9 दिसंबर 2023 को यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ की परिषद के बीच EU के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े क़ानून (EU AI Act) के बीच सहमति बन गई. वैसे तो इस क़ानून का ड्राफ्ट अभी प्रकाशित होना बाक़ी है. लेकिन, इसकी मोटा-मोटी रूप-रेखा तैयार हो गई है, जो AI के नियमन के इतिहास में मील का एक पत्थर बन सकती है. इस क़ानून पर रज़ामंदी के साथ ही यूरोपीय संघ दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विनियमन करने में अव्वल हो गया है.
शिक्षा और स्वास्थ्य समेत अन्य क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से इस बात की पर्याप्त संभावना है कि इनके दूरगामी प्रभाव हों. इससे भी बड़ी बात, ख़ुद AI का उद्योग भी ख़रबों डॉलर के कारोबारी अवसर वाला है, जिसमें सरकारें भी हिस्सेदारी चाहती हैं
ये क़ानून क्यों बनाया गया है?
हाल के वर्षों में AI के क्षेत्र में तेज़ी से हुई तरक़्क़ी ने नागरिकों के अधिकारों और भलाई की सुरक्षा करने को लेकर सरकारों और नियामक संस्थाओं की तैयारी को लेकर सवाल उठा दिए हैं. इस उद्योग के अग्रणी लोगों ने भी दूरगामी अवधि में AI के हमारी ज़िंदगियों में ख़लल डालने की आशंकाओं को लेकर चिंताएं ज़ाहिर की हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य समेत अन्य क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से इस बात की पर्याप्त संभावना है कि इनके दूरगामी प्रभाव हों. इससे भी बड़ी बात, ख़ुद AI का उद्योग भी ख़रबों डॉलर के कारोबारी अवसर वाला है, जिसमें सरकारें भी हिस्सेदारी चाहती हैं, और इंटरनेट के उलट, AI कोई सरकारी प्रयोगशालाओं में विकसित किया गया उत्पाद भी नहीं है. यूरोपीय आयोग ने EU में AI के विनियमन को लेकर पहला ड्राफ्ट अप्रैल 2021 को जारी किया था. हालांकि, 2022 में ओपेनAI द्वारा चैटजीपीटी को जारी करने और इसके अतिरिक्त अन्य तकनीकी प्रगतियों की वजह से यूरोपीय संघ को लगा कि वो मूल प्रस्ताव पर एक नज़र फिर से डाल ले. इसलिए, तीन दिनों की सघन वार्ता के बाद, EU की तीनों शाखाएं आने वाले भविष्य में AI के नियमन को लेकर एक समझौते के लिए राज़ी हो गईं. इसके पीछे उनका मक़सद AI के ऊपर इंसानी निगरानी को सुनिश्चित करना है.
इस क़ानून में क्या ख़ास है?
ये बताया गया है कि इस क़ानून में AI की जिस परिभाषा का प्रस्ताव रखा गया है, वो आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा तय परिभाषा से मिलता है. OECD द्वारा AI के सिस्टम्स की जो अपडेटेड परिभाषा तय की गई है, वो इस तरह है: ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कोई सिस्टम मशीन पर आधारित ऐसा सिस्टम है, जो स्पष्ट या अस्पष्ट लक्ष्यों को ख़ुद को मिले इनपुट के आधार पर समझता है, और तय करता है कि पूर्वानुमान, कंटेंट, सुझाव या फिर फ़ैसले कैसे लिए जाएं जो भौतिक या फिर वर्चुअल माहौल को प्रभावित कर सकें. AI के अलग अलग सिस्टम लागू किए जाने के बाद अपनी स्वायत्तता और परिस्थितियों के हिसाब से ख़ुद को ढालने के स्तर पर अलग अलग होते हैं.’
ये क़ानून ‘जोखिम पर आधारित’ नज़रिए को अपनाने वाला है. इस नज़रिए के मुताबिक़, AI सिस्टम्स को उनके द्वारा खड़े किए जा सकने वाले जोखिमों के आधार पर चार दर्जों में बांटा गया है
ये क़ानून ‘जोखिम पर आधारित’ नज़रिए को अपनाने वाला है. इस नज़रिए के मुताबिक़, AI सिस्टम्स को उनके द्वारा खड़े किए जा सकने वाले जोखिमों के आधार पर चार दर्जों में बांटा गया है: a) अस्वीकार्य ख़तरे (सामाजिक स्कोरिंग, बायोमेट्रिक पहचान फिर चाहे वास्तविक समय में हो या रिमोट, बायोमेट्रिक के आधार पर वर्गीकरण जो निजी प्राथमिकताओं और आस्थाओं के आधार पर नतीजे निकाले और ज्ञान संबंधी हेरा-फेरी); b) बड़े जोखिम (परिवहन और शिक्षा के क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले AI सिस्टम और वो जो EU के उत्पाद सुरक्षा क़ानून के दायरे में आने वाले उत्पादों में इस्तेमाल होते हैं); c) सामान्य काम काज और जेनेरेटिव AI (जैसे कि ओपेनAI का चैटजीपीटी); और, d) सीमित जोखिम वाले AI (जैसे कि डीपफेक).
