Author : Ria Kasliwal

Published on Jul 28, 2021 Updated 0 Hours ago

सही ढंग से हरित विकास की ओर बदलाव के लिए ये महत्वपूर्ण है कि न सिर्फ़ मांग के अंतर को भरा जाए बल्कि उसकी संभावना को वास्तविक बनाने के लिए उचित क़ानूनी रूप-रेखा भी बनाई जाए

भारत अगर बाज़ार में हरित उद्योगों की माँग को बढ़ावा दे पाये तो देश की ‘आर्थिक गतिविधियों’ में आ सकती है तेज़ी

प्रस्तावना

भारत की जलवायु नीति का लक्ष्य लगातार देश में हरित विकास को प्रोत्साहित करने का रहा है जिसमें हरित उद्योग के विकास को केंद्रित किया गया है. लेकिन सम्मिलित कोशिशों और विकास की विशाल संभावनाएं होने के बावजूद भारत का हरित बाज़ार अभी भी ‘शुरुआती चरण’[a] में बना हुआ है. वैसे हरित उद्योग के विकास के लिए ऐसी नीतियों की ज़रूरत है जो बाज़ार के विकास[1] को हासिल करने के लिए मांग और आपूर्ति- दोनों को बढ़ाए लेकिन भारत में जो नीतियां बनाई गई हैं उनसे मांग में बढ़ोतरी किए बिना सिर्फ़ हरित उत्पादों की उत्पादन क्षमता को सफलतापूर्वक बढ़ाया है.

वास्तव में भारत के हरित उद्योग को उपभोक्ताओं की समझ और प्राथमिकता [2],[3],[4] की वजह से बाज़ार पर पकड़ बनाने में कठिनाई पेश आती है. उपभोक्ता भले ही टिकाऊ उत्पादों को ख़रीदने की इच्छा रखते हैं लेकिन उनका रुझान उन सामानों को ख़रीदने में है जो ज़्यादा प्रदूषित प्रक्रिया का इस्तेमाल करके बनते हैं. इसके पीछे कई कारण हैं: पर्यावरण के हिसाब से टिकाऊ उत्पादों की ज़्यादा लागत होने की वजह से उपभोक्ता ख़ुद को रोकते हैं; हरित उत्पादों तक बेहतर पहुंच बनाने के लिए अच्छा माहौल बनाने की कमी है; उपलब्ध हरित उत्पादों और उनके फ़ायदों के बारे में कुल मिलाकर जानकारी की कमी; और कंपनियां जिनको ‘हरित’ बताती हैं, उनके बारे में भरोसे की कमी है. [5]

हरित उत्पादों तक बेहतर पहुंच बनाने के लिए अच्छा माहौल बनाने की कमी है; उपलब्ध हरित उत्पादों और उनके फ़ायदों के बारे में कुल मिलाकर जानकारी की कमी; और कंपनियां जिनको ‘हरित’ बताती हैं, उनके बारे में भरोसे की कमी है.

कई अध्ययन बताते हैं कि पर्यावरण के लिहाज़ से टिकाऊ सामान और उत्पाद की ओर खपत के बर्ताव का उदाहरण उनके लिए बाज़ार में बड़ा हिस्सा बना सकता है.[6],[7]हरित उत्पादों की ओर उपभोक्ताओं की समझ और प्राथमिकता में बदलाव को मांग की तरफ़ की समस्याओं के समाधान के ज़रिये हासिल किया जा सकता है. इसलिए किसी भी हरित औद्योगिक नीति के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि परंपरागत रूप से प्रदूषण फैलाने वाले सेक्टर के मुक़ाबले हरित सेक्टर के लिए मांग बढ़ाने और पहुंच का लक्ष्य बनाकर बाज़ार बनाने की रणनीति को शामिल किया जाये. इस अध्याय में औद्योगिक उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोत का अध्ययन किया गया है और उन नीतिगत साधनों की सिफ़ारिश की गई है जिनका मक़सद हरित संसाधनों के लिए मांग का निर्माण करना है.

अध्ययन की सीमा

विश्व में कुल उत्सर्जन में भारत का योगदान सात प्रतिशत है.[8] जीएचजी प्लैटफॉर्म इंडिया के मुताबिक़ ऊर्जा सेक्टर और औद्योगिक प्रक्रिया तथा उत्पाद इस्तेमाल (कृषि को छोड़कर) [b] भारत में सबसे ज़्यादा उत्सर्जन करते हैं (आंकड़ा 1 देखें).

भारत में उद्योग इन दोनों सेक्टर से होने वाले उत्सर्जन को बढ़ाते हैं. ऊर्जा सेक्टर के भीतर (आंकड़े 2 और 4 को देखिए) तीन सबसे बड़े उत्सर्जक बिजली और उष्मा उत्पादन, उद्योग (उत्पादन और निर्माण सम्मिलित),[c] और परिवहन हैं. औद्योगिक प्रक्रिया सेक्टर (आंकड़े 3 और 5 देखिए) के भीतर खनिज उद्योग (लोहा और इस्पात सम्मिलित, और सीमेंट) सबसे बड़ा उत्सर्जक है. चूंकि औद्योगिक उत्सर्जन में एकमात्र उत्पादन और निर्माण उद्योग का योगदान है, और उद्योग बिजली और उष्मा उत्पादन के साथ-साथ सड़क परिवहन का एक बड़ा उपभोक्ता है, ऐसे में इन सेक्टर से उत्सर्जन काफ़ी हद तक उद्योग की देन है. कुल मिलाकर औद्योगिक उत्सर्जन भारत में एक-चौथाई उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है.

भारत में इन सेक्टर से उत्सर्जन की मात्रा को समझने के लिए ये ध्यान देना ज़रूरी है कि वैश्विक उत्सर्जन में भारत के सात प्रतिशत हिस्से में बिजली और उष्मा उत्पादन का योगदान 2.41 प्रतिशत; उत्पादन और निर्माण का योगदान 1.16 प्रतिशत; और परिवहन का योगदान 0.57 प्रतिशत है (आंकड़ा 6 देखें).

भारत में सेक्टर के मुताबिक़ उत्सर्जन का आंकड़ा दुनिया के दूसरे देशों से मेल खाता है (आंकड़ा 7 देखिए). इसलिए इन सेक्टर से होने वाले उत्सर्जन का समाधान करना पूरी दुनिया के लिए ज़रूरी है. ऊर्जा सेक्टर वैश्विक ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में सबसे ज़्यादा योगदान देता है लेकिन ऊर्जा इस्तेमाल के भीतर सबसे बड़े उत्सर्जक (जैसा मामला भारत में है) उद्योग (लोहा और इस्पात सबसे बड़े), परिवहन (ख़ास तौर पर सड़क परिवहन), और विद्युतीकरण और उष्मा (ख़ास तौर पर इमारतों के लिए) हैं. इसी तरह औद्योगिक प्रक्रिया (ख़ास तौर पर सीमेंट उत्पादन) वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है.

