Author : Renita D'souza

Expert Speak India Matters
Published on Mar 28, 2024 Updated 21 Hours ago

एक ऐसी व्यवस्था बनाने की ज़रूरत है जो पानी के मूल्यांकन (वैलुएशन) को नियमित (रेगुलेट) करे ताकि बढ़ते जल संकट के बीच संसाधनों का ईमानदारी और कार्यकुशलता से आवंटन हासिल किया जा सके.

पानी से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में जल के मूल्य निर्धारण की भूमिका!

Source Image: Courtesy Andrew Thomas, Wikimedia Commons

ये लेख निबंध श्रृंखला विश्व जल दिवस 2024: शांति के लिए जल, जीवन के लिए जल का हिस्सा है. 


पर्यावरण में गिरावट और संसाधनों की कमी के कई आयाम हैं जो हाल के दिनों तक प्रगति और विकास को लेकर अपनाए गए अदूरदर्शी दृष्टिकोण का नतीजा है, ख़ास तौर पर ये ध्यान में रखते हुए कि आर्थिक प्रगति और विकास ऐसे कारकों से प्रेरित है जो सामानों और सेवाओं के लिए कुल मांग को बढ़ाते हैं. ऐसा ही एक आयाम है पानी की कमी. एक और पहलू इकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) सेवाओं में नुकसान के बारे में बताता है जो पानी को उसके प्राकृतिक बहाव से दूर करने का नतीजा है.  

दुनिया भर में लगभग 11 लाख लोग पानी की उपलब्धता से वंचित हैं. चार अरब लोग यानी दुनिया की आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा हर साल कम-से-कम एक महीने के लिए जल संकट का सामना करता है. 2025 तक दुनिया की जनसंख्या के लगभग 50 प्रतिशत लोग ऐसे इलाकों में रहेंगे जो जल संकट से प्रभावित हैं. प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक उपलब्धता में 75 प्रतिशत की भारी कमी आई है और ये 1947 के 6,042 क्यूबिक मीटर से घटकर 2021 में 1,486 क्यूबिक मीटर हो गई है. भारत के लगभग 16.3 करोड़ लोग स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं. 

दुनिया भर में लगभग 11 लाख लोग पानी की उपलब्धता से वंचित हैं. चार अरब लोग यानी दुनिया की आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा हर साल कम-से-कम एक महीने के लिए जल संकट का सामना करता है.

जल संकट का ये दोहरा रूप पारंपरिक विकास की रणनीतियों से जुड़ा है जो पानी की उपलब्धता में क्षेत्रीय और मौसमी असमानताओं का हिसाब रखना तो दूर जल संसाधनों में गिरावट की दर और स्तर को स्वीकार करने में नाकाम है. जल संसाधनों के कुशल और समान मात्रा में व्यापक आवंटन के माध्यम से पानी की कमी का समाधान और इकोसिस्टम सेवाओं में आई गिरावट का निपटारा आर्थिक मूल्यांकन की तकनीकों के इस्तेमाल से किया जा सकता है. मूल्यांकन पानी के प्रतिस्पर्धी (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मानवीय) उपयोग के बीच आ सकता है. ‘संकट’ की तीव्रता परिभाषित करती है कि पानी कैसी चीज़ है. जल संकट का स्तर पानी को लेकर बहिष्करण (एक्सक्लूडैबिलिटी) और प्रतिस्पर्धा को निर्धारित करता है. वैसे तो सामान्य रूप से आर्थिक मूल्यांकन पानी की कमी का समाधान करता है लेकिन पानी के मूल्य निर्धारण (प्राइसिंग) का उपयोग उस समय कमी से निपटने में किया जाता है जब पानी को एक निजी वस्तु के रूप में समझा जाता है. 

पानी का ‘मूल्य’

पानी का दाम रखने से पानी की मात्रा तय होती है और एक परिभाषित ढंग से पानी से हासिल स्पष्ट मूल्य दिखाता है. पानी के संकट का समाधान करने में कैसे पानी का मूल्य निर्धारण उपयोग किया जाता है, ये कोई पहले से तय और स्थिर मामला नहीं है. दाम के संकेतों के मामले में पानी की मांग में अपेक्षाकृत स्थिरता की वजह से इस बात की ज़रूरत होती है कि पानी की कीमत के साथ-साथ ऐसे दूसरे प्रभावी सामाजिक उपाय भी होने चाहिए जिनके बारे में पता है कि वो कीमत के मुकाबले पानी की मांग में लचीलापन बढ़ाते हैं. वास्तव में पानी की उचित कीमत में सेवा से जुड़ी लागत यानी संचालन और रखरखाव की लागत, पूंजीगत लागत, पानी की कमी के मूल्य को दिखाने वाली संसाधन लागत और प्रदूषण लागत को भी शामिल किया जाना चाहिए. संसाधन लागत और प्रदूषण लागत पानी के उपयोग से उत्पन्न बाहरी चीजों के लिए हैं. 

औद्योगिक क्षेत्र के संदर्भ में कॉरपोरेट संस्थाओं को पानी के मूल्यांकन से मतलब है जो आम तौर पर पानी के उपयोग और विशेष रूप से निवेश के संबंध में बर्ताव में फेरबदल करता है. इसका उद्देश्य “सही लागत लेखांकन (अकाउंटिंग)” करना है जो भविष्य में पानी के संरक्षण की अनुमति देता है और सामाजिक एवं पर्यावरण से जुड़े बाहरी कारकों को ‘आंतरिक’ बनाता है. इस तरह की अकाउंटिंग पानी के उस दाम की तलाश में है जो ज़्यादा पानी के इस्तेमाल के साथ जुड़े वित्तीय जोखिमों को स्वीकार करती है और पानी को बचाने के तौर-तरीकों में निवेश को निर्देशित करती है. 

