भूजल प्रबंधन में सुधार जैसी भारत सरकार की प्रमुख योजनाओं में पानी की आपूर्ति बढ़ाने को प्राथमिकता देने की बात कही गई है. हालांकि जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना में नगर निकायों के लिए ये ज़रूरी किया गया है कि विकास परिजोयनाएं बनाते वक्त वो इस बात का ध्यान रखें कि जल प्रबंधन की स्थिति बेहतर हो लेकिन सच्चाई ये है कि इस दिशा में सिर्फ दिखावटी काम होता है. नगर निकाय जल प्रबंधन को लेकर उतना ही काम करते हैं जिससे विकास परियोजना को मंजूरी मिल जाए. इस तरह की सोच से ये नगर निकाय जलवायु परिवर्तन और जल प्रबंधन के बीच के जटिल रिश्ते को सुलझाने का मौका गंवा देते हैं.
पानी की लगातार आपूर्ति के लिए ये ज़रूरी है कि ज़मीनी स्तर पर जल प्रबंधन को लेकर काम हो, लेकिन भारत में अलग-अलग संस्थाओं के बीच समन्वय की कमी से इस क्षेत्र में काम करने में बहुत दिक्कतें आती हैं. जलापूर्ति, स्वच्छता और दूषित पानी का ट्रीटमेंट करने वाले सरकारी विभाग आम तौर पर अलग-अलग काम करते हैं. इनके बीच किसी तरह का तालमेल नहीं दिखता. जल प्रबंधन के काम के लिए कई संस्थाएं, मंत्रालय और राज्य सरकारें होने के बावजूद इनके बीच ज़रूरी संवाद और सहयोग का अभाव दिखता है. इसका नतीजा ये होता है कि जल प्रबंधन की व्यापक और सतत चलने वाली रणनीति नहीं बन पातीं.
इतना ही नहीं ज्यादातर राज्य सरकारों के पास अलग-अलग क्षेत्रों में जल प्रबंधन के लिए ज़रूरी आंकड़े भी नहीं होते. पानी की उपलब्धता, उसकी गुणवत्ता और उपभोग के रूझान के आंकड़े नहीं होने से जल प्रबंधन की नीति बनाने, पानी का आवंटन करने और संकट के वक्त सही प्रतिक्रिया देने की व्यवस्था बनाने में मु्श्किल आती है.
भारत में जिस तरह जल संकट बढ़ रहा है उसका समाधान ढूंढने के लिए राज्य सरकारों को भी चाहिए कि वो भूस्थानिक तकनीक़ी की स्थापना करें. इसमें जीपीएस, जीआईएस और रिमोट सेंसिग तकनीक़ी का भी इस्तेमाल होता है, जिससे जल संकट का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो जल प्रबंधन के लिए ज़रूरी आंकड़े जुटाने में सेटेलाइट इमेज और आईओटी सेंसर्स जैसी तकनीक़ी मदद मुहैया कराए. इसका फायदा ये होगा कि जलवायु में हो रहे बदलावों के हिसाब से जल प्रबंधन की नीति बनाने में मदद मिलेगी. भारत में जिस तरह जल संकट बढ़ रहा है उसका समाधान ढूंढने के लिए राज्य सरकारों को भी चाहिए कि वो भूस्थानिक तकनीक़ी की स्थापना करें. इसमें जीपीएस, जीआईएस और रिमोट सेंसिग तकनीक़ी का भी इस्तेमाल होता है, जिससे जल संकट का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.
भारत में जल संकट की स्थिति का हल खोजने के लिए ये भी ज़रूरी है कि इसे सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के भरोसे ही ना छोड़ा जाए. ये सही है कि इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार की तरफ से काफी आर्थिक मदद दी जा रही है लेकिन जल प्रबंधन के महात्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र को भी इससे जोड़ना ज़रूरी है जिससे इन परिजोयनाओं के लिए पैसों की कमी ना आए. इस क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPPs) को बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि हमने दूसरे क्षेत्रों में इसके सकारात्मक नतीजे देखे हैं. शहरी विकास और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में पीपीपी व्यवस्था काफी वक्त से काम कर रही है लेकिन जल प्रबंधन के मामले में इसका अभी उतना इस्तेमाल नहीं हुआ है. आर्थिक मामलों के विभाग ने दिसंबर 2019 में इसे लेकर जो आंकड़े जारी किए थे, उसके मुताबिक जल प्रबंधन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जो 1,825 परियोजनाएं चल रही हैं, उनमें पीपीपी की हिस्सेदारी सिर्फ 27 यानी 0.25 प्रतिशत की है.
सिंगापुर ने जल प्रबंधन को लेकर जो नीति बनाई है, उससे प्रेरणा लेकर भारत सरकार को भी जलस्तर में सुधार और रिसाइक्लिंग के काम में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहिए. ऐसा करके हम शहरों में जलापूर्ति की व्यवस्था को बेहतर बना सकेंगे.
ऐसे में इन परियोजनाओं की नाकामी के लिए घटिया काम, अधूरी तैयारियां, अवास्तविक लक्ष्य, आर्थिक ज़ोखिमों का सही से बंटवारा नहीं करने जैसे कारणों को जिम्मेदार ठहराया जाता है. कई बार ऐसी कंपनियों को ठेका दिया जाता है, जिनके पास इस तरह का काम करने के संसाधन ही नहीं होते. कई मामलों में शुल्क इतना कम रखा जाता है कि परियोजना की लागत ही वसूल नहीं हो पाती. योजना को चालू रखने और उसके रखरखाव का खर्च वसूलना ही मुश्किल हो जाता है. ऐसे में निजी क्षेत्र को जल प्रबंधन के काम की तरफ आकर्षित करने के लिए सरकार को चाहिए कि वो इस तरह की पहले की परियोजनाओं की नाकामी और सफलता का मूल्यांकन करे. आर्थिक चुनौतियों पर ध्यान दे. जल प्रबंधन क्षेत्र में निजी पूंजी निवेश को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए. सिंगापुर ने जल प्रबंधन को लेकर जो नीति बनाई है, उससे प्रेरणा लेकर भारत सरकार को भी जलस्तर में सुधार और रिसाइक्लिंग के काम में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहिए. ऐसा करके हम शहरों में जलापूर्ति की व्यवस्था को बेहतर बना सकेंगे.
जलवायु परिवर्तन के ख़तरे को देखते हुए ये ज़रूरी है कि शहरों में जल संकट का समाधान खोजा जाए. शहरों में स्वच्छ और लगातार जलापूर्ति के लिए सामूहिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ जल प्रबंधन को लेकर स्पष्ट नीतियां बनाने की ज़रूरत है. ऐसी नीतियां जो सटीक आंकड़ों पर आधारित हों और जिसमें सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भी भागीदारी हो.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Aparna Roy is a Fellow and Lead Climate Change and Energy at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED). Aparna's primary research focus is on ...
Read More +Kashmeera Patel is a seasoned development professional with a focus on climate change, gender, public health, and international development.She holds an MA in Development Studies ...
Read More +