भारत में रिन्यूएबल एनर्जी (आरई) क्षेत्र से जो ख़बरें आ रही हैं, वो चिंता में डालने वाली हैं. यहां तक कि जिस सौर ऊर्जा क्षेत्र को भारत में बिजली उत्पादन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाने का माध्यम माना जा रहा था, वहां से भी विकास की रफ्तार धीमी होने के संकेत आ रहे हैं. 2024 के गर्मी के सीज़न में बिजली की संभावित उच्चतम मांग को पूरा करने के लिए सरकार अब रिन्यूएबल एनर्जी की बजाए कोयले पर ध्यान केंद्रित कर रही है. आरई की क्षमता में धीमी वृद्धि दर का एक मतलब ये भी हो सकता है कि ये क्षेत्र अब अपने जीवनचक्र में परिपक्वता की अवस्था में प्रवेश कर रहा है. ऐसा भी हो सकता है कि रिन्यूएबल एनर्जी स्थापित करने की लागत में वृद्धि की वजह से इसका विकास धीमा हुआ हो. इस बात की भी आशंका है कि इस क्षेत्र के नियमन के लिए जो कानून बनाए गए हैं या फिर ससांधन हासिल करने में आने वाली बाधाएं, ख़ासकर ज़मीन की अनुपलब्धता, अब नकारात्मक असर डालने लगी हो. मौज़ूदा भू- राजनीतिक संदर्भों में जब सभी देश ऊर्जा राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दे रहे हों, उस स्थिति में रिन्यूएबल एनर्जी उद्योग में मंदी आना व्यापार बाधाओं का नतीजा भी हो सकती है.
भारत में रिन्यूएबल एनर्जी (आरई) क्षेत्र से जो ख़बरें आ रही हैं, वो चिंता में डालने वाली हैं. यहां तक कि जिस सौर ऊर्जा क्षेत्र को भारत में बिजली उत्पादन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाने का माध्यम माना जा रहा था, वहां से भी विकास की रफ्तार धीमी होने के संकेत आ रहे हैं.
क्या है वैश्विक रुझान?
2010 के दशक की शुरूआत में जब रिन्यूएबल एनर्जी उद्योग स्थापित होने शुरू हुए थे, तब इस क्षेत्र की वृद्धि दर दोहरे अंकों में थी. 2013 से 2018 के बीच आरई क्षेत्र में बिजली उत्पादन की सालाना विकास दर 20 प्रतिशत के करीब थी. इसी अवधि के दौरान सौर ऊर्जा के सयंत्र स्थापित करने की सालाना वृद्धि दर 70-80 प्रतिशत और पवन ऊर्जा में ये विकास दर 15-20 प्रतिशत की थी. 2018 से 2023 के बीच आरई सयंत्र की वार्षिक वृद्धि दर घटकर 10-15 प्रतिशत के बीच रह गई. इस दौरान सौर ऊर्जा में 25-35 प्रतिशत और पवन ऊर्जा की वार्षिक वृद्धि दर कम होकर 5 प्रतिशत रह गई. 2023-24 (फरवरी 2024 तक)रिन्यूएबल एनर्जी प्रतिष्ठानों की वृद्धि दर 10 फीसदी से कम रही. पवन ऊर्जा की सालाना वृद्धि दर करीब 5 प्रतिशत और सौर ऊर्जा में ये वृद्धि दर 11 प्रतिशत के आसपास है.
अगर हम 2013 के बाद से रिन्यूएबल एनर्जी की सालाना वृद्धि की क्षमता देखें तो इसका उच्चतम स्तर 15 गीगावॉट था. 2021-22 और 2022-23 में आरई क्षेत्र में 15 गीगावॉट का ये उच्चतम स्तर छुआ. अगर इसी दोनों समयाविधि में देखें तो सौर ऊर्जा प्रतिष्ठानों ने 13 गीगावॉट के उच्चतम स्तर का छुआ जबकि पवन ऊर्जा क्षेत्र ने अपना उच्चतम स्तर 5.5 गीगावॉट 2016-17 में छुआ. 2021-22 और 2022-23 में सालाना क्षमता वृद्धि दर 1.1 गीगावॉट और 1.2 गीगावॉट रही.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA )के मुताबिक 2023 के कैलेंडर वर्ष में रिन्यूएबल एनर्जी की सालाना वार्षिक क्षमता दर 50 प्रतिशत बढ़कर 510 गीगावॉट हो गई है. ये पिछले दो दशक की सबसे तेज़ वृद्धि दर है.
