दिल्ली में, बहुत से लोगों को पाइप के ज़रिये आपूर्ति होनेवाले पेयजल की सुविधा हासिल नहीं है. इसके अलावा, आपूर्ति में इलाक़े के हिसाब से काफ़ी असमानता है. यह लेख दिल्ली की स्थिति पानी के मामले में बेहतर बनाने के मसौदा मास्टर प्लान के नीतिगत प्रस्तावों की समीक्षा करता है. लेख इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि जलापूर्ति एजेंसी को प्रस्तावों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए ज्यादा उच्च स्तर की दक्षता प्रदर्शित करनी होगी.
पानी की इस कमी का प्रतिकूल प्रभाव दिल्ली में सहज ही देखा जा सकता है. एक या दो पायलट प्रोजेक्ट को छोड़ दें, तो किसी भी नियोजित क्षेत्र (planned area) को पाइप से मिलने वाले पानी की चौबीसों घंटे आपूर्ति नहीं हो पा रही है.
दिल्ली की जलापूर्ति एजेंसी नदी, नहर, भूमिगत, वर्षा इत्यादि विभिन्न स्रोतों से लगभग 935 मिलियन गैलन प्रतिदिन (mgd) के हिसाब से अशोधित पानी (raw water) इकट्ठा करती है. नयी दिल्ली में पानी की कम उपलब्धता के कारण, आधे से ज्यादा पानी उन धरातलीय स्रोतों (surface sources) से हासिल किया जाता है जो पड़ोसी राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, और उत्तर प्रदेश में स्थित हैं. हालांकि, 1.9 करोड़ की आबादी के लिए शहर की पानी की मांग इससे कहीं ज्यादा (1,140 mgd) है, जिसका मतलब हुआ कि लगभग 200 mgd की कम आपूर्ति है. इस तरह, लगभग 18 फ़ीसद मांग पूरी नहीं की जा पा रही है. इस मांग की गणना दिल्ली में रहनेवाले हरेक व्यक्ति की रोज़ की ज़रूरत के आधार पर की जाती है. यानी, इसके लिए 1.9 करोड़ आबादी के साथ 60 गैलन प्रति व्यक्ति रोज़ाना (gallons per capita daily या gpcd) का गुणा किया जाता है.
ऐसा अनुमान है कि 2031 तक दिल्ली के लिए पानी की मांग बढ़ कर 1,746 mgd तक हो जायेगी, और 2041 तक 2.9 करोड़ की अनुमानित आबादी के लिए इसे कम करके 1455 mgd पर लाने के प्रयास किये जायेंगे. दिल्ली में आबादी की वृद्धि दर में कमी देखी जा रही है, और आसपड़ोस के शहरी केंद्रों में ज्यादा वृद्धि दर्ज की जा रही है. पानी की इस कमी का प्रतिकूल प्रभाव दिल्ली में सहज ही देखा जा सकता है. एक या दो पायलट प्रोजेक्ट को छोड़ दें, तो किसी भी नियोजित क्षेत्र (planned area) को पाइप से मिलने वाले पानी की चौबीसों घंटे आपूर्ति नहीं हो पा रही है. दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले उपभोक्ताओं को पाइप के ज़रिये जलापूर्ति का मौजूदा पैटर्न काफ़ी अलग-अलग है. दिल्ली जल बोर्ड के जलापूर्ति के टाइम टेबल के मुताबिक़, पॉकेट-सी, सेक्टर-3, द्वारका (द्वारका दक्षिण-पश्चिम दिल्ली स्थित एक उप-नगर है) स्थित आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के घरों को पानी सुबह 5:45 बजे से 6:15 बजे तक और फिर शाम 5:45 बजे से 6:15 बजे तक तक मिलता है. इस तरह, पूरे दिन में सिर्फ़ एक घंटा पानी मिल पाता है. उच्चवर्गीय कॉलोनियों (posh colonies) में, वेस्ट एंड को एक निजी-सार्वजनिक साझेदारी (पीपीपी) परियोजना के तहत जहां 24 घंटे पानी की आपूर्ति होती है, वहीं वसंत विहार, शांति निकेतन, और आनंद निकेतन (दक्षिण दिल्ली स्थित रिहाइशी इलाक़े) को रोज़ चार घंटे तक जलापूर्ति होती है.
दिल्ली बड़ी तादाद में ऐसे लोगों का भी घर है जो अनौपचारिक इलाक़ों, यानी कि झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं. इन इलाक़ों के घरों में जलापूर्ति एजेंसी टैंकों और पाइपलाइन के ज़रिये पानी की सप्लाई करती है, लेकिन इस संबंध में अनियमितताएं देखने को मिली हैं.
