भारतीय शहरों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताएं बढ़ रही हैं. इसकी वजह से वंचित आबादी शहर के बाहरी इलाकों में पर्यावरण के हिसाब से ख़राब या ख़तरनाक क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर हो रही है. कई अध्ययनों ने साबित किया है कि जलवायु आपदा के मामले में ये इलाके सबसे असुरक्षित हैं.
जब इन जगहों में जलवायु को लेकर कदम उठाए जाते हैं तो ज़मीनी स्तर पर अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. मुंबई के चुनिंदा असुरक्षित क्षेत्रों में WRI की भागीदारी के ज़रिए ये महसूस किया गया कि ऐसे क्षेत्रों में मौजूदा शासन व्यवस्था की प्रणाली (गवर्नेंस सिस्टम) में कई खामियां समावेशी जलवायु को लेकर कदम उठाने के मामले में बड़ी बाधा पेश करती हैं.
WRI इंडिया के प्रोजेक्ट का मक़सद घनी रिहायशी बस्तियों में पेड़-पौधों की संख्या में बढ़ोतरी और प्रकृति आधारित समाधानों को जोड़कर इन क्षेत्रों के सामर्थ्य को बढ़ाना, मनोरंजन की जगह का निर्माण करना और इस प्रक्रिया में समावेशी जलवायु अनुकूलन के कदमों के लिए एक रोड मैप तैयार करना था.
इनमें से दो जगह मुंबई के P/N और M/E वार्ड में थे जहां जलवायु अनुकूलता के लिए प्रकृति आधारित समाधानों के साथ खुली जगहों को अपग्रेड करने की कोशिश की गई. इन दोनों वार्ड में बहुत अधिक जनसंख्या का घनत्व, असुरक्षित भू-संपत्ति और अपर्याप्त सुविधाएं हैं. इसके साथ-साथ दोनों वार्ड बाढ़ और गर्मी के ख़तरों की वजह से लगातार जलवायु आपदाओं के मामले में सबसे अधिक असुरक्षित हैं.
WRI इंडिया के प्रोजेक्ट का मक़सद घनी रिहायशी बस्तियों में पेड़-पौधों की संख्या में बढ़ोतरी और प्रकृति आधारित समाधानों को जोड़कर इन क्षेत्रों के सामर्थ्य (रिज़िलियंस) को बढ़ाना, मनोरंजन (रिक्रिएशन) की जगह का निर्माण करना और इस प्रक्रिया में समावेशी जलवायु अनुकूलन के कदमों के लिए एक रोड मैप तैयार करना था. इसके लिए WRI इंडिया ने वार्ड में सक्रिय स्थानीय साझेदार के रूप में यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन (YUVA) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (TISS) के साथ साझेदारी की. इन इलाकों में काम करने में उनके पुराने अनुभव ने जलवायु मुद्दों के समाधान के लिए मिलकर एक योजना बनाने में स्थानीय लोगों के साथ मौजूदा दोस्ती का लाभ उठाने में मदद की. स्थानीय लोगों के युवा समूहों, सोसायटी फेडरेशन, को-ऑपरेटिव सोसायटी और महिलाओं के संगठन के साथ कार्यशाला (वर्कशॉप) के माध्यम से WRI इंडिया निवासियों की आवश्यकताओं और बुनियादी ढांचे की सेवाओं में कमी को समझने में कामयाब रहा. इस दौरान जिस सामान्य ज़रूरत के बारे में सबसे ज़्यादा बताया गया वो खेल-कूद, समूह में पढ़ाई, मिलने-जुलने और टहलने समेत अन्य मनोरंजन की गतिविधियों के लिए सुरक्षित सार्वजनिक जगह की ज़रूरत थी.
शहर की हरियाली की पहचान एक ऐसी रणनीति के रूप में की गई जिसकी गूंज युवाओं के बीच भी सुनाई दी. इसके ज़रिए वो रिक्रिएशनल ज़रूरतों के लिए जगह[i] हासिल कर सकते हैं. प्रोजेक्ट के तहत छह शहरों में R&R (रिसेटलमेंट एंड रिहैबिलिटेशन) कॉलोनियों, अनौपचारिक बस्तियों और नगर निकायों के स्कूलों में कम इस्तेमाल किए गए और छोड़े गए इलाकों को सुरक्षित, जीवंत, सुलभ और शेड के साथ सार्वजनिक स्थानों में बदलना था. इस प्रक्रिया में पानी, ड्रेनेज, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, फुटपाथ, इत्यादि जैसी सेवाओं की मौजूदा खामियों का समाधान करने की चुनौतियां थीं.
