ये लेख निबंध श्रृंखला विश्व जल दिवस 2024: शांति के लिए जल, जीवन के लिए जल का हिस्सा है.
स्वच्छ पानी को को एक अहम मानवाधिकार माना जाता है, लेकिन दुनियाभर में करीब 2.2 अरब लोग ऐसे हैं, जो पीने के साफ पानी के बगैर ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. अफ्रीका महाद्वीप में हर 3 में से 1 इंसान पानी की कमी का सामना कर रहा है. 13 अफ्रीकी देशों में गंभीर जल संकट के हालात हैं. ज्य़ादातर अफ्रीकी देश पानी से जुड़े स्थायी विकास के लक्ष्य (SDGs) हासिल कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. अफ्रीका की 85.5 प्रतिशत आबादी की स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है. 82 फीसदी लोग स्वच्छता के लक्ष्य से दूर हैं. ग्लोबल वॉटर सिक्योरिटी असेसमेंट 2023 के मुताबिक अफ्रीका महाद्वीप के साहेल क्षेत्र और होर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र के देशों में दुनिया में सबसे कम पानी है. साहेल क्षेत्र में सेनेगल, मॉरटिनिया, माली, बुर्किनाफासो, नाइजर, नाइजीरिया, चाड, सूडान और दक्षिण अल्जीरिया का एक हिस्सा शामिल हैं, जबकि होर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में इथोपिया, सोमालिया, इरिट्रिया और जिबूती जैसे देश शामिल हैं.
इस क्षेत्र में जल संकट की सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है. जलवायु परिवर्तन कई तरह से जल संसाधनों पर प्रभाव डालता है. फिर चाहे वो ग्लेशियरों का पिघलना हो, समुद्र स्तर का बढ़ना, अप्रत्याशित बारिश, सूखा या फिर बाढ़ की स्थिति हो. वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अफ्रीका महाद्वीप की हिस्सेदारी सिर्फ 4 फीसदी है लेकिन उसके अनुपात में देखें तो जलवायु परिवर्तन की वजह से अफ्रीका महाद्वीप पर पड़ने वाला असर बहुत ज्य़ादा है. अफ्रीका में जलवायु की स्थिति की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में अफ्रीका महाद्वीप का तापमान ज्य़ादा तेज़ी से बढ़ रहा है. साल 2019 अफ्रीका के इतिहास के सबसे गर्म 3 सालों में से एक था. अगर 1901 से तुलना करें तो अफ्रीका का तापमान एक डिग्री बढ़ चुका है. जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में अफ्रीका में सूखे की स्थिति बढ़ने और मौसम के मिज़ाज में भारी उतार-चढ़ाव दिखने की आशंका जताई जा रहा है.
इस क्षेत्र में जल संकट की सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है. जलवायु परिवर्तन कई तरह से जल संसाधनों पर प्रभाव डालता है. फिर चाहे वो ग्लेशियरों का पिघलना हो, समुद्र स्तर का बढ़ना, अप्रत्याशित बारिश, सूखा या फिर बाढ़ की स्थिति हो.
होर्न ऑफ अफ्रीका के देश पिछले 40 साल के सबसे ज़बरदस्त सूखे के हालात का सामना कर रहा है. पिछले पांच साल से यहां लगातार सामान्य से कम बारिश हुई है. 2020 के बाद से पैदा हुए सूखे की स्थिति से इन देशों में बड़े पैमाने पर विस्थापन और अनाज का संकट पैदा हुआ है. इस दौरान यहां से करीब 27 लाख लोग विस्थापित हुए हैं. 23 लाख लोग खाने-पीने की समस्या से जूझ रहे हैं. 51 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हुए हैं. 2018 से 2022 के बीच मेडागास्कर में भी कम बारिश की वजह से सूखे के हालात उत्पन्न हुए हैं. इससे अनाज उत्पादन में कमी आई है और मेडागास्कर के कई इलाकों में अकाल जैसे हालात पैदा हुए हैं. साहेल क्षेत्र में भी सूखे की स्थिति पैदा हो रही है.