अनाधिकृत बस्तियों में किल्लत
जिन उपभोक्ताओं को पाइप के ज़रिये आपूर्ति मिलती है उनमें से ज्यादातर, रोज़ अपने घरों की छत पर लगी टंकियों में पानी जमा करते हैं. यह उन्हें सुविधा देता है कि जब ज़रूरत हो वे पानी का इस्तेमाल कर सकें. दिल्ली बड़ी तादाद में ऐसे लोगों का भी घर है जो अनौपचारिक इलाक़ों, यानी कि झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं. इन इलाक़ों के घरों में जलापूर्ति एजेंसी टैंकों और पाइपलाइन के ज़रिये पानी की सप्लाई करती है, लेकिन इस संबंध में अनियमितताएं देखने को मिली हैं. पानी की उपलब्धता नहीं (या कम) होना मुश्किलें पैदा करती है, ख़ासकर उन समुदायों की ज़िंदगियों और रोज़ी-रोटी में जो अनौपचारिक इलाक़ों में रहते हैं. कभी-कभी, पानी को लेकर प्रदर्शन और टकराव की घटनाएं भी होती हैं. आंकड़े दिखाते हैं कि दिल्ली में 17 फ़ीसद घरों को पाइप के ज़रिये पानी मुहैया नहीं है, और अनधिकृत कॉलोनियों में से 13 फ़ीसद को अब भी पाइप के ज़रिये जलापूर्ति के तहत लाया जाना बाकी है. ऊपर वर्णित सूचनाएं और आंकड़े दिल्ली की जलापूर्ति से संबंधित समस्याओं, ख़ासकर जो अपर्याप्त आपूर्ति और असमान वितरण से जुड़ी हुई हैं, को समझने में मदद करते हैं.
यह पूरी समस्या इन वजहों से खड़ी हुई है :
- पड़ोसी राज्यों से अशोधित पानी (raw water) मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
- दिल्ली के कुछ हिस्सों में, बेरोक-टोक और बिना किसी नियमन के भूमिगत जल निकाला जाता है, जिससे भूमिगत जलस्तर में गिरावट आती है.
- अशोधित निकास-जल (untreated effluents) गिराये जाने और कचरा डाले जाने के चलते धरातलीय स्रोतों में मौजूद पानी की गुणवत्ता निम्न है.
- पाइपलाइनों में रिसाव और उनमें छेद करके अवैध ढंग से पानी निकाले जाने से पानी दूषित और बर्बाद होता है.
- भूमिगत जल का खारापन भी देखा गया है; फ्लोराइड, नाइट्रेट, और आर्सेनिक का स्तर तय सीमाओं से ज्यादा है.
- लोग शोधित जल का इस्तेमाल पीने के अलावा दूसरे कामों के लिए करते हैं, जो पानी की बर्बादी को बढ़ाता है.
- बहुत से घर बिना वाटर मीटर के हैं, या लगाये गये मीटर ख़राब पड़े हैं.
- अपशिष्ट जल की रिसाइक्लिंग और बारिश के पानी को सहेजने (rainwater harvesting) का ठीक से उपयोग नहीं हुआ है.
दिल्ली के लिए मास्टर प्लान
पानी के मामले में सुधार के वास्ते, दिल्ली के लिए 2021 से लेकर 2041 तक का, 20 सालों का मसौदा मास्टर प्लान एक समेकित जल प्रबंधन दृष्टिकोण (integrated water management approach) की सिफ़ारिश करता है. इसमें जलापूर्ति, सीवरेज (अपशिष्ट जल), और निकासी का विकास समेकित ढंग से करना शामिल है. मास्टर प्लान में ये प्रस्ताव भी शामिल हैं : (i) ताज़ा पानी की मांग घटाना; (ii) अपशिष्ट जल के बड़े पैमाने पर दोबारा इस्तेमाल को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना; (iii) भारी बारिश से भर गये पानी (storm water) को अधिक से अधिक रोक कर रखना; (iv) जल प्रणालियों/ बुनियादी ढांचे की दक्षता में सुधार करना, और (v) अंतर-राज्यीय समझौतों के जरिये अशोधित पानी हासिल करना.
शोधित अपशिष्ट जल का इस्तेमाल पीने के अलावा दूसरी ज़रूरतों जैसे बागवानी, सिंचाई, सड़क की सफाई, उद्योग, आग बुझाने, और निर्माण कार्यों के लिए किया जायेगा. मौजूदा सरकारी और वाणिज्यिक इमारतों को भी विकेंद्रीकृत प्रणाली और दोहरी पाइपिंग को अपनाना होगा.