कम आमदनी वाले क्षेत्रों, जिनका अधिग्रहण BMC विकास योजना (DP) 2014-34 के कार्यान्वयन के समय से करने की कोशिश कर रही है, में प्रति व्यक्ति खुली जगह के प्रावधान की कमी के अलावा समुदायों के द्वारा ज़मीनी स्तर पर कई अपग्रेडेशन पहल की गई है जो उन छोटे प्लॉट और बीच की जगह (इंटरसिटियल स्पेस) को अपग्रेड करने में मददगार हैं जिन्हें DP में नहीं शामिल किया जा सकता है. इस तरह की पहलों का समर्थन करना सामुदायिक एकता को मज़बूत करने, अच्छी तरह से संगठित खुली जगहों का वर्गीकरण तैयार करने और दीर्घकालीन जलवायु सामर्थ्य सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है.
सार्वजनिक प्रोजेक्ट के लिए विचार पर काम शुरू करने से पहले आस-पास के लोगों से सलाह लेने के लिए एक मंच तैयार करने की ज़रूरत है. परियोजना के पैमाने के आधार पर संबंधित आस-पास के क्षेत्रों में इसकी शुरुआत को लेकर जागरूकता पैदा की जा सकती है.
आगे कुछ सलाह हैं जिनके ज़रिए नगर निकाय समुदाय के नेतृत्व में स्थानीय स्तर पर खुली जगहों के अपग्रेडेशन प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं और इस तरह समावेशी प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा:
1. एक सामुदायिक प्रकोष्ठ के माध्यम से स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (SOP): सार्वजनिक खुली जगहों के विकास के लिए वार्ड स्तर पर कई विभाग शामिल हो सकते हैं जैसे कि बगीचा, स्टॉर्मवॉटर ड्रेनेज, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, सीवरेज परिचालन, सड़क और ट्रैफिक. प्रोजेक्ट के उद्देश्य के आधार पर इनमें शिक्षा या स्वास्थ्य विभाग को भी शामिल किया जा सकता है. समुदाय के प्रतिनिधियों को चरणबद्ध तरीके से अपना सपना साकार करने में दिशा-निर्देश के लिए वार्ड कार्यालय में सिंगल विंडो होने और एक SOP से मदद मिलेगी. SOP के माध्यम से ये सामुदायिक प्रकोष्ठ लोगों के प्रतिनिधियों को योजना मंज़ूर करने, उन्हें उनके काम के लिए संबंधित विभाग के बारे में समझाने, ज़रूरी सवालों के जवाब देने, काम-काज की प्रगति पर निगरानी करने में तालमेल और विशेषज्ञों को शामिल करने में दिशा-निर्देश दे सकती है.
2. जागरूकता और फीडबैक अभियान: सार्वजनिक प्रोजेक्ट के लिए विचार पर काम शुरू करने से पहले आस-पास के लोगों से सलाह लेने के लिए एक मंच तैयार करने की ज़रूरत है. परियोजना के पैमाने के आधार पर संबंधित आस-पास के क्षेत्रों में इसकी शुरुआत को लेकर जागरूकता पैदा की जा सकती है. उदाहरण के लिए, 500 वर्ग मीटर से कम के प्लॉट के लिए इसके आसपास के 500 मीटर के क्षेत्र में जागरूकता का प्रसार करने और लोगों से सलाह लेने का काम किया जा सकता है. प्लॉट के बाहर प्रोजेक्ट से जुड़े प्रमुख लोगों का ब्यौरा देने वाला साइनेज लगाकर, आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करके और स्थानीय लोगों के ज़रिए जानकारी दी जा सकती है. इससे प्रोजेक्ट को लेकर समर्थन हासिल करने और आस-पास के क्षेत्रों की वास्तविक ज़रूरतों के बारे में राय लेने में मदद मिलेगी.
3. संघर्ष के समाधान के लिए भागीदारों की वर्कशॉप: नगर निकाय के संबंधित विभागों के द्वारा लोगों के साथ वर्कशॉप का आयोज किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, P/N और M/E वार्ड में प्रोजेक्ट के दौरान उद्यान विभाग और पेड़ से जुड़े विभाग ने हितधारकों के लिए कई वर्कशॉप का आयोजन किया और उसके बाद ज़मीनी चुनौतियों के समाधान के लिए समुदाय के प्रतिनिधियों, NGO, डिज़ाइन एवं जैव विविधता के विशेषज्ञों और दूसरे संबंधित विभागों के साथ छोटे स्तर की बैठक की. इससे प्रोजेक्ट की सफलता के लिए लोगों के बीच विश्वास पैदा करने में मदद मिली.
4. समुदाय को इकट्ठा करने के लिए NGO/CBO को औपचारिक तौर पर नियुक्त करना: किसी सार्वजनिक परियोजना को पूरा करने के लिए NGO, समुदाय के नेताओं और विशेषज्ञ वार्ताकारों को इसका एक अभिन्न हिस्सा होना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि लोगों की चिंताएं उठाई जा सकें और परियोजना के हर स्तर पर फैसला लेने के अवसर उपलब्ध हों. शुरुआती बैठकों के बाद परियोजनाओं पर काम जारी रहने के दौरान अक्सर लोगों की राय नहीं ली जाती है. समुदाय से ये दूरी परियोजना पर विचार से लेकर काम शुरू होने और पूरा होने तक प्रोजेक्ट को लेकर लोगों के मन में संदेह पैदा करता है और फिर लोगों का मोहभंग हो जाता है. इसके नतीजतन लोगों की ज़िम्मेदारी में कमी आती है और इससे लंबे समय तक प्रोजेक्ट को लोगों का सहारा नहीं मिलता.
