Author : Ramanath Jha

Published on Sep 10, 2021 Updated 0 Hours ago

इन क्षेत्रों का यूएलबी के अंतर्गत विलय, उन्हें शहरी विकास प्रक्रिया से जोड़ पाने में सफल होता है. ऐसे क्षेत्रों के लिए जरूरी मास्टर प्लान अथवा विकास योजना शीघ्र ही बनायी जाएगी

महाराष्ट्र: पुणे के गांवों का शहरों में विलय यानी एक अवित्तीय आदेशपत्र

गांवों के शहरी परिधि तक तेज़ी से हो रहे निरंतर शहरीकरण, राज्य सरकारों को सतत विवश कर रही है कि वे इन पेरी-अर्बन क्षेत्रों का पड़ोसी शहरी स्थानीय निकायों (ULB) मे विलय कर दे. शहरीकरण को एक स्थायी तरीके से प्रस्तुत कर पाने मे रूरल-लॉ या ग्रामीण कानूनों की अक्षमता की वजह से यह और भी ज्य़ादा आवश्यक हो गया है. इन क्षेत्रों का यूएलबी के अंतर्गत विलय, उन्हें शहरी विकास प्रक्रिया से जोड़ पाने में सफल होता है. ऐसे क्षेत्रों के लिए जरूरी मास्टर प्लान अथवा विकास योजना शीघ्र ही बनायी जाएगी. तत्पश्चात, यूएलबी के विकास नियंत्रण नियम निर्माण – आर्थिक और व्यावसायिक विकास; पर्यावरण और रोड, जल, सीवरेज, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाग-बगीचे, मनोरंजन और अन्य सुविधाएं आदि जो हर शहर की ज़रूरत होती है, वो जीवन की गुणवत्ता बेंचमार्क के अनुसार प्रभावी हो जाएगा. इस विलयन प्रक्रिया में समय लगता है, क्योंकि इसके लिए संबंधित गांवों, यूएलबी, और राज्य की ग्रामीण और शहरी विकास विभाग, आदि के मशविरे की भी ज़रूरत पड़ती है. इस विलयन प्रक्रिया में लगने वाला समय, राजनैतिक गणना के आधार पर निर्धारित होती है ताकि इससे होने वाले चुनावी लाभ-हानी, आदि को तोला जा सके. हालांकि, पूर्ण रूप से शहरीकरण के लिए उत्पन्न विवशता ही विलय की ओर ले जाती है.

इस विलयन प्रक्रिया में समय लगता है, क्योंकि इसके लिए संबंधित गांवों, यूएलबी, और राज्य की ग्रामीण और शहरी विकास विभाग, आदि के मशविरे की भी ज़रूरत पड़ती है. इस विलयन प्रक्रिया में लगने वाला समय, राजनैतिक गणना के आधार पर निर्धारित होती है ताकि इससे होने वाले चुनावी लाभ-हानी, आदि को तोला जा सके. 

