Published on Dec 06, 2021 Updated 0 Hours ago

कोरोना वायरस महामारीने जो नुक़सान पहुंचाया है उसकी भरपाई के लिए महाराष्ट्र सरकार को महिलाओं, लड़कियों और तीसरे वर्ग के लोगों को तुरंत फ़ायदा देने वाले कार्यक्रमों में भारी निवेश करने की ज़रूरत है.

Maharashtra: स्वास्थ्य और पोषण के लिए महिलाओं के लिए बजट की कमियों की पहचान

ये लेख हमारी कोलाबा एडिट 2021 सीरीज़ का हिस्सा है.


अब ये बात पर्याप्त रूप से साबित हो चुकी है कि कोविड-19 महामारी (Covid_19) ने भारत में मानव विकास के सभी आयामों पर बहुत बुरा असर डाला है. इसके चलते भारत के लिए 2030 के एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट को पूरा करने की राह में बहुत मुश्किलें पेश आने वाली हैं. साल 2020 की शुरुआत में महामारी की आमद के साथ ही समाज की मौजूदा संरचनात्मक असमानताएं और बढ़ गई हैं. इसका सबसे गहरा असर सबसे कमज़ोर वर्गों- ख़ास तौर से महिलाओं और बच्चों पर पड़ा है. इस दौरान जो तमाम सामाजिक आर्थिक असमानताएं खुलकर उजागर हुई हैं, उनमें से महिलाओं, लड़कियों और दूसरे अलग-अलग लिंगों के लोगों की सेहत और पोषण के मुद्दे सबसे चिंताजनक हैं. सरकार की प्राथमिकताएं बदलने से, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण के कार्यक्रमों में कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन (Coronavirus/Lockdown) के दौरान आवाजाही बंद रहने के चलते खलल पड़ा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि कमज़ोर तबक़े के लोगों के लिए बेहद अहम सेवाओं तक पहुंच बना पाना और भी मुश्किल हो गया है. इससे महिलाओं और बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत (Mental Health) के साथ-साथ स्वस्थ जीवन के तमाम पहलू प्रभावित हुए हैं. इन हालात में ये लेख, लड़कियों और महिलाओं की सेहत और पोषण से जुड़े महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के बजट को समझने की कोशिश कर रहा है. जैसा कि हमें पता है, भारत में इस महामारी से लड़ने में केंद्रीय भूमिका सरकार की रही है. इस लेख में हम इस बात का मूल्यांकन करने की कोशिश कर रहे हैं कि पिछले चार वर्षों यानी वित्तीय वर्ष 2018-19 से लेकर 2021-22 तक सेहत और पोषण में किए गए सरकारी निवेश किस हद तक लैंगिक संवेदनाओं का ख़याल रखते हैं.

प्रजनन संबंधी सेहत की योजनाओं का कुल बजट वित्त वर्ष 2021-22 में महिलाओं की सेहत स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े कुल बजट का 15 प्रतिशत था.

अगर हम सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को जेंडर यानी महिलाओं और पुरुषों के नज़रिए से देखें, तो दो पहलुओं पर विचार किया जाता है: पहला ये कि सेवाओं का लाभ उठाने वाली लड़कियां और महिलाएं हैं; और दूसरा ये कि महिलाएं सेवा देने वाली हैं. लाभार्थी के तौर पर महिलाओं और लड़कियों की भलाई के लिए तीन तरह की सेवाओं को इस लेख में शामिल किया गया है, जो बहुत अहम होती हैं: उनकी प्रजनन क्षमता से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाएं, प्रजनन के अतिरिक्त सेहत से जुड़े अन्य मसलों की सेवाएं (जिन्हें हम स्वास्थ्य की अन्य ज़रूरतें कहेंगे), और पोषण संबंधी सेवाएं. हालांकि, यहां पर ये साफ़ कर देना होगा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल शिक्षा विभाग में लाभार्थियों के जेंडर के आधार पर अलग अलग बजट आवंटन के आंकड़ों की जानकारी नहीं है. तो इन पहलुओं का विश्लेषण बेहद सीमित है. इसके अलावा, वैसे तो लिंग के आधार पर होने वाली हिंसा से निपटने में सार्वजनकि स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की भूमिका बहुत अहम होती है. पर, इस लेख का ज़ोर सेहत और पोषण के क्षेत्र में सरकार की मुख्य कोशिशों पर ही है.

