Published on Feb 24, 2021 Updated 0 Hours ago

हमें निश्चित रूप से ये मानना चाहिए कि शिक्षकों और छात्रों के बीच आमने-सामने की बातचीत के साथ-साथ क्लासरूम के भीतर और बाहर छात्रों के बीच आपस में स्वस्थ चर्चा अच्छी पढ़ाई के अभिन्न हिस्से हैं. टिकाऊ विकास लक्ष्य में भी ये सोचा गया है.

महामारी के समय में अच्छी शिक्षा के लिए आदर्श

शिक्षा हमें हमारे समाज और पर्यावरण के बारे में ज्ञान देती है और उन्हें बेहतर बनाने के लिए हमारे हुनर में इज़ाफ़ा करती है. शिक्षा हमें अपने जीवन की तरफ़ देखने के लिए हमारे दृष्टिकोण को विकसित करने, हमारा अपना विचार तैयार करने और जीवन के अलग-अलग पहलुओं को लेकर हमारी अपनी राय बनाने में भी मदद करती है. आज के समय में शिक्षा जानकारी हासिल करने की प्रक्रिया नहीं है. किसी भी उत्सुक व्यक्ति की आज अलग-अलग वेबसाइट और ई-आधारित प्लेटफॉर्म के ज़रिए काफ़ी ज़्यादा आंकड़ों और सूचनाओं तक पहुंच है. लेकिन क्या शिक्षा के बिना सूचना को ज्ञान में बदला जा सकता है? सिर्फ़ सूचना ही हमें हमारे जीवन में अलग-अलग मुद्दों और घटनाओं को समझने में प्रशिक्षित कर सकती है. हम सिर्फ़ अपनी किताबों के पाठ के ज़रिए ही नहीं सीख सकते हैं बल्कि हम अपने शिक्षकों, गुरुओं और उस्तादों से भी सीख सकते हैं कि इन किताबों को किस तरह पढ़ें और कैसे गंधमादन पर्वत में विशल्यकरणी की पहचान करें. हम अपने जीवन में व्यावहारिक अनुभवों और ट्रेनिंग के ज़रिए भी सीखते हैं. संक्षेप में कहें तो शिक्षा हमें ज्ञान, हुनर, आदर्श और नज़रिया हासिल करने में मदद करती है ताकि हम सोच-समझकर फ़ैसले ले सकें, अर्थपूर्ण जीवन जिएं और समकालीन समाज में सक्रिय भूमिका अदा कर सकें.

2020 की शुरुआत से ही हम बहुत बड़े संकट का सामना कर रहे हैं. कोविड-19 महामारी भारत समेत पूरी दुनिया में तबाही ला रही है, हमारे जीवन और रोज़गार के लिए परेशानी खड़ी कर रही है. भारत के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र नोवल कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए मार्च 2020 में लगाई गई पाबंदियों की वजह से लगभग पिछले एक वर्ष से अपने-अपने संस्थानों में जाने में असमर्थ हैं. इसकी वजह से छात्रों को बड़ा नुक़सान हुआ है.

आज के समय में शिक्षा जानकारी हासिल करने की प्रक्रिया नहीं है. किसी भी उत्सुक व्यक्ति की आज अलग-अलग वेबसाइट और ई-आधारित प्लेटफॉर्म के ज़रिए काफ़ी ज़्यादा आंकड़ों और सूचनाओं तक पहुंच है. लेकिन क्या शिक्षा के बिना सूचना को ज्ञान में बदला जा सकता है?

