Occasional PapersPublished on May 06, 2024
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‘शब्दों के आडंबर और रणनीति के बीच: चीन को लेकर यूरोपीय देशों के बदलते नज़रिये का अवलोकन’

  • Shairee Malhotra
  • Ankita Dutta

    हाल के वर्षों में चीन के साथ यूरोप के रिश्तों में ज़बरदस्त बदलाव देखा गया है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि चीन अब यूरोपीय देशों को अपने प्रतिद्वंद्वी के तौर पर नहीं, बल्कि सहयोगी के तौर पर देख रहा है और उनके प्रति चीन का बर्ताव व सोच बदली नज़र आ रही है. चीन अपनी नई सोच के तहत अब यूरोप के हितों को महत्व देना चाहता है और अपनी रणनीति में उन्हें अहमियत देना चाहता है. ज़ाहिर है कि यूरोप में छिड़े युद्ध के बीच वैश्विक व्यवस्था में जो बदलाव हो रहा है, यूरोपीय देश उस सच्चाई के साथ अपना सामंजस्य स्थापित कर रहे हैं और इसी क्रम में यूरोपीय संघ (EU) और उसके सदस्य देश चीन के साथ अपने सामरिक रिश्तों को नए सिरे स्थापित करने में जुटे हुए हैं. इस पेपर का मकसद यूरोप के विचारों में आए इस बदलाव का मूल्यांकन करना है, यानी यूरोपीय संघ के बदले हुए दृष्टिकोण को समझते हुए इन घटनाक्रमों की वास्तविकता का पता लगाना है. इसके साथ ही कुछ प्रमुख यूरोपीय देशों द्वारा जिस प्रकार से अपनी सुरक्षा रणनीतियों में चीन को लेकिर चिंता जताई जा रही है, उसकी सच्चाई को जानना है. गौरतलब है कि तमाम यूरोपीय देश ऐसे हैं जिनके लिए चीन एक अहम व्यापारिक भागीदार है. व्यापारिक लिहाज़ से चीन के महत्व के मद्देनज़र इन यूरोपीय देशों के लिए अपने आर्थिक हितों एवं सुरक्षा से जुड़े ख़तरों के बीच संतुलन क़ायम करना एक बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि ज़्यादातर यूरोपीय देश चीन को लेकर एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं और इनमें से कई देश ऐसे हैं, जो चीन को लेकर यूरोपीय संघ की नीतियों पर ही चल रहे हैं और ऐसा करके व्यापक यूरोपीय फ्रेमवर्क का हिस्सा बन रहे हैं.

Attribution:

शायरी मल्होत्रा एवं अंकिता दत्ता, ‘शब्दों के आडंबर और रणनीति के बीच: चीन को लेकर यूरोपीय देशों के बदलते नज़रिये का अवलोकन’, ओआरएफ़ समसामयिक पेपर नंबर 430, मार्च 2024, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

चीन के साथ यूरोप के संबंधों में हाल के वर्षों में कई वजहों से ज़बरदस्त बदलाव देखा गया है. शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों का हनन, हॉन्गकॉन्ग में चीनी की दमनकारी कार्रवाई, कोविड-19 महामारी के दौरान चीन द्वारा आपूर्ति श्रृंखलाओं को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करना, लिथुआनिया के विरुद्ध आर्थिक पाबंदियां लगाना, यूरोपीय देशों के साथ असंतुलित व्यापार, दक्षिण चीन सागर में आक्रामकता, ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव, यूरोपीय देशों में चीन की जासूसी गतिविधियां और बीजिंग की बार-बार पलटी मारने की आदत यानी अपनी बात से मुकरने की नीति ने चीन को यूरोपीय मूल्यों और हितों ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया है. शायद इन्हीं खींच-तान भरे रिश्तों की वजह से वर्ष 2022 में चीन के साथ यूरोपीय संघ का व्यापार घाटा 400 बिलियन यूरो तक पहुंच गया था.[1] इतना ही नहीं, ईयू-चाइना कंप्रहेंशिव एग्रीमेंट ऑन इन्वेस्टमेंट यानी समग्र निवेश समझौता (CAI) को अभी तक यूरोपीय संसद से मंजूरी नहीं मिल पाई है, साथ ही यूरोपीय संघ के साथ चीन की द्विपक्षीय बैठकों से भी ज़्यादा कुछ हासिल नहीं हो पाया है. (यूरोपीय संघ के विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधि जोसेप बोरेल द्वारा वर्ष 2022 की बैठक को "बहरों की बातचीत" बताया गया था.)[2]

यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर थे, लेकिन रूस-यूक्रेन की बीच चल रहे युद्ध ने यूरोप को अपनी ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मुश्किल में डाल दिया है, साथ ही ऊर्जा के लिए एक देश पर निर्भरता के दुष्परिणामों से भी उन्हें सबक मिला है. 

यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर थे, लेकिन रूस-यूक्रेन की बीच चल रहे युद्ध ने यूरोप को अपनी ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मुश्किल में डाल दिया है, साथ ही ऊर्जा के लिए एक देश पर निर्भरता के दुष्परिणामों से भी उन्हें सबक मिला है. इसी सबक ने यूरोप को चीन पर अपनी असंतुलित रणनीतिक और आर्थिक निर्भरता पर पुनर्विचार करने के लिए मज़बूर किया है. इसके अलावा, जिस प्रकार से ट्रान्स अटलांटिक अलायंस सशक्त हुआ है और सुरक्षा के मामले में यूरोप की अमेरिका पर निर्भरता बढ़ी है, उसने स्वतंत्र रणनीतिक निर्णय लेने के मामले में यूरोपीय देशों के हाथ बांध दिए हैं. इतना ही नहीं, वैश्विक स्तर पर अमेरिका व चीन के बीच बढ़ती होड़ में ये यूरोपीय देश अपने मुताबिक़ फैसले लेने से झिझक रहे हैं. ताज़ा घटनाक्रमों पर नज़र डालें, तो जिस तरह से हाल ही में चीन और रूस के बीच 'नो-लिमिट पार्टनरशिप' पर हस्ताक्षर हुए हैं, यानी दोनों देशों के बीच असीमित साझेदारी को आगे बढ़ाया गया है, वो देखा जाए तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बढ़ते सत्तावादी इरादों को दर्शाता है. चीन के इस रवैये ने भी उसको लेकर यूरोपीय देशों के विचारों में नकारात्मकता लाने का काम किया है और कहीं न कहीं चीन को लेकर डर बढ़ा दिया है.

दूसरी ओर, यूरोपीय देश वैश्विक व्यवस्था में हो रहे बदलाव के साथ जैसे-जैसे सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, वैसे-वैसे यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देश चीन के साथ अपनी रणनीतियों और संबंधों को फिर से व्यवस्थित कर रहे हैं. इस पेपर में इस तथ्य की विस्तृत पड़ताल की गई है कि किस प्रकार से इन बदलते घटनाक्रमों और विचारधाराओं की वजह से यूरोपीय संघ और इसके सदस्य देशों द्वारा अपनी नीतियों व रणनीतियों में बदलाव किया गया है.

