Author : Debasish Mallick

Published on Mar 13, 2024 Updated 0 Hours ago

इसके लिए असरदार नीतिगत क़दम यह होगा कि स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च बढ़ाया जाए. इसके तहत न सिर्फ़ वैक्सीन का आविष्कार बल्कि टेस्टिंग सेंटर बढ़ाने जैसे मिशन पर व्यापक काम हो ताकि संक्रमित मरीज़ की पहचान जल्द हो और उसको अच्छा इलाज मिले.

कोविड-19 और अर्थव्यवस्था पर उसका संभावित असर

भारत और विश्व में कोविड-19 ने हमारी ज़िंदगी के हर पहलू पर गहरा असर डाला है. अवचेतन मन में बेचैनी और अदृश्य डर ने भयंकर एहसास पैदा कर दिया है. कुछ-कुछ उसी तरह जैसे अल्फ्रेड हिचकॉक की 1963 की फ़िल्म बर्ड्स देखने के बाद लोग महसूस करते थे. बार-बार पक्षियों के हमले के डर की वजह से बोडेगा खाड़ी के पूरे द्वीप को लॉकडाउन कर दिया गया था. हर तरफ़ दहशत थी. इसकी वजह से सड़क, दफ़्तर, रेडियो स्टेशन खाली हो गए थे. ‘कौन और इसके बाद क्या’ के डर ने लोगों को अपने कब्ज़े में ले लिया था. आज ये पक्षी नहीं बल्कि एक वायरस है. लेकिन बेचैनी, डर और लॉकडाउन बिल्कुल उसी तरह है. सबसे बड़ा अंतर ये है कि हिचकॉक की फ़िल्म में डर पैदा करने वाली चीज़ स्थानीय इलाक़े में फैली थी न कि एक दूसरे से जुड़ी मौजूदा दुनिया में. इसलिए आज की चुनौती ज़्यादा गंभीर है. भारत और दुनिया के कई देशों में लोगों, सामान और कार्गो का आवागमन पूरी तरह ठप है. सर्विस सेक्टर का एक छोटा सा हिस्सा इस नुक़सान की भरपाई ‘वर्क फ्रॉम होम’ के ज़रिए करने की कोशिश कर रहा है. तकरीबन हर जगह मैन्युफैक्चरिंग, लॉजिस्टिक, बाक़ी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आवागमन से जुड़ा सर्विस सेक्टर पूरी तरह बंद है. इसमें कोई शक नहीं कि असाधारण हालात में असाधारण क़दम उठाने पड़ते हैं. लेकिन ये समझना महत्वपूर्ण है कि इस अस्तव्यस्त हालात का भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा.

अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए डरावना पूर्वानुमान किया है. सभी पूर्वानुमानों की एकमत राय है कि पहली तिमाही में हल्की गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में ज़ोरदार गिरावट आएगी. जेपी मॉर्गन ने दूसरी तिमाही में 14%, बैंक ऑफ अमेरिका और ऑक्सफ़ोर्ड इकोनॉमिक्स ने 12% गिरावट का अनुमान लगाया है जबकि गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टेनली ने क्रमश: 24% और 30% की भारी-भरकम गिरावट का अंदेशा जताया है. पहली तिमाही में गिरावट का पूर्वानुमान 0.8% (बैंक ऑफ अमेरिका) से लेकर 4% (जेपी मॉर्गन) के बीच है. सभी पूर्वानुमानों में हैरान करने वाली बात ये है कि छोटी अवधि की निराशा तीसरी और चौथी तिमाही में आकर उम्मीद में बदल जाती है. पूर्वानुमान के मुताबिक़ पूरे साल के लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था सकारात्मक यानी हल्के विकास की दिशा में बढ़ेगी. दूसरी तिमाही के बाद अर्थव्यवस्था में बेहतरी आएगी.

असाधारण हालात में असाधारण क़दम की ज़रूरत

OECD के मुताबिक 2020 के दौरान विश्व अर्थव्यवस्था 1.5% की सुस्त रफ़्तार से बढ़ेगी. पहले 2.9% का अनुमान लगाया गया था. विश्व अर्थव्यवस्था के लिए गहरी मंदी की आशंका जताई गई है. OECD ने ये भी कहा है कि कोरोना वायरस की महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ेगा वो वायरस के तुरंत असर से काफ़ी ज़्यादा होगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

