Author : Aarshi Tirkey

Published on Aug 23, 2021 Updated 0 Hours ago

अभी तक जिन देशों को वैक्सीन दिया जा चुका है उसमें 85 फ़ीसदी डोज़ सिर्फ़ उच्च और उच्च मध्यम आय वाले देशों को मिला है. जबकि महज़ 0.3 फ़ीसदी वैक्सीन के डोज़ निम्न आय वाले देशों को दिया गया है. अफ्रीका महादेश में वैक्सीनेशन की दर सबसे कम है

यूरोपीय संघ का ग्रीन पास: नीतियों, क़ानून और आदर्शों को लेकर कठिन सवाल

यूरोपियन यूनियन (ईयू) के डिजिटल कोविड सर्टिफिकेट कार्यक्रम, जो 1 जुलाई से शुरू हुआ , के तहत उन लोगों के लिए यात्रा प्रतिबंध में ढील दी गई है जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) द्वारा स्वीकृत चार में से एक वैक्सीन लगवाई हो. इसमें वैक्सज़ेवरिया (ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका), कोमिरनाटी (फाइजर-बायोन्टेक), स्पाईवैक्स (मॉडर्ना) और जानसेन (जॉनसन एंड जॉनसन) वैक्सीन शामिल है. जबकि इसमें भारत में बनी – कोविशील्ड और कोवैक्सीन को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि उन्हें ईएमए ने स्वीकृत नहीं किया. ख़ास कर, कोविशील्ड के लिए यह हैरान करने वाला है क्योंकि यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा बनाई गई वैक्सीन है जिसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के लाइसेंस के तहत तैयार किया गया है, और इसके आपातकालीन इस्तेमाल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मंजूरी दी है.

विदेश यात्रा के लिए ग्रीन पास कोई शुरूआती शर्त नहीं है, लेकिन यह यात्रियों के लिए आधिकारिक सीमा प्रतिबंधों और क्वारंटीन ज़रूरतों से छुटकारा दिलाता है. क्योंकि अलग-अलग देश के लिए ऐसे नियम बदलते रहते हैं और गतिशीलता, अनिवार्य क्वारंटीन प्रक्रियाएं और टेस्टिंग से जुड़ी आवश्यकताएं इसमें शामिल हो सकती हैं. इस तरह के नियम उनके लिए यात्रा को मुश्किल बनाते हैं जिन्होंने ईएमए से स्वीकृत वैक्सीन नहीं लगवाई है जिससे यात्रियों को भारी वित्तीय, मानसिक और प्रशासनिक दिक्कतें झेलनी पड़ सकती है.

विदेश यात्रा के लिए ग्रीन पास कोई शुरूआती शर्त नहीं है, लेकिन यह यात्रियों के लिए आधिकारिक सीमा प्रतिबंधों और क्वारंटीन ज़रूरतों से छुटकारा दिलाता है.

वैक्सीन पासपोर्ट को लेकर भारत का रुख़

भारत ने पहले से ही वैक्सीन पासपोर्ट को लेकर अपना विरोध जताया है और साफ किया है कि विकासशील देशों के पास वैक्सीन की किल्लत के चलते इस तरह का कदम कई मायनों में पक्षपाती हो सकता है. जब ईयू ग्रीन पास की घोषणा हुई थी तब नई दिल्ली ने सख़्त रवैया अपनाते हुए कहा था कि भारत भी उन्हीं देशों के नागरिकों को यात्रा नियमों में रियायत देगा जो कोविशील्ड और कोवैक्सीन को मान्यता देंगे. अफ्रीकन यूनियन (एयू) ने भी इस संबंध में बयान जारी कर तर्क दिया था कि डिजिटल सर्टिफिकेट कार्यक्रम “असमानता” को बढ़ाता है जो असामान्य तौर पर अनिश्चित काल के लिए जारी रह सकता है.  क्योंकि यूरोपियन यूनियन के सदस्य ईएमए सूची से बाहर किसी भी वैक्सीन को मान्यता देकर अपनी नीति बनाने के लिए स्वतंत्र हैं, इसलिए ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, जर्मनी, आयरलैंड, स्लोवेनिया, ग्रीस, एस्टोनिया, स्पेन समेत शेनजेन जोन के सदस्य स्विट्जरलैंड और आईसलैंड ने कोविशील्ड को बराबर की मान्यता दी है. 