प्रदूषण फैलाने वाले सेक्टर: एक समीक्षा

इस खंड में तीन सेक्टर की संक्षिप्त समीक्षा की गई है, हर सेक्टर में प्रदूषण के स्रोत के साथ टिकाऊ विकल्पों; सरकार द्वारा की गई कोशिशों; मौजूदा अंतर; और किस तरह इन सेक्टर के विकास के सामर्थ्य के लिए उत्सर्जन का तत्काल ढंग से समाधान करने की ज़रूरत है, पर प्रकाश डाला गया है.

विद्युतीकरण और उष्मा उत्पादन

वैश्विक स्तर पर भारत बिजली उत्पादन और खपत के मामले में क्रमश: तीसरे और चौथे पायदान पर है.[13] भारत में बिजली और उष्मा उत्पादन में जीवश्म ईंधन- ख़ास तौर पर कोयला- का वर्चस्व है. 2018-19 में भारत की 70 प्रतिशत से ज़्यादा बिजली के उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल किया गया. कोयले के बाद नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत का इस्तेमाल किया गया (आंकड़ा 8 देखिए). वास्तव में पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के बिजली उत्पादन में कोयले का हिस्सा बढ़ता जा रहा है (आंकड़ा 9 देखिए).

बिजली उत्पादन में कोयले के वर्चस्व ने विद्युतीकरण को बेहद प्रदूषण फैलाने वाला बना दिया है क्योंकि जीवाश्म ईंधन[d] से जो उत्सर्जन होता है वो बिजली उत्पादन सेक्टर से होने वाले कुल उत्सर्जन में 96 प्रतिशत का योगदान देता है. चूंकि उद्योग बिजली की खपत करने वाला सबसे बड़ा उपभोक्ता है, भारत की कुल बिजली खपत में इसका हिस्सा 44.11 प्रतिशत है, इसलिए उद्योग काफ़ी ज़्यादा अप्रत्यक्ष उत्सर्जन[e] करते हैं जिन पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है.[16]

बिजली उत्पादन के सेक्टर को उत्सर्जन से मुक्त करने के लिए भारत सरकार ने देश में नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता बढ़ाने की ओर कोशिश की है जो कि जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को लेकर भारत की प्रतिबद्धता के मुताबिक़ है. सौर और पवन ऊर्जा को किफ़ायती बनाने के मक़सद से भारत ने बढ़ी ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन[f] की शुरुआत की जिसमें औद्योगिक और व्यावसायिक सेक्टर पर ध्यान दिया गया.[17] नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधनों को बढ़ाने पर ज़्यादा ज़ोर को देखते हुए 2019-20 में पहली बार कोयले से बिजली उत्पादन के मुक़ाबले सौर ऊर्जा पर भारत का खर्च ज़्यादा हुआ. इससे भी बढ़कर, कोविड-19 के दौरान भारत के बिजली उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 17 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया जबकि कोयले से बिजली उत्पादन का हिस्सा 76 प्रतिशत से घटकर 66 प्रतिशत हो गया. इसके परिणामस्वरूप 2015 से नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या पांच गुनी हो गई है.[18]

नीति आयोग के मुताबिक़ नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन के मामले में ग़रीब राज्यों में बिजली के उपभोक्ता ज़्यादा क़ीमत से परेशान हैं. दूसरी तरफ़ नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन के मामले में समृद्ध राज्य की वितरण कंपनियां मांग में कमी की वजह से मुश्किलों का सामना कर रही हैं.

भारत की मौजूदा नीति और देश के टिकाऊ विकास लक्ष्य को हासिल करने के लिए 100 प्रतिशत विद्युतीकरण के मक़सद के आधार पर 2040 तक भारत में बिजली की मांग तीन गुनी हो सकती है क्योंकि बिजली के उपकरणों और घर या दफ़्तर को ठंडा रखने की ज़रूरत ज़्यादा बढ़ेगी.[19] बिजली की मांग में ये नियमत बढ़ोतरी नवीकरणीय ऊर्जा के लिए एक अवसर पेश करती है कि वो बिजली उत्पादन के मुख्य स्रोत के रूप में कोयले को पछाड़ दे- ये तभी मुमकिन है जब नवीकरणीय ऊर्जा की बाज़ार तक पहुंच और मांग को बढ़ावा दिया जाए. टिकाऊ विकास को लेकर प्रतिबद्धता की वजह से जहां कई कंपनियों ने संकल्प लिया है कि वो 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा[g] का ही इस्तेमाल करेंगे लेकिन कम क़ीमत पर प्रमाणित, व्यावसायिक रूप से आपूर्ति की जाने वाली नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुंच एक रुकावट बनी हुई है.[20] इससे भी ज़्यादा, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सामान्य बाज़ार काफ़ी हद तक अनियमित बना हुआ है जो मांग के लिए एक अतिरिक्त बाधा का निर्माण करता है. नीति आयोग के मुताबिक़ नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन के मामले में ग़रीब राज्यों में बिजली के उपभोक्ता ज़्यादा क़ीमत से परेशान हैं. दूसरी तरफ़ नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन के मामले में समृद्ध राज्य की वितरण कंपनियां मांग में कमी की वजह से मुश्किलों का सामना कर रही हैं.[21]

इसलिए कोयले से बिजली उत्पादन को ख़त्म कर इसकी जगह ज़्यादा सुलभ और किफ़ायती नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल विद्युतीकरण से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए ज़रूरी है. नवीकरणीय ऊर्जा में दुनिया की टॉप 100 कंपनियों को आकर्षित करने में नवीकरणीय ऊर्जा को सरल बनाने पर ज़्यादा ज़ोर भी महत्वपूर्ण होगा.