 

ईयू ट्रिनिटी: सदस्य देशों के मार्गदर्शन के लिए यूरोपियन यूनियन का तीन आयामी दृष्टिकोण

 

जहां तक यूरोपियन यूनियन और चीन के आपसी रिश्तों की बात है तो 2019 इस लिहाज़ से बेहद अहम साल था. यूरोपीय संघ ने वर्ष 2019 में अपने ईयू-चीन रणनीतिक दृष्टिकोण में चीन को लेकर तीन आयामी नज़रिया अपनाया था. यानी इस दृष्टिकोण में ईयू ने चीन को "एक भागीदार, एक आर्थिक प्रतिस्पर्धी और एक प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी या विरोधी" माना था.[3] उसके बाद से ही यूरोपीय संघ द्वारा चीन के साथ अपने रिश्तों के मामले में इसी दृष्टिकोण को अपनाया गया है. कहने का मतलब है कि यूरोपियन यूनियन द्वारा चीन के साथ पारस्परिक व्यापार के दौरान जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों को लेकर बेहतर संतुलन बनाने की कोशिश की गई है. इतना ही नहीं चीन के किसी भी दबाव के समक्ष नहीं झुकने और नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था के समानांतर चीन के वैकल्पिक गवर्नेंस मॉडल को बढ़ावा देने के प्रयासों को पहचानने में भी यूरोपीय देशों द्वारा ईयू दृष्टिकोण के मुताबिक़ क़दम उठाए गए हैं.

यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने मार्च 2023 में कहा था कि चीन "अपने देश के भीतर अधिक दमनकारी और विदेश में ज़्यादा आक्रामक" होता जा रहा है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि "चीन सोची-समझी रणनीति के तहत अपनी आर्थिक ताक़त और खुद पर निर्भरता का फायदा उठाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहता है कि छोटे-छोटे देशों से वह वो कुछ भी हासिल करना चाहता है उसे प्राप्त कर ले."[4] ब्रुसेल्स में यूरोपियन यूनियन की चर्चा-परिचर्चाओं का केंद्र मुख्य रूप से चीन के साथ 'डी-रिस्किंग', यानी व्यावसायिक संबंधों को प्रतिबंधित करने या उन्हें नए सिरे से व्यवस्थित करने पर रहा है. ज़ाहिर है कि पहले इन चर्चाओं में चीन के साथ संबंधों को समाप्त करने या अलगाव पर बहस होती थी. इसकी तुनला में डी-रिस्किंग का विचार कहीं न कहीं ईयू के नज़रिए में कुछ नरमी दिखाता है.[A],[5] यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की वर्तमान चर्चाओं में कच्चे माल, खनिज और महत्वपूर्ण उद्योगों (उदाहरण के लिए सेमीकंडक्टर और बैटरी उद्योग) जैसे क्षेत्रों में अधिक लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करते हुए एवं व्यापारिक भागीदारों और आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाकर चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना शामिल है. अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए यूरोपियन यूनियन ने क्रिटिकल रॉ मैटेरियल एक्ट और ईयू चिप्स एक्ट जैसे कई क़दम उठाए हैं. इतना ही नहीं, यूरोपीय संघ निर्यात को नियंत्रित करने के लिए भी सख़्त क़दम उठा रहा है, आर्थिक डर को समाप्त करने और तेज़ी से अस्थिर होती दुनिया में यूरोपीय संघ के हितों की रक्षा के लिए दबाव विरोधी उपाय भी विकसित कर रहा है. इसके साथ ही यूरोपीय संघ संवेदनशील प्रौद्योगिकियों और रणनीतिक इंफ्रास्ट्रक्चर की आंतरिक एवं बाहरी जांच-पड़ताल भी कर रहा है.

हालांकि, चीन के साथ 'डी-रिस्किंग' के लिए, यानी संबंधों को किस प्रकार से व्यवस्थित किया जाए और कैसी रणनीति अमल में लाई जाए, विस्तार से कार्य किया जा रहा है. इस बीच, ईयू ने संगठन के कई सदस्य देशों को किस दिशा में सोचना और किस तरह के क़दम उठाने है, इसको लेकर एक माहौल सा बना दिया है. इसी का नतीज़ा है कि चीन को लेकर तमाम यूरोपीय देशों के नज़रिए में कुछ हद तक एकरूपता आ चुकी है.

ब्रुसेल्स में ईयू की चर्चाओं में चीन के साथ संबंधों को लेकर तर्कसंगत और स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाए जाने और पूर्वी यूरोप के सदस्य देशों के चीन के प्रति आक्रामक रवैये के बावज़ूद यूरोपीय देशों की चीन को लेकर अपनाई जाने वाली नीतियों में समानता नहीं है. ज़ाहिर है कि यूरोपीय देशों की चीन संबंधी नीतियां कहीं न कहीं अपनी-अपनी घरेलू राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से अस्पष्ट हैं. 

कुछ महीनों पहले दिसंबर 2023 में ईयू-चीन समिट आयोजित की गई थी, जिसमें आर्थिक संबंधों में रोड़ा अटकाने वाले मुद्दों का समाधान तलाशने पर ध्यान केंद्रित किया गया था. इस सम्मेलन में चीन के साथ यूरोप का बढ़ता व्यापार घाटा, चीनी सब्सिडी और यूरोपीय उद्योगों को नुक़सान पहुंचाने वाली चीन की आक्रामक औद्योगिक गतिविधियां जैसे मुद्दे शामिल थे. यूरोपीय संघ और चीन के बीच पूर्व में हुए शिखर सम्मेलनों की तरह ही, इसके बाद भी कोई साझा बयान जारी नहीं किया गया है. ज़ाहिर है कि दिसंबर 2023 की ईयू-चीन समिटि यूरोपियन आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के उस तीखे भाषण के ठीक बाद हुई थी, जिसमें उन्होंने चीन को लेकर काफ़ी सख़्त बयानबाज़ी की थी. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि हमें यह समझना चाहिए कि चीन के साथ संबंध में "प्रतिद्वंद्विता साफ तौर पर दिखाई देती है." इसके साथ ही उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने "चीन की बदलती वैश्विक स्थिति" को लेकर भी चेताया था.[6]