जल जनित‘संघर्ष’
जलवायु परिवर्तन और सूखे के हालात ने अफ्रीका के कई देशों में चल रहे संघर्ष पर भी असर डाला है. सूखे की वजह से चरवाहों, पशुपालकों और जीवन यापन के लिए बारिश पर निर्भर खेती करने वाले किसानों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है. साहेल क्षेत्र में पशुपालकों और इन छोटे किसानों के बीच पानी और ज़मीन के इस्तेमाल को लेकर संघर्ष के हालात उत्पन्न हो रहे हैं. चरवाहों और किसानों के बीच संसाधनों पर अधिकार, जानवर चराने के लिए लगातार कम होती जगह, जल संकट और खेती के लिए ज़मीन को लेकर संघर्ष होता है. कई विशेषज्ञों का तो ये भी मानना है कि सूडान में हुआ दारफुर संघर्ष दुनिया का पहला ऐसा युद्ध है, जिसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना जा सकता है. यूनुस अबोयुब जैसे समाजशास्त्रियों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और नस्लीय तनाव जैसे कई ऐसे कारण हैं, जिन्होंने साहेल क्षेत्र में 1980 के दशक के बाद से संघर्ष की स्थिति को बनाए रखा है. लेकिन झगड़े की असली वजह जल और ज़मीन पर अधिकार को लेकर है. इस तरह होर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र के देशों में भी जलवायु परिवर्तन की वजह से खाद्य असुरक्षा, जल संकट और संसाधनों के आवंटन पर संघर्ष हो रहा है. अलग-अलग देशों में जल संसाधन का बंटवारा ठीक से नहीं हुआ है. अकाल और नस्लीय तनाव ने भी इस क्षेत्र की स्थिति को बिगाड़ने का काम किया है. सूखे की समस्या ने समाज पर विनाशकारी प्रभाव डाले हैं. मेडागास्कर में सूखे की वजह से ना सिर्फ अकाल के हालात पैदा हुए बल्कि समाज में आपसी संघर्ष और अस्थिरता बढ़ी.
जलवायु परिवर्तन और सूखे के हालात ने अफ्रीका के कई देशों में चल रहे संघर्ष पर भी असर डाला है. सूखे की वजह से चरवाहों, पशुपालकों और जीवन यापन के लिए बारिश पर निर्भर खेती करने वाले किसानों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है.
अफ्रीकी महाद्वीप की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उसके बाद आने वाले दशकों में यहां पानी की मांग और बढ़ेगी. लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से जल संकट और गहराने की आशंका है. ज़ाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में जल और ज़मीन को लेकर होने वाले संघर्षों में बढ़ोत्तरी होगी. ऐसे में ये ज़रूरी है कि जलवायु परिवर्तन-पानी की कमी और सूखे के इस कुचक्र को तोड़ा जाए. यानी जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और जल संसाधन को बढ़ाने के लिए ज्य़ादा निवेश करने की ज़रूरत होगी जिससे स्थायी विकास के छठे लक्ष्य (SDG 6) को हासिल किया जा सके.
अफ्रीका को दीर्घकालिक आर्थिक मदद की ज़रूरत है लेकिन दुख की बात ये है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
अफ्रीका को दीर्घकालिक आर्थिक मदद की ज़रूरत है लेकिन दुख की बात ये है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा है. अफ्रीकी मामलों के विशेषज्ञ मिचेल गेविन के मुताबिक अफ्रीकी महाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्य़ादा असर पड़ रहा है लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए जो आर्थिक मदद दी जाती है, उसकी अगर प्रति व्यक्ति के हिसाब से गणना की जाए तो अफ्रीका को मिलने वाली रकम बहुत कम है. 2010 से 2018 के बीच होर्न ऑफ अफ्रीका के देशों को कम आर्थिक मदद मिली जबकि इन्हीं देशों पर जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्य़ादा मार पड़ी है. इन देशों की अर्थव्यवस्था बुरी दशा में है. ज्य़ादातर आबादी अत्यंत गरीबी में रहती है. इन देशों के पास इतनी आर्थिक क्षमता नहीं है कि वो जलवायु पर होने वाले शोध पर रकम खर्च कर सकें. कोरोना महामारी, अनाज की कमी और यूक्रेन-रशिया युद्ध की वजह से अफ्रीकी महाद्वीप के ज्य़ादातर देश ऋण संकट से जूझ रहे हैं. इन सब स्थितियों ने भी अफ्रीकी महाद्वीप के देशों को और कमज़ोर किया है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.