इसका ताज़ातरीन उदाहरण, महाराष्ट्र स्थित पुणे महानगरपालिका (पीमसी) है.  आगामी फरवरी 2022, को होने वाले नागरिक चुनाव के पहले, 23 ग्रामीण क्षेत्र, जिनका कुल क्षेत्रफल 181 वर्ग किलोमीटर है, उनका 29 जून, 2021 को, नागरिक निकाय में विलय कर दिया गया, जिसके उपरांत पीमसी की क्षमता 518 किलमीटर और बढ़ गई. इसके साथ ही पीमसी, पूरे राज्य में सबसे बड़ी यूएलबी बन गई. यहां ये बताना भी सार्थकता हो जाता है कि पीमसी में विलय की ये प्रक्रिया कोई ­एक बार का मामला नहीं था. पुणे नगरपालिका की स्थापना सन 1950 मे की गई थी और सन 1985 तक के शुरुआती काल में इस नगरपालिका के अंतर्गत 145 वर्ग किलोमीटर तक का ही क्षेत्र था, पुणे के इर्द-गिर्द के क्षेत्र में बढ़ते औद्योगीकरण और उस वजह से होने वाले शहरीकरण की वजह से राज्य सरकार को पीमसी के समीप एक दूसरी नगरपालिका की स्थापना करनी पड़ी. इसे पिंपरी चिंचवाड़ महानगरपालिका (पीसीएमसी) का नाम दिया गया, जो इस राज्य के कुछ सबसे बड़े उद्योगों का घर भी है. इन उद्योगों ने आगे, इस शहर और इसके समीप में शहरीकरण की राह को और प्रशस्त किया. 2001 मे, पीमसी में और भी क्षेत्रों का विलय किया गया जिससे यूएलबी के अंतर्गत, इसका कुल क्षेत्रफल 243 वर्ग किलमीटर हो गया. अक्तूबर 2017 में, राज्य सरकर ने अपने एक अन्य अध्यादेश के अंतर्गत, 11 सीमांत गांवों को भी पीमसी के दायरे मे विलय करते हुए, 81 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र उसमें जोड़ दिया. ऐसा करते हुए पीमसी के दायरे को कुल 331 वर्ग किलोमीटर तक का विस्तार दे दिया गया. 2021 का संभावित विलय, पीमसी के क्षेत्र के विस्तार का मात्र एक और किश्त ही कहा जायेगा, और संभवतः ये अंतिम नहीं है.

शहरों पर बढ़ता बोझ

इस नवीनतम विलय के बाद शहर में, 400, 000 लोगों की अतिरिक्त आबादी शहर में जुड़ जाएगी. पीमसी का एक भाग बन जाने के बाद, लोगों के मन में अतिरिक्त टैक्स का भार बढ़ने की आशंका भी बढ़ेगी, क्योंकि गांवों की तुलना में यूएलबी अपने इलाके में रह रहे लोगों से बढ़ा हुआ कर हासिल करती है.  हालांकि, इसके साथ ही उनपर लगने वाले अतिरिक्त टैक्स का एक सकारात्मक पक्ष ये भी है कि लोगों को बेहतर नागरिक ढांचा और बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था प्राप्त होगी. अब इसके बाद सवाल ये रह जाता है कि, पुणे के नागरिक बन जाने के बाद, इन ग्रामीण लोगों के बेहतर भविष्य के आसार कैसे हैं, और इसका यूएलबी का खुद के ऊपर क्या असर पड़ेगा?

एक बार विलय किए जाने के बाद, राज्य सरकार उन नागरिकों को अगले पाँच साल तक महंगे कर देने से मुक्त रखती है, और अन्य शहरी लोगों पर लागू कराधान या टैक्स में श्रेणीबद्ध वृद्धि किए जाने का प्रावधान है. पर जैसे ही एक बार ये दी गई राहत की समय सीमा ख़त्म होगी तो उसके बाद, इन विलय किए गए क्षेत्र में रहने वाले लोग भी पीएमसी मुताबिक टैक्स देने के उत्तरदायी हो जाएंगे. 

बढ़े हुए टैक्स के परिप्रेक्ष्य मे, ‘विलय’ के परिधि मे आए हुए नागरिकों पर तात्कालिक रूप से अल्पकालिक अवधि में तो कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन एक बार विलय किए जाने के बाद, राज्य सरकार उन नागरिकों को अगले पाँच साल तक महंगे कर देने से मुक्त रखती है, और अन्य शहरी लोगों पर लागू कराधान या टैक्स में श्रेणीबद्ध वृद्धि किए जाने का प्रावधान है. पर जैसे ही एक बार ये दी गई राहत की समय सीमा ख़त्म होगी तो उसके बाद, इन विलय किए गए क्षेत्र में रहने वाले लोग भी पीएमसी मुताबिक टैक्स देने के उत्तरदायी हो जाएंगे. साथ ही, सभी नागरिकों को पीमसी नगरपालिका द्वारा पारित नियमावली का पालन करना भी अनिवार्य होगा. ये पूरी प्रक्रिया ग्राम पंचायत द्वारा पारित किये गये आदेशों की तुलना में और भी ज्य़ादा जटिल होंगे.

