Published on Feb 18, 2022 Updated 0 Hours ago

महाराष्ट्र की EV नीति उपभोक्ताओं और निर्माताओं को अहम प्रोत्साहन मुहैया कराने में कारगर रही है. हालांकि चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर के प्रावधानों को लेकर नीति में स्पष्टता नहीं है

महाराष्ट्र की इलेक्ट्रिक वाहन नीति: योजना और अमल से जुड़ी चुनौतियां

भारत में परिवहन क्षेत्र सालाना तक़रीबन 14.2 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है. देश में परिवहन से जुड़े बुनियादी ढांचे को कार्बन-मुक्त (decarbonise) करने के लिए तमाम दूसरे समाधानों के साथ-साथ ई-मोबिलिटी पर ज़ोर दिया जाता रहा है. इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के निर्माण और इस्तेमाल में तेज़ी लाने के लिए नया नज़रिया और रोडमैप मुहैया कराने के मकसद से 2013 में नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 लॉन्च किया गया था. भारत सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं. हालांकि प्रदूषणकारी ईंधनों से चलने वाले वाहनों की बजाए इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग की दिशा में बदलाव लाने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों पर है. प्रशासन के निचले स्तर से ही इन नीतियों पर अमल होना है. सबसे पहले 2017 की कर्नाटक इलेक्ट्रिक वाहन और ऊर्जा भंडारण नीति सामने आने के बाद से अब तक कुल 14 राज्यों ने EV से जुड़ी नीतियों का मसौदा तैयार कर लिया है. इनमें से कुछ राज्यों ने तो इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है. बाक़ी राज्यों में भी इलेक्ट्रिक वाहन से जुड़ी नीतियों का मसौदा बनकर तैयार है, हालांकि अभी इस पर राज्य के मंत्रिमंडल की मुहर लगनी बाक़ी है. 

भारत सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं. हालांकि प्रदूषणकारी ईंधनों से चलने वाले वाहनों की बजाए इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग की दिशा में बदलाव लाने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों पर है. 

इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर राज्य सरकारों के घोषित उद्देश्यों के बावजूद इससे जुड़ी नीतियों पर अमल की रफ़्तार देश भर में सुस्त रही है. इन नीतियों पर अमल की अगुवाई अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग विभाग कर रहे हैं. केरल, पंजाब और दिल्ली में परिवहन विभाग ने इन नीतियों की संरचना और इनके क्रियान्वयन की अगुवाई की है. मध्य प्रदेश में शहरी विकास और आवास विभाग को इस मसले पर नोडल एजेंसी बनाया गया है. हालांकि, नीति पर कामयाब अमल के लिए नोडल एजेंसी को कई दूसरी एजेंसियों के साथ बेहद नज़दीक से तालमेल बनाकर काम करना होता है. इस लेख में महाराष्ट्र की EV नीति का बारीक़ विश्लेषण किया गया है. साथ ही नीतियों को लेकर योजना बनाने और उसपर अमल में आने वाली ख़ामियों को समझने और इस मसले से जुड़ी तमाम संस्थाओं के क्रियाकलापों की पड़ताल की गई है. 

महाराष्ट्र की इलेक्ट्रिक वाहन नीति

महाराष्ट्र की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति में EV अपनाने की शुरुआत करने वालों के लिए प्रोत्साहनों और विनिर्माण को बढ़ावा देने से जुड़ी नीतियों को शामिल किया गया है. इनमें ग्लाइडर्स से लेकर बैट्रियों और आपूर्ति श्रृंखला को प्रोत्साहित करने से जुड़ी नीतियां शामिल हैं. इससे लोगों के लिए मौजूदा वाहनों की बजाए इलेक्ट्रिक वाहन अपनाना आसान हो सकेगा. नीति आयोग ने भी इन्हीं वजहों से महाराष्ट्र की EV नीति की तारीफ़ की है. इसके अलावा सरकार सार्वजनिक परिवहन पर भी तवज्जो दे रही है. महाराष्ट्र सरकार ने 2027 तक सार्वजनिक परिवहन को शत प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहनों से संचालित करने का वादा किया है. ई-मोबिलिटी पर अमल के रास्ते में पहला क़दम चार्जिंग से जुड़े बुनियादी ढांचे के प्रावधान से जुड़ा है. फ़िलहाल ज़रूरत के मुताबिक EV चार्जिंग केंद्र उपलब्ध नहीं हैं और इसको लेकर अनिश्चितता का माहौल है. ये EV अपनाने के रास्ते की एक बड़ी बाधा है. जगह-जगह चार्जिंग प्वांइट्स का सघन जाल तैयार करने से उपभोक्ताओं के मन में भरोसा जगेगा. इस नीति में विभिन्न उद्देश्यों और लक्ष्यों के बीच राज्य के अलग-अलग निकायों को अलग-अलग काम सौंपे गए हैं (चित्र). अलग-अलग एजेंसियों के बीच के तालमेल से ऐसी नीतियों के कामयाब तरीक़े से अमल पर बड़ा गहरा असर पड़ता है. 

