Author : Oommen C. Kurian

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में इस बार का बज़ट स्वास्थ्य क्षेत्र और स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को एक साथ जोड़ना जारी रखता है.

2022-23 के बजट में बड़े पूंजी निवेश से होने वाला फ़ायदा स्वास्थ्य क्षेत्र को कमोबेश नज़रअंदाज़ करता है
2022-23 के बजट में बड़े पूंजी निवेश से होने वाला फ़ायदा स्वास्थ्य क्षेत्र को कमोबेश नज़रअंदाज़ करता है

बज़ट भाषण सुनने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का स्पष्ट बयान कि ‘पूंजी निवेश अपने मल्टीप्लायर असर के ज़रिए लगातार आर्थिक पुनरुद्धार और समेकन की योग्यता रखता है- और परिणामस्वरूप, केंद्रीय बज़ट में पूंजीगत व्यय के लिए परिव्यय पिछले वर्ष के 5.54 लाख करोड़ रुपये के मुक़ाबले 35.4 प्रतिशत बढ़ाकर अगले वर्ष 7.50 लाख करोड़ रुपये कर दिया जाएगा, जो स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बहुत बड़ा वादा है. आख़िरकार पिछले दो वर्षों में अनिश्चितताओं और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को लेकर चिंता- जिसकी ऐतिहासिक उपेक्षा अब तक की जाती रही है- कोरोना महामारी के चलते भारत को सबक दे गया कि एक कार्यशील स्वास्थ्य प्रणाली आर्थिक सुरक्षा सहित मानव सुरक्षा के लिए अहम ज़रूरत होती है. 

पिछले दो वर्षों में अनिश्चितताओं और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को लेकर चिंता- जिसकी ऐतिहासिक उपेक्षा अब तक की जाती रही है- कोरोना महामारी के चलते भारत को सबक दे गया कि एक कार्यशील स्वास्थ्य प्रणाली आर्थिक सुरक्षा सहित मानव सुरक्षा के लिए अहम ज़रूरत होती है.

हालांकि, विस्तृत बज़ट आंकड़े जारी करने से यह साबित हो गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त रूप से पूंजी निवेश की ऐसी कोई उम्मीद बेमानी थी. हालांकि लागातार बढ़ते निवेश के साथ आवास, बिजली, रसोई गैस, स्वच्छता, सड़क और पानी तक पहुंच जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों पर भारत ध्यान केंद्रित  करना जारी रखे हुए है लेकिन वर्तमान मांग के अनुरूप इस बार का बज़ट स्वास्थ्य क्षेत्र में क्षमता बढ़ाने को लेकर कुछ ख़ास करता नहीं दिख रहा है.

यह प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना (पीएम-एएसबीवाई) जैसे कुछ प्रयासों के बावजूद है, जिसे अब प्रधानमंत्री-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) योजना का नाम दिया गया है. यह योजना पिछले साल ही छह वर्षों में लगभग 64,180 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू की गई थी. इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल करने वाली संस्थानों की क्षमता को बढ़ाना, मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को मज़बूत करना और नए संस्थानों का निर्माण करने के साथ नई और उभरती हुई बीमारियों की रोकथाम और जांच करना था. इसके अलावा प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई), जो कि देश के सबसे दुर्गम क्षेत्रों  में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा वितरण में सरकारी बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देती है. इस योजना के लिए आवंटन को बढ़ाकर पिछले साल के 7,000 करोड़ रुपये के मुक़ाबले इस साल 10,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

स्वास्थ्य क्षेत्र में नए बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति निश्चित रूप से कोरोना महामारी के कारण बाधित हुई है और संभवत:  इस पर फंड की कमी का भी असर हुआ है. आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एबी-एचडब्ल्यूसी) इसकी मिसाल है.

इसके साथ ही ये सकारात्मक कदम राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए संसाधनों की कमी होने से प्रभावित भी होता है, ख़ास कर कोरोना महामारी के बीच में, जब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली ने अपनी उपयोगिता साबित की थी और तब निजी अस्पतालों ने हाथ खड़े कर लिए थे. जैसा कि ग्राफ 1 में दिखाया गया है कि वास्तविक एनएचएम आवंटन अभी भी साल 2020 के स्तर से भी कम है.