जब करोड़ों नौजवानों को अपने परिवार के दूसरे सदस्यों की तरह घर पर रहने के लिए कहा गया है और जब शैक्षणिक संस्थान बंद हैं, उस वक़्त ऑनलाइन शिक्षा इन छात्रों की पढ़ाई-लिखाई को सुनिश्चित करने के लिए एकमात्र विकल्प दिख रही है. लेकिन ये सवाल बना हुआ है कि क्या हम अपने देश में छात्रों को दी जाने वाली शिक्षा की क्वालिटी से समझौता किए बिना इन वैकल्पिक तरीक़ों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार थे. इस सवाल का संक्षेप में जवाब है- हम तैयार नहीं थे. ऑनलाइन शिक्षा हमारे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों  के उन छात्रों के लिए अभी भी पहुंच से दूर है जिनके घर पर कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्टिविटी सीमित स्तर में है या बिल्कुल नहीं है. हमारे पास अभी भी इस बात के आंकड़े नहीं हैं कि कितने छात्रों की पहुंच ब्रॉडबैंड इंटरनेट, 4जी स्मार्टफ़ोन, टैबलेट, लैपटॉप या डेस्कटॉप कंप्यूटर या उन तकनीकों तक है जो ऑनलाइन क्लास के लिए बेहद ज़रूरी हैं. ये भी ग़ौर किया गया है कि कई परिवारों के पास एक ही 4जी स्मार्टफ़ोन है जिसे परिवार में कमाने वाले कई सदस्यों के बीच साझा किया जाना है, ऐसे सदस्यों के बीच जो रोज़गार के घटते अवसरों और ‘वर्क फ्रॉम होम’ से जूझ रहे हैं. अलग-अलग उम्र के परिवार के बच्चे भी एकमात्र स्मार्टफ़ोन के लिए धक्का-मुक्की कर रहे हैं. कुल मिलाकर परिवारों के ऊपर बहुत ज़्यादा दबाव है. लोग नौकरियां गंवा रहे हैं और आमदनी कम हो रही है.

इस तरह हमारे देश में ज़्यादातर युवा आबादी कई महीनों से अपने-अपने घरों में बैठी हुई है. उन्हें क्वालिटी शिक्षा तो छोड़ दीजिए, किसी तरह की औपचारिक शिक्षा भी नहीं मिल रही है जो कि संकट को समझने और दीर्घकालिक भविष्य के लिए ज़रूरी है. एक न्याय संगत और टिकाऊ विश्व के लिए 25 सितंबर 2015 को जिस टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) को संयुक्त राष्ट्र ने अपनाया था, उसमें शिक्षा पर ज़ोर दिया गया था. ऐसी हालत में इस बात की काफ़ी संभावना है कि 2020-21 और उसके बाद के वर्षों में स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में ड्रॉपआउट रेट ज़्यादा होगा. हमारे पुरुष प्रधान पारिवारिक ढांचे को देखते हुए, जहां अभी भी बेहतर और उच्च शिक्षा मुहैया कराने के मामले में लड़कियों के मुक़ाबले लड़कों को तरजीह दी जाती है, महामारी के दौरान और उसके बाद लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट लड़कों के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा हो सकता है. कोविड-19 महामारी और उसके बाद अर्थव्यवस्था में सुस्ती और मंदी को देखते हुए अगर ऐसा होता है तो नई शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत सोची गई ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) या दाखिले का अनुपात गंभीर रूप से ख़तरे में पड़ सकता है. भारत में शिक्षा उन क्षेत्रों में से एक है जहां कोविड-19 का असर दूसरे क्षेत्रों के मुक़ाबले ज़्यादा दिख रहा है. अनिश्चितकाल के लिए स्कूलों, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के बंद होने से देश में शिक्षा के क्षेत्र में हासिल की गई कई वर्षों की तरक़्क़ी पीछे की ओर जा सकती है.

क्या किया जा सकता है?