ब्रुसेल्स में ईयू की चर्चाओं में चीन के साथ संबंधों को लेकर तर्कसंगत और स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाए जाने और पूर्वी यूरोप के सदस्य देशों के चीन के प्रति आक्रामक रवैये के बावज़ूद यूरोपीय देशों की चीन को लेकर अपनाई जाने वाली नीतियों में समानता नहीं है. ज़ाहिर है कि यूरोपीय देशों की चीन संबंधी नीतियां कहीं न कहीं अपनी-अपनी घरेलू राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से अस्पष्ट हैं. कहने का मतलब यह है कि इन देशों में सत्तारूढ़ सरकारें यह सुनिश्चित नहीं कर पा रही हैं चीन को लेकर लचीला एवं व्यापार अनुकूल रुख़ अख़्तियार किया जाए, या फिर सख़्त रवैया अपनाया जाए. पश्चिमी यूरोपीय देशों की बात करें, तो जर्मनी चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मज़बूती देना चाहता है. जर्मनी की इस मंशा के बारे में हाल ही में उसके कई शीर्ष नेताओं द्वारा चीन के दौरों से भी पता चलता है. जर्मनी की इन उच्च स्तरीय चीन यात्राओं में अक्सर बड़े व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी शामिल होते हैं. जबकि फ्रांस जैसे अन्य यूरोपीय देश चीन के साथ संबंधों को लेकर एक की जीत में दूसरे की हार जैसी स्थिति में फंसने के बजाए 'तीसरा रास्ता' अपनाना पसंद करते हैं. ख़ास तौर पर 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो दुविधा का महौल बना हुआ है, उससे भी ये यूरोपीय देश चीन के साथ संबंध बढ़ाने को लेकर झिझक रहे हैं. इतना ही नहीं, भले ही इन यूरोपीय देशों की सरकारें चीन के साथ आर्थिक रिश्तों को बढ़ाने की इच्छुक हों, लेकिन इन देशों के उद्योग या कंपनियां चीनी बज़ारों को अपने बिजनेस के लिहाज़ से मुफ़ीद नहीं पाती हैं, क्योंकि उन्हें यहां मुनाफे की ज़्यादा गुंजाइश नहीं दिखाई देती है.

कुल मिलाकर चीन को लेकर यूरोपियन यूनियन के दृष्टिकोण की क़ामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि उसके सदस्य देश चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों और व्यक्तिगत हितों को किस प्रकार से आगे बढ़ाते हैं. हालांकि, चीन के मुद्दे पर ईयू के सदस्य देशों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाने में तमाम चुनौतियों के बावज़ूद, वास्तविकता यह है कि यूरोप के सभी देश चीन के साथ अपने संबंधों को स्थापित करने में एहतियात बरतते हुए रणनीतिक तरीक़े से आगे बढ़ रहे हैं. एक और बात यह है कि यूरोपीय देशों में चीन को लेकर जो भी चर्चाएं हैं, वे अब सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अधिक केंद्रित होती जा रही हैं.

डेनमार्क: वैश्विक साझीदारों का साथ

डेनमार्क और चीन ने द्विपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए वर्ष 2008 में एक रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे. हालांकि, 2018 के बाद से डेनमार्क की चीन पर निर्भरता बढ़ गई है और इसको लेकर चिंता भी जताई गई है. बताया जा रहा है कि व्यापार और सुरक्षा के मुद्दों को लेकर दोनों देशों के अलग-अलग नज़रियों की वजह से द्विपक्षीय रिश्तों में यह असंतुलन पैदा हुआ है.[7]

डेनमार्क द्वारा जनवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से ठीक पहले अपनी विदेश और सुरक्षा रणनीति जारी की गई थी और इसमें चीन को लेकर उसके नज़रिए में आया बदलाव साफ झलक रहा था.[8] डेनमार्क की इस रणनीति में एक अध्याय पूरी तरह से चीन को समर्पित था. डेनमार्क की ओर से मई 2023 में भी अपनी नई रणनीति जारी की गई है और इसमें भी चीन को लेकर उसका पूर्व नज़रिया बरकरार है.[9] गौरतलब है कि यूरोपीय संघ द्वारा जारी किए गए दृष्टिकोण में चीन को "प्रतिस्पर्धी, भागीदार और प्रतिद्वंद्वी" राष्ट्र के रूप में परिभाषित किया गया है. डेनमार्क द्वारा जारी की गई इन दोनों ही रणनीतियों के दस्तावेज़ों में भी चीन के प्रति इसी विचारधारा को अपनाया गया है. डेनमार्क की इन दोनों ही रणनीतियों में चीन से पैदा होने वाली चुनौतियों का सामना करने एवं आपसी हितों के मुद्दों पर चीन के साथ सहयोग को लेकर संतुलन बनाने की ज़रूरत पर बल दिया गया है. चीन के साथ सहयोग के विषयों में स्थिरता और हरित संक्रमण जैसे मुद्दे शामिल हैं, ज़ाहिर है कि ये मुद्दे डेनमार्क-चीन साझेदारी के लिए घोषित प्राथमिकताएं हैं. वर्ष 2023 में जारी की गई रणनीति में इस बात को साफ-तौर पर स्वीकार किया गया है कि चीन के साथ संबंधों को लेकर डेनमार्क “बेहद ईमानदार एवं छल-कपट रहित” रहा है और अपनी रणनीति के ज़रिए डेनमार्क “चीनी बर्ताव के मुताबिक़ उचित प्रतिक्रिया” के रूप में अपना दृष्टिकोण निर्धारित कर रहा है.

डेनमार्क में व्यापक सुरक्षा बदलावों के साथ ही चीन को लेकर उसके विचारों में परिवर्तन हो रहा है. ज़ाहिर है कि सुरक्षा के मुद्दे पर डेनमार्क के नागरिकों ने ऑप्ट आउट को समाप्त कर दिया है. यूरोपीय संघ सुरक्षा नीति में हिस्सा लेने के लिए कराए गए ऐतिहासिक जनमत संग्रह में डेनमार्क के नागरिकों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और 67 प्रतिशत मतों के साथ इसे अपनी मंजूरी प्रदान की थी. यानी देश के नागरिकों ने डेनमार्क को ईयू की कॉमन सिक्योरिटी एंड डिफेंस पॉलिसी में शामिल होने की मंजूरी दे दी.[10] गौरतलब है कि डेनमार्क की वर्ष 2023 की रणनीति का बड़ा हिस्सा डेनमार्क और यूरोप की सुरक्षा पर केंद्रित है. इस रणनीति में 21 बार चीन का नाम लिया गया है (42 बार रूस का नाम लिया गया है).

