Author : Anulekha Nandi

Published on Feb 02, 2024 Updated 24 Days ago
भारत में ICT और शिक्षा: ख़ूबियां और खामियां!

ये लेख हमारी सीरीज़, 'भारत में शिक्षा की पुन:कल्पना' का एक हिस्सा है


 


भारत ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष में लगातार बढ़ोतरी हासिल की है जबकि शैक्षणिक असमानता में गिरावट आ रही है. हालांकि अलग-अलग विश्लेषण से पता चलता है कि शहरी-ग्रामीण बंटवारा मौजूदा असमानताओं और भेदभाव में अभी भी महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है. सामाजिक एवं भौतिक बुनियादी ढांचे की क्षमताओं के साथ डिजिटल पहुंच, घरेलू व्यवसाय एवं आमदनी और घर का आकार असमानता में योगदान करने वाले सबसे बड़े फैक्टर हैं. शिक्षा के मामले में शहरी-ग्रामीण बंटवारे को मानते हुए 1972 से शैक्षणिक रेडियो कार्यक्रमों के निर्माण के साथ सूचना एवं संचार तकनीक़ (ICT) का उपयोग किया गया है ताकि इस मामले में सुधार किया जा सके. 1975 में भारत ने सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (SITE प्रोजेक्ट) शुरू किया. ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के स्कूलों तक शैक्षणिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए SITE प्रोजेक्ट को नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन (ISRO) ने मिलकर तैयार किया था. पिछले कुछ वर्षों के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रही इंटरनेट की पहुंच ने डिजिटल साधनों के ज़रिए शिक्षा की पहुंच के विस्तार का भरोसा दिया है और सरकारी एवं प्राइवेट- दोनों संगठन ICT और शैक्षणिक पहल चला रहे हैं. इन संगठनों में केंद्र सरकार का डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (DIKSHA) और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA)  शामिल हैं. DIKSHA ऐसा प्लैटफॉर्म है जो जानकारी साझा करने और प्रशासन पर ध्यान देता है जबकि RMSA ICT शिक्षा, वर्चुअल क्लास एवं डिजिटल लर्निंग पर अलग-अलग राज्य सरकारों की पहल और अलग-अलग प्राइवेट सेक्टर के संस्थानों एवं NGO द्वारा समर्थित कंप्यूटर/डिजिटल-एडेड क्लासरूम पढ़ाई पर ध्यान देता है. कोविड-19 ने ग्रामीण क्षेत्रों में दशकों की शैक्षणिक बढ़त को ख़त्म कर दिया लेकिन इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में डिजिटल फायदों की राह में आने वाली रुकावटों से भी काफी राहत मिली. इस पृष्ठभूमि में भारत ने 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की शुरुआत की जिसमें तकनीक़ और शिक्षा के बीच दूरदर्शी संबंध पर ज़ोर है. शिक्षा के क्षेत्र में कायापलट के उद्देश्य के साथ NEP आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी विघटनकारी तकनीकों (डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी) की बढ़ती भूमिका को ध्यान में रखते हुए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल शैक्षणिक सामग्री (कंटेंट) को मिलाने, शिक्षक की क्षमता को बढ़ाने, डिजिटल कुशलता और समावेशी शिक्षा पर ध्यान देती है. 

वादे और ख़तरे 

मौजूदा क्षमताओं को बढ़ाने और संस्थागत खालीपन को भरने में तकनीक़ की भूमिका को NEP में अच्छी तरह से स्वीकार किया गया है. सरकार की पहलों और डिजिटल इंडिया जैसे मददगार कार्यक्रमों का उद्देश्य शिक्षा में तकनीक़ के ज़्यादा एकीकरण के लिए एक बेहतर माहौल का निर्माण करना है. हालांकि भारत में शिक्षा को लेकर घरेलू सामाजिक खपत पर NSS सर्वे के 75वें चरण से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 4.4 प्रतिशत घरों में ही कंप्यूटर की उपलब्धता है जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 23.4 प्रतिशत है. इंटरनेट की पहुंच को लेकर भी इसी तरह के रुझान मिलते हैं. 14.9 प्रतिशत ग्रामीण घरों में ही इंटरनेट की सुविधा है जबकि शहरों में 42 प्रतिशत घरों में इंटरनेट कनेक्शन है. इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में पांच वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोगों में कंप्यूटर ऑपरेट करने और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोग क्रमश: 9.9 प्रतिशत और 13 प्रतिशत हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा क्रमश: 32.4 प्रतिशत और 37.1 प्रतिशत है. 