अगली दो तिमाही और उससे आगे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पर असर का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है. इस तरह के अध्ययन के लिए कई तरह के आंकड़ों की ज़रूरत होगी. मौजूदा संकट द्विपक्षीय नहीं है जैसा कि अकेले चीन के प्रभावित होने के वक़्त था. CRISIL ने उस वक़्त चीन से व्यापार पर निर्भर भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण सेक्टर पर असर का विश्लेषण किया था. इस वक़्त संकट ने विश्व के एक बड़े हिस्से पर असर डाला है और हर तरफ़ व्यापार को बाधित किया है. इससे भी बढ़कर मौजूदा लॉकडाउन की वजह से घरेलू सेक्टर की एक दूसरे पर निर्भरता टूट गई है. इस तरह के आंकड़ों की गैर-मौजूदगी में हम उन बातों को हाइलाइट करेंगे जो लॉकडाउन के बाद छोटी और मध्यम अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर डालने वाले हैं.

भरोसे का संकट

आर्थिक पूर्वानुमान के लिए डिमांड और सप्लाई के हालात का आंकड़ा होना ज़रूरी है. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से मौजूदा संकट भरोसे का संकट है. डर, बेचैनी और अनिश्चितता की वजह से मौजूदा संकट अलग तरह का है. पहले जो संकट आता था उसमें डिमांड/सप्लाई का योगदान होता था.

काम रुकने और आवाजाही के साधनों पर रोक लगने की वजह से सामानों का प्रोडक्शन और सप्लाई/डिस्ट्रीब्यूशन चेन बाधित हुई है. समस्या और ज़्यादा इसलिए है क्योंकि ये बाधा सरकारी आदेश की वजह से आई है. इसके लिए तब तक रुकना होगा जब तक वायरस से हालात अनुकूल नहीं हो जाते

विकेंद्रित उत्पादन प्रक्रिया जहां कई कंपोनेंट का उत्पादन मदर यूनिट से अलग होता है, वहां कंपोनेंट की सप्लाई रुकने से पूरी मैन्युफैक्चरिंग ठप हो सकती है.

काम रुकने और आवाजाही के साधनों पर रोक लगने की वजह से सामानों का प्रोडक्शन और सप्लाई/डिस्ट्रीब्यूशन चेन बाधित हुई है. समस्या और ज़्यादा इसलिए है क्योंकि ये बाधा सरकारी आदेश की वजह से आई है. इसके लिए तब तक रुकना होगा जब तक वायरस से हालात अनुकूल नहीं हो जाते. जितने लंबे समय तक ये बाधा बनी रहेगी, उतना ख़राब इसका असर पड़ेगा और उतना ज़्यादा समय अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में लगेगा.

आज के असाधारण हालात की वजह से जिन सेक्टर पर असर पड़ा है उनकी लिस्ट लंबी-चौड़ी है और इसमें तैयार सामान और कंपोनेंट दोनों शामिल हैं. विकेंद्रित उत्पादन प्रक्रिया जहां कई कंपोनेंट का उत्पादन मदर यूनिट से अलग होता है, वहां कंपोनेंट की सप्लाई रुकने से पूरी मैन्युफैक्चरिंग ठप हो सकती है. इस तरह की दिक़्क़त होने से विदेशों में सप्लाई भी रुक सकती है और इसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में सप्लायर की ब्लैकलिस्टिंग की नौबत आ सकती है. हो सकता है कि सप्लायर पर जुर्माना भी लग जाए जब तक कि समझौते के प्रावधान में इस तरह के हालात का ज़िक्र न हो.

भारतीय अर्थव्यवस्था शायद U शेप रिकवरी की उम्मीद कर सकती है, अमेरिका की तरह V शेप रिकवरी नहीं जैसा कि वहां के अर्थशास्त्री/इन्वेस्टमेंट बैंकर उम्मीद कर रहे हैं

मौजूदा घटनाक्रम की वजह से कामगारों को बड़े पैमाने पर नौकरियां गंवानी पड़ी है. शुरुआती स्टेज में ही वास्तविक और संभावित नौकरियां गंवाने का आंकड़ा डराने वाला है. दिलचस्प बात ये है कि तात्कालिक असर ट्रैवल, टूरिज़्म और होटल जैसे सेक्टर पर पड़ा है मैन्युफैक्चरिंग पर नहीं. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लोगों को उस वक़्त नौकरी गंवानी पड़ेगी जब लॉकडाउन लंबा (अगर ऐसा होता है तो) खिंच जाए और व्यापक बंदी और भारत के विशाल सर्विस सेक्टर में नौकरियां छिनने की वजह से डिमांड कम हो जाए.