INSERT टेबल 1: मांग पक्ष से इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए प्रोत्साहन (महाराष्ट्र की EV नीति 2021)

Vehicle Segment Incentive Available No. of Vehicles to be Incentivised Maximum Incentive per Vehicle (INR)
e-2W (L1 & L2) INR 5,000/kwh 1,00,000 10,000
e-3W autos (L5M) INR 5,000/kwh 15,000 30,000
e-3W goods carrier (L5N) INR 5,000/kwh 10,000 30,000
e-4W cars (M1) INR 5,000/kwh 10,000 1,50,000
e-4W goods carrier (N1) INR 5,000/kwh 10,000 1,00,000
e-buses 10% if vehicle cost 1,000 20,00,000

नीति में तीन पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है. इनमें उपभोक्ता, निर्माता और चार्जिंग से जुड़े बुनियादी ढांचे के प्रावधान शामिल है. इसमें उपभोक्ताओं और निर्माताओं के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराए जाने वाले तमाम अहम प्रोत्साहनों का ज़िक्र है (टेबल 1). बहरहाल, तमाम तरह के प्रोत्साहन मुहैया कराए जाने के बावजूद भरोसेमंद ढंग से चार्जिंग स्टेशनों की उपलब्धता से जुड़े आश्वासनों के अभाव में उपभोक्ताओं और निर्माताओं में EV से जुड़े उत्पादों की ख़रीद और निर्माण को लेकर हिचकिचाहट बरकरार है. चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर की योजना बनाने और उसको ज़मीन पर उतारने की ज़िम्मेदारी शहरी स्थानीय निकायों को सौंपी गई है. हालांकि इसका मौजूदा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के साथ विलय कर दिया गया है. लिहाज़ा केवल NCAP के लिए चुने गए शहरों (जिन्हें FCC से फ़ंड हासिल होना है) में ही चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर की योजना तैयार की जानी है. महाराष्ट्र में ऐसे शहरों की तादाद 6 है. नीति के मुताबिक नेशनल और स्टेट हाईवे पर चार्जिंग केंद्रों के बारे में महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) और लोक निर्माण विभाग (PwD) को फ़ैसला लेना है. हालांकि, इनकी संरचना से जुड़ी योजना के आकार या इनके निर्माण की समय-सीमा का ब्योरा नहीं दिया गया है. साथ ही इसपर अमल और रकम मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी किसकी होगी, ये भी अभी तय नहीं है. नीति के तहत इन दोनों ही योजनाओं के चरणों को लेकर भी खुलकर कुछ नहीं कहा गया है. तकनीकी रूप से चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर को लेकर पहले राज्य और क्षेत्रीय स्तर की योजना तैयार की जानी चाहिए. इसके बाद ही शहरी स्तर की योजनाओं की शुरुआत होती है. इस तरह के ब्योरे के अभाव से भ्रम का वातावरण बनता है. विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल के अभाव की ये एक और वजह है. इसी तरह निम्न उत्सर्जन क्षेत्रों का फ़ैसला भले ही ‘शहरी एजेंसियों’ को लेना है, लेकिन ये तय नहीं है कि वो एजेंसी कौन सी है. चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर पर नीति आयोग के हैंडबुक में भी इस बात को स्वीकार किया गया है कि फ़िलहाल विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल बिठाने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है. इसके लिए उनकी ओर से तमाम एजेंसियों के बीच तालमेल क़ायम करने को लेकर कार्यकारी समूह बनाने का सुझाव दिया गया है. इस समूह में तमाम संबंधित निकायों और स्टेकहोल्डर्स के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए. दिल्ली एक ऐसा क्षेत्र है जहां ऐसे कार्यकारी समूह की स्थापना पहले ही हो चुकी है. अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल बिठाने के लिए ये निहायत ज़रूरी है. आने वाले वर्षों में महाराष्ट्र में भी ऐसे कार्यकारी समूह की स्थापना से काफ़ी फ़ायदा हो सकता है. 

तकनीकी रूप से चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर को लेकर पहले राज्य और क्षेत्रीय स्तर की योजना तैयार की जानी चाहिए. इसके बाद ही शहरी स्तर की योजनाओं की शुरुआत होती है. इस तरह के ब्योरे के अभाव से भ्रम का वातावरण बनता है. विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल के अभाव की ये एक और वजह है. 