निर्माण और उत्पादन

ऊर्जा सेक्टर से होने वाले कुल उत्सर्जन में उत्पादन और निर्माण उद्योग का सम्मिलित योगदान 18.4 प्रतिशत है. इस सेक्टर के भीतर सबसे ज़्यादा प्रदूषण सीमेंट, और लोहा और इस्पात करता है.[22]

सीमेंट: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक है. दुनिया में कुल सीमेंट उत्पादन क्षमता में भारत का हिस्सा आठ प्रतिशत है. 2010 में भारत के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में सीमेंट उद्योग का हिस्सा क़रीब सात प्रतिशत था. सीमेंट के लिए निर्माण उद्योग की मांग से उत्पादन बढ़ता है और इस तरह निर्माण उद्योग कार्बन डाइऑक्साइड के कुल उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देता है. रियल एस्टेट के निर्माण के बाद आधारभूत ढांचे का निर्माण (जैसे सड़क का विकास) और औद्योगिक विकास, सीमेंट के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं.[23]

भारत ने सीमेंट उत्पादन को ग़ैर-टिकाऊ उत्पादन की परंपरा के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मान्यता दी है. ऐसे में भारत के प्राइवेट सेक्टर द्वारा हरित परंपरा को अपनाने की साझा कोशिश हो रही है.[24] इसके परिणामस्वरूप भारत के सीमेंट सेक्टर में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होकर 600-700 किलोग्राम प्रति टन सीमेंट हो गया है जबकि वैश्विक स्तर पर ये औसत 900 किलोग्राम प्रति टन सीमेंट है.[25] लेकिन सीमेंट सेक्टर के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार कम होने के बावजूद ये अभी भी भारत के कुल उत्सर्जन का पांच प्रतिशत बना हुआ है.[26] ये काफ़ी हद तक लघु और मध्यम स्तर की कंपनियों के लिए हरित उत्पादन की परंपरा के किफ़ायती नहीं होने की वजह से है.[27]\

जब तक स्वच्छ ईंधन और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग में बढ़ोतरी नहीं होती, तब तक परिवहन में बढ़ोतरी की वजह से गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय असर पड़ता रहेगा. 

कई भारतीय नीतियों[h] के द्वारा आधारभूत ढांचे (नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन यानी एनआईपी), आवास (प्रधानमंत्री आवास योजना), रियल एस्टेट (स्मार्ट सिटी) और औद्योगिक विकास (मेक इन इंडिया) पर ज़्यादा ज़ोर के साथ भारत में 2030 तक सीमेंट का उत्पादन 80 करोड़ टन होने की उम्मीद है.[28] सीमेंट की मांग में उछाल को देखते हुए अध्ययन बताते हैं कि 2050 तक सीमेंट उत्पादन से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 40 प्रतिशत की कमी के उद्देश्य को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण कोशिश करनी होगी.[29]

लोहा और इस्पात: भारत दुनिया में कच्चे इस्पात का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है. इस्पात सेक्टर भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में क़रीब तीन प्रतिशत का योगदान देता है और क़रीब 25 लाख लोगों को रोज़गार देता है.[30] लेकिन इस्पात सेक्टर राष्ट्रीय स्तर पर ग्रीन हाउस गैस के बोझ में भी 6.2 प्रतिशत का योगदान देता है.[31] उद्योगों के भीतर लोहा और इस्पात सेक्टर बिजली की खपत करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है. औद्योगिक ऊर्जा में इस्तेमाल होने वाली बिजली का 20 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा लोहा और इस्पात सेक्टर उपयोग करता है (आंकड़ा 10 देखिए).

आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण लोहा और इस्पात सेक्टर में ऊर्जा और संसाधन- दोनों की गहन ज़रूरत है और भारत में इस्पात की मांग में तेज़ बढ़ोतरी का पर्यावरण और आर्थिक स्थिति पर महत्वपूर्ण असर पड़ा है. भारत में होने वाले कुल उत्सर्जन में पूरे औद्योगिक सेक्टर का योगदान 23.9 प्रतिशत है और औद्योगिक सेक्टर से होने वाले उत्सर्जन में लोहा और इस्पात सेक्टर का हिस्सा 28.4 प्रतिशत है.[33]

इस्पात सेक्टर में ऊर्जा के इस्तेमाल को कम करने के लिए भारत सरकार ने जो बड़ी पहल की है वो है परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (पीएटी) स्कीम.[34] इसके बावजूद उद्योग की औसत ऊर्जा दक्षता का स्तर दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले अभी भी कम है और इस सेक्टर का उत्सर्जन अभी भी काफ़ी ज़्यादा है जो बढ़ भी रहा है. राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017 में 2030-31 तक 30 करोड़ टन की उत्पादन क्षमता की परिकल्पना की गई है.[35] फलते-फूलते ऑटोमोबाइल और रेलवे सेक्टर, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, और निर्माण सेक्टर की वजह से लोहा और इस्पात की खपत में तेज़ी की बहुत ज़्यादा संभावनाएं हैं. लोहा और इस्पात के लिए मौजूदा नीतियों और बढ़ी हुई मांग को देखते हुए विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस सेक्टर से होने वाला उत्सर्जन 2050 तक बढ़कर 837 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड हो जाएगा यानी 2018 में भारत के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का क़रीब आधा. [36] उत्पादन और निर्माण में ये विशाल लेकिन अपेक्षित मांग उपभोक्ताओं के लिए किफ़ायती कम प्रदूषण वाले विकल्पों तक पहुंच को बढ़ाकर उत्सर्जन कम करने के मामले में भारत के लिए एक शानदार अवसर बनाती है.

परिवहन सेक्टर

सवारी और मालवाहक- दोनों परिवहन उद्योग विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. किसी भी सामान या सेवा के उत्पादन के लिए लोगों और कच्चे माल के परिवहन की ज़रूरत होती है. मालवाहक परिवहन ख़ास तौर पर दुनिया के सभी उद्योगों से सप्लाई-चेन उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है (आंकड़ा 11 देखिए).

भारत में परिवहन सेक्टर में सड़क परिवहन का वर्चस्व है. सड़कों के ज़रिए भारत का क़रीब 90 प्रतिशत सवारी ट्रैफिक गुज़रता है जबकि 65 प्रतिशत सामान. सड़क परिवहन का भारत की जीडीपी में 5.4 प्रतिशत योगदान है.[38] इसके परिमाणस्वरूप परिवहन सेक्टर के भीतर सड़क परिवहन कुल ऊर्जा के हिस्से का 78 प्रतिशत इस्तेमाल करता है और कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 87 प्रतिशत का योगदान देता है. परिवहन सेक्टर द्वारा इस्तेमाल होने वाले दो मुख्य ईंधन गैसोलीन और डीज़ल हैं.[i] ये दोनों ईंधन बेहद प्रदूषण फैलाने वाले हैं[j] और वातावरण में ग्रीन हाउस गैस और दूसरी प्रदूषण फैलाने वाली चीज़ें छोड़ते हैं.[39]

भारत में सड़क परिवहन ने हाल के वर्षों में असाधारण बढ़ोतरी दर्ज की है और आगे भी इसकी ये महत्वपूर्ण वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है. मौजूदा अनुमान संकेत देते हैं कि सड़क परिवहन  ट्रैफिक 2011-12 से 2031-32 के दौरान पांच गुना से ज़्यादा बढ़ेगा.[40] [k] इस बढ़ोतरी का महत्वपूर्ण असर कुल मिलाकर देश में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन पर होगा. परिवहन सेक्टर के विकास को बढ़ते ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से अलग करने की ज़रूरत को समझते हुए भारत सरकार ने परिवहन की टिकाऊ प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए पहले से कई क़दम उठाए हैं. 2008 में शुरू राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) में टिकाऊ आवास पर राष्ट्रीय मिशन के तहत “टिकाऊ परिवहन” शामिल है. भारतीय सरकार अधिक दक्षता, स्वच्छ ईंधन (लिक्विफाइड नैचुरल गैस [एलएनजी] और कंप्रेस्ड नैचुरल गैस [सीएनजी][l] के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर), इलेक्ट्रिक आवागमन के साधन (इलेक्ट्रिक व्हीकल [ईवी],[m] अनुकूल माहौल का निर्माण करके,[n] और ऊर्जा खपत की पद्धति में बदलाव के ज़रिए परिवहन सेक्टर को प्रदूषण मुक्त करने पर ध्यान दे रही है.[41]