AI के जो सिस्टम अस्वीकार्य जोखिम के दर्जे में डाले जाएंगे, उन पर पाबंदी लगाई जाएगी. वहीं जो बहुत अधिक ख़तरे वाले दर्जे में होंगे, उनके बुनियादी अधिकारों पर पड़ने वाले असर के अनिवार्य मूल्यांकन से गुज़रना होगा, उसके बाद ही उनको बाज़ार में जारी किया जा सकेगा और उन पर CE का ठप्पा भी लगाया जाएगा. सामान्य उद्देश्य वाले AI (GPAI) सिस्टम और मॉडल जिन पर वो आधारित होते हैं, उनको पारदर्शिता की शर्तों का पालन करना होगा. इनमें यूरोपीय संघ के कॉपीराइट क़ानून का पालन करना, तकनीकी दस्तावेज़ तैयार करना और इन GPAI सिस्टमों के प्रशिक्षण के दस्तावेज़ों का सारांश जारी करना शामिल है. इसके अलावा, अधिक उन्नत GPAI सिस्टमों को और सख़्त नियमों से गुज़रना पड़ेगा. सीमित जोखिमों वाले सिस्टमों के इस्तेमाल पर, स्वैच्छिक कोड ऑफ कंडक्ट का पालन करने के सिवा कोई और पाबंदी नहीं लगाई जाएगी.
हालांकि, इन नियमों के कुछ अपवाद भी क़ानून में रखे गए हैं. अस्वीकार्य जोखिमों वाले AI सिस्टमों को बेहद भयंकर अपराधों के मामले में इस्तेमाल करने की मंज़ूरी दी जाएगी. हालांकि, ये भी अपराधों की परिभाषित सूची और न्यायिक मंज़ूरी पर निर्भर करेगा. कुछ ऐसे क्षेत्र भी होंगे, जहां ये क़ानून बिल्कुल भी नहीं लागू होगा: सैन्य या रक्षा क्षेत्र; केवल रिसर्च और इनोवेशन में इस्तेमाल होने वाले सिस्टम; और ग़ैर पेशेवर मक़सद से लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाना.
इस क़ानून में जोखिम पर आधारित जो नज़रिया अपनाया गया है वो उन तमाम चुनौतियों से निपटने का एक नया तरीक़ा है, जिनको आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा आने वाले समय में खड़ा करने की आशंका है.
जहां तक प्रशासनिक ढांचे की बात है, तो ये अपेक्षा की जा रही है कि इस क़ानून को EU के सभी 27 सदस्य देशों की सक्षम राष्ट्रीय एजेंसियां इसका पालन कराएंगी. यूरोप के स्तर पर AI का ये क़ानून लागू करने और इसके प्रशासन की ज़िम्मेदारी यूरोपीय AI कार्यालय की होगी, वहीं एक यूरोपीय AI परिषद भी बनाई जाएगी, जिसकी भूमिका सलाहकार की होगी और इसमें EU के सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
छोटे और मध्यम दर्जे के उद्यमों (SMEs) को विकसित होने में मदद करने के लिए AI के नियामक सैंडबॉक्स (सीमित प्रयोग का स्थान)
बनाने और ‘वास्तविक दुनिया में परीक्षण’ के विकल्पों को भी शामिल किया गया है.
इस AI क़ानून के अंतर्गत नागरिकों को भी शिकायतों के निपटारे का अधिकार दिया गया है. आम नागरिक शिकायतें दर्ज करा सकेंगे और ‘अत्यधिक जोखिम वाले उन AI सिस्टमों पर आधारित उन फ़ैसलों के बारे में सफाई भी प्राप्त कर सकेंगे, जो उनके अधिकारों पर असर डालते हों.’ नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने का भी प्रावधान है और ये जुर्माना 75 लाख यूरो से लेकर 3.5 करोड़ यूरो (या फिर टर्नओवर का एक ख़ास प्रतिशत हिस्सा, जो भी अधिक हो) तक हो सकता है. हालांकि, छोटी कंपनियों को थोड़ी राहत की व्यवस्था भी है, क्योंकि उनके जुर्माने सीमित रखे जाएंगे.