चीन को लेकर डेनमार्क में जो भी चर्चाएं चल रही हैं, उनमें सबसे अधिक चिंता राष्ट्रीय महत्व की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की सुरक्षा को लेकर जताई जा रही है. जैसे कि डेनमार्क के टेलीकॉम नेटवर्क में चीनी टेलिकॉम कंपनी हुआवेई की मौज़ूदगी को लेकर चिंता, लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चीनी सहयोग को लेकर चिंता और डेनमार्क के उद्योगों एवं कंपनियों के लिए चीनी बाज़ार के महत्व को लेकर चिंता चर्चाओं के केंद्र में है. ग्रीनलैंड में चीन का बढ़ता निवेश और उसकी बढ़ती सामरिक मौज़ूदगी भी डेनमार्क के लिए चिंता का एक बड़ा मुद्दा है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2018 में चीन ने ग्रीनलैंड के एयरपोर्ट को बनाने के लिए बोली लगाई थी और वहां निवेश बढ़ाने की कोशिश की थी. डेनमार्क ने ग्रीनलैंड के चीनी "ऋण जाल" में फंसने को लेकर भी अपनी चिंता जताई है.[11]

डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन ने अगस्त 2023 में जब बीजिंग का दौरा किया था, तब देश की विपक्षी पार्टियों ने व्यापकर स्तर पर उनके दौरे की निंदा की थी, जबकि दूसरी ओर डेनिश उद्योग परिसंघ जैसे संगठनों की ओर से विदेश मंत्री के चीनी दौरे का समर्थन किया गया था.[12] विदेश मंत्री रासमुसेन की इस यात्रा के दौरान डेनमार्क और चीन के बीच वर्ष 2023-2026 के लिए ग्रीन ज्वाइंट वर्क प्रोग्राम पर हस्ताक्षर किए गए थे.[13] उल्लेखनीय है कि चीन हरित ऊर्जा या विंड एनर्जी का उत्पादन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विंड टरबाइन जैसी टेक्नोलॉजी में उपयोग होने वाले कच्चे माल का प्रमुख निर्यातक है. चीन इस लिहाज़ से डेनमार्क के ग्रीन एनर्जी एजेंडे को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. चीन की यही ख़ासियत उसे पवन ऊर्जा उत्पादक देशों में अग्रणी डेनमार्क का एक महत्वपूर्ण भागीदार बनाती है.

डेनमार्क की रणनीति में कच्चे माल और प्रौद्योगिकियों के आयात के मामले में चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने का आह्वान ज़रूर किया गया है, लेकिन चीन से होने वाले आयात पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने जैसी कोई बात नहीं कही गई है, बल्कि इसके स्थान पर डेनमार्क और यूरोपीय कंपनियों के लिए अनुकूल माहौल विकसित करने पर ज़ोर दिया गया है. जहां तक चीन को लेकर डेनमार्क की सोच की बात है, तो ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिनमें उसने चीन और रूस को एक सिक्के के दो पहलू जैसा बताया है. ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर इन दोनों को ऐसे देशों के तौर पर देखा जाता है, जो किसी भी तरह से अपना दबदबा क़ायम करने में जुटे हुए हैं. कुल मिलाकर, चीन को एक ऐसे संशोधनवादी राष्ट्र के रूप में माना जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय नियम-क़ानूनों को अपने हित में परिवर्तित करने का प्रयास कर रहा है.

जहां तक चीन को लेकर डेनमार्क की सोच की बात है, तो ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिनमें उसने चीन और रूस को एक सिक्के के दो पहलू जैसा बताया है. ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर इन दोनों को ऐसे देशों के तौर पर देखा जाता है, जो किसी भी तरह से अपना दबदबा क़ायम करने में जुटे हुए हैं. 

डेनमार्क यूरोपियन यूनियन के दृष्टिकोण को ख़ासी तवज्जो देता है और वैश्विक साझेदारों के साथ इसी विचार के अंतर्गत कार्य करने पर बल देता है. इसके अलावा, अमेरिका को डेनमार्क का सबसे अहम सहयोगी माना जाता है. यह सारे तथ्य चीन के साथ डेनमार्क के रिश्तों में मुश्किल खड़ी करने का काम करते हैं. साथ ही जिस प्रकार से अमेरिका और चीन के बीच होड़ मची हुई है, उन हालातों में डेनमार्क की सामरिक स्वतंत्रता यानी अपने मन-मुताबिक़ रणनीति बनाने की आज़ादी भी प्रभावित होती है. इस प्रकार से देखा जाए तो डेनमार्क और चीन के रिश्तों को न केवल वाशिंगटन एवं बीजिंग के बीच चल रही रस्साकशी के आधार पर, बल्कि ब्रुसेल्स में यूरोपियन यूनियन के स्तर पर उठाए गए क़दमों के आधार पर भी आंका जा सकता है.

जर्मनी: वांडेल डर्च हैंडेल यानी व्यापार के ज़रिये बदलाव नीति का अंत?

जहां तक जर्मनी और चीन के संबंधों की बात है, तो यह चीन के लिए सबसे महत्वपूर्ण यूरोपीय राष्ट्र है. यूरोप में चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार जर्मनी है, इसके साथ ही पूरे यूरोप में जर्मनी की अर्थव्यवस्था ही ऐसी है, जिस पर चीन का सबसे अधिक प्रभाव है. सालों-साल तक जर्मनी ने अपनी वांडेल डर्च हैंडेल यानी व्यापार के ज़रिए परिवर्तन की नीति का अनुसरण किया है. जर्मनी की इस नीति का मकसद व्यापार के माध्यम से परिवर्तन लाना था और ऐसे चीन की कल्पना करना था, जिसमें तानाशाही कम हो और लोकतांत्रिक मूल्य अधिक हों. जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो जर्मनी में इसे ऐतिहासिक परिवर्तन के तौर पर देखा गया और इसके बाद जर्मनी ने रूस एवं चीन पर अपनी एकतरफा निर्भरता पर नए सिरे से मंथन करना शुरू किया. इसी मंथन के बाद जून 2023 में जर्मनी द्वारा अपनी बहुप्रतीक्षित चीन रणनीति को जारी किया गया.[14] चीन से संबंधित जर्मनी के इस सामरिक दस्तावेज़ में 64 पन्ने हैं, जिनमें चीन के साथ जर्मनी के संबंधों को नए सिरे से जांचा-परखा गया है, साथ ही चीन को लेकर आर्थिक और सुरक्षा नीतियों में व्यापक बदलाव किया गया है. जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने नवंबर 2022 में लिखा था, "जैसे-जैसे चीन बदलता है, चीन के साथ हमारे बर्ताव का तौर-तरीक़ा भी बदलना होगा".[15]

यूरोपियन यूनियन द्वारा चीन का "प्रतिस्पर्धी, भागीदार और प्रतिद्वंद्वी" राष्ट्र के रूप बखान किया गया है. ईयू के इस दृष्टिकोण के साथ जर्मनी पूरा इत्तेफाक़ रखता है, बावज़ूद इसके जर्मनी की जो रणनीति सामने आई है, उसमें ‘प्रतिद्वंद्वी’ वाले नज़रिए को सबसे अधिक महत्व दिया गया है. जर्मनी की रणनीति के मुताबिक़ चीन का मकसद "अपने राजनीतिक उद्देश्यों और हितों को सर्वोपरि रखना है और इन्हें पाने के लिए जर्मनी को आर्थिक और तकनीक़ तौर पर खुद पर निर्भर बनाए रखना है."[16] यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण से क़दमताल करते हुए जर्मनी की चीन से जुड़ी रणनीति में इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया है कि तमाम महत्वपूर्ण सेक्टरों में चीन पर निर्भरता को कम किया जाए, साथ ही सहयोगी राष्ट्रों में विविधिता लाते हुए हिंद-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के 'समान विचारधारा' वाले देशों के साथ व्यापारिक साझेदारी को बढ़ाया जाए. इसके अलावा, जर्मनी की इस रणनीति में चीन में होने वाले और चीन के बाहर किए जाने वाले निवेश की पूरी निगरानी और पड़ताल किए जाने की बात भी कही गई है, ख़ास तौर पर संवेदनशील प्रौद्योगिकियों में होने वाले निवेश पर गहरी नज़र रखने पर ज़ोर दिया गया है. जर्मनी की रणनीति के अनुसार जिस प्रकार से चीन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप हैं और सुरक्षा के क्षेत्र में उसकी ओर से पैदा होने वाले ख़तरों का अंदेशा हैं, उनके मद्देनज़र ऐसा किया जाना बेहद ज़रूरी है.