लेकिन इन कोशिशों के बावजूद सड़क परिवहन में अनुमानित बढ़ोतरी की वजह से जैव-ईंधन की खपत में बढ़ोतरी होगी. जब तक स्वच्छ ईंधन और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग में बढ़ोतरी नहीं होती, तब तक परिवहन में बढ़ोतरी की वजह से गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय असर पड़ता रहेगा.

नीतिगत दस्तावेज

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में इन सेक्टर के योगदान और भविष्य की विकास संभावना को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है कि उनसे होने वाले उत्सर्जन की समस्या का समाधान किया जाए. इन सेक्टर की समीक्षा मांग और बाज़ार में पहुंच के अंतर को दूर कर उत्सर्जन में कमी करने के महत्व को और ज़्यादा साफ़ करती है. ये खंड वैकल्पिक या हरित उद्योग के लिए मांग बढ़ाने के लिए नीतिगत दस्तावेज़ों के सुझावों के बारे में बताता है.

(ए.) नुक़सानदेह सब्सिडी को धीरे-धीरे हटाना: हरित उत्पादों के बाज़ार के फलने-फूलने में मदद के लिए कोई भी नीति सबसे पहले ये सुनिश्चित करे कि पर्यावरण के हिसाब से नुक़सानदेह सेक्टर के लिए सब्सिडी हटाई जाए. ऐसा होने पर हरित विकल्पों की मांग बढ़ेगी. इस तरह किफ़ायती उत्पादन और पर्यावरण के हिसाब से ग़ैर-टिकाऊ उत्पादों और प्रक्रिया की खपत को बढ़ावा देने वाली हानिकारक सब्सिडी को धीरे-धीरे ख़त्म करने से बाज़ार के संकेतों को प्रदूषण फैलाने वाले सेक्टर के सही मोल के साथ जोड़ने की इजाज़त मिलती है. हरित उद्योग को उभारने में प्रोत्साहन देने की तरफ़ ये पहला क़दम है.[42]

  1. कार्बन मूल्य निर्धारण (यानी प्रदूषण फैलाने वालों पर जुर्माना लगाकर ग्रीन हाउस गैस के कम उत्सर्जन को बढ़ावा देना) वाले अध्याय में पता चला कि कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन के लिए सब्सिडी नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी से सात गुना से भी ज़्यादा है. 2019-20 में कोयले पर 3 अरब अमेरिकी डॉलर की सब्सिडी का अनुमान था.[43] किफ़ायती कोयला उत्पादन को लक्ष्य बनाकर दी जाने वाली हानिकारक सब्सिडी को ख़त्म करने से उपभोक्ताओं को कोयले की असली क़ीमत का पता चलेगा. इससे बिजली उत्पादन के दूसरे स्रोतों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ़ बदलाव को प्रोत्साहन मिलेगा.
  1. वैकल्पिक हरित और किफ़ायती परिवहन के साधन नहीं होने की वजह से तेल और गैस सब्सिडी को पूरी तरह हटाने का ग़रीबों पर काफ़ी ज़्यादा नकारात्मक असर पड़ सकता है. लेकिन वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2018-19 के बीच तेल और गैस सब्सिडी में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.[44] इस बात की कोशिश होनी चाहिए कि तेल और गैस पर मौजूदा सब्सिडी का भार नहीं बढ़े.

(बी.) बड़े पैमाने पर हरित प्रमाणन को अपनाना: सरकार के द्वारा बड़े पैमाने पर हरित प्रमाणन को अपनाने और उसे बढ़ावा देने से बाज़ार पर ऐसे प्रमाणन के महत्व और इससे जुड़े संभावित वित्तीय फ़ायदों का असर पड़ेगा. उदाहरण के लिए बीईई (ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी) प्रमाणन के नतीजे के तौर पर न सिर्फ़ उत्पादक ज़्यादा ऊर्जा दक्षता वाले उत्पाद को विकसित करने की ओर बढ़े बल्कि आम लोग भी ग्रीन रेटिंग वाले उत्पाद ख़रीदने लगे. इस तरह हरित उद्योग के लिए एक बड़े बाज़ार को बढ़ावा मिला.[45]

  1. उन इमारतों की पहचान ज़रूर की जानी चाहिए जो ऊर्जा दक्षता वाली प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं और कुल मिलाकर पर्यावरण पर कम असर डालते हैं. ऐसी इमारतों को गृह प्रमाणन दिया जाना चाहिए.[46] इसकी शुरुआत नई व्यावसायिक, औद्योगिक और सरकारी इमारतों से हो सकती है और आख़िर में रिहायशी और पुरानी इमारतों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए.
  1. समानांतर तौर पर चिन्हित हरित इमारत की सामग्री, और औद्योगिक और उपभोक्ता उत्पादों के लिए ग्रीनप्रो सर्टिफिकेशन[47] का निश्चित तौर पर व्यापक इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
  2. सर्टिफाइड नवीकरणीय ऊर्जा निश्चित तौर पर विकसित की जानी चाहिए और इसे कई बिजली आपूर्ति कंपनियों के ज़रिए सप्लाई किया जा सकता है. इससे उपभोक्ताओं को अपने नवीकरणीय ऊर्जा सप्लायर को चनने की आज़ादी होगी.[48]
  1. हरित वाहन को बढ़ावा देने वाला एक वातावरण ज़रूर विकसित किया जाना चाहिए जहां सीएनजी का इस्तेमाल करने वाले सवारी वाहनों, एलएनजी का इस्तेमाल करने वाले मालवाहक भारी परिवहन वाहनों, और हाइड्रोजन ईंधन का इस्तेमाल करने वाले वाहनों की ज़रूर पहचान होनी चाहिए और अलग-अलग स्तर के हरित वाहनों को उचित प्रमाणपत्र दिया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक गाड़ियों को ज़्यादा बड़े स्तर का हरित वाहन प्रमाणपत्र दिया जा सकता है.

