Author : Aparna Roy

Published on Feb 09, 2022 Updated 0 Hours ago

इस वर्ष का केंद्रीय बजट जलवायु अनुकूल बजट बनाने का एक अवसर था जो आर्थिक और जलवायु- दोनों तरह के लक्ष्यों को पूरा करे. 

बजट 2022: भारत के लिए ‘जलवायु’ अनुकूल बजट बनाने का अवसर

ये वृतांत बजट 2022: आंकड़े और उसके आगे श्रृंखला का भाग है.


2022-23 का केंद्रीय बजट विकास को बढ़ाने वाला बजट होने की उम्मीद की जा रही है. कोविड-19 महामारी की वजह से भारी व्यवधान होने के कारण कई दशकों में सबसे ख़राब प्रदर्शन को देखने के बाद आर्थिक संकेतक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तेज़ रिकवरी का संकेत दे रहे हैं. आईएचएस मार्किट के ताज़ा पूर्वानुमान के अनुसार भारत की सांकेतिक जीडीपी 2030 तक 8.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने वाली है. इस तरह भारत एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा जोख़िम है. ओवरसीज़ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से साल 2100 तक भारत सालाना अपनी जीडीपी का 3 से 10 प्रतिशत गंवा देगा और साल 2040 तक भारत में ग़रीबी 3.5 प्रतिशत बढ़ सकती है. अगर हालात को बदलने के लिए क़दम नहीं उठाए गए तो इससे ग़रीबी उन्मूलन, आर्थिक विकास और नौकरियों के सृजन को लेकर देश की कोशिशें और कमज़ोर होंगी. ऐसी स्थिति को भारत नहीं झेल सकता है. 

संयुक्त राष्ट्र के कॉप26 शिखर सम्मेलन में भारत ने घोषणा की कि वो 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर लेगा और 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता या प्रति यूनिट जीडीपी उत्सर्जन कम-से-कम 45 प्रतिशत कम हो जाएगा. 

संयुक्त राष्ट्र के कॉप26 शिखर सम्मेलन में भारत ने घोषणा की कि वो 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर लेगा और 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता या प्रति यूनिट जीडीपी उत्सर्जन कम-से-कम 45 प्रतिशत कम हो जाएगा. इस बार का केंद्रीय बजट जलवायु परिवर्तन को ‘अनुकूल’ बनाकर इस तरह की जीडीपी की महत्वाकांक्षा हासिल करने में सरकार के लिए एक ऐतिहासिक अवसर था. लेकिन कुछ ऐसे अहम सवाल हैं जिनका जवाब मिलना ज़रूरी है: एक जलवायु अनुकूल बजट के ज़रिए भारत की आर्थिक प्रगति और जलवायु के लक्ष्यों को एक साथ कैसे हासिल किया जा सकता है? भारत की बजटीय और नियोजन प्रक्रिया में जलवायु से जुड़ी अनिवार्यताओं को मुख्य धारा में लाने की रूप-रेखा क्या होनी चाहिए? एक जलवायु अनुकूल बजट भारत के सार्वजनिक खर्च से अधिकतम लाभ कैसे हासिल कर सकता है?  

इस दिशा में पहला क़दम इस बात को मान्यता देना होगा कि विकास का मतलब आर्थिक वृद्धि से बढ़कर है. अर्थव्यवस्था के लिए नई सामान्य बात अर्थव्यवस्था के ‘कायापलट’ की अवधारणा पर आधारित है जो ‘लचीलेपन’ को एक मुख्य विशेषता के रूप में ग्रहण करती है. अर्थव्यवस्था को बढ़ाने और फिर आर्थिक संपत्ति को वितरित करने की परंपरागत मिसाल अब देश की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकती है. आर्थिक विकास को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों के बदले सतत, समावेशी और हरित मानकों में जोड़कर नापने की तुरंत आवश्यकता है. ऐसा करने से ‘विकास की गुणवत्ता’ पर निगरानी रखने के लिए विकास के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्तंभ के बीच पारस्परिक क्रिया का पता चल सकेगा. राष्ट्रीय वृद्धि और विकास की रणनीतियों के मूल में जलवायु अनिवार्यता को रखना विकास के नये संसाधनों का सृजन करते समय सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरी के कुशलता से समाधान करने में भारत के लिए सबसे बड़ा अवसर होगा. एक समावेशी, निम्न उत्सर्जन और जलवायु लचीला विकास का एजेंडा भारत के घरेलू सार्वजनिक खर्च की प्रभावशीलता को काफ़ी प्रोत्साहित करेगा.

एक अध्ययन में पाया गया कि ज़्यादातर शहरों में विकास या आधारभूत ढांचे की परियोजनाओं के लिए जलवायु से जुड़ी चिंताओं का समाधान करना कम महत्व की चीज़ है और ये सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि केंद्र सरकार की तरफ़ से शहरों को पैसा मिलना जारी रहे. 

