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यह एक ऐसा बजट है जिसमें राजनीति इसके अर्थशास्त्र पर हावी है, जिसकी अर्थव्यवस्था राजनीति के साथ गलबहियां कर रही है और जिसकी दिशा काफी हद तक 2019 के चुनावों पर केंद्रित है।
वित मंत्री पियूष गोयल ने तीन गुना तीन का, अर्थात एक त्रिआयामी बजट पेश किया है। पहली बात तो या कि यह तीन स्तंभों-राजनीति, राजनीतिक अर्थव्यवस्था एवं अर्थशास्त्र के इर्दगिर्द घूमता है। दूसरी बात कि यह तीन प्रमुख मतदाता वर्गो — गरीब किसानों, असंगठित श्रमिकों एवं निम्न कर अदा करने वालों की दिशा में केंद्रित है। और तीसरी बात, ये तीन बातों पर फोकस के साथ दुबारा चुने जाने की पृष्ठभूमि तैयार करता है, जिसमें गरीबों पर मजबूत फोकस के साथ 2024 तक $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था तथा 2032 तक 10 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के त्रिकोण की परीकल्पना है। व्यवसाय के क्षेत्र के लिए, जिस पर देश रोजगार सृजन के लिए निर्भर है, यह एक सामान्य सा बजट हैः इसमें कोई नया बड़ा सुधार नहीं है — लेकिन कोई नई बड़ी बाधा भी नहीं है।
आप इस बजट पर व्यंग्य से अपने कंधे उचका सकते हैं कि ‘आखिर इसमें नया क्या है।’ सत्ता छोड़ने वाली हर सरकार अपने निवर्तमान अंतरिम बजट या लेखानुदान में अपनी राजनीति की व्याख्या करती है — मनमोहन सिंह ने ऐसा फरवरी 1996 के बजट में किया था जब उन्होंने पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार द्वारा आरंभ 1991 के आर्थिक सुधारों को भुनाया था, यशवंत सिन्हा ने इसका अनुसरण फरवरी 2004 के बजट में किया था जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सुधारों की उपलब्धियों को गिनाया था और पी. चिदंबरम ने यही काम फरवरी 2014 के बजट में किया जब उन्होंने अर्थव्यवस्था के जोखिमों और किस प्रकार मनमोहन सिंह सरकार ने उन्हें प्रबंधित किया, की व्याख्या की थी।
इस लिहाज से, गोयल का बजट भी कोई अलग नहीं है। इसमें पिछले साढ़े चार सालों के दौरान नरेन्द्र मोदी की सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की गई है और तर्क दिया गया कि किस प्रकार सत्ता में वापस लौटने पर सरकार अपेक्षित दिशा में अपने कदम बढ़ाएगी। गोयल ने खौफनाक D शब्द, नोटबंदी सहित-वस्तु एवं सेवा कर से लेकर काले धन पर हमला तक हर आंकड़े को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया जिस पर वह अपना हाथ आजमा सकते थे, खासकर, किस प्रकार सरकार ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाया और आर्थिक विकास को प्रबंधित किया। लेकिन जब उन्होंने J शब्द यानी जॉब्स या रोज़गार की बात की, घरेलू एयर ट्रैफिक, अदृश्य मेक इन इंडिया कार्यक्रम या डिजिटल इकोसिस्टम में स्टार्ट-अप्स पर चर्चा के दौरान तो संभवतः पटरी से उतर गए। अगर हम उन्हें सच भी मान लें तो भी वो सरकार के वर्तमान रोज़गार के आंकड़ों को न जारी करने पर हो रही चर्चा में पूछे जा रहे सवालों का जवाब नहीं देता।
गोयल ने खौफनाक D शब्द, नोटबंदी सहित-वस्तु एवं सेवा कर से लेकर काले धन पर हमला तक हर आंकड़े को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया जिस पर वह अपना हाथ आजमा सकते थे, खासकर, किस प्रकार सरकार ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाया और आर्थिक विकास को प्रबंधित किया।