जेंडर बजट विश्लेषण

महाराष्ट्र सरकार द्वारा हर साल जारी किए जाने वाले जेंडर बजट स्टेटमेंट (GBS) के मुताबिक़, राज्य में वित्त वर्ष 2021-22 और 2020-21 में स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े कुल बजट का एक प्रतिशत से भी कम हिस्सा जेंडर बजट के लिए आवंटित किया गया (सारणी 1). यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि वित्त वर्ष 2021-222 में सभी क्षेत्रों के लिए राज्य के कुल बजट में से जेंडर बजट का हिस्सा तीन प्रतिशत था. इसमें से 16 फ़ीसद हिस्सा स्वास्थ्य और पोषण के लिए रखा गया था. वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 2189 करोड़ रुपए महिलाओं और लड़कियों की सेहत और पोषण से जुड़ी ज़रूरतें पूरी करने के लिए आवंटित किए गए थे. इस रक़म में से भी 74 प्रतिशत हिस्सा गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं के पोषण के लिए रखा गया था.

सारणी 1: स्वास्थ्य और पोषण के लिए महाराष्ट्र के जेंडर बजट का एक मूल्यांकन
(करोड़ रुपयों में)

वित्त वर्ष

2018-19 वास्तविक

वित्त वर्ष

2019-20 वास्तविक

वित्त वर्ष

 2020-21

संशोधित अनुमान

वित्त वर्ष

2021-22

बजट अनुमान

स्वास्थ्य 465 662 700 769
पोषण 1,813 2,172 2,182 1,420
स्वास्थ्य और पोषण के लिए कुल रक़म 2,278 2,834 2,882 2,189
राज्य के कुल बजट में से पोषण और सेहत के लिए आवंटन प्रतिशत में 0.75% 0.75% 0.66% 0.45%
स्रोत:वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए महाराष्ट्र के जेंडर बजट बयान के आधार पर लेखकों का आकलन
  • स्वास्थ्य सेवाओं का लाभा उठाने वालों में महिलाएं और लड़कियां

जैसा कि पहले बताया गया है, स्वास्थ्य सेवाओं की लाभार्थी के तौर पर महिलाओं और लड़कियों के लिए तीन तरह की सेवाएं होती हैं. इसलिए इस लेख में उनकी प्रजनन संबंधी ज़रूरतों, स्वास्थ्य की अन्य ज़रूरतों और पोषण की सेवाओं का विश्लेषण किया गया है.

  • प्रजनन संबंधी ज़रूरतों का बजट

प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य की ज़रूरतों के लिए तीन तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं. मां की सेहत से जुड़े कार्यक्रम, मातृत्व के लाभ और मासिक धर्म के दौरान साफ़-सफ़ाई का प्रबंधन (MHM). मां की सेहत से जुड़ी सेवाओं के लिए वित्त वर्ष 2021-22 का बजट 139 करोड़ था, जो वित्त वर्ष 2020-21 (66 करोड़ रुपए), वित्त वर्ष 2019-20 (119 करोड़), वित्त वर्ष 2018-19 (55 करोड़) की तुलना (Fig.1) में काफ़ी अधिक था. कुल मिलाकर पांच सेवाओं- गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की सेहत की पड़ताल. जननी सुरक्षा योजना, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) और माहेर घर ने बच्चे की जन्म से पहले और उसके बाद की पांच सेवाओं के तमाम पहलुओं, अस्पताल या क्लिनिक में बच्चों की डिलिवरी वग़ैरह की जानकारी मुहैया कराई थी. मातृत्व लाभ के लिए आवंटन (प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और मानव विकास मिशन के तहत काम पर न जा पाने वाली गर्भवती महिलाओं को मज़दूरी का वेतन उपलब्ध कराने की मद में भी वित्त वर्ष 2020-21 में 164 करोड़ की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में 170 करोड़ रुपए का व्यय किया गया था.

अमृत आहार योजना के तहत आदिवासी इलाक़ों में गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को गर्म पका खाना उपलब्ध कराया जाता है. 

मातृत्व लाभ से जुड़ी योजनाओं के बजट का उपयोग वित्त वर्ष 2019-20 में 91 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2018-19 में 79 प्रतिशत रहा था. MHM के तहत दो योजनाओं की जानकारी मुहैया कराई गई थी (सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने वाली अस्मिता योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत मासिक धर्म के दौरान साफ़-सफ़ाई (MHM) को प्रोत्साहन). वित्त वर्ष 2021-22 में इसके लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जो 2020-21 के बजट का एक तिहाई थी. प्रजनन संबंधी सेहत की योजनाओं का कुल बजट वित्त वर्ष 2021-22 में महिलाओं की सेहत स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े कुल बजट का 15 प्रतिशत था.

