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दिव्यांगों के लिए आसानी से पहुंच वाली स्वास्थ्य सुविधा का निर्माण किए बिना सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधा का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता है
मौजूदा पीढ़ी के लिए कोविड-19 महामारी सबसे बड़े सामाजिक और आर्थिक संकटों में से एक है. इस महामारी ने कमज़ोर समुदायों की हालत और बिगाड़ दी है. अभूतपूर्व सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल और उसके बाद लॉकडाउन और दूसरे क़दमों ने दिव्यांगों पर ज़रूरत से ज़्यादा असर डाला है. ये एक ऐसा समूह है जिसे अशांति और संकट के समय सबसे ज़्यादा नज़रअंदाज़ करने का ख़तरा रहता है.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, भारत की क़रीब 2.2 प्रतिशत जनसंख्या दिव्यांग है. लेकिन ये आंकड़ा वास्तविकता से कम है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ दुनिया की कुल आबादी में 15 प्रतिशत लोग दिव्यांग हैं और उनमें से 80 प्रतिशत दिव्यांग मझोले और कम आमदनी वाले देशों में रहते हैं. दिव्यांग लोगों की स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरत किसी भी दूसरे व्यक्ति की तरह होती है. इसके अलावा, कुछ दिव्यांगता ऐसी होती है जो कोविड-19 के संक्रमण के बाद दिक़्क़त और बढ़ा सकती है. स्वास्थ्य ज़रूरत पूरी होने के मामले में दिव्यांग दूसरों के मुक़ाबले पीछे हैं क्योंकि उन्हें सुविधा तक पहुंचने में कठिनाई, वित्तीय रुकावट और सही ट्रांसपोर्ट की सुविधा की कमी का सामना करना पड़ता है. साथ ही स्वास्थ्य सुविधा हासिल करने के मामले में उनका पहले का अनुभव भी कोई अच्छा नहीं रहा है. इससे भी बढ़कर, वायरस को फैलने से रोकने के लिए उठाए गए क़दम जैसे सोशल डिस्टेंसिंग को दिव्यांगों के मामले में लागू करना मुश्किल है क्योंकि मदद और सार्वजनिक स्वास्थ्य की जानकारी के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. उदाहरण के लिए, दृष्टिहीन और बधिर लोग आरोग्य सेतु ऐप का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं और कोविड-19 से जुड़ी प्रमुख जानकारी ब्रेल लिपि में उपलब्ध नहीं थी.
ऐसी ख़बरें भी आई हैं कि लॉकडाउन के दौरान दिव्यांगों को खाद्य सामग्री, ज़रूरी चीज़ें और ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करने में भी दिक़्क़त हुई. साथ ही जानकारी और हेल्पलाइन की भी मदद उन्हें नहीं मिली.
ऐसी ख़बरें भी आई हैं कि लॉकडाउन के दौरान दिव्यांगों को खाद्य सामग्री, ज़रूरी चीज़ें और ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करने में भी दिक़्क़त हुई. साथ ही जानकारी और हेल्पलाइन की भी मदद उन्हें नहीं मिली. इसके अलावा कोविड-19 से निपटने में राज्यों के बीच भी काफ़ी असमानता देखने को मिल रही है. राज्यों में एकरूपता और समन्वय बेहद कम है. मार्च के आख़िर में सरकार ने कोविड-19 के दौरान दिव्यांगजनों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए. इसके तहत राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए:
लेकिन इन दिशा-निर्देशों में समाहित स्वनिर्णय लेने की छूट ने इसे सही तरीक़े से लागू नहीं होने दिया.
पहले की स्थिति की बहाली के लिए महामारी ने सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत समझाई है. भारत में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले गंभीर और एक से ज़्यादा दिव्यांगता वाले लोग राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत मासिक पेंशन पाने के हक़दार हैं. कोविड-19 संकट को देखते हुए सरकार ने ऐलान किया था कि तीन महीने की पेंशन राशि एक साथ दी जाएगी. लेकिन पेंशन की रक़म अलग-अलग राज्यों में एक समान नहीं है और कई राज्यों में पेंशन बांटने में देरी हुई. केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले दिव्यांगों के लिए तीन महीने तक 1,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने का भी एलान किया. केंद्र की सहायता राशि को दो समान किस्तों में देने का फ़ैसला लिया गया. ये मदद सिर्फ़ उन्हीं दिव्यांगों के लिए थी जो 80 प्रतिशत या उससे ज़्यादा दिव्यांग हैं और जिनके पास दिव्यांगता का प्रमाण पत्र है. लेकिन इसके भुगतान में भी अंतर है. नेशनल सैंपल सर्वे 2019 के 76वें चरण के मुताबिक़ 76.4 प्रतिशत दिव्यांगों को सरकार से किसी तरह की सहायता/मदद नहीं मिलती और सिर्फ़ 28.8 प्रतिशत के पास सक्षम अधिकारी से जारी दिव्यांगता प्रमाण पत्र है. इसलिए इस तरह के सामाजिक सुरक्षा उपायों में सामान्य स्तर की दिव्यांगता वाले लोगों और जिनके पास दिव्यांगता का प्रमाण पत्र नहीं है, उन्हें शामिल नहीं किया गया है.