फिर भी, एक बेहतर बुनियादी ढांचे के संबंध मे, नए नागरिकों को निराशा ही प्राप्त होगी. कुछ समय तक के लिए शायद, शहर के दूरस्थ के क्षेत्र अभी किसी भी प्रकार के सेवाओं में सुधार का अनुभव शायद नहीं ले पाएं. ना ही उन्हें महानगरपालिका द्वारा कोई बेहतर प्रशासनिक सुविधा प्राप्त होने की संभावना है. यह देखना वाकई आश्चर्यजनक है, कि विलय का निर्णय लिए जाने से पहले, इस बात का कोई  मूल्यांकन नहीं किया गया, कि विलय मे लाये गए क्षेत्रों को क्या महानगरपालिका अपनी बेहतर सेवा दे पाने मे सक्षम है भी या नहीं — और इसके लिए कितने धन की आवश्यकता होगी और इस धन को कहां से उपलब्ध कराया जाएगा.

जिस वक्त ये क्षेत्र ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत आते थे, तो उस वक्त राज्य सरकार उन्हें ज़रूरी सेवाओं जैसे जलापूर्ति, सैनीटेशन, और गाँव की सड़कों को ज़िलापरिषद (ग्रामीण क्षेत्रों मे कार्यरत ज़िला स्तरीय विभाग) और पंचायत समिति (ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने वाली ब्लॉक स्तरीय विभाग) द्वारा चलाए गए विभिन्न स्कीम के अंतर्गत प्रदान की जाती थी. हालांकि, यूएलबी के साथ हुए उनके विलय के पश्चात, गांवों और राज्यों के बीच का गर्भनाल (जुड़ाव) टूट जाता है, और ग्रामीण क्षेत्र व उससे जुड़ी समस्त ज़िम्मेदारी, राज्य के सीमित सहयोग के साथ यूएलबी को स्थानांतरित हो जाती है. जैसा कि पीमसी के स्थायी कमिटी  के अध्यक्ष ने कहा, “नए बने ग्रामों मे, बुनियादी सुविधाएं जैसे जल, ड्रेनज व्यवस्था, सड़क आदि जैसे विकास कार्यों के लिए, हमने उन्हें (राज्य को) 9000 करोड़ धनराशि का बजट पारित किया है,” हालांकि, ‘राज्य सरकार को अभी भी  स्टाम्प ड्यूटी  से अर्जित धन में से 300 करोड़ रुपए, और विकास मद के 300 करोड़ रुपए देने बाकी हैं.” ये वो धनराशि है, जो राजस्व बंटवारे से जुड़ा है और जिसे राज्य सरकार, राज्य-व्यापी वित्तीय व्यवस्था के तहत, बांटने का प्रावधान करती है.