(सी.) अधिकार-पत्र और लक्ष्य का निर्माण: सरकार के द्वारा अधिकार-पत्र और लक्ष्य के निर्माण से हरित उद्योग के लिए उत्पादन और मांग में बढ़ोतरी को समर्थन मिलता है. इससे भारत में हरित उत्पादों को प्राथमिकता और हरित सामानों और प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन का संकेत मिलता है.[49]

  1. चूंकि भारत की ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा अनुपात कोयले पर निर्भर है, ऐसे में पूरी तरह पाबंदी से काम नहीं चलेगा. लेकिन विद्युतीकरण में कोयले के इस्तेमाल को धीरे-धीरे ख़त्म करने की तरफ़ लक्ष्य बनाने से उपभोक्ताओं को बिजली उत्पादन के दूसरे स्रोतों की तरफ़ रुख करने का प्रोत्साहन मिलेगा.
  1. सरकार को एक नवीकरणीय ऊर्जा की श्रेणी की शुरुआत करनी चाहिए जहां हर उद्योग निश्चित तौर पर अपने बिजली उत्पादन की ज़रूरतों का एक हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों से पूरा करे.
  1. एक उत्तरोत्तर अधिकार पत्र ज़रूर जारी किया जाना चाहिए जिसमें हर नई व्यावसायिक, औद्योगिक और सरकारी इमारत (आख़िर में रिहायशी और पुरानी इमारत भी) के लिए आंशिक (जिसमें लक्ष्य का विस्तृत विवरण हो) या पूर्ण रूप से इस्तेमाल हरित सामग्री (ग्रीनप्रो या गृह प्रमाणन) के लिए प्रमाणन की ज़रूरत हो. आंध्र प्रदेश सरकार ने पहले ही ऊर्जा संरक्षण इमारत संहिता (ईसीबीसी) को इमारत की मंज़ूरी हासिल करने के लिए ज़रूरी बनाने को आगे बढ़ाया है.[50] राष्ट्रीय स्तर पर ये अधिकार पत्र विशेष छूट के प्रावधान के साथ सबसे पहले औद्योगिक पार्क और विशेष आर्थिक क्षेत्र में लागू किये जा सकते हैं.
  1. 2030 तक इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए मौजूदा लक्ष्य को बढ़ाते हुए[51] देश में हरित गाड़ियों के लिए नये विकसित प्रमाणन को लेकर लक्ष्य तय किया जा सकता है.

(डी.) राजकोषीय प्रोत्साहन: किसी ख़ास उद्योग के लिए मांग को बढ़ाने का सबसे आसान रास्ता है कि उस उद्योग को प्रतिस्पर्धियों के मुक़ाबले ज़्यादा किफ़ायती बना दिया जाए. इस तरह ज़्यादा किफ़ायती होने से उपभोक्ता हरित उद्योगों की तरफ़ मुड़ेंगे.[52]

  1. भारत में 91 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा की सब्सिडी उत्पादन के लिए है जबकि बाक़ी जगह की योजनाओं में उत्पादन और खपत दोनों को समर्थन दिया जाता है. इसकी वजह से पहले से जारी सब्सिडी जैसे कम जीएसटी और एकमुश्त अनुदान के अलावा विद्युतीकरण ज़रूरत को लेकर नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल पर आख़िरी उपभोक्ता के लिए केंद्रित सब्सिडी की ज़रूरत बनती है.[53] औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित बिजली के इस्तेमाल के लिए क़ीमत गारंटी और घर में[o] नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले छोटे स्तर के उपभोक्ताओं के लिए छूट की शुरुआत से आख़िरी उपभोक्ताओं को इस बात का प्रोत्साहन मिलेगा कि वो अपने उद्योगों और घरों में विद्युतीकरण के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों की मांग को बढ़ाएं.
  2. सीमेंट, लोहा और इस्पात के छोटे और मध्यम औद्योगिक उत्पादकों को हरित और ज़्यादा दक्ष प्रक्रिया की ओर ले जाने के लिए उन्हें राजकोषीय प्रोत्साहन दिया जा सकता है.[54] इन प्रोत्साहनों में ज़मीन से जुड़ा समर्थन; खर्च से जुड़े प्रोत्साहन जैसे बिजली शुल्क में छूट और सब्सिडी; और पूंजी के निवेश से जुड़े प्रोत्साहन शामिल हैं. लघु और मध्यम उत्पादकों के लिए इस विशेष प्रोत्साहन के साथ-साथ इस्पात, सीमेंट और लोहा उत्पादकों को मिल रही मौजूदा सब्सिडी को उनके बदलने के स्तर पर निर्भर किया जाए और ये सुनिश्चित किया जाए कि गुमराह करने वाली जानकारी न दी जाए.
  1. लोहा और स्टील के साथ सीमेंट के बड़े औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को सब्सिडी दी जा सकती है ताकि वो हरित उत्पादन और निर्माण करने वाले कंपनियों से ख़रीदारी करें. ये सब्सिडी कंपनी के आकार के मुताबिक़ होनी चाहिए जैसे कि छोटी कंपनियों को बदलाव के लिए ज़्यादा सब्सिडी मिले.
  1. शहरी क्षेत्र, जहां ज़मीन की क़ीमत आम तौर पर ज़्यादा होती है, में स्थित प्रमाणित हरित रिहायशी इमारत को छूट की पेशकश की जा सकती है और ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लिए अतिरिक्त छूट दी जा सकती है. इस छूट का आधार ये हो कि रिहायशी इमारत कितनी हरित है. इसके अलावा आंशिक और पूर्ण रूप से गृह प्रमाणित व्यावसायिक और औद्योगिक इमारतों को संपत्ति कर में छूट दी जा सकती है. इसका आधार भी ये हो कि इमारत कितनी हरित है.
  1. चूंकि भारत दो-पहिया गाड़ियों के वर्चस्व वाला देश है, और 2018 में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री कुल दो-पहिया गाड़ियों की बिक्री का सिर्फ़ 3 प्रतिशत था,[55] ऐसे में सरकार को भारत में दो-पहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों को ख़रीदने के लिए पहले से मौजूद सब्सिडी का विस्तार करना चाहिए.
  1. दिल्ली में सीएनजी की सफलता तकनीक के फ़ायदों का सबूत है. तकनीक इस बात की इजाज़त देती है कि हरित गाड़ियों में बदलाव के लिए पुरानी गाड़ियों में फ़ेरबदल किया जा सके.[56] पुरानी गाड़ियों को सीएनजी, एलएनजी और हाइड्रोजन ईंधन से चलने में सक्षम बनाने के लिए बदलाव की प्रक्रिया पर सब्सिडी देकर इस तकनीक को मालवाहक के साथ-साथ सवारी गाड़ियों में भी लागू किया जा सकता है. इसके अलावा गाड़ियों की चार्जिंग के लिए आधारभूत ढांचा (इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए) और सीएनजी, एलएनजी और हाइड्रोजन ईंधन के स्टेशन को विस्तारित किया जा सकता है.