डिजिटल तकनीक़ जहां शिक्षा तक पहुंच में विस्तार का वादा करती हैं, वहीं ये पहुंच बहुआयामी है जहां कई सामाजिक, आर्थिक एवं बुनियादी ढांचे से जुड़ी परिस्थितियां मिलकर उन काम-काज और क्षमताओं को तय करती हैं जो वो सीमा बनाती हैं जिसमें डिजिटाइज़ेशन से फायदों को हासिल किया जाता है.   

2015-16 में 27.31 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा थी जो कि 2021-22 में बढ़कर 47.51 प्रतिशत स्कूलों में हो गई. वहीं इंटरनेट की सुविधा वाले स्कूल 2015-16 के 24.51 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 33.91 प्रतिशत हो गए. ये रुझान घरों की तुलना में उलट हैं जो अधिक इंटरनेट की पहुंच और कम डिवाइस होना दिखाते हैं. इस तरह ये प्रासंगिक कारकों की तरफ ध्यान देने के महत्व को उजागर करते हैं. घरों और स्कूल में इंटरनेट और डिवाइस की उपलब्धता के बीच असमानता और उनके बीच अंतर कतार में पहले बंटवारे के रूप में खड़ा है जो कि शिक्षा में पढ़ाई संबंधी, प्रशासनिक और शासन व्यवस्था के उद्देश्य के लिए तकनीक़ के पूरी तरह एकीकरण को सीमित करता है. डिजिटल तकनीक़ जहां शिक्षा तक पहुंच में विस्तार का वादा करती हैं, वहीं ये पहुंच बहुआयामी है जहां कई सामाजिक, आर्थिक एवं बुनियादी ढांचे से जुड़ी परिस्थितियां मिलकर उन काम-काज और क्षमताओं को तय करती हैं जो वो सीमा बनाती हैं जिसमें डिजिटाइज़ेशन से फायदों को हासिल किया जाता है.   

औद्योगिक संगठन जैसे कि इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) मौजूदा चुनौतियों में सुधार के लिए भारत में फैलते एड-टेक इकोसिस्टम के साथ बहु हितधारक (मल्टीस्टेकहोल्डर) साझेदारी का सुझाव देते हैं. हालांकि एड-टेक प्लैटफॉर्म विशेष काम-काज पर ध्यान देते हैं जो इस क्षेत्र में मौजूदा विखंडन (फ्रैगमेंटेशन) का समाधान करने में पीछे हैं. इसके परिणामस्वरूप शिक्षक क्लासरूम कंटेंट के लिए सामान्य तौर पर उपलब्ध प्लैटफॉर्म जैसे कि यूट्यूब की ओर रुख करते हैं. वैसे तो इनका इस्तेमाल अच्छे उद्देश्य के लिए किया जा सकता है लेकिन वो शिक्षा में ICT के पूरी तरह से एकीकरण को रोकते हैं. इसका मक़सद ये सुनिश्चित करना है कि तकनीक़ न केवल एक मददगार काम के लिए हो बल्कि क्लासरूम पाठ्यक्रम को विकसित करने और उन पर अमल करने के साथ-साथ छात्रों की पढ़ाई की समीक्षा और समर्थन में एक पढ़ाई से जुड़े टूल के तौर पर भी काम करे. ये एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करता है जो मौजूदा प्रयासों का लाभ उठा सकता है और उसे संगठित कर सकता है. 