चित्र: महाराष्ट्र की EV नीति के लिए अलग-अलग सरकारी और ग़ैर-सरकारी क्रियान्यवयन एजेंसियां (महाराष्ट्र EV नीति 2021 से जुटाई गई जानकारी)

नीति में ई-मोबिलिटी हासिल करने से जुड़े कुछ बेहद अहम पहलुओं को महज़ छुआ भर गया है. हक़ीक़त में ये तमाम मसले EV के दीर्घकालिक सतत विकास के लिए बेहद अहम हैं. लिहाज़ा इनके बारे में विस्तार से ब्योरा दिए जाने की ज़रूरत है. ई-कचरा इन्हीं पहलुओं में से एक है जिसे EV के शुरुआती योजनागत दौर में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. हालांकि नीति में इसे आगे के लिए टाल दिया गया है. वैसे तो राज्य में चंद li-ion battery रिसाइक्लिंग प्लांट शुरू किए गए हैं, लेकिन इसको लेकर एक व्यापक प्रबंधन योजना बनाए जाने की दरकार है. दूसरे इस नीति में ‘एक राज्य कोष’ और ‘शून्य उत्सर्जन क्रेडिट’ का प्रावधान किया गया है. हालांकि इसके बारे में ज़्यादा ब्योरा नहीं दिया गया है. ये भी बिल्कुल साफ़ नहीं है कि ये कोष कैसे काम करेगा और इससे क्या मदद मिलेगी. नीति पर अमल का आकलन ‘महाराष्ट्र राज्य EV सचिवालय’ नाम से बनने वाली टीम द्वारा किया जाना है. फ़िलहाल इस टीम में संबंधित सरकारी विभागों मसलन परिवहन, ऊर्जा और पर्यावरण विभाग से जुड़े प्रतिनिधि शामिल हैं. इसमें प्रतिनिधित्व को व्यापक बनाकर नीति पर अमल की कार्यकुशलता सुधारी जा सकती है. लिहाज़ा इसमें थिंक टैंकों, निजी क्षेत्र और तमाम दूसरे किरदारों को शामिल कर हरेक से फ़ीडबैक लिया जा सकता है. 

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि राज्य में काम कर रहे विभिन्न सरकारी निकायों को सौंपे गए दायित्वों के बारे में नीति में कई अहम ब्योरे शामिल ही नहीं है. इसमें कोई शक़ नहीं कि इस नीति का निर्माण अच्छे से सोच विचार के बाद किया गया है, लेकिन मौजूदा रवैये से आगे चलकर इसको अमल में लाने के रास्ते में अनचाही रुकावटें आ सकती हैं.

इस परिचर्चा से नीति की संभावित ख़ामियों के बारे में कुछ जानकारी मिलती है. शायद इन्हीं ख़ामियों की वजह से नीति पर अमल की रफ़्तार सुस्त है. महाराष्ट्र की EV नीति उपभोक्ताओं और निर्माताओं को अहम प्रोत्साहन मुहैया कराने में कारगर रही है. हालांकि चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर के प्रावधानों को लेकर नीति में स्पष्टता नहीं है. निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि राज्य में काम कर रहे विभिन्न सरकारी निकायों को सौंपे गए दायित्वों के बारे में नीति में कई अहम ब्योरे शामिल ही नहीं है. इसमें कोई शक़ नहीं कि इस नीति का निर्माण अच्छे से सोच विचार के बाद किया गया है, लेकिन मौजूदा रवैये से आगे चलकर इसको अमल में लाने के रास्ते में अनचाही रुकावटें आ सकती हैं. नीति में EV की ओर क़दम बढ़ाने से जुड़े हर अहम पहलू को शामिल किया गया है. हालांकि इस सिलसिले में काफ़ी जल्दबाज़ी दिखाई गई है और कई ज़रूरी मसलों को आगे के लिए टाल दिया गया है. पहली नज़र में प्रशासकीय व्यवस्था सटीक मालूम होती है, लेकिन क़रीब से नज़र डालने पर इसके कुछ सिरे खुले दिखाई देते हैं. इनका विस्तार से निपटारा किए जाने की ज़रूरत है. चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर पर नीति आयोग के हैंडबुक जैसे राष्ट्रीय दिशानिर्देशों में राज्य की EV नीतियों की कुछ संभावित रुकावटों से जुड़ी कई सिफ़ारिशें दी गई हैं. अगले मसौदे के लिए इन नीतियों को फ़ीडबैक के तौर पर इस्तेमाल कर इनके विकास और उभार को बढ़ावा दिया जा सकता है. इसके साथ ही कुछ क्षेत्रों में बेहतर नतीजों के साथ काम कर रहे दूसरे राज्यों के अनुभवों से हासिल सबक़ को भी इसमें शामिल किया जा सकता है. चूंकि ये नीतियां अभी क्रियान्वयन के बेहद शुरुआती दौर में हैं, लिहाज़ा अमल से जुड़ी प्रक्रिया के आगे बढ़ने के साथ-साथ इनकी ख़ामियों को दूर किया जा सकता है. इन कमियों को छोड़ दें तो इस नीति में प्रदूषणकारी तौर-तरीक़े छोड़कर EV का रुख़ करने से जुड़ी क़वायद का एक आदर्श खाका पेश किया गया है. 

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