(ई.) सरकारी ख़रीदारी: ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों के किफ़ायतमंद होने और दक्षता को बढ़ाने के लिए सरकार के पास सबसे अच्छा तरीक़ा अनिवार्य हरित ख़रीदारी की ज़रूरतों को शुरू करना है. भारत में ऐसा होने पर सरकार के लिए हरित उत्पादों की मांग बनाने की भी इजाज़त मिलेगी. इसकी एक वजह ये भी है कि भारत की जीडीपी का 30 प्रतिशत हिस्सा सरकारी ख़रीद पर ख़र्च किया जाता है. सरकारी ख़र्च के विशाल आकार को देखते हुए भारत का सार्वजनिक क्षेत्र टिकाऊ उत्पादन और खपत की ओर पहला क़दम उठा सकता है जिससे पर्यावरणीय और आर्थिक- दोनों तरह के फ़ायदे होंगे. इससे भी बढ़कर, सरकारी ख़रीद “हरियाली” को सरकार की प्राथमिकता के तौर पर पेश करेगी और राजनेताओं और ख़रीद करने वाले अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश और अपेक्षा मुहैया कराएगी.[57] इसमें पहला क़दम सरकारी ठेके में टिकाऊ सामानों की ख़रीद के लिए स्पष्ट आदेश और लक्ष्य की शुरुआत करना है.

  1. सरकार की हरित प्राथमिकता को स्थापित करने के लिए पहला क़दम बिजली के स्वच्छ और कम प्रदूषित नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत की ओर स्पष्ट सरकारी और सार्वजनिक संसाधनों का परिवर्तन है. उदाहरण के लिए, पार्क में विद्युतीकरण निश्चित रूप से नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत से हो.
  1. नई सरकारी और सार्वजनिक इमारतें गृह प्रमाणन का सर्वोच्च स्तर हासिल करने का लक्ष्य रखें. उदाहरण के लिए, सरकार का ताज़ा “सबके लिए घर” कार्यक्रम[58] हरित इमारतों की असीम संभावना पेश करता है. इसके आगे, सरकारी ज़रूरतों के लिए इस बात की कोशिश ज़रूर की जानी चाहिए कि सिर्फ़ ग्रीनप्रो उत्पादों का इस्तेमाल हो.
  1. इस बात की सम्मिलित कोशिश ज़रूर होनी चाहिए कि सरकारी परिवहन की ज़्यादा-से-ज़्यादा गाड़ियों (जैसे शहर के भीतर और शहर के बाहर चलने वाली बसों) को हरित गाड़ी में बदला जाए. इसका लक्ष्य सभी गाड़ियों का सफलतापूर्वक इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलाव हो.

(एफ.) अच्छा माहौल बनाना: जो नीतिगत हस्तक्षेप यहां बताए गए हैं, वो तभी काम करेंगे जब बेहतरीन इस्तेमाल के लिए उपयुक्त माहौल हो. इसकी वजह से ऐसी नीतियां बनाना भी ज़रूरी हैं जो बाज़ार में हरित उत्पाद तक पहुंच को सुधारने के लिए अंतर को पाटने में मदद करें.

  1. जहां भारत इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर बहुत ज़्यादा ध्यान दे रहा है और इसे किफ़ायती बनाने के लिए कोशिश कर रहा है लेकिन चार्जिंग स्टेशन की कमी इस हरित वाहन को अपनाने के रास्ते में रुकावट है. इसलिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सरकारी निवेश और चार्जिंग के आधारभूत ढांचे का देशव्यापी विकास[59] ज़रूरी है.
  1. सीएनजी, एलएनजी और हाईड्रोजन ईंधन के स्टेशन को भी ज़रूर विकसित किया जाना चाहिए. इस काम में प्राइवेट सेक्टर के अलग-अलग स्टार्टअप्स का सहयोग लिया जा सकता है.
  1. कॉरपोरेट नवीकरणीय ऊर्जा की ख़रीद पर राज्य और केंद्र की नीतियों में बेहतर समन्वय और उसका प्रवर्तन किसी तरह की दिक़्क़त को दूर करेगा.[60] हाल के दिनों में केंद्र सरकार का ये आदेश कि राज्य नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादकों को भुगतान करें और बकाया ख़त्म करें, केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों के बीच दूरी को दिखाता है.

अतिरिक्त नीतिगत दस्तावेज

  • हरित मार्केटिंग: वर्तमान में हरित तकनीकों की उपलब्धता और उसके किफ़ायती होने को लेकर उपभोक्ताओं और बिजली उत्पादकों के लिए जानकारी की कमी है. यही हाल हानिकारक प्रदूषण फैलाने वाली चीज़ों को लेकर भी है. इसलिए जागरुकता अभियानों में निवेश करने की ज़रूरत है. हरित मार्केटिंग में निश्चित तौर पर उपभोक्ताओं पर ख़ास ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें ये मौक़ा मिल सके कि वो हरित उत्पादों का विकल्प चुन सकें. इस काम में उपलब्ध सब्सिडी और बदलाव की ज़रूरत का लक्ष्य उनकी हौसला अफ़ज़ाई करेगा. इसके साथ ही हरित मार्केटिंग उत्पादकों- ख़ास तौर पर छोटे और मध्यम दर्जे के कारोबारियों- को लक्ष्यों और सरकारी ख़रीद के बारे में सीखने में मदद करेगी और उस से उनकी उत्पादन रणनीति को जोड़ेगी.[61]

बी. सब्सिडी की निगरानी और निर्धारण: जैसा कि पहले बताया गया है, ये महत्वपूर्ण है कि उपयोगी सब्सिडी मुहैया की जाए जबकि हानिकारक सब्सिडी को ख़त्म किया जाए. लेकिन ये ज़रूरी है कि हरित उद्योगों और प्रदूषिण फैलाने वाले उद्योगों के लिए मौजूदा और नई सब्सिडी पर निगरानी करके उनकी पहचान उपयोगी, पुरानी और नुक़सानदेह सब्सिडी के रूप में की जाए. ऐसा करने पर संसाधनों का हस्तांतरण बेहतर इस्तेमाल के लिए करने में मदद मिलेगी और हरित सामानों के लिए बड़ा बाज़ार बनाने में आ रही दिक़्क़तें दूर होंगी. उदाहरण के लिए इमारतों में अनिवार्य पर्यावरणीय ऑडिट और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की सब्सिडी में कमी पर निगरानी ज्यादा लाभदायक औद्योगिक नीति बनाने में मदद कर सकती है.[62]

प्रभाव

सुझाए गए नीतिगत दस्तावेज़ों का मक़सद परंपरागत तौर पर काफ़ी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के विकल्प के तौर पर हरित उद्योगों के लिए बाज़ार तक पहुंच और मांग को बढ़ाना है. इसका असर पर्यावरण के फ़ायदे के रूप में होने के साथ-साथ भारत में हरित विकास को भी बढ़ावा देगा.