 हालांकि, यूरोपियन यूनियन का कहना है कि ऐसी स्थिति इसलिए पैदा हुई क्योंकि एसआईआई ने ईएमए से जरूरी मंजूरी के लिए आवेदन ही नहीं किया था. हालांकि ईयू ने जोर दिया कि वैक्सीन क्लीयरेंस के लिए कोई स्वचालित व्यवस्था नहीं है, वैक्सीन जैविक प्रतिक्रियाओं का नतीजा है और इसका मूल्यांकन भी उचित प्राधिकरण चैनलों के जरिए ही किया जाना चाहिए. हालांकि यह व्यवस्था वैक्सीन के बीच कृत्रिम भेदभाव पैदा करते हैं – उनके लिए भी जो इसी प्रकार की तैयारी किए रहते हैं लेकिन वो अलग अलग मैन्युफैक्चरर होते हैं. 8 जुलाई तक कोवैक्स सुविधा – जिसका लक्ष्य निम्न आय वाले देशों के लिए कोविड 19 वैक्सीन मुहैया करना है – जिसके तहत 134 देशों में 95 मिलियन वैक्सीन के डोज़ भेजे जा चुके हैं, और इसमें से ज़्यादातर डोज़ कोविशील्ड के हैं. यही वजह है कि इसे लेकर कठिन सवाल पैदा होते हैं कि क्या  “सभी वैक्सीन को एक जैसा ही माना जा रहा है”— अगर नहीं तो इससे समानता, गैर-भेदभाव और निष्पक्षता के सिद्धांत प्रभावित हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त इस तरह की बातें उन लोगों के बीच खाई पैदा करेगी जिन्हें वैक्सीन उपलब्ध है और जिनकी पहुंच वैक्सीन तक नहीं है.

भारत ने पहले से ही ‘वैक्सीन पासपोर्ट’ को लेकर अपना विरोध जताया है और साफ किया है कि विकासशील देशों के पास वैक्सीन की किल्लत के चलते इस तरह का कदम कई मायनों में पक्षपाती हो सकता है.

वैक्सीन पासपोर्ट को लेकर बहस

वैक्सीन पासपोर्ट कोई नई बात नहीं है, किसी ख़ास जगह की यात्रा को लेकर येलो फीवर वैक्सीन के लिए सबूत के तौर पर इसका इस्तेमाल पहले भी किया जा  चुका है. कोरोना महामारी को लेकर सामान्य स्थिति में लौटने की गारंटी वैक्सीन ही है. वैक्सीन पास कई तरह के स्वास्थ्य और आर्थिक फायदों को सुनिश्चित कर सकता है : लोगों को वैक्सीन के लिए प्रेरित कर धीरे धीरे अर्थव्यवस्था के प्रमुख सेक्टर जैसे पर्यटन, मनोरंजन और खाने पीने से जुड़े कारोबार को खोला जा सकता है.

हालांकि ऐसी किसी भी नीति जिसका व्यापक अंतर्राष्ट्रीय परिणाम हो सकता है उसके लिए कई तरह की कानूनी, नियमावली और वास्तविक चिंताओं पर अभी भी चर्चा नहीं हुई है. सबसे बड़ी चुनौती तो दुनिया भर में वैक्सीन की पहुंच,उसके निर्माण और वितरण को लेकर है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक अभी तक जिन देशों को वैक्सीन दिया जा चुका है उसमें 85 फ़ीसदी डोज़ सिर्फ उच्च और उच्च मध्यम आय वाले देशों को मिला है. जबकि महज 0.3 फ़ीसदी वैक्सीन के डोज़ निम्न आय वाले देशों को दिया गया है. अफ्रीका महादेश में वैक्सीनेशन की दर सबसे कम है और कई अफ्रीकी देश तो अपने यहां अभी तक वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत ही करने वाले हैं. ऐसा अनुमान है कि दुनिया के 92 गरीब देशों में 60 फ़ीसदी वैक्सीनेशन की दर पहुंचने में साल 2023 या फिर इससे भी ज़्यादा समय लग सकता है.

ऐसे में दूसरों के मुकाबले निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लोगों को यात्रा करने की आजादी कम होगी, और उन्हें दस्तावेजी और सुरक्षात्मक प्रक्रियाओं का ज़्यादा से ज़्यादा सामना करना होगा. क्योंकि अमीर देशों ने वैक्सीन उत्पादक देशों से पहले ही वैक्सीन खरीद को लेकर समझौता कर लिया था और ऐसी असामान्य अनुपात में वैक्सीन की उपलब्धता के चलते दुनिया के दूसरे देशों में वैक्सीन की भारी किल्लत हो गई. ग्रीन पास वैक्सीन मौजूदा वैश्विक असमानताओं को और बढाने वाला है, क्योंकि यह  दूसरे देशों के बीच विभाजन को प्रेरित करेगा जिससे और देशों के बीच तनाव बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है.

अफ्रीका महादेश में वैक्सीनेशन की दर सबसे कम है और कई अफ्रीकी देश तो अपने यहां अभी तक वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत ही करने वाले हैं. ऐसा अनुमान है कि दुनिया के 92 गरीब देशों में 60 फ़ीसदी वैक्सीनेशन की दर पहुंचने में साल 2023 या फिर इससे भी ज़्यादा समय लग सकता है.