आलोचकों के अनुसार जर्मनी की इस रणनीत में कई झोल हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन से जुड़े इस सामरिक दस्तावेज़ में महत्वपूर्ण सेक्टरों में चीन पर निर्भरता को कम करने की बात कही गई है, लेकिन इसके बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा गया है कि जर्मनी कच्चे माल और अहम प्रौद्योगिकियों को कहां से हासिल करेगा. ख़ास तौर पर हरित परिवर्तन के लिए ज़रूरी सोलर पैनल किस देश से आयात किए जाएंगे, रणनीति में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया है. ज़ाहिर है कि सोलर पैनल एवं हरित ऊर्जा परिवर्तन के लिए आवश्यक चीज़ों का चीन एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश है.[17] अपनी रणनीति में जर्मनी द्वारा देश के राष्ट्रीय महत्व के इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है, बावज़ूद इसके सरकार द्वारा इसके विपरीत कार्य किया जा रहा है. जैसे कि जर्मन चांसलर स्कोल्ज़ ने चीनी कंपनी COSCO को हैम्बर्ग बंदरगाह टर्मिनल में निवेश करने की अनुमति देने का विवादास्पद निर्णय लिया है. जर्मनी की इस रणनीति में कई और खामियां भी हैं, जैसे कि इसमें यह तो कहा गया है कि भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने की स्थिति में जर्मनी की कंपनियों को चीन के साथ व्यापारिक गतिविधियां रोकना होगा, लेकिन इसमें ऐसे हालातों में देश की कंपनियों के लिए ज़रूरी प्रोत्साहन या बेलआउट पैकेज जैसे उपायों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है. गौरतलब है कि जर्मनी की तमाम बड़ी कंपनियां अपनी बिक्री और राजस्व के लिए चीन पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं. इसका पता इस बात से चलता है कि जर्मनी में बनने वाली तीन कारों में से एक कार चीन में बेची जाती है.[18]  वर्ष 2018-2021 के दरम्यान यूरोपीय देशों से चीन में जितना भी निवेश हुआ था, उसमें से 34 प्रतिशत निवेश सिर्फ़ चार जर्मन कंपनियों (BMW, BASF, वॉक्सवैगन और मर्सडीज-बेंज़) द्वारा किया गया था.[19] इसके अतिरिक्त, जर्मनी का यह रणनीतिक दस्तावेज़ देखा जाए तो देश में सत्ता पर काबिज ट्रैफिक लाइट गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के बीच एक जटिल समझौता था, जो कि इसके अंतिम ड्राफ्ट में दिखाई भी दिया. जब यह सामरिक दस्तावेज़ बनाया जा रहा था, तब जर्मनी की ग्रीन्स पार्टी द्वारा चीन से संबंधित ख़तरों का पता लगाने के लिए जर्मन कंपनियों के लिए स्ट्रेस टेस्ट जैसे उपाय सुझाए गए थे, यानी कंपनियों की स्थिरता एवं उनकी क्षमता का पता लगाने जैसे उपाय सुझाए गए थे, लेकिन इन सुझावों पर गौर नहीं किया गया.

यूरोप का विकास इंजन माना जाने वाला जर्मनी आर्थिक प्रगति को बनाए रखने और चीन पर अपनी निर्भरता को कम से कम करने के बीच किस प्रकार से संतुलन स्थापित कर पाता है, यह न केवल पूरे यूरोप में नीति निर्धारण का काम करेगा, बल्कि चीन को लेकर यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण की क़ामयाबी को भी सुनिश्चित करेगा.

स्वीडन: रूस और चीन से ज़बरदस्त नाराज़गी

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने स्वीडन को हिलाकर रख दिया है. रूस की इस हरकत से गुस्साए स्वीडन ने अपनी सदियों पुरानी तटस्थता को छोड़ दिया और NATO में शामिल होने के लिए आवेदन कर दिया. इतना ही नहीं, चीन को लेकर भी स्वीडन ने ऐसा उग्र और आक्रामक रुख़ अपनाया है, जैसा किसी भी यूरोपीय देश ने नहीं अपनाया है.

देखा जाए तो वर्ष 2015 के बाद से चीन को लेकर स्वीडन की सोच में नाटकीय परिवर्तन देखा गया है. चीन की वुल्फ वॉरियर कूटनीति या छिपकर धोखे से हमला करने की रणनीति,[20] चीन में स्वीडन के पुस्तक विक्रेता गुई मिन्हाई की गिरफ़्तारी का मामला[21] और मानवाधिकार उल्लंघन जैसे कई मुद्दे हैं, जिन्होंने स्वीडन के विचारों को बदलने का काम किया है. वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर चीन के प्रति लोगों के रुख़ को लेकर किए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि स्वीडन में रहने वाले 85 प्रतिशत लोगों ने चीन विरोधी नज़रिया प्रकट किया था, यह संख्या जापान के निवासियों के बाद दूसरे नंबर पर थी.[22]

स्वीडन द्वारा वर्ष 2019 में पहली बार एक श्वेत पत्र को प्रकाशित कर चीन को लेकर अपनी सोच को सामने लाया गया था.[23] स्वीडन के रक्षा आयोग द्वारा जून 2023 में अपनी रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें "चीन और रूस जैसे तानाशाह और संशोधनवादी देशों" को नियम-क़ानून के मुताबिक़ चलने वाली वैश्विक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया गया है.[24] गौरतलब है कि स्वीडन की वर्ष 2017 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में चीन का केवल तीन बार नाम लिया गया था, जबकि 2023 की स्वीडिश रक्षा आयोग की रिपोर्ट में चीन का 331 बार उल्लेख किया गया है, जो बताता है कि चीन को लेकर स्वीडन के नज़रिए में किस कदर परिवर्तन आ चुका है.