5. भागीदारी वाला बजट और फंडिंग: आवश्यकता के आधार पर समीक्षा के माध्यम से लोगों की प्राथमिकताओं को दिखाने के लिए वार्ड स्तर पर सहभागी बजट प्रक्रियाओं को औपचारिक तौर पर शुरू किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, स्थानीय लोगों की आवश्यकता के आधार पर सड़क चौड़ी करने के काम के ऊपर पर्याप्त रिक्रिएशनल जगह के लिए प्रावधान को प्राथमिकता दी जा सकती है और इसलिए उस वार्ड के बजट में ये दिखना चाहिए. रखरखाव और जागरूकता में सहायता के लिए जो बजट है, उसका कम आमदनी वाले क्षेत्रों में उचित इस्तेमाल किया जा सकता है जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. नगर निगम को मिलने वाले CSR (कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सबिलिटी) फंड या दान को इकट्ठा करके प्राथमिकता वाली जगहों में लगाया जा सकता है. निगम की तरफ से पारदर्शी तरीके से इन संकल्पों को दिखाने के लिए एक डैशबोर्ड बनाया जा सकता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि जिन्हें अनुदान मिल रहा है वो इस समर्थन के हक़दार हैं.
इस बात की पहचान करना महत्वपूर्ण है कि स्थानीय सामुदायिक संगठन जाति, वर्ग, धर्म, भाषा, संस्कृति, रंग, नस्ल, लिंग, उम्र और क्षमता के मामले में ख़ुद भी समावेशी हैं या नहीं.
6. समावेशी टेंडरिंग: बड़े सार्वजनिक भूखंडों (प्लॉट) के विकास के लिए सरकारी टेंडर के दस्तावेज़ों में स्थानीय SME (स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़) को तरजीह दी जानी चाहिए. जो ठेकेदार स्थानीय माली एवं गार्ड, कलाकारों एवं डिज़ाइनरों और श्रमिकों जैसे सेवा कर्मचारियों को काम पर रखते हैं, उन्हें टेंडर की प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर नौकरियां मिल सके.
7. अलग-अलग लोगों का प्रतिनिधित्व: इस बात की पहचान करना महत्वपूर्ण है कि स्थानीय सामुदायिक संगठन जाति, वर्ग, धर्म, भाषा, संस्कृति, रंग, नस्ल, लिंग, उम्र और क्षमता के मामले में ख़ुद भी समावेशी हैं या नहीं. संगठन तैयार करने के समय से लेकर प्रोजेक्ट के सभी चरणों (कल्पना, शुरुआत, डिज़ाइन, अमल और निरंतर निगरानी) तक अलग-अलग समूहों की सक्रिय हिस्सेदारी या फीडबैक के उद्देश्य से समानता पर आधारित प्रक्रियाएं तैयार करने के लिए एक सामाजिक तौर पर समावेशी माहौल बनाने की ज़रूरत है.
8. समावेशी प्रक्रियाओं की वजह से असर की निगरानी: SOP में संकेतकों के साथ एक निगरानी और समीक्षा की रूप-रेखा और प्रणाली तैयार करने की ज़रूरत है ताकि इस बात की जांच की जा सके कि सामाजिक सामंजस्य और पर्यावरण की बेहतरी के ज़रिए सफलतापूर्वक जलवायु सामर्थ्य कैसे बनाया जाता है.
नगर निकाय के स्तर पर समावेशी उपायों के माध्यम से जलवायु सामर्थ्य हासिल करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो हमारे शहरों में मौजूद सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं का समाधान करे. असुरक्षित क्षेत्रों में जलवायु अनुकूलन लोगों की भागीदारी, स्थानीय साझेदारी और विशेष रणनीतियों के महत्व को रेखांकित करता है. हरित जगहों में बढ़ोतरी, प्रकृति आधारित समाधानों को जोड़ना और समावेशी टेंडरिंग एवं मज़बूत निगरानी की व्यवस्था के साथ पानी एवं वेस्ट मैनेजमेंट जैसी बुनियादी ढांचे की कमियों का समाधान करना वंचित लोगों को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक है. इससे उन जलवायु कदमों को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकती है जो असुरक्षित समुदायों की आवश्यकताओं और सभी के लिए लचीला शहरी वातावरण बनाने को प्राथमिकता देते हैं.
दीप्ति तलपडे WRI इंडिया में अर्बन डेवलपमेंट और रिज़िलियंस में प्रोग्राम लीड हैं.
लुबैना रंगवाला WRI इंडिया में सस्टेनेबल सिटीज़ एंड ट्रांसपोर्ट टीम के साथ अर्बन डेवलपमेंट एंड रिज़िलियंस की प्रोग्राम हेड हैं.
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