ग्राफ 1: पिछले तीन बजटों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटन

स्रोत : https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/allsbe.pdf


बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को सिर्फ 0.75 प्रतिशत आवंटन

इससे भी ज़्यादा चिंता की बात यह है कि अगले वर्ष में 750,245 करोड़ रुपये का नियोजित पूंजीगत व्यय का वादा किया गया है और इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र को 5,638 करोड़ रुपये या दूसरे शब्दों में, 0.75 प्रतिशत आवंटन का हिस्सा ही दिया गया है. इसके मुक़ाबले सड़क परिवहन और राजमार्गों को 187,744 करोड़ रुपये या 25 प्रतिशत आवंटन दिया गया है, रक्षा को 160,419 करोड़ रूपए या 21.4 प्रतिशत आवंटन दिया गया है, रेलवे को 137,100 करोड़ रुपये या 18.27 प्रतिशत, संचार को 55,039 रुपए या 7.34 प्रतिशत मिला है; आवास और शहरी मामलों को 27,341 करोड़ रुपए या 3.64 प्रतिशत और अंतरिक्ष को 7,465 करोड़ रुपए या कुल पूंजीगत व्यय का लगभग 1 प्रतिशत आवंटित किया गया है. इसमें दो राय नहीं कि ये सभी क्षेत्र आवश्यक हैं लेकिन कोरोना महामारी के संदर्भ में स्वास्थ्य क्षेत्र को दी गई अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता यहां चर्चा का विषय है. 

कुल मिलाकर आयुष्मान भारत डिज़िटल मिशन (एबीडीएम) को छोड़कर, जिसका मक़सद स्वास्थ्य सेवा देने वालों और स्वास्थ्य सुविधाओं की डिज़िटल रजिस्ट्रियों के लिए एक खुला मंच प्रदान करना, एक अनोखा स्वास्थ्य पहचान, एक सहमतिपूर्ण ढांचा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच तैयार करना है; और राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनटीएमएचपी), जो मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल सेवाएं देगा, लेकिन अहम स्वास्थ्य क्षेत्रों का इस बज़ट में ध्यान नहीं रखा गया है, वो भी यह देखते हुए कि कोरोना महामारी ने इन क्षेत्रों पर ध्यान देने के लिए एक ऐतिहासिक मौका दिया था. स्वास्थ्य क्षेत्र में संसाधनों को चैनेलाइज़ कर बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों को बढ़ाया जा सकता था.

जब कोई स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से परे बज़ट दस्तावेज़ों को देखता है तो एबीडीएम और एनटीएमएचपी के स्वास्थ्य क्षेत्र में आगे बढ़ने की पहल शामिल होती है, जो भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बना सकती है.

स्वास्थ्य क्षेत्र में नए बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति निश्चित रूप से कोरोना महामारी के कारण बाधित हुई है और संभवत:  इस पर फंड की कमी का भी असर हुआ है. आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एबी-एचडब्ल्यूसी) इसकी मिसाल है. शुरुआती योजनाओं के मुताबिक, दिसंबर 2022 तक व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए 1.5 लाख नए स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एचडब्ल्यूसी) बनाए जाने थे (ग्राफ 2 इस योजना की शुरुआत के बारे में बताता है). हलांकि निगरानी पोर्टल के आंकड़े बताते हैं कि 1 फरवरी 2022 तक देश भर में केवल 76,633 एचडब्ल्यूसी ही चालू किए गए हैं. इसका मतलब यह है कि पिछले चार वर्षों में बनाए गए एचडब्ल्यूसी के निर्माण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए साल 2022 के बचे 11 महीनों के दौरान ही इसे बनाना होगा. हालांकि एक तरफ ध्यान दिए बगैर और संसाधन की मदद के बिना यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है. इसे लागू किए जाने से ठीक पहले के एक विश्लेषण से पता चला था कि चालू हालत वाले एचडब्ल्यूसी की बड़ी संख्या बेहतर स्थिति वाले राज्यों में है, इसलिए नए एचडब्ल्यूसी शुरू करने के लिए वैसी ही व्यवस्था बनाने पर ध्यान देना होगा.

ग्राफ़ 2 : आयुष्मान भारत और वेलनेस सेंटर्स की शुरुआत करने की योजना

स्रोत: https://ab-hwc.nhp.gov.in/

“स्वास्थ्य और बेहतरी”