विकसित इकोसिस्टम का दृष्टिकोण

शिक्षा की पहलों में ICT ने एक व्यवस्थित और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है. इस तरह की पहल से सीख अंतिम छोर की ग्रामीण शिक्षा को बाधित करने वाली व्यापक प्रासंगिक परिस्थितियों पर ध्यान देने की आवश्यकता को उजागर करते हैं. इसके अलावा बार-बार की कोशिश से परहेज करने के लिए जानकारी को साझा करने की सुविधा सर्वोपरि हो जाती है ताकि अलग-अलग पहलों से सीख को संगठित किया जा सके. इस संदर्भ में नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम (NETF), जिसकी परिकल्पना एक स्वायत्त निकाय के तौर पर की गई है, एक भरोसेमंद पहल है जो NEP के उद्देश्यों को हासिल करने में डिजिटल तकनीकों के उपयोग, तैनाती और अमल को लेकर फैसला लेने को आसान बनाएगा. इसका उद्देश्य शैक्षणिक उत्पादों और सेवाओं के लिए एक मुक्त बाज़ार (फ्री मार्केटप्लेस) के रूप में काम करना है और नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर (NDEAR) इकोसिस्टम नीति इसे लागू करेगा. नीति का उद्देश्य एक एकीकृत राष्ट्रीय डिजिटल संरचना तैयार करना है ताकि इस क्षेत्र में भागीदारी, इनोवेशन और स्वीकृति (एडॉप्शन) की सुविधा दी जा सके. 

अलग-अलग परतों में निर्मित संस्थागत प्रतिक्रिया गांठ के साथ एक विकसित इकोसिस्टम का दृष्टिकोण ज़िम्मेदार इनोवेशन को सक्षम बनाएगा और शिक्षा के डिजिटल कायापलट की तरफ NEP के उद्देश्यों के समग्र कार्यान्वयन को तेज़ करेगा. 

इकोसिस्टम नीति का उद्देश्य शिक्षा के लिए एक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) तैयार करना है जो अलग-अलग हितधारकों और सेवा प्रदान करने वालों की भागीदारी की सुविधा देता है. हालांकि नीति के पूरे संस्थागत प्रयोजन को प्राप्त करने के लिए एक विकसित (डिवॉल्व्ड) इकोसिस्टम के दृष्टिकोण की अनुशंसा की जाती है ताकि इकोसिस्टम की अनुकूलन क्षमता को बढ़ाया जा सके. एक डिवॉल्व्ड इकोसिस्टम का दृष्टिकोण राष्ट्रीय तकनीकी आधार से लेकर आख़िरी छोर की प्रासंगिक स्थितियों तक अलग-अलग परतों के हालत को ध्यान में रखता है. DPI की बुनियाद से आगे बढ़कर और एक-दूसरे से जुड़े सेवा प्रदान करने वालों की मज़बूती से ये नीति इनोवेशन को बढ़ावा देने में सक्षम होगी. साथ ही स्थानीय प्रासंगिक परिस्थितियों के अनुरूप प्रशासन, गवर्नेंस या पढ़ाई संबंधी काम-काजी आवश्यकताओं के आधार पर सिस्टम और प्रोडक्ट स्टैंडर्ड को तय करेगी. इसमें ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर और कंटेंट के साथ मिलकर ओपन-सोर्स हार्डवेयर पर ध्यान देना शामिल है ताकि आख़िरी छोर में तकनीकी एकीकरण में बाधा डालने वाले पहले बंटवारे को दूर किया जा सके. अलग-अलग परतों में निर्मित संस्थागत प्रतिक्रिया गांठ के साथ एक विकसित इकोसिस्टम का दृष्टिकोण ज़िम्मेदार इनोवेशन को सक्षम बनाएगा और शिक्षा के डिजिटल कायापलट की तरफ NEP के उद्देश्यों के समग्र कार्यान्वयन को तेज़ करेगा.  

अनुलेखा नंदी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.

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