  1. 2 सेहत की अन्य ज़रूरतों का बजट.

जेंडर बजट बयान (GBS) में स्वास्थ्य की अन्य ज़रूरतों के लिए दो तरह के कार्यक्रमों का उल्लेख किया गया था: ज़िला महिला अस्पताल और पुरुषों और महिलाओं की नसबंदी. ज़िला महिला अस्पतालों के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में 15 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जो वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2019-20 के 18 करोड़ से कम थे. जहां तक नसबंदी का सवाल है तो इसमें लैंगिक असंतुलन बिल्कुल साफ़ दिखता है. क्योंकि महाराष्ट्र में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नसबंदी ज़्यादा की जा रही है (Fig 2). चूंकि महिलाओं के कुल बजट का 1.5 प्रतिशत हिस्सा की सेहत और पोषण के मद में आवंटित किया जाता है, तो साफ़ है कि महाराष्ट्र सरकार महिलाओं और लड़कियों की सेहत से जुड़ी अन्य ज़रूरतों को प्राथमिकता नहीं दे रही है.

  • पोषण के लिए बजट

महिलाओं और लड़कियों के पोषण के लिए महाराष्ट्र में तीन योजनाएं चलाई जाती हैं: पूरक पोषण योजना (SNP), एकीकृत बाल विकास सेवाएं, अमृत आहार योजना और किशोर उम्र लड़कियों के लिए सबला योजना; और पोषण अभियान का कार्यक्रम पोषण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए चलाया जाता है. गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को खाना उपलब्ध कराने के लिए SNP योजना के तहत वित्त वर्ष 2021-22 में 252 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे. वहीं, वित्त वर्ष 2020-21 में 292 करोड़ और 2019-20 में 258 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए थे (Fig 3). ऐसा तब है जब पूरक पोषण योजना के इस्तेमाल की दर काफ़ी अधिक (वित्त वर्ष 2019-20 में 84 फ़ीसद और वित्त वर्ष 2018-19 में 100 प्रतिशत) रही है.

अमृत आहार योजना के तहत आदिवासी इलाक़ों में गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को गर्म पका खाना उपलब्ध कराया जाता है. इस योजना के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में 204 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जो इससे पहले के वर्षों की तुलना में अधिक रक़म है. किशोर उम्र लड़कियों को पोषण उपलब्ध कराने वाली सबला योजना के बजट में पिछले तीन सालों से लगातार भारी कटौती की जा रही है. इसी तरह पोषण अभियान के बजट में भी लगातार कमी की जा रही है. पोषण के मद में कुल आवंटन जो वित्त वर्ष 2018-19 में 562 करोड़ था, वो वित्त वर्ष 2021-22 में घटकर 549 करोड़ ही रह गया. ये स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े महिलाओं के कुल बजट का लगभग एक चौथाई है.

 इस साल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मद में बजट और भी कम कर दिया गया है. हो सकता है कि इसे पूरक बजट में शामिल करके बढ़ाया जाए. पिछले वित्तीय वर्ष (FIG 4) में यही किया गया था

(2)स्वास्थ्य सेवाएं देने वाली महिलाओं की भूमिका

फ्रंटलाइन के स्वास्थ्य कर्मियों में एक बड़ा हिस्सा महिलाों का है. जेंडर बजट बयान (GBS) में बताए गए आंकड़ों के आधार पर, हमने सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाई जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (ASHA) और आंगनबाड़ी कर्मचारियों (AWW) के लिए आवंटित बजट का विश्लेषण किया है. ये सभी महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ काम करते हैं. महाराष्ट्र में क़रीब 67 हज़ार आशा वर्कर और दो लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं. उन्हें बस नाममात्र की रक़म मानदेय के रूप में मिलती है, जो इन कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले काम और उनके काम के घंटों के लिहाज़ से बहुत कम है. वित्त वर्ष 2021-22 में आशा कर्मचारियों को मानदेय के लिए बजट में 418 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए ये रक़म 871 करोड़ रुपए थी. ऐसा लगता है कि इस साल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मद में बजट और भी कम कर दिया गया है. हो सकता है कि इसे पूरक बजट में शामिल करके बढ़ाया जाए. पिछले वित्तीय वर्ष (FIG 4) में यही किया गया था. महिलाओं की सेहत और पोषण के लिए जारी कुल बजट में से 60-70 प्रतिशत रक़म आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दिए जाने वाले मानदेय के रूप में ख़र्च की जाती है.