अगर 29 फरवरी 2024 तक के आंकड़ों को देखें तो कुल रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत, पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत थी. बाकी बचे 12 प्रतिशत में छोटी पनबिजली परियोजनाओं, बायोमास और कूड़े से ऊर्जा बनाने की हिस्सेदारी है. चूंकि रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी 88 प्रतिशत की है. ऐसे में इस क्षेत्र में गिरावट से चिंतित होना स्वभाविक है क्योंकि भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन का लक्ष्य रखा है. 2034-24 में (29 फरवरी 2024 तक)कुल रिन्यूएबल एनर्जी 11.2 गीगावॉट है, जबकि पवन ऊर्जा 2.5 गीगावॉट है. इसमें 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि 50 प्रतिशत की गिरावट के साथ सौर ऊर्जा की सालाना क्षमता 11.2 गीगवॉट रही, जो 2013-14 के बाद सबसे कम है.
भविष्य की क्या संभावनाएं?
2030 तक रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में 500 गीगावॉट का लक्ष्य हासिल करने के लिए ये ज़रूरी है कि आरई प्रतिष्ठान की स्थापना की सालाना वृद्धि दर 20 प्रतिशत हो. इसी तरह ऊर्जा उत्पादन की मौजूदा 11-12 गीगवॉट की क्षमता को बढ़ाकर सालाना 60 गीगावॉट से ज्यादा करना होगा. अगर क्षमता वृद्धि की मौज़ूदा दर चक्रीय प्रवाह की बज़ाए सेक्युलर ट्रेंड है तो फिर ये गंभीर चिंता की बात है. सेक्युलर ट्रेंड से मतलब उस रुझान से है जो एक लंबे वक्त में दिखता है और काफी समय से जारी रहता है. यानी अगर रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र में गिरावट सेक्युलर ट्रेंड की वजह से आ रही है तो ये हमारे सामने गंभीर चुनौती पेश कर रही है.
इस क्षेत्र में परियोजना लगा रहे लोगों का कहना है कि ट्रांसमिशन के ढांचे का अपर्याप्त होना और नए नियमन कानून रिन्यूएबल एनर्जी में गिरावट की मुख्य वजह हैं. ऐसा ही एक नियम जो आरई सेक्टर को प्रभावित कर रहा है वो है जनरल नेटवर्क एक्सेस (GNA). केंद्रीय विद्युत नियामक प्राधिकरण (CERC)द्वारा बनाया गया ये नियम जून 2022 को अस्तित्व में आया. इसका मक़सद वितरण और उत्पादक कंपनियों, उपभोक्ताओं को अंतर्राज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम (ISTS)के इस्तेमाल की पक्षपात रहित सुविधा देना है.
सौर पीवी को रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण मानते हुए चीन अपनी औद्योगिक नीति में इसे केंद्र में रख रहा है. चीन ना सिर्फ़ इसकी घरेलू मांग को पूरा कर रहा है बल्कि ये भी कोशिश कर रहा है कि इसका निर्यात भी बढ़े और इस क्षेत्र में नए प्रयोग भी हों.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA )के मुताबिक 2023 के कैलेंडर वर्ष में रिन्यूएबल एनर्जी की सालाना वार्षिक क्षमता दर 50 प्रतिशत बढ़कर 510 गीगावॉट हो गई है. ये पिछले दो दशक की सबसे तेज़ वृद्धि दर है. इस शानदार बढ़ोत्तरी की सबसे बड़ी वजह रहा चीन. अकेले चीन ने 2023 में इतनी सौर फोटोवोल्टिक (PV)ऊर्जा पैदा की, जितनी पूरी दुनिया ने 2022 में की थी. यूरोप, अमेरिका और ब्राज़ील में भी 2022 में आरई प्रतिष्ठानों की स्थापना में उच्चतम वृद्धि देखी गई. इससे ये पता चल रहा है कि रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र में भारत की स्थिति शेष दुनिया में दिख रहे रुझान के विपरीत है. चीन से निर्यात होने वाले सौर मॉड्यूल की कीमतें $0.14 डॉलर/वॉट के ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर है. इससे ये संकेत मिलता है कि भारत में सौर फोटोवॉल्टिक प्रतिष्ठानों में गिरावट सयंत्र स्थापित करने की लागत में हुई बढ़ोत्तरी की वजह से नहीं आई है.
घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देने के लिए चीन से सौर पीवी के आयात पर लगाई गई पाबंदियां भी आरई क्षेत्र में आई गिरावट की एक वजह हो सकती हैं. 2023 में जिन देशों में सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि हुई, उन देशों को चीन से सौर पीवी का निर्यात भी काफी बढ़ा था. चीन से भारत को निर्यात होने वाले सौर पीवी मॉड्यूल में 7 प्रतिशत की कमी आई जबकि बाकी दुनिया में उसके निर्यात में 35 फीसदी को बढ़ोत्तरी हुई. इसका अर्थ ये हुआ कि व्यापारिक प्रतिबंधों ने भारत में आरई क्षेत्र में वृद्धि पर असर डाला. अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो 2024 में सौर पीवी निर्माण क्षमता के 1,000 गीगावॉट तक पहुंचने की उम्मीद है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने 2050 तक नेट ज़ीरो का जो लक्ष्य तय किया है, उसे हासिल करने के लिए 2030 तक रिन्यूएबल एनर्जी की सालाना उत्पादन क्षमता 650 गीगावॉट होनी चाहिए और 2024 में ये लक्ष्य हासिल होता दिख रहा है. 2022 में वैश्विक स्तर पर सोलर पीवी की निर्माण क्षमता में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई और ये करीब 450 गीगावॉट तक पहुंच गया. इसमें से पूरी आपूर्ति श्रृंखला में अकेले चीन की हिस्सेदारी 95 प्रतिशत की थी. 2023 और 2024 में वैश्विक सौर पीवी निर्माण क्षमता दोगुनी होने की संभावना है. इसमें चीन की भागीदारी 90 फीसदी की होगी.
सौर पीवी को रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण मानते हुए चीन अपनी औद्योगिक नीति में इसे केंद्र में रख रहा है. चीन ना सिर्फ़ इसकी घरेलू मांग को पूरा कर रहा है बल्कि ये भी कोशिश कर रहा है कि इसका निर्यात भी बढ़े और इस क्षेत्र में नए प्रयोग भी हों. आईईए के मुताबिक चीन की इन नीतियों की वजह से इनकी कीमतों में 80 प्रतिशत तक की कमी आई है. इसका फायदा दुनिया के दूसरे देशों को मिला है. वो सस्ती दर पर सौर ऊर्जा का उत्पादन कर पा रहे हैं. अगर पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन से जलवायु पर ख़तरे के हिसाब से देखें तो सौर पीवी आपूर्ति श्रृंखला में चीन के प्रभुत्व और इनकी कीमतें कम होने से दुनिया का भला ही हुआ है. वहीं अमेरिका और भारत जिस तरह ऊर्जा राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दे रहे हैं और घरेलू सौर पीवी उत्पादकों को बढ़ावा दे रहे हैं, उससे इनके सामरिक और राष्ट्रीय हित सध रहे हैं. इससे घरेलू क्षेत्र में नौकरियां तो पैदा होती हैं, निर्माण क्षमता भी बढ़ती है लेकिन सौर प्रतिष्ठान स्थापित करने की लागत बढ़ जाती है. अगर देशों के लिए औद्योगिक नीतियों को ज़रूरी माना जाता है तो फिर इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि जलवायु परिवर्तन से ज़्यादा बड़ा ख़तरा चीन से है.

स्रोत : केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण
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