भारतीय अर्थव्यवस्था शायद U शेप रिकवरी की उम्मीद कर सकती है, अमेरिका की तरह V शेप रिकवरी नहीं जैसा कि वहां के अर्थशास्त्री/इन्वेस्टमेंट बैंकर उम्मीद कर रहे हैं.

सप्लाई/डिमांड में कोई बदलाव नहीं होने की वजह से इस संकट ने न सिर्फ़ निवेश के फ़ैसलों में भरोसा कम किया है बल्कि रोज़ाना के काम-काज पर भी इसका असर पड़ा है. ये गिरावट उस वक़्त तक जारी रहेगी जब तक कि भरोसा बहाली के क़दम न उठाये जाएं. मौजूदा हालात ने अर्थव्यवस्था की बुनियाद पर असर डाला है. ऐसे में कोई भी समाधान लंबे वक़्त में ही हो पाने की संभावना है. ऐसा चीन में देखा जा रहा है जहां कामगारों के मिलने में अभी भी दिक़्क़त है क्योंकि जो मजदूर वापस आ रहे हैं उन्हें सख़्त टेस्ट से गुज़रना पड़ रहा है ताकि बीमारी फिर से नहीं फैले.

2.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मौजूदा GDP (और पूरी तरह लॉकडाउन) के आधार पर कैलकुलेशन बताता है कि लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति दिन GDP का नुक़सान होगा. मान लें कि अगर ये संकट और लॉकडाउन एक महीने के लिए बना रहता है तो GDP को क़रीब 240 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुक़सान होगा यानी क़रीब 1 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये.

संकट के दूसरे पहलू

लंबी अवधि तक लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था बेहद कमज़ोर हो सकती है. आर्थिक गतिविधियों में कमी आने और लॉकडाउन से छोटे कारोबार और कमज़ोर कंपनियां बंद हो सकती हैं. इसका असर बैंकों पर भी पड़ेगा. लग रहा है कि एक बार फिर बैंकों का NPA बढ़ने वाला है. इस बार पहले से ज़्यादा बढ़ने की आशंका है. इसका ख़राब असर बैंकिंग सेक्टर के क्रेडिट फ्लो और लिक्विडिटी पर पड़ेगा. संकट का असर भारत समेत पूरी दुनिया में सेकेंडरी कैपिटल मार्केट (डेट और इक्विटी दोनों) पर भी पड़ेगा. भारी नुक़सान की वजह से लंबे समय तक इन्वेस्टर दूर रहेंगे. सुरक्षा पर ज़ोर की वजह से निवेशक अमेरिकी करेंसी की तरफ़ भागेंगे जिसकी वजह से अमेरिकी डॉलर उभरती करेंसी के मुक़ाबले मज़बूत होगा.

संकट से मुक़ाबला

संकट से उबरने के लिए दुनिया भर में सेंट्रल बैंक ने आक्रामक ढंग से ब्याज दरों में कटौती की है और लिक्विडिटी बढ़ाई है. हालांकि इस वक़्त इन नीतिगत उपायों का मूल्यांकन करना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी लेकिन अभी तक जो सबूत मौजूद हैं वो ज़्यादा कामयाबी का संकेत नहीं देते. यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि जब आंतरिक गतिशीलता बाधित है, उस वक़्त लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए बाहरी तरीक़ा जैसे कि सेंट्रल बैंक का दखल ज़रूरी है. हालांकि, जब तक वायरस पर काबू नहीं पाया जाता, ब्याज दर घटाने से ‘भरोसे का संकट’ शायद ख़त्म होने वाला नहीं है. सेंट्रल बैंक की तरफ़ से जो मौद्रिक नीति के उपाय अपनाए जा रहे हैं, उनसे व्यापक समाधान की उम्मीद नहीं दिखती.

इस बात पर विचार करते हुए कि संकट एक अज्ञात वायरस की वजह से है, हमारे हिसाब से इसके लिए असरदार नीतिगत क़दम यह होगा कि स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च बढ़ाया जाए. इसके तहत न सिर्फ़ वैक्सीन का आविष्कार बल्कि टेस्टिंग सेंटर बढ़ाने जैसे मिशन पर व्यापक काम हो ताकि संक्रमित मरीज़ की पहचान जल्द हो और उसको अच्छा इलाज मिले. ये क़दम निश्चित रूप से भरोसा बढ़ाएगा. इस दौरान सीमित तौर पर सप्लाई चेन की बहाली के लिए सोच-समझकर बनाये गये एक कार्यक्रम के बारे में भी सोचा जा सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.