लेकिन इससे पहले हम इसकी राजनीति का विश्लेषण करें, हमें गोयल के बजट में सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्णय: टेक्नोलॉजी आधारित टैक्स स्क्रुटिनी परियोजना पर फोकस करना चािहए । इसके तहत, अगले दो वर्षों के दौरान — यह मानते हुए कि भाजपा के नेत्त्व में गठबंधन सरकार सत्ता में लौट आएगी-कर विशेषज्ञों एवं अधिकारियों की निगरानी में एक गोपनीय (एनोनिमाइज्ड) बैक ऑफिस के जरिये इलेक्ट्रॉनिक तरीके से स्क्रुटिनी के लिए रिटर्न का सत्यापन और आकलन किया जाएगा। कर अधिकारियों और कर दाता (एसेसी) के बीच व्यक्तिगत संपर्क की समाप्ति से भ्रष्टाचार में कमी आनी चाहिए। उस सम्मान के साथ, जो अब करदाताओं को आखिरकर सरकार से प्राप्त होने लगा है, यह कदम उस कर व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाता है जो दोहनपूर्ण और भ्रष्ट माहौल से अब सख्त लेकिन सहायक व्यवस्था में तबदील होने लगी है। नौकरशाही के लिहाज से यह एक बाधाकरी कदम हो सकता है, लेकिन यह एक ऐतिहासिक (गेमचेंजर) कदम साबित होगा।
इसके अतिरिक्त, आयकर छूट की सीमा को 5 लाख या सही निवेश करने पर 9.75 लाख रुपये तक बढ़ा देने का फैसला 18,500 करोड़ रुपये की कीमत पर 3 करोड़ छोटे करदाताओं जैसे स्व-रोजगार से जुड़े, छोटे व्यापारियों, वेतनजीवियों, पेंशनधारकों एवं वरिष्ठ नागरिकों की सहायता करेगा।
इसे स्पष्ट करने के लिए मान लें, अगर आपकी पांच लाख रुपये की कर योग्य आमदनी है, तो आप शून्य कर अदा करेंगे। अगर आपकी आमदनी बढ़कर 7 लाख रुपये तक की हो जाती है और आप सेक्शन 80 सीसी (जैसे भविष्य निधि या इक्विटी लिंक्ड बचत योजनाओं) के तहत 1.5 लाख रुपये तक का निवेश करते हैं तो आप शून्य कर अदा करेंगे। अंत में, आपकी 9.75 लाख रुपये की आमदनी है, तो उपरोक्त के अतिरिक्त आप होम लोन पर 2 लाख रुपये तक की कटौती करते हैं, मेडिक्लेम पर 25,000 रुपये व्यय करते हैं और नेशनल पेंशन स्कीम पर 50,000 रुपये का निवेश करते हैं तो आप शून्य कर अदा करेंगे।
यह बजट उस सीमा तक राजनीतिक है कि यह मतदाताओं को याद दिलाता है कि सरकार ने महंगाई पर काबू पाने से लेकर (‘हमारी सरकार ने कमर-तोड़ महंगाई की कमर ही तोड़ दी’) भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने तक उनके लिए क्या किया है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने को लेकर उन्होंने तीन कानूनों का जिक्र किया — विफल रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, अभी तक नतीजा नहीं दे सका-बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम एवं जिस पर कार्य अभी जारी है — भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-इनकं परिणाम अभी प्रतीक्षित हैं। संभवतः ये अच्छे कानून हैं और भ्रष्टाचारियों पर नकेल लगाने के लिए इन्हें उपयोग में लाया जाएगा। लेकिन अभी तक हमें इसका इंतजार ही है।
यह बजट उस सीमा तक राजनीतिक है कि यह मतदाताओं को याद दिलाता है कि सरकार ने महंगाई पर काबू पाने से लेकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने तक उनके लिए क्या किया है।
काले धन पर, गोयल ने दावा किया कि सरकार ने 130,000 करोड़ रुपये तक की अघोषित संपत्ति पकड़ी है, 50,000 करोड़ रुपये के बराबर की परियंपत्तियों की जब्ती एवं कुर्की की है और 338,000 शेल कंपनियों का पता लगाया है और उनका रजिस्ट्रेशन खत्म कर दिया है।
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष प्रत्यक्ष कर संग्रह में 18 प्रतिशत की वृद्धि और वित वर्ष 2017-18 में पहली बार 10.6 मिलियन लोगों द्वारा इनकम टैक्स रिटर्न भरने के माध्यम से कर आधार में बढोतरी मुख्य रूप से नोटबंदी के कारण संभव हो पाया, हालांकि दोनों के बीच के औपचारिक संबंध का रहस्य अभी भी बना हुआ है।