इसके अलावा डिजिटल वैक्सीन पासपोर्ट अनिश्चित और उभरते विज्ञान पर आधारित है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इशारा किया था कि कोविड 19 वैक्सीन के प्रभाव को लेकर वैज्ञानिक जानकारी अभी भी सामने आ रही है. ख़ास कर यह कि वैक्सीन के बाद कितने दिन तक लोग सुरक्षित रह सकते हैं, और यह संक्रमण समेत बीमारी को रोकने में कितना कारगर है. कोरोना के नए वेरिएंट के उभार के साथ मौजूदा वैक्सीन कब तक संक्रमण के ख़िलाफ़ लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकता है यह सवाल अब तक अनुत्तरित है. आशंका तो इस बात को लेकर भी है कि जो असमानता अभी पैदा हुई है भविष्य में उसके बढ़ने की संभावना प्रबल है. अगर बूस्टर डोज़ प्रभावी साबित होता है तो ऐसी संभावना है कि अमीर देशों को गरीब देशों से पहले ही बूस्टर डोज़ उपलब्ध करा दिए जाएं, जिससे अमीर और गरीब देशों के बीच मौजूदा खाई और बढ़ सकती है.

यात्रा के लिए वैक्सीन के सबूत से घरेलू नीतियों की प्राथमिकता भी दरकिनार हो सकती है. यात्रियों के लिए प्राथमिकता के तौर पर वैक्सीनेशन का अभियान उन मुल्कों में वैक्सीन की कमी पैदा कर सकता है जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. इसके अतिरिक्त, निजी जानकारी और डेटा सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं. जिनकी कोविड वैक्सीनेशन से जुड़ी जानकारी तक पहुंच है उनसे संबंधित संवेदनशील डेटा की कैसे सुरक्षा हो पाएगी? और इसका इस्तेमाल कैसे होगा? इज़रायल दुनिया का पहला देश है जिसने होटल,जिम, रेस्तरां, थिएटेर और संगीत समारोह में लोगों के जाने के लिए वैक्सीन पासपोर्ट लागू किया. इस तरह के प्रतिबंधों से निम्न और मध्यम आय वाले मुल्कों के अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को कई तरह का भेदभाव सहना पड़ सकता है और इससे लोगों की व्यक्तिगत आजादी प्रभावित होंगी. यह आवश्यक है कि भविष्य के नियम और नीतियों को इस तरह से लागू किया जाए जिससे डेटा सुरक्षित रह सके और इस्तेमाल में लाया जाने वाला डेटा आपसी सहमति वाला, सुरक्षित और पारदर्शी हो.

इज़रायल दुनिया का पहला देश है जिसने होटल,जिम, रेस्तरां, थिएटेर और संगीत समारोह में लोगों के जाने के लिए वैक्सीन पासपोर्ट लागू किया. इस तरह के प्रतिबंधों से निम्न और मध्यम आय वाले मुल्कों के अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को कई तरह का भेदभाव सहना पड़ सकता है और इससे लोगों की व्यक्तिगत आजादी प्रभावित होंगी.

निष्कर्ष

विश्व स्वास्थ्य संगठन अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को किसी देश में दाखिल होने के लिए वैक्सीनेशन के सबूत दिखाने का फिलहाल समर्थन नहीं करता है. हालांकि मार्च में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्मार्ट वैक्सीन सर्टिफिकेट के लिए अंतरिम निर्देश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि ऐसे सर्टिफिकेट समानता, पहुंच, गोपनीयता संरक्षण, स्केलेबिलिटी और स्थिरता पर आधारित होंगे. ऐसे सिद्धान्त ग्रीन पास को लेकर आदर्श नीतियों के निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं. वैसे भी ऐसी नीति जिसका असर दुनिया के लाखों लोगों पर पड़ने वाला है उसे लेकर यह जरूरी है कि उसे वैज्ञानिक सबूतों पर आधारित किया जाए और वह समानता के सभी कानूनी मापदंडों को पूरा करे और जो भेदभाव वाला ना हो और प्राइवेसी की रक्षा करता हो. वैक्सीन का असमान बंटवारा और बढ़ने की आशंका है और अगर किसी ख़ास वर्ग को प्राथमिकता देने की कोशिश की जाएगी तो इससे नई तरह की असमानता के पैदा होने का भी ख़तरा है. दुनिया के लिए वैक्सीन एक उम्मीद है लेकिन जब तक इसका बंटवारा असमान्य रहेगा तब तक विभिन्न मुल्कों को पारस्परिकता के सिद्धांतों के आधार पर वैक्सीन पासपोर्ट संबंधित नीतियों को विस्तार करने की ज़रूरत है.

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