बिजली और उष्मा उत्पादन: नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने पर जीवाश्म ईंधन जैसे कोयले में निवेश की तुलना में तीन गुना ज़्यादा नौकरी का अवसर पैदा करने की संभावना है. इसके अलावा, स्वच्छ ऊर्जा का निर्माण और बिजली तक पहुंच में अंतर को बंद करना अच्छा कारोबार है क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा के निर्माण की लागत इतनी गिर गई है कि मौजूदा कोयले से बिजली उत्पादन की जगह पर नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाना ज़्यादा सही है.[63]

भारत में 2022 तक 50 प्रतिशत कोयला उत्पादन ग़ैर-प्रतिस्पर्धी हो जाएगा और 2025 तक तो ये बढ़कर 85 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा.[64] अगर कोयला उत्पादन की कीमत को कम करने वाली सब्सिडी ख़त्म कर दी जाती है तो कोयला और भी ग़ैर-प्रतिस्पर्धी हो जाएगा. इस तरह अगर भारत जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेज़ी से बदलता है तो जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत वास्तव में एक वैश्विक महाशक्ति बन सकता है.

निर्माण और उत्पादन: उद्योग के अनुमान बताते हैं कि भारत में नई इमारतों के मामले में हरित इमारतों का बाज़ार 30 अरब अमेरिकी डॉलर से 40 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच है.[65] इसके अलावा टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट) की एक ताज़ा रिपोर्ट का अनुमान है कि हरित इमारतों और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश से भारत में 24 लाख अकुशल और 61 लाख कुशल नौकरियां पैदा करने की संभावना है.[66]

परिवहन: दुनिया भर में गाड़ियों के बाज़ार का इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलाव का अनुमान भारत के लिए विशाल अवसर पैदा करता है. सरकार के एक ब्लूप्रिंट के मुताबिक़ इलेक्ट्रिक गाड़ियों के सेक्टर में भारत में 1 करोड़ नौकरियों के अवसर मिलेंगे और ये 206 अरब अमेरिकी डॉलर का बाज़ार होगा.[67] एलएनजी और सीएनजी पर भारत के ज़ोर को देखते हुए इन हरित ईंधनों की कुल खपत 2019-25 के दौरान बढ़कर 28 अरब क्यूबिक मीटर (बीसीएम) हो जाने का अनुमान है. आख़िर में, जैसे-जैसे एशिया पैसिफिक क्षेत्र अपना एलएनजी आयात बढ़ाने की तैयारी कर रहा है, 2019 के 69 प्रतिशत से बढ़कर 2025 तक 77 प्रतिशत, भारत में इस बढ़ी हुई मांग की आपूर्ति करने की संभावना काफ़ी हद तक है और वो इस व्यापार में 20 प्रतिशत का योगदान देगा.[68]

निष्कर्ष

हरित औद्योगिक नीति के काम करने के लिए बाज़ार की मांग और आपूर्ति- दोनों को बढ़ाना चाहिए. अभी तक भारत सरकार ने ऐसी नीतियां विकसित की हैं जो आपूर्ति और मांग- दोनों बढ़ाती हैं लेकिन आपूर्ति पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है.

इसके अलावा, देश में हरित उत्पादों और हरित बदलाव के लिए मांग के निर्माण को बढ़ावा देने वाली नीतियों में दिशा-निर्देश और क्रियान्वयन के बीच भारी अंतर है. इसकी मुख्य वजह एक विनियमन रूप-रेखा की ग़ैर-मौजूदगी है जिसके कारण दिशा-निर्देश पर काम नहीं हो पाता है. उदाहरण के लिए, नेशनल कूलिंग एक्शन प्लान में हरित भारत के निमार्ण के लिए महत्वपूर्ण रणनीति का प्रस्ताव है लेकिन इसके साथ कोई ढांचागत समर्थन नहीं होने की वजह से ये बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षी बन गया है.[69] जब तक कि इन योजनाओं को पर्याप्त और ज़रूरी विनियमन और संस्थागत ढांचा का समर्थन नहीं मिलता है तब तक भारतीय बाज़ार और उद्योग को हरित रूप में बदलने की कार्य योजना नाकाम होती रहेंगी. इसलिए ये महत्वपूर्ण है कि हरित विकास की तरफ़ बदलाव के लिए न सिर्फ़ मांग के अंतर को पाटा जाए बल्कि संभावना को साकार करने के लिए उचित क़ानूनी रूप-रेखा भी बनाई जाए.

नेशनल कूलिंग एक्शन प्लान में हरित भारत के निमार्ण के लिए महत्वपूर्ण रणनीति का प्रस्ताव है लेकिन इसके साथ कोई ढांचागत समर्थन नहीं होने की वजह से ये बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षी बन गया है. जब तक कि इन योजनाओं को पर्याप्त और ज़रूरी विनियमन और संस्थागत ढांचा का समर्थन नहीं मिलता है तब तक भारतीय बाज़ार और उद्योग को हरित रूप में बदलने की कार्य योजना नाकाम होती रहेंगी. 

इस अध्याय में खपत की समझ और प्राथमिकता को परंपरागत रूप से प्रदूषण फैलाने वाले सेक्टर से वैकल्पिक हरित सेक्टर की तरफ़ ले जाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप पर ध्यान दिया गया है. इसमें भारत के सबसे बड़े उत्सर्जकों की जांच-पड़ताल की गई है- विद्युतीकरण और उष्मा उत्पादन, निर्माण और उत्पादन, और परिवहन- और उन नीतिगत सिफ़ारिशों के बारे में सुझाव दिया गया है जिसका लक्ष्य इन सेक्टर में पहले से स्थापित विकल्पों के लिए मांग को बढ़ाना है. नीतिगत हस्तक्षेप में सुझाव के तौर पर कहा गया है कि हानिकारक सब्सिडी को ख़त्म किया जाए, हरित प्रमाणन को व्यापक तौर पर अपनाया जाए, उपभोक्ताओं को राजकोषीय प्रोत्साहन मिले, अच्छे माहौल का निर्माण हो और सरकारी ख़रीद हो. अतिरिक्त नीतिगत दस्तावेज़, जिनमें हरित मार्केटिंग शामिल है, का लक्ष्य जानकारी बढ़ाना और हरित उत्पादों के बारे में जागरुकता फैलाना, इसके फ़ायदों के बारे में बताना और इनसे जुड़े वित्तीय प्रोत्साहन की जानकारी देना शामिल हैं. साथ ही इन सेक्टर में पहले से मौजूद सब्सिडी की निगरानी और निर्धारण शामिल है ताकि मांग की कमी को ख़त्म किया जा सके.

