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चीन की व्यापार-नीति पर ईयू की धारणाओं को आकार देने में भी इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव है.
पांच साल के अंतराल के बाद शी जिनपिंग की पहली यूरोप यात्रा (रूस को छोड़कर)- जो पिछले सप्ताह पूर्ण हुई- की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी. उन्होंने फ्रांस, सर्बिया और हंगरी जाने का निर्णय लिया. इनमें से फ्रांस यूरोप की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की धारणा का प्रमुख समर्थक है, सर्बिया एक गैर-नाटो, गैर-ईयू देश है, जो रूस का करीबी है और हंगरी यूरोपियन यूनियन और नाटो में एक रूस-समर्थक, मनमौजी आवाज है.
फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों के अलावा, शी ने यूरोपियन आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन से भी मुलाकात की, जिन्होंने चीनी आयात और प्रौद्योगिकी पर निर्भरता को कम करके चीन से ‘डी-रिस्किंग’ की नीति की वकालत की थी.
मैक्रों और यूरोपियन यूनियन प्रमुख दोनों ने चीन से यूरोप के साथ अधिक संतुलित व्यापार सुनिश्चित करने का आग्रह किया. मैक्रों ने शी से यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करने का भी आग्रह किया. वहीं बेलग्रेड और बुडापेस्ट में शी का भावभीना स्वागत किया गया. वहां सड़कें भी चीनी झंडों से पटी हुई थीं.
मैक्रों ने शी से यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करने का भी आग्रह किया.
कोविड महामारी के कारण चीन का शेष दुनिया से लंबे समय तक संपर्क बंद रहा था. दरअसल, शी ने ढाई साल तक कोई विदेश यात्रा ही नहीं की और पिछले साल प्रतिबंध हटाए जाने के बावजूद वे बहुत ज्यादा यात्राएं नहीं कर रहे हैं.
रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के चलते भू-राजनीतिक रूप से दुनिया उलट-पुलट हो गई है और रूस, चीन के नजदीकी भागीदार के रूप में उभरा है. इसका असर यह हुआ है कि रूस के खिलाफ पश्चिमी गठबंधन और कठोर हो गया है और चीन को भी इसका कुछ खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
इस बीच, चीन-अमेरिका व्यापार-युद्ध भी टेक-वॉर में बदल गया है. बाइडन प्रशासन ने चीन पर टेक्नोलॉजी-प्रतिबंधों को और व्यापक व तेज कर दिया है. अमेरिका और यूरोप में चीन द्वारा सस्ते माल की डंपिंग करने का आरोप तेज हो गया है और जवाबी कार्रवाई की मांग उठ रही है. बहुत-से लोगों का इशारा इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर है, जिनमें चीन एक ग्लोबल-लीडर के रूप में उभरा है.
शी के तीन लक्ष्य हैं- यूरोपियन यूनियन को अमेरिका के बहुत करीब आने से रोकना, ईयू के साथ व्यापार में रुकावट की स्थिति को रोकना और यूरोप में चीन की स्थिति को मजबूत करना. उसे यह सब यूक्रेन युद्ध के कारण करना पड़ रहा है, जिसमें चीन को मॉस्को की मदद करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है. युद्ध का असर नाटो गठबंधन को मजबूत और विस्तृत करने पर पड़ा है. चीन की व्यापार-नीति पर ईयू की धारणाओं को आकार देने में भी इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव है.
शी के तीन लक्ष्य हैं- यूरोपियन यूनियन को अमेरिका के बहुत करीब आने से रोकना, ईयू के साथ व्यापार में रुकावट की स्थिति को रोकना और यूरोप में चीन की स्थिति को मजबूत करना.
चीनियों द्वारा मैक्रों को एक ऐसे प्रमुख यूरोपियन नेता के रूप में देखा जाता है, जो ताइवान पर अमेरिकी नैरेटिव का विरोध करने को तैयार हैं. पिछले वर्ष उन्होंने टोक्यो में नाटो संपर्क कार्यालय खोलने के विचार का भी सफलतापूर्वक विरोध किया था. हालांकि उन्होंने शी की यात्रा से पूर्व तिब्बती सिक्योंग (निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री) पेन्पा त्शेरिंग से मुलाकात करके भी चीन को अपना संदेश दे दिया.
उधर शी की सर्बिया-यात्रा का भी अपना संदेश था. वे मई 1999 में बेलग्रेड में चीनी दूतावास पर अमेरिकियों द्वारा आकस्मिक बमबारी की बरसी मनाने के लिए सर्बिया पहुंचे थे. यह कोसोवो में अत्याचारों को रोकने के लिए यूगोस्लाविया के खिलाफ नाटो अभियान का हिस्सा था लेकिन चीन ने इसे अमेरिकी आक्रामकता का एक बड़ा मुद्दा बना दिया है.
दूतावास की साइट अब चीनियों द्वारा वित्त-पोषित एक विशाल सांस्कृतिक केंद्र है. चीन ने सर्बिया में 5.5 अरब डॉलर का निवेश भी किया है. इसी तरह हंगरी का नजरिया भी अपने पड़ोसियों से भिन्न है. उसने ईयू में चीन की आलोचना करने के प्रयासों का विरोध किया है. वह भी चीनी निवेश का लाभार्थी है. यह अकारण नहीं है कि इलेक्ट्रिक कार निर्माता बीवाईडी ने यूरोप में अपना पहला कारखाना स्थापित करने के लिए दक्षिणी हंगरी के शहर सेज्ड को चुना है.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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