ये लेख हमारी सीरीज़, ‘रिइमैजिनिंग एजुकेशन/ इंटरनेशनल डे ऑफ एजुकेशन 2024’ का एक हिस्सा है
भारत में लड़कियों की शिक्षा ने एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला सफर तय किया है और इस सफ़र के दौरान कई चुनौतियां लगातार बनी रहीं, तो प्रगति की कई छलांगें भी लगाई गईं. ऐतिहासिक रूप से लड़कियों की पढ़ाई सामाजिक सांस्कृतिक नियमों और लैंगिक असमानता जैसी बाधाओं का सामना करती रही है. मगर, तमाम भागीदारों के लगातार समर्पित प्रयासों से अब इसका नैरेटिव धीरे-धीरे सशक्तिकरण की ओर मुड़ गया है. सरकार की योजनाओं, ग़ैर सरकारी संगठनों और ज़मीनी आंदोलनों ने लड़कियों की शिक्षा में आने वाली दीवारों को तोड़ा है और करोड़ों लड़कियों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए हैं.
लड़कियों की शिक्षा की अहमियत व्यक्तिगत विकास से कहीं आगे असर दिखाती है. बच्चियों के पढ़ने से व्यापक सामाजिक आर्थिक बदलावों की प्रेरणा मिलती है.
लड़कियों की शिक्षा की अहमियत व्यक्तिगत विकास से कहीं आगे असर दिखाती है. बच्चियों के पढ़ने से व्यापक सामाजिक आर्थिक बदलावों की प्रेरणा मिलती है. शिक्षा के बारे में माना जाता है कि ये न केवल ज्ञान और कौशल सिखाने का काम करती है, बल्कि शिक्षा घिसी-पिटी सोच को चुनौती देने, लैंगिक समानता और समाज का नज़रिया बदलने की ताक़त रखने वाला शक्तिशाली माध्यम भी है. अब जैसे जैसे नीतिगत बदलाव और सामुदायिक संपर्क के प्रयासों में गति आ रही है, तो पूरे परिदृश्य में हम एक सकारात्मक बदलाव आते देख रहे हैं.
ज़मीनी स्तर पर स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने से लेकर लैंगिक विभेद की खाई भरने के मक़सद से चलाए जाने वाले राष्ट्रीय अभियानों तक, उभरता हुआ नैरेटिव, समावेश, जनजागरण और सशक्तिकरण को लेकर प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है. तमाम बाधाओं के बावजूद, पढ़ाई कर रही लड़कियों के मज़बूत इरादे, व्यक्तिगत जीवन और राष्ट्र की सामूहिक प्रगति पर शिक्षा के व्यापक प्रभाव को ही दर्शाते हैं.
शिक्षा जिस तरह व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर लोगों की नियति तय करने में भूमिका अदा करती है, उसे स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने वित्तीय प्रोत्साहन की कई योजनाएं शुरू की हैं, जो पढ़ाई के लिए बच्चियों के नामांकन, उनकी पढ़ाई जारी रखने और कामयाबी से अपनी शिक्षा पूरी करने को प्रोत्साहन देने के लिए ख़ास तौर से तैयार की गई हैं. टेबल-1 में वित्तीय प्रोत्साहन की उन तमाम केंद्रीय और राज्य स्तरीय योजनाओं को बारे में जानकारी दी गई है,जो शिक्षा के क्षेत्र में बच्चियों के सशक्तिकरण और उनकी प्रगति के लिए लागू की गई हैं. सामाजिक आर्थिक बारीक़ियों और आर्थिक हक़ीक़तों की परिस्थितियों में, वित्तीय प्रोत्साहन की योजनाएं परिवर्तनकारी बदलाव के लिए प्रेरक का काम करती हैं. ये वित्तीय प्रोत्साहन केवल पैसे के लेन-देन का मामला नहीं हैं, बल्कि ये देश के भविष्य में सामरिक निवेश हैं.
लड़कियों की पढ़ाई के लिए नक़द प्रोत्साहन योजनाओं की एक डेस्क समीक्षा से पता चलता है कि इनका फ़ायदा उठाने वाले मां-बाप का शिक्षा और शादी को लेकर नज़रिया अधिक सकारात्मक हो जाता है, बनिस्बत उन मां-बाप के जिनको इन योजनाओं से लाभ नहीं मिलता.
