Author : Anirban Sarma

Published on Feb 16, 2024

भारत की शिक्षा एक अनूठी प्रगति के दौर से गुज़र रही है. मौजूदा समय में इस सेक्टर की कीमत लगभग 117 बिलियन डॉलर है, और वर्ष 2030 तक इसका मूल्य 313 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. शिक्षा के प्रत्येक स्तर और प्रकार में उसके कई तत्व बदल रहे हैं. भारत की जनसंख्या से जुड़ा लाभ उनमें से एक है. 5 से 24 वर्ष के आयु वर्ग के 580 मिलियन से अधिक लोगों के साथ देश का एक बड़ा, और जीवंत वर्ग, ज्ञान और प्रगति के लिए अपनी सामूहिक भूख के लिये जाना जाता है. ये लोग ज्ञान के लिये प्रयासरत लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. और जिस तरह पेशेवर कौशल प्लेटफार्मों में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही स्तर पर बड़ी संख्या में नामांकन में वृद्धि पायी गयी उससे पता चलता है कि एक बड़ा कामकाजी उम्र का प्रतिनिधी वर्ग भी अपने भविष्य के लिए खुद को तैयार कर रहा है.   

यह संख्या भारत के मध्यम वर्ग के विस्तार के साथ ही और ज़्यादा बढ़ेगी; टेक्नोलॉजी शिक्षकों और शिक्षार्थियों के लिए नई सीमाएं खोलेगी और भविष्य की ओर देखने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का विज़न साकार करने का काम करेगा.

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2024 के उपलक्ष्य में ओआरएफ़ के रिसर्चर्स के द्वारा लिखे गए नौ निबंधों का यह संग्रह भारत और उसके बाहर शिक्षा को परिभाषित करने वाले मुद्दों की पड़ताल करता है. उदाहरण के लिए, वे प्रारंभिक बाल शिक्षा के महत्वपूर्ण महत्व और भारत की मानव पूंजी के निर्माण के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की केंद्रीयता की जांच करते हैं. वे इस बात पर फिर से विचार करते हैं कि आख़िर क्यों बालिकाओं को शिक्षित करना एक मुख्य विकास प्राथमिकता बनी रहना चाहिए; और साथ ही ये भी जांच करते हैं कि महिला STEM ग्रैजुएट्स को कार्यबल में बनाए रखने के लिए क्या किया जा सकता है. वे वैश्विक डिजिटल पावर हाउस के रूप में भारत के उदय के संदर्भ में- महामारी के बाद से देश के एडटेक क्षेत्र की यात्रा, और अधिक मोटे तौर पर, शिक्षा के लिए टेक्नोलॉजी के उपयोग के आसपास के लाभ और अंतराल का आकलन करते हैं. एक विशेष निबंध चिकित्सा शिक्षा के लिए अपने सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने के भारत के प्रयासों की ओर ध्यान आकर्षित करता है. और दो समापन टुकड़े एक अधिक अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को अपनाते हैं, यह अध्ययन करते हुए कि विभिन्न संविधान शिक्षा के अधिकार को कैसे देखते हैं; और अंत में हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये फंड जुटाने के तंत्र की खोज करते हैं.

संपादन - अनिर्बान शर्मा

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