केंद्र की सहायता राशि को दो समान किस्तों में देने का फ़ैसला लिया गया. ये मदद सिर्फ़ उन्हीं दिव्यांगों के लिए थी जो 80 प्रतिशत या उससे ज़्यादा दिव्यांग हैं और जिनके पास दिव्यांगता का प्रमाण पत्र है.
रिसर्च से पता चलता है कि महामारी की वजह से दिव्यांगों के ग़रीब होने का ख़तरा ज़्यादा है. इसकी वजह ये है कि लगातार भेदभाव और लांछन की वजह से उनको रोज़गार मिलने की संभावना कम है, सामाजिक सुरक्षा और वित्तीय समर्थन तक उनकी पहुंच कम है और महामारी के दौरान सामाजिक समर्थन और पुनर्वास सेवा की व्यवस्था टूट गई है. ग़रीबी और दिव्यांगता के बीच आपसी संबंध पूरी तरह स्थापित हो चुका है. इससे भी बढ़कर, ग़रीबी के आधिकारिक अनुमान में दिव्यांगता की वजह से अतिरिक्त लागत का ध्यान नहीं रखा जाता है. इसकी वजह से दिव्यांगों के बीच ग़रीबी को कम करके आंका जाता है. दिव्यांगों के लिए सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाने के लिए ये मुनासिब है कि दिव्यांगता की प्रक्रिया में दस्तावेज़ों को सरल किया जाए, दिव्यांगता को लेकर हर तरह के आंकड़े को इकट्ठा किया जाए और इन क़दमों के बारे में जानकारी की पहुंच को सुनिश्चित किया जाए. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को बनाते वक़्त दिव्यांगता की वजह से होने वाले अतिरिक्त ख़र्च का ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है.
वैसे तो कोविड-19 महामारी को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया है लेकिन इसके बावजूद दिव्यांगता को लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देश 2019 को लागू नहीं किया गया जिसकी वजह से अलग-अलग राज्यों में इससे निपटने को लेकर व्यापक अंतर देखा गया. लेकिन सरकार ने दिव्यांगों को राहत पहुंचाने के उपाय के तहत दिव्यांगता प्रमाण पत्र हासिल करने की प्रक्रिया सरल कर दी है. इसके लिए विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र की शुरुआत की गई है जिसे हासिल करने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है. ऐसी भी ख़बरें हैं कि कुछ राज्यों ने सकारात्मक क़दम उठाए हैं. केरल में दिव्यांगों की सूची नगरपालिका/पंचायत वार्ड के स्तर पर बनाई गई है. इसकी वजह से सरकार दिव्यांगों तक पहुंच पाती है, उन्हें पका हुआ खाना और ड्राई राशन मुहैया करा पाती है, दिव्यांग छात्रों को तय समय से पहले पेंशन भुगतान और वित्तीय समर्थन दे पाती है. केरल और नगालैंड ने दिव्यांगों के लिए कोविड-19 से जुड़ी जानकारी तक पहुंच भी सुनिश्चित की है. नगालैंड में दिव्यांगों के लिए विशेष हेल्पलाइन भी है. इस हेल्पलाइन में मूक-बधिर लोगों के लिए वीडियो कॉल की सुविधा भी है
कोविड-19 महामारी ने हमें एक अवसर मुहैया कराया है कि हम अपने सामाजिक ढांचे को बदल सकें, उसमें आई दरार को भर सकें और अभी तक जो समुदाय मुख्य़धारा से अलग हैं, उन्हें शामिल कर सकें.
कोविड-19 महामारी ने हमें एक अवसर मुहैया कराया है कि हम अपने सामाजिक ढांचे को बदल सकें, उसमें आई दरार को भर सकें और अभी तक जो समुदाय मुख्य़धारा से अलग हैं, उन्हें शामिल कर सकें. उदाहरण के लिए, दिव्यांगों ने लंबे समय तक इस बात के लिए संघर्ष किया कि उन्हें नौकरी में अपने मन-मुताबिक़ समय पर काम करने की छूट मिले, घर से काम करने की आज़ादी मिले लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली. लेकिन महामारी शुरू होने के कुछ ही दिनों के भीतर इस तरह की व्यवस्था को बड़े स्तर पर लागू किया गया. सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने अपने सामान्य कर्मचारियों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तकनीक और सॉफ्टवेयर पर भारी-भरकम निवेश किया. ये महत्वपूर्ण है कि काम की जगह पर हर किसी के लिए सुविधा के इंतज़ाम की अहमियत को मान्यता मिले. इसी तरह, दिव्यांगों के लिए आसानी से पहुंच वाली स्वास्थ्य सुविधा का निर्माण किए बिना सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधा का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता है. रिसर्च के मुताबिक ऐसा करने से स्वास्थ्य सेवाओं की क्वालिटी सुधर जाएगी. अगर मौजूदा क़ानूनों और नीतियों को ठीक ढंग से लागू किया जाता तो महामारी के दौरान दिव्यांगों ने जिन चुनौतियां का सामना किया, उन्हें काफ़ी कम किया जा सकता था. ये पिछली ग़लतियों से सीखने और ज़्यादा मज़बूत और न्यायोचित प्रणाली तैयार करने की ओर काम करने का अवसर है.
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