स्वीडन द्वारा अपनी चीन नीति को भले ही यूरोपियन यूनियन के दिशानिर्देशों के अंतर्गत रखा गया है और स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन की सेंटर-राइट सरकार द्वारा भी इसके बारे में बार-बार कहा गया है, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है. सच्चाई यह है कि स्वीडन की रिपोर्ट यूरोपीय संघ के चीन के "प्रतिस्पर्धी, भागीदार और प्रतिद्वंद्वी" वाले दृष्टिकोण को नहीं मानती है, बल्कि इसमें चीन को सिर्फ़ और सिर्फ़ "ख़तरे" के तौर पर वर्णित किया गया है. हालांकि, इसमें सीधे तौर पर चीन को सैन्य ख़तरा नहीं बताया गया है. इसके अलावा, स्वीडन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में रूस को "सबसे गंभीर और दीर्घकालिक ख़तरा" बताया गया है. इसके साथ ही रूस एवं चीन के बढ़ते सहयोग को एशिया और यूरोप की सुरक्षा के लिए ख़तरे की घंटी बताया गया है. ज़ाहिर है कि स्वीडन के चीन एवं रूस के प्रति इस नज़रिए के केंद्र में अमेरिका जैसे वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग करना शामिल है.[25]

स्वीडन के पास वर्ष 2023 के पहले छह महीनों में यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता थी और अपने इस कार्यकाल के दौरान उसका सबसे प्रमुख लक्ष्य चीन से संबंधित मुद्दों पर ईयू सदस्य देशों के बीच एकजुटता लाना था.[26] उल्लेखनीय है कि तमाम दूसरे यूरोपीय देशों की तरह ही स्वीडन भी चीन पर निर्भरता को कम करना चाहता है. इसके लिए स्वीडन हमेशा समान विचारधारा वाले देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने, यूरोपियन यूनियन के बाज़ार को मज़बूती प्रदान करने और पवन ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में चीनी निवेश पर नज़र रखने की पैरोकारी करता रहा है. ज़ाहिर है कि यूरोप के कई देशों ने 5G सेवाएं शुरू करने में चीनी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई का सहयोग नहीं लेने के लिए घरेलू कंपनियों को इंसेंटिव्स एवं दूसरे उपायों के ज़रिए प्रोत्साहन दिया है, जबकि स्वीडन ने तो हुआवेई पर पूर्ण प्रतिबंध ही लगा दिया. इस सबके बावज़ूद, सच्चाई यह है कि स्वीडन की निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था के लिए व्यापारिक लिहाज़ से चीन सबसे मुनासिब देश बना हुआ है. स्वीडन की H&M और IKEA जैसी कंपनियों ने चीनी मार्केट में व्यापक स्तर पर निवेश किया है. इस सबकी वजह से स्वीडन के लिए चीन से संबंधों में आर्थिक स्तर पर समान अवसर हासिल करना और भी अहम हो गया है.

यूके: स्वर्ण युगसे आज की सबसे बड़ी चुनौतीतक..

 

ब्रेक्ज़िट के बाद वैश्विक स्तर पर तमाम देशों के साथ संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से मार्च 2023 में ब्रिटेन के ओरिजिनल 2021 ब्लूप्रिंट ('प्रतिस्पर्धी युग में वैश्विक ब्रिटेन: सुरक्षा, रक्षा, विकास और विदेश नीति की एकीकृत समीक्षा'[27]) को ‘इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023: रिस्पॉन्डिंग टू ए मोर कंटेस्टेड एंड वोलाटाइल वर्ल्ड’ नाम के एक नए दस्तावेज़ के रूप में अपग्रेड किया गया था. इस प्रकार का दस्तावेज़ जारी करने का मकसद यूक्रेन पर रूस के आक्रमण जैसे नए घटनाक्रमों के मद्देनज़र ब्रिटेन की प्राथमिकताओं का नए सिरे से मूल्यांकन करना है.[28]

यूके का आईआर रिफ्रेश दस्तावेज़ देखा जाए तो उसके हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर झुकाव प्रकट करता. इस दस्तावेज़ के 59 पन्नों में से दो पेज चीन को समर्पित हैं, जिसमें चीन को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती बताया गया है.

यूके-चीन के रिश्तों के बीच जो कभी तथाकथित "स्वर्ण काल" था, अब उसे आधिकारिक तौर पर समाप्त मान लिया गया है. ज़ाहिर है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने वर्ष 2022 में देश की बागडोर संभालने के बाद विदेश नीति पर दिए गए अपने पहले भाषण में ही स्पष्ट रूप से कहा था कि यूके-चीन के संबंधों का स्वर्ण युग अब समाप्त हो गया है.[29] कभी ब्रिटिश शासन के अधीन रहने हॉन्गकॉन्ग में वर्ष 2019 में प्रदर्शनकारियों पर चीन द्वारा की कई दमनकारी कार्रवाई, चीन के शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और ताइवान एवं दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन की आक्रामकता ने चीन को लेकर ब्रिटेन की सोच बदलने का काम किया है और चीन के प्रति नकारात्मक धारणाओं को बढ़ाया है.

ऋषि सुनक से पहले ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रहीं लिज ट्रस और कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर दूसरे उग्र विचारधारा वाले लोगों द्वारा बीजिंग के खिलाफ़ और कठोर रुख़ अपनाने का दबाव डाला गया था. बावज़ूद इसके यूके का आईआर रिफ्रेश रणनीतिक दस्तावेज़ चीन को एक ख़तरे के तौर पर स्थापित करने में नाक़ाम रहा है. दूसरी तरफ, रूस को "ब्रिटेन का सबसे बड़ा और गंभीर ख़तरा" कहा जाता है. ब्रिटेन की इस रणनीति में रूस और चीन के बीच मज़बूत होती साझेदारी के ख़तरों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. ब्रिटेन के इस रणनीतिक दस्तावेज़ में चीन को लेकर तीन-आयामी नज़रिया अपनाया गया है. इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करना, चीन की दबाव वाली रणनीति का मुक़ाबला करने के लिए दूसरे साझेदारों देशों के साथ सीधा संपर्क बनाना और व्यापार एवं जलवायु परिवर्तन से संबंधित मामलों पर चीन के साथ सीधे बातचीत करना शामिल है.