मौजूदा हालात में हमें अपना ध्यान इन आशंकाओं से हटाकर उस तरफ़ मोड़ना चाहिए कि जल्दी-से-जल्दी क्या करने की ज़रूरत है. सबसे पहले हमें निश्चित रूप से ये मानना चाहिए कि शिक्षकों और छात्रों के बीच आमने-सामने की बातचीत के साथ-साथ क्लासरूम के भीतर और बाहर छात्रों के बीच आपस में स्वस्थ चर्चा अच्छी पढ़ाई के अभिन्न हिस्से हैं. टिकाऊ विकास लक्ष्य में भी ये सोचा गया है. पढ़ाई की इस पद्धति में ऑनलाइन शिक्षा मदद तो कर सकती है लेकिन उसकी जगह नहीं ले सकती. सामाजिक और भावनात्मक पढ़ाई- जैसे संवेदना, आदर, सहयोग और बातचीत, विवेचनात्मक और रचनात्मक सोच, बहुलतावादी दृष्टिकोण को लेकर बढ़ती जागरुकता और अलग सोचने वाले लोगों के लिए सम्मान- आमने-सामने की क्लासरूम पढ़ाई के बिना छात्रों के मन में बिठाना मुश्किल है. दूसरा, हमें ये समझना होगा कि जब किसी वजह से- चाहे वो महामारी हो या कोई अन्य अचानक का कारण- क्लासरूम की पढ़ाई संभव नहीं है तो ऑनलाइन शिक्षा व्यावहारिक विकल्प हो सकती है लेकिन उसके लिए कुछ शर्तें हैं:

सामाजिक और भावनात्मक पढ़ाई- जैसे संवेदना, आदर, सहयोग और बातचीत, विवेचनात्मक और रचनात्मक सोच, बहुलतावादी दृष्टिकोण को लेकर बढ़ती जागरुकता और अलग सोचने वाले लोगों के लिए सम्मान- आमने-सामने की क्लासरूम पढ़ाई के बिना छात्रों के मन में बिठाना मुश्किल है.

  1. ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था मुहैया कराने के लिए पर्याप्त सार्वजनिक वित्त संसाधनों का आवंटन हो, ख़ास तौर से उन छात्रों के लिए जो आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार से आते हैं ताकि वो मौजूदा डिजिटल बंटवारे से पार पा सकें.
  2. पूरे देश में मज़बूत ब्रॉडबैंड व्यवस्था के लिए ज़रूरी इंतज़ाम किया जाए ताकि अच्छी ऑनलाइन शिक्षा दी जा सके. इसके साथ पाठ्यक्रम बच्चों तक पहुंचाने के लिए ब्रॉडकास्ट तकनीकों जैसे रेडियो और टेलीविज़न का जल्द-से-जल्द इंतज़ाम हो.
  3. न सिर्फ़ महानगरों बल्कि छोटे शहरों और ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों के शैक्षणिक संस्थानों को भी आधुनिक आईसीटी (इन्फॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी) सुविधाओं से लैस किया जाए जिससे कि अच्छी ऑनलाइन शिक्षा दी जा सके.
  4. अलग-अलग डिजिटल प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल के ज़रिए ऑनलाइन पढ़ाई की पेशकश के लिए शिक्षकों को पर्याप्त ट्रेनिंग दी जाए.
  5. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई के लिए ज़रूरी व्यवस्था की जाए.
  6. छात्रों के सीखने के स्तर के आकलन के लिए उचित पद्धति विकसित की जाए और उससे छात्रों और शिक्षकों को परिचित कराया जाए.
  7. VII.    दिव्यांग छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा मुहैया कराने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए.

इन ज़रूरी शर्तों के पूरा होने से भारत में अच्छी शिक्षा मुहैया कराने की टिकाऊ वैकल्पिक पद्धति का निर्माण होगा. इससे भारत भविष्य में विकासशील देशों के बीच शिक्षा का बड़ा केंद्र बनेगा. साथ ही जनसंख्या के मामले में भारत की फ़ायदेमंद स्थिति को आधुनिक कौशल का प्रशिक्षण देकर महत्वपूर्ण मानव संसाधन मे बदला जा सकेगा जिससे कि भारत 21वीं सदी में दुनिया में मुक़ाबला कर सके. कोविड-19 महामारी भारत के लिए एक परीक्षा है. लेकिन ये महामारी हमें भारत में सभी के लिए अच्छी शिक्षा मुहैया कराने के लक्ष्य को हासिल करने में संकट को प्रेरक शक्ति में बदलने का अवसर भी देती है.

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