यह प्रस्ताव किया गया है कि जलापूर्ति के लिए प्रति व्यक्ति मानदंड को 60 gpcd (274 lpcd) से घटाकर 50 gpcd (225 lpcd) किया जायेगा. नये विकसित हो रहे इलाक़ों को जल संरक्षण के तरीक़ों से लैस किया जायेगा, और प्रति व्यक्ति आपूर्ति को 40 gpcd तक सीमित किया जायेगा. हरित विकास (green development) क्षेत्रों में, पानी की ज़रूरत मुख्यत: अपशिष्ट जल के शोधन से पूरी की जायेगी. पूरे 100 फ़ीसद अपशिष्ट जल के शोधन और दोबारा इस्तेमाल के लिए क़दम उठाये जायेंगे. इसके लिए नये विकसित हो रहे इलाक़ों में, दोहरी पाइपिंग (dual piping) के साथ विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र स्थापित किये जायेंगे. शोधित अपशिष्ट जल का इस्तेमाल पीने के अलावा दूसरी ज़रूरतों जैसे बागवानी, सिंचाई, सड़क की सफाई, उद्योग, आग बुझाने, और निर्माण कार्यों के लिए किया जायेगा. मौजूदा सरकारी और वाणिज्यिक इमारतों को भी विकेंद्रीकृत प्रणाली और दोहरी पाइपिंग को अपनाना होगा. एक और जल सरंक्षण उपाय के रूप में नये विकासों, पुनरुद्धार परियोजनाओं और मौजूदा सरकारी/वाणिज्यिक इमारतों में पानी की खपत कम करनेवाले प्लम्बिंग साजोसामान (टोटी, फ्लश वगैरह) लगाने का प्रस्ताव है.
रेनवाटर हार्वेस्टिंग और भारी बारिश से भर आये पानी को सहेजने के लिए प्रणालियों और सुविधाओं के विकास को भी प्राथमिकता दी गयी है. इसके लिए, निचले इलाक़ों में पार्क और खुली जगहें बनायी जायेंगी, और जल संरक्षण के प्रति संवदेनशील शहरी डिजाइन के सिद्धांत लागू किये जायेंगे, जैसे- भारी बारिश से भरे पानी को ज़मीन में जाने देनेवाली वाली नालियां, थोड़ा-थोड़ा पानी भीतर जाने देनेवाले फुटपाथ (पेवमेंट) और सार्वजनिक पार्किंग क्षेत्र, वर्षा उद्यान वगैरह. इन उपायों का मक़सद भूमिगत जल का पुनर्भरण (रिचार्ज) सुनिश्चित करना, साथ ही साथ पीने के अलावा दूसरी ज़रूरतों के लिए पानी का भंडारण करना है.
अंत में, मसौदा मास्टर प्लान जलापूर्ति की मौजूदा प्रणाली में मौजूद ख़ामियों को दूर करने का आह्वान करता है. इनका संबंध गैर-राजस्व जल में कमी लाने, कनेक्शनों की 100 फ़ीसदी मीटरिंग, पानी के लिए टेलीस्कोपिक प्राइसिंग (ज्यादा उपयोग के लिए ज्यादा दर) लाने, और सीवरेज नेटवर्क के बेहतर रखरखाव से है. पानी के मामले में दिल्ली की स्थिति में सुधार के लिए लाये गये मसौदा मास्टर प्लान के प्रस्ताव पानी की कमी, वितरण में असमानता, और बर्बादी जैसे मुद्दों से निपटने में कारगर होंगे. हालांकि, इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना होगा. इसी तरह के उपायों को लागू करने में जलापूर्ति एजेंसी का पिछला प्रदर्शन कई मोर्चें पर उत्साहजनक रहा है. अगर लक्ष्यों को हासिल करना है, तो इस बार ज्यादा ऊंचे स्तर की दक्षता दिखाने की ज़रूरत होगी.
इसी तरह के उपायों को लागू करने में जलापूर्ति एजेंसी का पिछला प्रदर्शन कई मोर्चें पर उत्साहजनक रहा है. अगर लक्ष्यों को हासिल करना है, तो इस बार ज्यादा ऊंचे स्तर की दक्षता दिखाने की ज़रूरत होगी.
अधिकारियों के कामकाज की स्थितियां और उनकी क्षमताएं, जलापूर्ति एजेंसी की वित्तीय स्थिति और जवाबदेही, वाटर/सीवर नेटवर्क एवं बुनियादी ढांचे का रखरखाव, गैर-सरकारी हितधारकों की भागीदारी, नागरिकों के बीच जल सरंक्षण को लेकर जागरूकता, और उपभोक्ताओं द्वारा किये जाने वाले उल्लंघन अब भी चिंता के विषय बने हुए हैं. दिल्ली के पानी का उपभोग एक बड़ी क्षेत्रीय आबादी द्वारा किया जाता है, क्योंकि हर रोज़ आसपास के इलाक़ों से बहुत से कामगार इस शहर में आते हैं. पड़ोसी राज्य सरकारों को इस पहलू को ध्यान में रखना चाहिए और इसी के मुताबिक़ पानी के बंटवारे का एक उचित फॉर्मूला विकसित करना चाहिए.
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