जुलाई 2023 में ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने चीन का दौरा किया था. यह पूर्व विदेश मंत्री जेरेमी हंट की वर्ष 2018 में आख़िरी चीन यात्रा के पांच साल बाद किसी ब्रिटिश विदेश मंत्री का पहला दौरा था. क्लेवरली द्वारा दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में चीन की मज़बूत स्थिति को देख हुए, उसके साथ नज़दीकी रिश्ते बनाने की वक़ालत की जा रही है.[30] ज़ाहिर है कि जिस प्रकार से ब्रिटेन में आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है, उसके लिहाज़ से क्लेवरली का यह सुझाव बहुत महत्वपूर्ण है. आंकड़ों पर नज़र डालें तो मई-जून 2023 में यूके में मुद्रास्फ़ीति की दर 8.7 प्रतिशत से अधिक थी, जबकि यूरोपीय संघ में मुद्रास्फ़ीति की दर 7.1 प्रतिशत और अमेरिका में 2.7 प्रतिशत थी.[31] नवंबर 2023 में पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को ब्रिटेन का नया विदेश मंत्री नियुक्त किया गया है, इससे भी यूके की चीन नीति के संभावित नतीज़ों पर सवाल उठाए गए हैं. डेविड कैमरन जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे (2010-2016), उस दौरान यूके और चीन के संबंध बहुत प्रगाढ़ थे और कहीं न कहीं वह दौर यूके-चीन रिश्तों के "स्वर्ण युग" की तरह था. प्रधानमंत्री रहते हुए कैमरन ने न केवल चीन के साथ गहरे सहयोग की पैरोकारी की थी, बल्कि यह भी कहा था यूके की प्रबल इच्छा है कि "चीन पश्चिम में अग्रणी भागीदार बने."[32] हालांकि, वर्तमान में ब्रिटेन का राजनैतिक माहौल अलग है और जिन हालातों में डेविड कैमरन को ब्रिटेन का विदेश मंत्री बनाया गया है, उससे यह लगता है कि कैमरन की भविष्य की चीन नीति प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की लाइन के मुताबिक़ हो सकती है.

इसके अतिरिक्त, जिस प्रकार से ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से नाता तोड़ा था, जिसे ब्रेक्जिट कहा जाता है, उसने भी लंदन को यूरोपियन यूनियन के बाहर दूसरे देशों के साथ नज़दीकी आर्थिक रिश्ते बनाने के लिए मज़बूर किया. नतीज़तन चीन धीरे-धीरे ब्रिटेन की कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार और बाज़ार बन गया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि ब्रिटेन इन हालातों से बहुत सजह है. वास्तविकता यह है कि ब्रिटेन द्वारा चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की कोशिशें भी की जा रही हैं. जैसे कि ब्रिटेन द्वारा चीनी टेलिकॉम कंपनी हुआवेई को अपने 5जी नेटवर्क में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने के लिए दूसरे भागीदार राष्ट्रों के साथ संबंधों को मज़बूत किया जा रहा है. बिट्रेन ने अपने नेशनल सिक्योरिटी एंड इन्वेस्टमेंट एक्ट के अंतर्गत चीन को वेल्स में देश की सबसे बड़ी चिप बनाने वाली फैक्ट्री, न्यूपोर्ट वेफर फैब का अधिग्रहण करने से भी रोक दिया है.[33]

वास्तविकता यह है कि ब्रिटेन द्वारा चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की कोशिशें भी की जा रही हैं. जैसे कि ब्रिटेन द्वारा चीनी टेलिकॉम कंपनी हुआवेई को अपने 5जी नेटवर्क में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने के लिए दूसरे भागीदार राष्ट्रों के साथ संबंधों को मज़बूत किया जा रहा है. 

सबसे बड़ी बात यह है कि यूके के आईआर रिफ्रेश दस्तावेज़ में साफ तौर पर कहा गया है कि चीन के साथ ब्रिटेन के आगे के संबंधों में पूर्व के रिश्तों की छाया नहीं होगी और न ही पूर्व के घटनाक्रमों का उन पर कोई असर होगा. ज़ाहिर है कि चीन के साथ अपने संबंधों में यूके सहयोग और स्थिरता को प्राथमिकता देता है, लेकिन यह चीन पर निर्भर है कि वो ब्रिटेन की इन भावनाओं की कद्र करता है या नहीं. जैसे कि चीन अपनी तानाशाही सोच को जारी रखता है या फिर ब्रिटेन से रिश्तों को बनाए रखने के लिए उस पर लगाम लगाता है या नहीं. ब्रिटेन की रणनीति में चीन में अपनी क्षमताओं का निर्माण करने और स्थानीय स्तर पर विशेषज्ञता हासिल करने की योजना का भी जिक्र किया गया है, जिसमें यूके के कर्मचारियों को मंदारिन भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित करना भी शामिल है.

ब्रिटेन की आईआर रिफ्रेश रणनीति सामने आने के बाद ब्रिटिश संसद की इंटेलिजेंसी एवं सिक्योरिटी कमेटी द्वारा जुलाई 2023 में चीन पर एक रिपोर्ट जारी की गई थी.[34] इस रिपोर्ट में शिक्षा, उद्योग एवं टेक्नोलॉजी और सिविल न्यूक्लियर सेक्टर में चीन के असर और उसकी निगरानी को लेकर विस्तार से अध्ययन किया गया है. ब्रिटेन ने इन रणनीतियों की मदद के लिए कई और सेक्टरों के संबंधित विशेष कार्यनीतियों को भी जारी किया है, जैसे कि सेमीकंडक्टर स्ट्रैटेजी[35] और अपनी महत्वपूर्ण मिनरल स्ट्रैटेजी के नए संस्करण को जारी किया है.[36]

उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन में 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं और इन चुनावों में लेबर पार्टी के जीतने की प्रबल संभावना है. अगर ऐसा होता है, तो चीन को लेकर अपनी पॉलिसी को ब्रिटेन और भी कड़ा कर सकता है. ऐसी संभावना भी है कि वामपंथी विचारधारा वाली लेबर पार्टी का चीन के प्रति रवैया बेहद सख़्त होगा और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में वह चीन के प्रति जरा भी नरमी नहीं बरतेगी.

चेक गणराज्य: चीन के प्रति आक्रामकता

चीन के साथ चेक गणराज्य के राजनीतिक संबंधों की बात की जाए, तो पिछले कुछ वर्षों को दौरान ये काफ़ी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. चेक गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति मिलोस ज़ेमान को चीन का समर्थक माना जाता था और उनके कार्यकाल के दौरान ही चेक गणराज्य और चीन के पारस्परिक रिश्तों और आर्थिक संबंधों में तेज़ी आई थी. हालांकि, मार्च 2023 के बाद जब से पेट्र पावेल ने चेक गणराज्य के राष्ट्रपति का पदभार संभाला है, तब से कभी यूरोप में चीन का सबसे बड़ा समर्थक और दोस्त रहा यह देश, आज चीन का सबसे कट्टर आलोचक देश बन चुका है. हालांकि, दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में वर्ष 2018 के बाद से ही गिरावट दिखने लगी थी, जब चेक गणराज्य की नेशनल साइबर एजेंसी ने चीनी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई और ZTE को लेकर चेतावनी देते हुए उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया था. इस घटना के बाद चीन ने चेक गणराज्य की नेशनल साइबर एजेंसी के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी.[37]