ख़ूबियां…
2021 के शुरुआती ड्राफ्ट और और समझौता होने के बाद प्रेस में जारी बयान को बारीक़ी से पढ़ने पर इस क़ानून की कई ख़ूबियों का पता चलता है. पहला, इस क़ानून में जोखिम पर आधारित जो नज़रिया अपनाया गया है वो उन तमाम चुनौतियों से निपटने का एक नया तरीक़ा है, जिनको आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा आने वाले समय में खड़ा करने की आशंका है. दूसरा, ये क़ानून नागरिकों के अधिकारों के साथ साथ क़ानून व्यवस्था देखने वाली एजेंसियों की ज़रूरतों के बीच भी संतुलन बनाता है. तीसरा, मूलभूत अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभाव के मूल्यांकन की जो व्यवस्था है, वो नागरिकों के कल्याण को सबसे आगे रखने वाला है. इसी तरह, नागरिकों को अपनी शिकायतों के निपटारे का अधिकार देने से एक सबल नागरिक समुदाय का निर्माण होगा. चौथा, SME को प्रगति करने में मदद करने वाले प्रावधान भी सराहनीय हैं.
…और कमियां
वैसे तो EU के AI एक्ट में तारीफ़ के क़ाबिल कई ख़ूबियां हैं. लेकिन, इस क़ानून की आलोचना भी हुई है और चिंताएं भी ज़ाहिर की गई हैं. क़ानून के सख़्त प्रावधानों (जैसे कि भारी जुर्माने) को लेकर, कुछ ज़्यादा ही नियमन की बात कई हलकों से उठाई गई है. पर्यवेक्षकों की राय है कि इससे शायद इनोवेशन करने की राह में बाधाएं खड़ी हों. इस क़ानून में EU के AI कार्यालय और सभी सदस्य देशों में नियमन की संस्थाओं की स्थापना का प्रावधान भी है. ऐसा कर पाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि मौजूदा बजट के अंतर्गत इसके लिए संसाधनों की कमी दिखती है.
हो सकता है कि मामला जून 2024 में होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों के बाद तक खिंच जाए. इससे अब तक तय प्रावधानों से भी छेड़-छाड़ का रास्ता खुल सकता है. परिषद में सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा क़ानून को आख़िरी मंज़ूरी लेने का काम भी ड्राफ्ट तैयार होने के बाद ही हो सकेगा.
इस क़ानून का जो मूल ड्राफ्ट था, उसे अभी भी अंतिम रूप दिया जाना बाक़ी है. इससे कई और आशंकाएं भी पैदा होती हैं. क्योंकि इस प्रक्रिया में काफ़ी समय लग सकता है. हो सकता है कि मामला जून 2024 में होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों के बाद तक खिंच जाए. इससे अब तक तय प्रावधानों से भी छेड़-छाड़ का रास्ता खुल सकता है. परिषद में सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा क़ानून को आख़िरी मंज़ूरी लेने का काम भी ड्राफ्ट तैयार होने के बाद ही हो सकेगा. अगर सदस्य देश, इस क़ानून के अंतिम प्रावधानों से संतुष्ट न हुए, और उन्हें लगा कि इससे उनके अपने अधिकार क्षेत्र में दख़ल पड़ेगा, तो शायद ये क़ानून पटरी से ही उतर जाए. इसके अलावा, ये क़ानून 2026 से पहले पूरी तरह लागू नहीं हो सकेगा. AI के विकास की रफ़्तार को देखें, तो ये आशंका भी बलवती है कि कई मामलों में ये क़ानून तकनीक से पिछड़ न जाए.
ओपन सोर्स वाले AI का नियमन भी भयंकर चिंता का एक और विषय है, क्योंकि इसके दुरुपयोग की काफ़ी आशंकाएं हैं.
अब आगे क्या?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क़ानून पर सहमति के साथ ही यूरोपीय संघ ने AI के ज़िम्मेदार तरीक़े से इस्तेमाल और विकास की दिशा में पहला क़दम बढ़ा दिया है. इस क़दम से AI के नियमन के मामले में EU, अपने समकक्षों जैसे कि अमेरिका और ब्रिटेन से आगे निकल गया है. इस क़ानून में इस बात की पर्याप्त संभावना है कि ये AI के नियमन के मामले में एक मिसाल बन जाए. ठीक उसी तरह जैसे कि डेटा की निजता और संरक्षण के मामले में GDPR एक उदाहरण बन गया था. हालांकि, यूरोपीय संघ को ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि अपने अंतिम स्वरूप में ये क़ानून नागरिकों के अधिकारों की हिफ़ाज़त के साथ साथ इनोवेशन को बढ़ावा देने की ज़रूरत के बीच संतुलन बनाए, और इसके साथ ही साथ इस क़ानून में इतना लचीलापन हो कि ये, AI के क्षेत्र में हो रही तरक़्क़ी के साथ तालमेल बनाए रखे और प्रासंगिक बना रहे.
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