हरित उत्पादों के लिए मांग में बढ़ोतरी से न सिर्फ़ निरंतरता को बढ़ावा मिलेगा बल्कि महामारी के बाद की दुनिया में आर्थिक गतिविधियों को तेज़ करने और देश में व्यापार बढ़ाने के लिए व्यापक संभावना भी बनती है. हरित स्रोतों की ओर तेज़ी से बढ़ती दुनिया को देखते हुए हरित उद्योगों में निवेश करके वैश्विक जलवायु कार्ययोजना में भारत की प्रतिष्ठा और केंद्रीयता और बढ़ेगी. बेशक, इस मामले की ओर जाने के लिए पहला क़दम घर में मांग को बढ़ाना है.


Endnotes

[a] ‘Green market’ here refers to a market for environmentally sustainable products and processes.

[b] Given the theme of the report, Energy and Industrial Processes are the focal points for this chapter.

[c] As explained further in the chapter, the largest emitters in manufacturing and construction industry are cement, iron and steel industries.

[d] Here, we are including coal and lignite in fossil fuels.

[e] Scope 2 accounts for GHG emissions from the generation of purchased electricity consumed by a company.

[f] The mission includes the Perform Achieve and Trade (PAT); the Energy Efficiency Financing Platform (EEFP); Framework for Energy Efficient Economic Development (FEEED); and the Market Transformation for Energy Efficiency (MTEE).

[g] These are called RE 100 companies.

[h] Most recently, the Union Budget 2021-22 laid special attention to infrastructure development.

[i] India’s rapid growth in oil consumption is mainly driven by the transport sector.

[j] They contain 80-85 percent of carbon by weight.

[k] Projections suggest 6559 billion tones-km (freight traffic) and 163,109 billion passenger km (2031-32).

[l] Policies incentivising gas-driven mobility.

[m] Around 90 percent of EV support is for consumption, aiming to lower prices for faster adoption. The balance of approximately 10 percent is made up of schemes that support both production and consumption.

[n] Setting up city gas distribution networks, converting public transport to CNG, and creating green corridors for intercity
traffic.

[o] California Solar Initiative, launched by the city of California, provides similar extensive rebates to small-scale consumers to promote the usage of RE.

[1] United Nations Industrial Development Organisation, Green Industry – Policies for Supporting Green Industry, May 2011, Green Industry Platform.

[2] Sabita Mahapatra, ‘A study on consumers perception for green products: An empirical study from India’, International Journal of Management & Information Technology, 2013.

[3] Mayank Bhatia and Amit Jain, ‘Green Marketing: A Study of Consumer Perception and Preferences in India’, Electronic Green Journal, 2014.

[4] Vishnu Nath, and et al., ‘Green Behaviors of Indian Consumers’, International Journal of Research in Management, Economics and Commerce, 2012.

[5] Lay Peng Tan, Micael-Lee Johnstone, and Lin Yang, ‘Barriers to green consumption behaviours: The roles of consumers’ green perceptions’, Australasian Marketing Journal, 2016.

[6] Beibei Yue and et al, ‘Impact of Consumer Environmental Responsibility On Green Consumption Behavior In China: The Role Of Environmental Concern And Price Sensitivity’, Sustainability, 2020.

[7] Consumer Perception Towards Green Products And Strategies That Impact The Consumers Perception’, International Journal Of Scientific & Technology Research, 2019.

[8] This Interactive Chart Shows Changes in The World’s Top 10 Emitters’, World Resources Institute, December 10, 2020.

[9] GHG Platform India’, Ghgplatform-India.Org, 2021.

[10] GHG Platform India’, Ghgplatform-India.Org, 2021.

[11] This Interactive Chart Shows Changes in The World’s Top 10 Emitters’, World Resources Institute, December 10, 2020.

[12] Sector By Sector: Where Do Global Greenhouse Gas Emissions Come From?’, Our World In Data, September 18, 2020.

[13] Overview Of The Power Sector’, Parliamentary Legislative Research India, 2021.

[14] Central Electricity Authority, Ministry Of Power, Government Of India, 2020.

[15] GHG Emissions From India’S Electricity Sector’, Shakti Sustainable Energy Foundation, 2017.

[16] GHG Emissions From India’S Electricity Sector’, Shakti Sustainable Energy Foundation, 2017.

[17] India 2020 – Energy Policy Review’, Niti Aayog and IEA, 2020.

[18] 5-Fold Increase In Clean Energy Jobs In 5 Years: India’, NRDC, July 14, 2019.

[19] India 2020 – Energy Policy Review’, Niti Aayog and IEA, 2020.

[20] Atul Mudaliar, ‘Corporate Renewable Energy Sourcing: The Way To 100% Renewable Electricity In India’, RE100, September 14, 2020.

[21] India 2020 – Energy Policy Review’, Niti Aayog and IEA, 2020.

[22] Climate And Business Partnership Of The Future – CDP India Annual Report 2019’, Carbon Disclosure Project, 2020.

[23] Climate And Business Partnership Of The Future – CDP India Annual Report 2019’, Carbon Disclosure Project, 2020.

[24] Vivek Gilani, ‘Carbon, Cost, Community, Climate’, CBalance.in, December 10, 2013.

[25] Green Manufacturing Energy, Products And Processes’, Confederation of Indian Industries, 2011.

[26] Existing and Potential Technologies For Carbon Emissions Reductions In The Indian Cement Industry’, International Finance Corporation, 2011.

[27] Green Manufacturing: Opening New Avenue For Growth Of Manufacturing’, Journal Of Manufacturing Excellence, 2011.

[28] Cement’, Bureau Of Energy Efficiency, 2021.

[29] Indian Cement Sector SDG Roadmap’, World Business Council for Sustainable Development, 2018.

[30] Iron & Steel Industry In India: Production, Market Size, Growth’, IBEF, 2021.

[31] Jocelyn Timperley, ‘The Carbon Brief Profile: India’, Carbon Brief, March 14, 2019.

[32] Towards Low Carbon Steel Sector’, TERI, 2021.

[33] Iron And Steel – Analysis’, IEA, 2019.

[34] Bureau Of Energy Efficiency, Government of India, 2020.

[35] National Steel Policy (NSP)’, Ministry Of Steel, Government of India, 2017.

[36] Carbon Emissions By India’S Steel Sector To Triple By 2050’, The Economic Times, February 4, 2020.

[37] Supply Chains As A Game-Changer In The Fight Against Climate Change’ BCG Analysis, 2021.

[38] The Road Transport Year Book 2016-17’, Ministry Of Road Transport & Highways, Government of India, 2019.

[39] Transport – Mitigation of Climate Change – Working Group III, Fifth Assessment Report’, Intergovernmental Panel on Climate Change, 2018.

[40] Moving To 2032’, National Transport Development Policy Committee, 2014.

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