दूसरा क़दम, एक जलवायु अनुकूल बजट पैसे के आवंटन और उपयोग से निपटने में एक नया बल प्रदान करेगा क्योंकि इस तरह का बजट निगरानी की एक प्रणाली शुरू करेगा ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आधारभूत ढांचे का निर्माण जलवायु आधारित लचीलापन से वंचित नहीं रहे. वैसे तो पिछले कई वर्षों से विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए आधारभूत ढांचे पर अधिक खर्च सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता बनी रही है लेकिन रिसर्च से स्पष्ट होता है कि जलवायु अनुकूलता का अभी भी उस आधारभूत ढांचे के कार्यक्रम या परियोजना डिज़ाइन में बदलना बाक़ी है जो भविष्य के जोखिम की अहमियत का हिसाब रख सके. क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट नॉलेज नेटवर्क के एक अध्ययन में पाया गया कि ज़्यादातर शहरों में विकास या आधारभूत ढांचे की परियोजनाओं के लिए जलवायु से जुड़ी चिंताओं का समाधान करना कम महत्व की चीज़ है और ये सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि केंद्र सरकार की तरफ़ से शहरों को पैसा मिलना जारी रहे. वैसे तो ओडिशा और गुजरात ने जलवायु बजट की शुरुआत की है ताकि जलवायु पर सार्वजनिक खर्च का हिसाब दिया जा सके लेकिन इस बंटे हुए, अलग-अलग दृष्टिकोण की जगह जलवायु अनुकूल बजट के लिए एक समान राष्ट्रीय रणनीति की तरफ़ एक बड़े बदलाव की आवश्यकता है जो कि प्रभावशाली रूप से राज्यों की द्वारा उठाए गए क़दमों को राष्ट्रीय खर्च और जलवायु लक्ष्यों से मिला सके. 

जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बदलाव

आख़िरी क़दम, एक जलवायु अनुकूल बजट को तैयार करने और उसे लागू करने में बदलाव के लिए मुश्किल और कार्बन की अधिकता वाले सेक्टर की एक आवश्यक भूमिका होगी. इस तरह के सेक्टर जैसे बिजली, ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, निर्माण, इत्यादि का जीडीपी के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में कुल कार्बन उत्सर्जन में एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. साथ ही ऐसे सेक्टर भविष्य में देश की आकांक्षा को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचे के मूलभूत स्तंभ होते हैं. लेकिन निम्न कार्बन की ओर बदलाव के लिए अर्थव्यवस्था या तो तैयार है या कई आर्थिक क्षेत्रों में ये बदलाव पहले से चल रहा है. इसलिए, अर्थव्यवस्था के ऐसे क्षेत्रों को बजट में मार्गदर्शन और राजकोषीय समर्थन की आवश्यकता होगी ताकि जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम किया जा सके और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बदलाव किया जा सके. ऐसे क्षेत्रों में निम्न कार्बन की ओर बदलाव को बढ़ावा देने वाली वित्तीय योजनाएं वैश्विक जलवायु वित्त के लिए भारत को एक आकर्षक ठिकाना बनाने में बुनियादी काम करेंगी. भारत को अपनी वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए वैश्विक जलवायु वित्त की आवश्यकता है. सीईएफडब्ल्यू सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस के एक अनुमान के अनुसार 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को 10.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के भारी-भरकम निवेश की ज़रूरत पड़ेगी. जलवायु अनुकूल बजट जलवायु को लेकर क़दम उठाने में अतिरिक्त निवेश के लिए भारत की बाहरी निर्भरता को कम करने में मदद कर सकता है. 

एक जलवायु अनुकूल बजट न केवल अपनी आर्थिक नीति को आगे ले जाने को लेकर किसी भी देश की स्पष्ट सोच को दिखाने का एक तरीक़ा है बल्कि इसका एक अर्थ कार्बन को कम बढ़ावा देना और इसके लिए एक आर्थिक प्रोत्साहन और राजनीतिक प्रयोजन प्रदान करना भी है. 

दूसरी तरफ़ जलवायु से प्रेरित आपदाएं जैसे कि सूखा, अनियमित बारिश, चक्रवात, इत्यादि ज़्यादातर लोगों की सामाजिक एवं वित्तीय कमज़ोरी को और भी ज़्यादा बिगाड़ना जारी रखेंगे और इस तरह सरकार के समर्थन पर उनकी निर्भरता बढ़ाएंगे. इस वक़्त एक जलवायु अनुकूल बजट को अपनाना भविष्य में अर्थव्यवस्था को सुचारू और न्यायसंगत परिवर्तन के रास्ते पर ले जाने के लिए राजकोषीय स्थिरता को सुनिश्चित करेगा. इसलिए एक जलवायु अनुकूल बजट न केवल अपनी आर्थिक नीति को आगे ले जाने को लेकर किसी भी देश की स्पष्ट सोच को दिखाने का एक तरीक़ा है बल्कि इसका एक अर्थ कार्बन को कम बढ़ावा देना और इसके लिए एक आर्थिक प्रोत्साहन और राजनीतिक प्रयोजन प्रदान करना भी है. जलवायु परिवर्तन का समाधान करने और वैश्विक जलवायु लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को सभी मोर्चों पर काम करने की ज़रूरत है. इस बार का केंद्रीय बजट इस दिशा में छलांग लगाने के लिए भारत के पास सबसे बड़ा अवसर है. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.