पिछले साल के बज़ट दस्तावेज़ में ‘स्वास्थ्य और बेहतरी (वेलबिइंग) ‘ नाम की एक मनमानी श्रेणी बनाकर और इसमें पीने के पानी और स्वच्छता के लिए बढ़े हुए आवंटन को जोड़कर वास्तविक स्वास्थ्य परिव्यय (आउटले) को बढ़ाने की कोशिश की गई थी. इसने पिछले साल भ्रम की स्थिति पैदा कर दी थी जिससे कई लोगों को यह भरोसा हो गया कि परिव्यय में पर्याप्त सुधार हुआ है लेकिन शुक्र है कि इस साल का बज़ट एक श्रेणी के रूप में “स्वास्थ्य और बेहतरी” का ज़िक्र करने को लेकर साफ है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2022 कुछ इसी तरह का प्रयास कर रहा है. सच में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 (एनएचपी 2017) ने सरकार के स्वास्थ्य व्यय को 2025 तक जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने की सोच रखी थी. दिलचस्प बात यह है कि आर्थिक सर्वेक्षण 2022 (तालिका 1) यह दावा करता है कि साल 2014-15 में 1.2 प्रतिशत की तुलना में, सकल घरेलू उत्पाद का 2.1 फ़ीसदी स्वास्थ्य पर ख़र्च किया जा रहा है. आर्थिक सर्वेक्षण में एनएचपी 2017 के 2.5 प्रतिशत के लक्ष्य का भी ज़िक्र है लेकिन इससे यह साफ नहीं होता है कि एनएचपी 2017 में अकेले स्वास्थ्य ख़र्च की जानकारी देता हो. तालिका के नीचे एक नोट यह बताता है कि, ‘स्वास्थ्य’ पर व्यय में ‘चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य’, ‘परिवार कल्याण’ और ‘जल आपूर्ति और स्वच्छता’ पर भी ख़र्च शामिल है. यह पिछले साल के बज़ट की तरह हाल के स्वास्थ्य परिव्यय को बढ़ाने की कोशिश है जिसमें फिर से पीने के पानी और स्वच्छता पर बढ़े हुए ख़र्च दिखाकर दुरुपयोग की बात सामने आती है.

तालिका 1 : सामाजिक सेक्टर में सरकारी ख़र्च का ट्रेंड (संयुक्त रूप से केंद्र और राज्य )

स्रोत: https://www.indiabudget.gov.in/economicsurvey/


हालांकि, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए आवश्यक संसाधनों को बढ़ावा देने में नाकामी का मतलब यह नहीं है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के पास महामारी से लड़ने के लिए आवश्यक धन नहीं होगा.. पिछले दो बज़टों (ग्राफ 3) के अनुभवों से ये पता चलता है कि बज़ट, अनुमानित वर्ष के लिए वास्तविक स्वास्थ्य ख़र्च के बारे में सही अनुमान नहीं लगा पाता है. दोनों कोरोना महामारी के वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र के बज़ट अनुमानों को उसी साल बाद में काफी हद तक संशोधित किया गया है. यह देखते हुए कि राजनीतिक नेतृत्व इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि कोरोना महामारी से सामना करने के लिए धन की कमी नहीं होने देगा और ज़रूरत पड़ने पर साल के आधे भाग में विशेष आवंटन भी हो सकता है.

ग्राफ़ 3 : स्वास्थ्य के लिए बज़ट में आवंटन और कोरोना महामारी के दौरान फिर से अनुमान लगाना

स्रोत: https://www.indiabudget.gov.in/index.php


जब कोई स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से परे बज़ट दस्तावेज़ों को देखता है तो एबीडीएम और एनटीएमएचपी के स्वास्थ्य क्षेत्र में आगे बढ़ने की पहल शामिल होती है, जो भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बना सकती है. उदाहरण के लिए भारत में थोक दवा निर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के साथ-साथ चिकित्सा उपकरण पार्क बनाने का विचार है, जिसके लिए इस साल के बज़ट में पर्याप्त आवंटन देखा गया है. इसके साथ ही, स्वास्थ्य क्षेत्र के भीतर स्वायत्त निकाय, जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली; पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़; और जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुडुचेरी के लिए पिछले दो वर्षों के मुक़ाबले इस साल कुल आवंटन में काफी वृद्धि हुई है. साल 2020 के 7,565 करोड़ रूपए से बढ़ाकर इस वर्ष 10,022 करोड़ रूपए कर दिया गया है. 

कुल मिलाकर सरकारी स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली के भीतर बुनियादी ढांचे के निर्माण में स्पष्ट रुकावटों के बावजूद, यह बज़ट इस तथ्य को साबित करता है कि भारत धीरे-धीरे और तेजी से स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों (एसडीएच) को लागू करने की दिशा में काम कर रहा है और पोषण, पेयजल, आंतरिक वायु प्रदूषण, स्वच्छता, सड़क पहुंच और लिंग जैसे क्षेत्र में हस्तक्षेप की बात करता है. इन हस्तक्षेपों से स्वास्थ्य सेवा की व्यापकता को बढ़ाया जा सकता है और औसत भारतीय नागरिक की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार लाया जा सकता है, अगर इस क्षेत्र के भीतर बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन बाधाओं को कम करने के लिए कोशिश किए जाए.

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