बजट में भारत की हकदारियों एवं मुफ्त उपहारों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को अंगीकार किया गया है। 75,000 करोड़ रुपये का प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि कार्यक्रम, जिसके तहत 2 हेक्टेयर जोत वाले छोटे किसानों को सालाना 6,000 रुपये सीधे तीन किस्तों में उनके बैंक खातों में डाल दिए जाएंगे, ऐसा ही एक कार्यक्रम है जो 1 दिसंबर 2018 से पूर्वव्यापी रूप से आरंभ कर दिया गया है। इससे 12 करोड़ छोटे एवं सीमांत किसानों को लाभ पहुंचेगा। अगला कदम असंगठित क्षेत्र के 42 करोड़ मजदूरों को लाभ पहुंचाने का है। प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन के तहत मासिक 55-100 रुपये प्रति महीने के योगदान पर उन्हें 60 वर्ष की उम्र तक 3,000 का मासिक पेंशन मिलेगा।
आर्थिक मोर्चे पर, गोयल ने बुनियादी ढांचा, रेलवे (158,658 करोड़ रुपये), रक्षा (300,000 करोड़ रुपये) पर परिव्यय बढ़ाया है, फिर भी राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.4 प्रतिशत तक रखने में सफल हुए हैं — अगर किसानों को 75,000 करोड़ रुपये के आय समर्थन को इसमें शामिल नहीं किया जाता तो यह 3.3 प्रतिशत रहा होता। इसके बावजूद, 2020-21 तक राजकोषीय घाटे को 3.0 प्रतिशत तक ले आने का लक्ष्य कार्यान्वयन अधीन है। एक बार यह वित्तीय संघटन कार्यक्रम पटरी पर आ जाए, तो वह ऋण संघटन और ऋण-जीडीपी अनुपात को 46.5 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक लाने पर फोकस करेंगे। वर्तमान वर्ष के लिए, गोयल को भरोसा है कि 57 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा 1,300,000 करोड़ रुपये से अधिक के बाजार पूंजीकरण का वहन करने के साथ वह 80,000 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को पार कर जाएंगे। कार्यान्वित किए जाने पर यह लक्ष्य न केवल सरकार के वित का प्रतिरोध (बफर) करेगा बल्कि स्टॉक मार्केट में और अधिक गहराई भी लाएगा।
आर्थिक मोर्चे पर, गोयल ने बुनियादी ढांचा, रेलवे (158,658 करोड़ रुपये), रक्षा (300,000 करोड़ रुपये) पर परिव्यय बढ़ाया है, फिर भी राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.4 प्रतिशत तक रखने में सफल हुए हैं — अगर किसानों को दिया गया आय समर्थन इसमें शामिल नहीं किया जाता तो यह 3.3 प्रतिशत रहा होता।
अंत में, गोयल 2030 में उनके 10 सर्वाधिक महत्वपूर्ण आयामों को साफ़ करते हुए वोट के लिए एक ‘विजन’ प्रस्तुत करते हैं। ये हैं:
कुल मिला कर, यह एक ऐसा बजट है जिसमें राजनीति इसके अर्थशास्त्र पर हावी है, जिसकी अर्थव्यवस्था राजनीति के साथ गलबहियां कर रही है और जिसकी दिशा काफी हद तक 2019 के चुनावों पर केंद्रित है। इसके वर्तमान से भविष्य की दिशा में बदलने के साथ आर्थिक विकास पर अंतर्निहित फोकस स्पष्ट रूप से राजनीतिक तुष्टिकरण में तबदील हो गया है। जो सूचकांक पहले स्थिर रहा था, वह दिन में 0.6 प्रतिशत से कम बढ़ा जिससे यह प्रदर्शित होता है कि वह चिंतामुक्त हुआ कि बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जो विकास को आघात पहुंचाता हो। क्या गोयल कुछ बेहतर कर सकते थे? निश्चित रूप से। लेकिन भारत की मटमैली राजनीतिक अर्थव्यवस्था की बाधाओं और सीमाओं के भीतर तथा चुनाव से महज तीन महीने दूर परस्पर विरोधी हितों को साधते हुए, उनका बजट 2019 तीन विलक्षण धाराओं की एक त्रिमूर्ति है।
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Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...
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