मुख्य निष्कर्ष

इन आंकड़ों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में महिलाओं की सेहत और उनके पोषण के लिए आवंटित बजट, महिलाओं और लड़कियों की मौजूदा और आने वाले समय की ज़रूरतें पूरी करने के लिहाज़ से पर्याप्त नहीं है. ख़ास तौर से महामारी के वर्षों में जब स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए ज़्यादा निवेश की ज़रूरत थी, तो हमारे विश्लेषण से पता ये चलता है कि महिलाओं की सेहत और पोषण से जुड़े बजट में कमी आ रही है (वित्त वर्ष 2019-20 में 2,834 करोड़ रुपये से घटकर वित्त वर्ष 2021-22 में 2,189 करोड़ रुपए (Table 1). इसके अलावा महामारी के दौरान आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के बंद रहने से इनमें से कई सेवाओं में ख़लल पड़ा था. इससे गर्भ धारण के दौरान और बच्चों की पैदाइश के बाद महिलाओं की सेहत से जुड़ी देख-भाल पर बहुत बुरा असर पड़ा था.

अगर हम मौजूदा निवेश की बात करें, तो भी महिलाओं को लेकर बदलाव लाने वाले नज़रिए की कमी दिखती है. आज भी पूरा ध्यान महिलाओं और लड़कियों की प्रजनन संबंधी भूमिका यानी बच्चे पैदा करने में उनकी भूमिका पर ही है. उनकी शारीरिक सेहत के बाक़ी सभी पहलुओं जैसे कि सर्विकल और ब्रेस्ट कैंसर, मोटापे, हाइपर टेंशन और डायबिटीज़, मीनोपॉज से जुड़े मसलों, बढ़ती उम्र और दर्द से राहत देने के उपचार पर पूरी तरह ध्यान नहीं दिया जा रहा है. महिलाओं की मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दों के लिए ख़ास रक़म की व्यवस्था नहीं की जा रही है, जबकि इस बात के तमाम सबूत सामने आ रहे हैं कि ख़ास तौर से महामारी के दौरान पड़े तिहरे बोझ के चलते महिलाओं के डिप्रेशन और चिंता की शिकार होने का ख़तरा ज़्यादा है.

महिलाओं की ख़ास ज़रूरतों का ख़याल रखते हुए योजनाएं बनाना और बजट आवंटन करना ज़रूरी है. इस दौरान लैंगिक असमानता के मौजूदा असंतुलन का ख़याल रखना भी ज़रूरी होगा. 

इसके अलावा, समाज के हाशिए पर पड़े तबक़ों की महिलाओं जैसे कि आदिवासियों, दलितों, बुज़ुर्गों, दिव्यांगों, सेक्स वर्कर्स, ट्रांसजेंडर और दूर-दराज़ में रहने वाली महिलाओं का सरकार के स्वास्थ्य और पोषण के कार्यक्रमों में शायद ही कोई ज़िक्र मिलता हो. आज भी इन वर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण से जुड़ी सुविधाओं तक पहुंच बनाना, उनका ख़र्च उठा पाना और उनकी उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, महिलाओं की ख़ास ज़रूरतों का ख़याल रखते हुए योजनाएं बनाना और बजट आवंटन करना ज़रूरी है. इस दौरान लैंगिक असमानता के मौजूदा असंतुलन का ख़याल रखना भी ज़रूरी होगा. महामारी से उबरने के इस सफ़र में ऐसे कार्यक्रमों पर पैसे ख़र्च करने होंगे, जो बुनियादी सेहत और पोषण की ज़रूरतें तो पूरी कर ही सकें. इसके साथ-साथ वो महिलाओं और लड़कियों के हालात में बदलाव भी ला सकें. तभी जाकर महिलाओं, लड़कियों और अन्य विविध लिंगों के लोगों की बेहतरी और सशक्तिकरण को सुनिश्चित किया जा सकेगा.

(नोट: सभी ग्राफ महाराष्ट्र सरकार के वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए जेंडर बजट स्टेटमेंट के आधार पर लेखकों द्वारा की गई गणना पर आधारित हैं.)

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