उम्मीद की जाती है कि पानी की उचित कीमत सेवा से जुड़े प्रावधानों की व्यावहारिकता, हर किसी तक स्वच्छ पानी की उपलब्धता और जल संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करेगी.

उम्मीद की जाती है कि पानी की उचित कीमत सेवा से जुड़े प्रावधानों की व्यावहारिकता, हर किसी तक स्वच्छ पानी की उपलब्धता और जल संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करेगी. हालांकि इस उचित कीमत की वसूली में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. पानी के मूल्य निर्धारण के लिए दीर्घकालिक सीमांत लागत का दृष्टिकोण, जिसे एक कुशल मूल्य निर्धारण की व्यवस्था के रूप में जाना जाता है, लंबे समय में स्थायी और परिवर्तनीय (वेरिएबल) लागत के बारे में सूचना पर निर्भर करता है. इसके बदले में ये सूचना अन्य बातों के अलावा डेमोग्राफिक्स (जनसांख्यिकीय) और सभी तरह के पानी के उपयोग को लेकर भविष्य के अनुमान की मांग करती है. पानी की कीमत तय करने की बुनियाद में जो जानकारी है, उसको लेकर अनिश्चितता संदेह पैदा करती है कि निर्धारित कीमत लंबे समय में सीमांत लागत के कितनी नज़दीक है. 

संसाधनों की कमी और बाहरी कारकों को दिखाने वाली लागत निर्धारित करने के लिए बाज़ार की अनुपस्थिति में बाज़ार से बाहर की मूल्यांकन तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है. ये तकनीकें बहुत ज़्यादा खर्चीली हैं और किसी ख़ास जगह के हिसाब से हैं जिसकी वजह से उनका उपयोग किसी दूसरी जगह नहीं किया जा रहा है. 

संवेदनशील मुद्दा

इस बात को देखते हुए कि पानी सिर्फ एक वस्तु नहीं है और पानी की उपलब्धता एक मानवाधिकार है, पानी का मूल्य निर्धारण राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा बन जाता है. सरकारें पानी का दाम कम रखने के लिए हस्तक्षेप कर सकती हैं और दबाव बनाने वाले समूह भी इस दिशा में काम कर सकते हैं. कई उद्देश्यों (उदाहरण के लिए जल संरक्षण, अमीरों एवं ग़रीबों के बीच समान मात्रा में पानी की उपलब्धता और अन्य) को प्राप्त करने के लिए उठाए गए कदम पानी के मूल्य निर्धारण को भी जटिल बनाते हैं. 

ऊपर गिनाई गई सभी कठिनाइयों का नतीजा ज़्यादातर मामलों में पानी के कम मूल्य निर्धारण के रूप में निकला है. पानी का कम मूल्य प्रगति और विकास में खराबी में बदल जाता है यानी अन्य परिणामों के अलावा कम उत्पादकता, स्वच्छता में कमी और बीमारी. पानी के कम मूल्य निर्धारण से पानी से जुड़े बुनियादी ढांचे और जल सुरक्षा के लिए आवश्यक तकनीकों में अपर्याप्त निवेश की आशंका होती है. 

भारत भी पानी के कम मूल्य निर्धारण का सामना कर रहा है जो पर्यावरण से जुड़ी गिरावट (उदाहरण के लिए भू-जल का दोहन) और नुकसान (खेती की मिट्टी के खारापन में बढ़ोतरी) में दिखाई देता है. पानी के कम मूल्य निर्धारण के साथ-साथ भारत में अनुचित सब्सिडी भी मौजूद है. भारत में पानी के मूल्य निर्धारण को लेकर 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि पानी पर कर की दरें कम हैं, उनमें नियमित रूप से संशोधन नहीं किया जाता है और पानी पर कर जमा करने की व्यवस्था में कई तरह की खामियां हैं. 

भारत में पानी के मूल्य निर्धारण की ऐसी प्रणाली बनाई जानी चाहिए जो जल संकट के सभी जटिल पहलुओं का समाधान करे और बदले में पानी के मूल्यांकन के अलग-अलग आयामों का ध्यान रखे.

भारत में पानी के मूल्य निर्धारण की ऐसी प्रणाली बनाई जानी चाहिए जो जल संकट के सभी जटिल पहलुओं का समाधान करे और बदले में पानी के मूल्यांकन के अलग-अलग आयामों का ध्यान रखे. एक ऐसी व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है जो पानी के मूल्यांकन को नियमित (रेगुलेट) करे ताकि संसाधनों का ईमानदारी और कार्यकुशलता से आवंटन हासिल किया जा सके. हर किसी तक पानी की उपलब्धता और जल संसाधनों के कुशल उपयोग को हासिल करने के लिए भारत को पानी के मूल्य निर्धारण में सुधार पर व्यापक ध्यान देना चाहिए. साथ ही अधिकारों में मज़बूती लाने के लिए, जल प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार स्वायत्त एवं ठोस संस्थानों की स्थापना के लिए और जल संकट की समस्या की गंभीरता के बारे में जागरूकता लाने और इसको हल करने की तीव्र आवश्यकता के लिए कोशिशें शुरू करनी चाहिए. 


रेनिता डिसूज़ा अर्थशास्त्र में PhD हैं और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो थीं.

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