टेबल 1: भारत में वित्तीय प्रोत्साहन की योजनाएं
Scheme |
Year |
Objective |
Concerned Ministry/s |
Central Schemes |
Balika Samridhi Yojana |
1997 |
A major initiative for supporting the education and birth of the girl child |
Ministry of Women & Child Development |
CBSE Merit Scholarship Scheme For Single Girl Child |
2006 |
The scheme is aimed at recognising the efforts of the parents in promoting education among girls and providing encouragement to meritorious students |
Central Board of Secondary Education |
National Scheme of Incentive to Girls for Secondary Education |
2008 |
The objective of the scheme is to establish an enabling environment to promote enrolment and reduce drop-out rate amongst girls from SC/ST communities in higher classes |
Department of Education, Ministry of Human Resources Development |
Dhanalakshmi Scheme |
2008 |
The scheme aimed at doing away with child marriage by offering parents attractive insurance cover, and encouraging parents to educate their children as well as covering certain medical expenses for girl babies |
Ministry of Women & Child Development |
Sukanya Samridhi Yojana |
2015 |
The scheme is meant to meet the education and marriage expenses of a girl child |
Ministry of Finance |
National Scholarship for higher education for ST students |
2016 |
Support to pursue higher education, preference to Girls, Disabled, and Particularly Vulnerable Tribal Groups |
Ministry of Tribal Affairs |
State Schemes |
Girl Child Protection Scheme |
2005 |
Promote enrollment and retention of the girl child in school and to ensure her education at least up to intermediate level |
Governments of Andhra Pradesh and Telangana/ Women Development Child Welfare & Disabled Welfare Department |
Karnataka Bhagyashree Scheme |
2006 |
Welfare scheme for Providing education to the females of the state up to standard 10 |
Karnataka State Government |
Ladli Laxmi Yojana |
2007 |
The scheme focuses on creating a positive attitude towards the birth, health and ed |
Government of Madhya Pradesh |
Delhi Ladli Scheme |
2008 |
To promote education among girls and reduce the school drop-out rate of female students |
Department of Women & Children Development, Government of the National Capital Territory |
Nanda Devi Kanya Yojana |
2009 |
The main objective of the scheme is to improve the health and educational status of the girls, to provide them better future, to prevent female feticide, and behavior change towards childbirth and child marriage |
Women & Child Welfare Department, Uttarakhand |
Beti Hai Anmol |
2010 |
The motive is to make girls self-reliant for necessary financial assistance and education |
Government of Himachal Pradesh |
Kanyashree Prakalpa |
2013 |
Conditional Cash Transfer (CCT) Scheme that incentivizes the schooling of all teenage girls between the ages of thirteen and eighteen, simultaneously dis-incentivizing child marriage |
Government of West Bengal |
Bangaru Talli Scheme |
2013-14 |
The scheme supports the family of a girl from her birth till her graduation |
Government of Andhra Pradesh |
Mukhyamantri Rajshri Yojana |
2016 |
The primary objective of providing educational opportunities for the overall well-being of female children within the state |
Department of Women & Child Development, Rajasthan |
Mazi Kanya Bhagyashree Scheme |
2016 |
This scheme provides the following monetary benefits to the mother of a girl child for education |
Department of Women & Child Development, Maharashtra |
नक़द पैसे देने की इन प्रोत्साहन वाली योजनाओं की वजह से बहुत से मां-बाप अब अपनी बेटियों को कम बोझ मानने लगे हैं और अब वो उनकी शादियां देर से करके उन्हें स्कूल की पढ़ाई पूरी कराने लगे हैं. लड़कियों की पढ़ाई के लिए नक़द प्रोत्साहन योजनाओं की एक डेस्क समीक्षा से पता चलता है कि इनका फ़ायदा उठाने वाले मां-बाप का शिक्षा और शादी को लेकर नज़रिया अधिक सकारात्मक हो जाता है, बनिस्बत उन मां-बाप के जिनको इन योजनाओं से लाभ नहीं मिलता. ऐसा लगता है कि लड़कियों के लिए आर्थिक प्रोत्साहन की इन योजनाओं ने पारिवारिक और सामुदायिक, दोनों ही स्तरों पर सकारात्मक बदलाव को रफ़्तार दी है.