अतिरिक्त ह्यूमन रिसोर्स और वित्तीय मदद की ज़रूरत

विलय किए गए क्षेत्रों के सफल प्रशासन और बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए यूएलबी को अतिरिक्त मानवश्रम की ज़रूरत पड़ेगी. हालांकि, राज्य की ओर से किसी प्रकार की सहायता अब तक मुहैय्या नहीं करायी गयी है. जैसा की खुद एनसीपी के स्थानीय नेता ने स्वीकार किया कि, “पूर्व में भी, जब गांवों को शहर के साथ जोड़ा गया था, तो राज्य सरकार की ओर से किसी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं की गई थी. जबकि यहां के लोगों को सारी सुविधा देने की ज़िम्मेदारी अकेले पीमसी की ही होती है.” दुर्भाग्यवश, बिना वित्तीय मदद के मिला जनादेश, के बेहतर प्रदर्शन की संभावना नहीं होती है. पीमसी क्षेत्र के अंदर रहने वाले नागरिकों ने इन कमियों को पहले ही भाप लिया था, और इसलिए, वे इस विलय की घोषणा से बहुत उत्साहित नहीं दिखे. शहर की अग्रणी नागरिक हक संस्था, के प्रमुख ने, राज्य सरकार को लिखे अपने पत्र मे कहा कि, पीमसी क्षेत्र में पहले से रह रहे लोगों को अपने प्रस्तावित सुविधाओं का 50 प्रतिशत सेवा भी नहीं दे पा रही है. इसलिए, राज्य सरकार को पीमसी में और ग्रामीण क्षेत्रों का विलय नहीं करना चाहिए, अन्यथा उस वजह से और भी परेशानियां बढ़ेंगी. “एक अन्य नागरिक संस्था, राष्ट्रीय स्वच्छ शहर संस्था के अनुसार, यह देखा गया है कि एक बार अगर कोई शहर अपनी क्षमता से अधिक बड़ा या विस्तृत अगर हो जाता है तो फिर उस शहर में  नगरपालिका द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं जैसे पेयजल, सीवेज और कूड़ा, सड़क, बिजली, आवासीय और सबसे ज़रूरी परिवहन व्यवस्था आदि का प्रबंधन काफी मुश्किल हो जाता है.” संस्था ने महसूस किया है कि- ये ज़्यादा संगतपूर्ण होगा कि “ये गांव अपने स्थानीय निकाय को मज़बूत बनायें, अपनी ज़मीन से जुड़ी नीतियों का इस्तेमाल कर उसका प्रबंधन करें और आजीविका के लिए ज़रूरी विकेंदीकृत सृजन करें.”

 राष्ट्रीय स्वच्छ शहर संस्था के अनुसार, यह देखा गया है कि एक बार अगर कोई शहर अपनी क्षमता से अधिक बड़ा या विस्तृत अगर हो जाता है तो फिर उस शहर में  नगरपालिका द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं जैसे पेयजल, सीवेज और कूड़ा, सड़क, बिजली, आवासीय और सबसे ज़रूरी परिवहन व्यवस्था आदि का प्रबंधन काफी मुश्किल हो जाता है

यह साफ़ है कि, यूएलबी जो पहले से धन की कमी की समस्या से जूझ रही है, वो इन विलय किए गए क्षेत्रों के साथ न्याय कर पाने में समर्थ नहीं होगी. वे संसाधन और मानवश्रम दोनों ही मामलों मे कमी की समस्या से जूझ रहे है. पीमसी से जुड़े सारे सभासद, किसी भी तरह से धन को बांटने या फिर नगरपालिका स्टाफ को अपनी राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों की प्राथमिकता को नजरंदाज़ करके नए क्षेत्रों मे भेजे जाने को हरगिज़ भी तैयार नहीं होंगे. इन विलय किए गए नागरिक क्षेत्रों से निर्वाचित नए सभासद, संख्या और राजनीतिक प्रभाव, दोनों ही मामलों मे, अपेक्षाकृत कमज़ोर होंगे और किसी भी तरह का बदलाव ला पाने में असमर्थ होंगे.

ऐसी स्थिति में, एक अंतरिम प्रक्रिया के तहत, पेरी – अर्बन क्षेत्रों को स्वतंत्र नगर परिषद घोषित किया जाना चाहिए और अपने सक्षम प्रशासनिक अधिकारी, जिनमें कुछ नया करने, वित्तीय और शासन के साधन की योजना बना पाने का सामर्थ्य है, उनकी सहायता से इनके सफल संचालन में मदद की जानी चाहिये – जिससे कि एक बेहतर आधारभूत संरचना और शासन दी जा सके. बड़े नागरिक संस्थाओं मे, इस प्रकार के विलय तभी किए जाने चाहिए, जब पहले से विलय किए गए क्षेत्रों में, शहरी आधारभूत संरचनाओं और जीवन शैली मे सुधार का अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त किया जा चुका है. वर्तमान समय मे, बड़े यूएलबी मे तत्काल से किए जाने वाले एक-मुश्त विलय ना तो यूएलबी के लिए और ना ही गांवों में सदियों से रहने वाली ग्रामीण आबादी के लिए किसी भी तरह से न्यायसंगत है.

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