कन्या शिक्षा और सामाजिक विकास
बच्चियों की पढ़ाई और सामाजिक आर्थिक विकास के बीच संबंध, भारत के प्रगति और समानता हासिल करने के प्रयासों का केंद्र बिंदु है. ऐसे बहुत से सबूत हैं, जो साफ़ तौर पर ये दिखाते हैं कि बच्चियों की पढ़ाई और भारत में आर्थिक विकास के बीच सीधा और सकारात्मक रिश्ता है. पढ़ी लिखी लड़कियां एक ऊर्जावान और कुशल कामगार वर्ग होती हैं, जो उत्पादकता और इनोवेशन में काफ़ी योगदान देती हैं. तमाम अध्ययनों ने लगातार ये दिखाया है कि कामगारों में महिला श्रमिक वर्ग की भागीदारी का संबंध देश के अधिक सकल घरेलू उत्पात (GDP) विकास और सुधरे हुए आर्थिक नतीजों के तौर पर सामने आता है.
शिक्षा और उद्यमिता के बीच का संबंध इस आर्थिक लाभ को और भी उजागर करता है. शिक्षा के माध्यम से लड़कियों को और सशक्त बनाना, लैंगिक असमानता की गहरी जड़ों को हिलाने का काम करता है. सबूत रेखांकित करते हैं कि शिक्षा से लैंगिक समानता को बढ़ावा देने पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ता है. क्योंकि, पढ़ी लिखी लड़कियों पारंपरिक भूमिकाओं और घिसी पिटी सोच को चुनौती देती हैं. सशक्तिकरण से आगे बढ़कर शिक्षित महिलाएं घरेलू ही नहीं, सामुदायिक स्तर पर भी निर्णय प्रक्रिया में भागीदार बनती हैं और वो सत्ता के अधिक समतावादी वितरण में योगदान देती हैं.
लड़कियों की पढ़ाई में निवेश न केवल नैतिक अधिकार बनकर उभरता है, बल्कि ये अधिक समृद्ध, समतावादी और सशक्त राष्ट्र के निर्माण की अनिवार्य रणनीति भी है.
सबूत ये भी दिखाते हैं कि लड़कियों की पढ़ाई से ग़रीबी की बेड़ियां तोड़ने में भी महत्वपूर्ण सहयोग मिलता है. इस आर्थिक सशक्तिकरण का दूरगामी प्रभाव पड़ता है और इससे समुदायों की कुल आर्थिक बेहतरी पर सकारात्मक असर पड़ता है. यही नहीं, शिक्षित माताएं, स्वास्थ्य के बारे में सोच-समझकर फ़ैसले लेती हैं, जिससे सेहत के बेहतर नतीजे निकलते हैं और परिवारों पर स्वास्थ्य का ख़र्च का बोझ भी कम हो जाता है. ये बातें, जन्म के समय मां और नवजात बच्चों की सेहत सुधारने में भी मदद करते हैं, क्योंकि पढ़ी लिखी माओं द्वारा अधिक सेहतमंद जीवन अपनाने की संभावना अधिक होती है, जिससे मां और नवजात बच्चों की मौत की दर भी कम हो जाती है. शिक्षा और सेहत के बीच का ये संबंध, विकास के तमाम पहलुओं के बीच आपसी संबंध को रेखांकित करता है.
सबूतों का एक और रहस्यमय पहलू ये है कि लड़कियों की पढ़ाई और जनसंख्या नियंत्रण के बीच संबंध होता है. पढ़ी लिखी लड़कियां आम तौर पर देर से शादी करती हैं और वो बच्चे पैदा करने में भी देर करती हैं, और इस तरह वो जनसंख्या की विकास दर स्थिर करने में योगदान देती हैं. आबादी में इस परिवर्तन के टिकाऊ विकास और संसाधनों के प्रबंधन के मामले में दूरगामी नतीजे देखने को मिलते हैं. शिक्षा, सांस्कृति बदलावों को बढ़ावा देने का काम करती है, ये भेदभाव वाले व्यवहारों को चुनौती देती है और अधिक समावेशी और सहिष्णु समाज के निर्माण में मदद करती है. लड़कियों की पढ़ाई में निवेश न केवल नैतिक अधिकार बनकर उभरता है, बल्कि ये अधिक समृद्ध, समतावादी और सशक्त राष्ट्र के निर्माण की अनिवार्य रणनीति भी है.
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