इतना ही नहीं, चेक रिपब्लिक द्वारा जून 2023 में अपनी सुरक्षा स्ट्रैटेजी जारी की गई थी और उसमें चीन को लेकर उसके नज़रिए में साफ परिवर्तन देखा जा सकता है. अगर चेक गणराज्य की वर्ष 2015 की रणनीति से[38] वर्तमान स्ट्रैटेजी की तुलना की जाए, तो साफ हो जाता है, इस बार उसमें देश के समक्ष खड़ी चुनौतियों और ख़तरों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है. नई रणनीति में साफ-साफ बताया गया है कि चीन एक ऐसा देश है, "जो न केवल वैश्विक स्तर पर बुनियादी प्रणालीगत चुनौतियां प्रस्तुत करता है, बल्कि चेक गणराज्य समेत तमाम लोकतांत्रिक देशों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दख़ल देने की कोशिश करता है."[39] इसके अलावा, चेक रिपब्लिक की रणनीति में चीन की गतिविधियों को संशोधनवादी बताया गया है. ज़ाहिर है चीन जहां भी अपना दबदबा क़ायम करने की कोशिश करता है, वहां सैन्य ठिकाने बनाता है, साइबर जासूसी करता है और अपना दबाव बनाने के लिए आर्थिक और तमाम दूसरे दख़ल जैसे तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है. इस रणनीतिक दस्तावेज़ में चीन की बढ़ती आक्रामकता की ओर भी ध्यान खींचा किया गया है, साथ ही राष्ट्रीय महत्व के सेक्टरों में चीनी निवेश को बड़ी चिंता का मुद्दा बताया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चेक गणराज्य की ताज़ा रणनीति में इस बात का ख़ास तौर पर उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार से चीन और रूस द्वारा व्यवस्था विरोधी अभियान चलाकर बदलते वैश्विक सुरक्षा वातावरण को नया आकार देने की कोशिश की जा रही है, जिसमें नियम-क़ानून पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने का प्रयास भी शामिल है. यह ज़ाहिर करता है कि किस तरह से "रूस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर आधारित प्रतिबद्धताओं की अनदेखी करने और चीन द्वारा इन संधियों का अनुपालन करने की अनिच्छा की वजह से वैश्विक स्तर पर रणनीतिक संतुलन का ताना-बाना चरमरा रहा है."

गौरतलब है कि एक तरफ चेक गणराज्य का चीन को लेकर रुख़ नकारात्मक हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ ताईवान के साथ उसके संबंधों में मज़बूती आ रही है. पिछले दो वर्षों के घटनाक्रमों पर नज़र डालें तो यूरोप में प्राग, ताइपे का सबसे नज़दीकी भागीदार बनकर उभरा है. चेक गणराज्य के राष्ट्रपति पेट्र पावेल के मुताबिक़ "चीन और उसकी सरकार मौज़ूदा वक़्त में एक मित्र देश नहीं है. चीन के जो भी सामरिक लक्ष्य हैं और उसका बर्ताव है, वो किसी भी लिहाज़ से पश्चिम के लोकतंत्रों से मेल नहीं खाता है." पावेल ने यह भी कहा कि वह "ताइवान की राष्ट्रपति त्साई-इंग वेन से मिलने के लिए तत्पर हैं और ताइवान के साथ मज़बूत रिश्ते बनाना चाहते हैं."[40] राष्ट्रपति पावेल के इस बयान के बाद चेक गणराज्य के लोअर हाउस के स्पीकर की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने ताइवान का दौरा किया था. इस दौरे में दोनों देशों के बीच हथियार और सैन्य सहयोग पर चर्चा की गई थी.[41]

फ्रांस: चीन के साथ सहयोग और होड़ के बीच संतुलन

 

जहां तक फ्रांस का सवाल है, तो वह चीन में हो रहे व्यापक बदलावों को अच्छी तरह से समझता है, लेकिन ऐसा लगता है कि वह अपने आर्थिक हितों को अधिक महत्व देता है और जब तक संभव हो चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को बनाए रखना चाहता है. यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में चीन को लेकर फ्रांस ने बहुत की संतुलित रुख़ अपनाया है और सहयोग के साथ-साथ उससे होड़ के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि चीन के शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों के हनन, कोरोना महामारी के दौरान चीन की वुल्फ वॉरियर कूटनीति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य मौज़ूदगी जैसे तमाम मुद्दों पर फ्रांस का चीन के प्रति नज़रिया बेहद सख़्त बना हुआ है. लेकिन वास्तविकता यह है कि चीन के प्रति अपने इस बदले हुए दृष्टिकोण के बावज़ूद पेरिस द्वारा बीजिंग के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाया जा रहा है. हालांकि, ऐसा करने के दौरान बेहद ऐहतियात बरती जा रही है.

फ्रांस ने वर्ष 2013 में रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर एक श्वेत पत्र जारी किया था.[42] इस श्वेत पत्र में फ्रांस ने चीन को "वैश्वीकरण की अवधारणा को आकार देने वाली ताक़तों में से एक" के रूप में स्वीकार किया था, साथ ही कहा था कि भविष्य में वो चीन के साथ मिलकर वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देने की दिशा में काम करेगा. हालांकि, वर्ष 2021 में फ्रांस द्वारा जारी किए गए रणनीतिक अपडेट[43] में चीन को लेकर उसके विचारों में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला. इस दस्तावेज़ में फ्रांस ने कहीं न कहीं यह माना था कि चीन उसके एक सामरिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभर रहा है. इसके साथ ही फ्रांस ने चीन की बढ़ती सैन्य ताक़त, तकनीक़ी सेक्टर में बढ़ते निवेश एवं दुनिया में हर तरफ उसकी विस्तार करने की नीति को एक गंभीर ख़तरा बताया था. फ्रांस द्वारा वर्ष 2022 में इस रणनीति का अपडेटेड दस्तावेज़ तैयार किया गया था, जिसमें चीन से जुड़े इन मुद्दों पर गहन चर्चा की गई थी, साथ ही चीन में हुए तमाम घटनाक्रमों का विश्लेषण करते हुए वर्ल्ड ऑर्डर पर उनके असर का विस्तार से बखान किया गया था.[44] इसमें ख़ास तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया था कि "तेज़ी से बढ़ती गलाकाट रणनीतिक होड़ की वजह से उदार एवं लचीले लोकतांत्रिक राष्ट्र कमज़ोर और लाचार हो गए हैं, क्योंकि ये राष्ट्र स्थापित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा में जुटे हुए हैं, जिसकी बुनियाद और मकसद (अंतर्राष्ट्रीय क़ानून, बहुपक्षवाद, मूल्य, आदि) पर कई देशों द्वारा खुलेआम हमला किया जा रहा है और चुनौती दी जा रही है."[45] इतना ही नहीं, फ्रांस के इस नए रणनीतिक दस्तावेज़ में रूस और चीन दोनों ही देशों की गतिविधियों के बारे में सख़्त टिप्पणी की गई और आरोप लगाया गया कि ये दोनों देश उदार लोकतांत्रिक देशों की घरेलू राजनीति में दख़ल दे रहे हैं और उनकी राष्ट्रीय एकजुटता को नुक़सान पहुंचा रहे हैं.

ज़ाहिर है कि फ्रांस की तरफ से साफ तौर पर मॉस्को और बीजिंग के बीच मज़बूत होते गठजोड़ की ओर संकेत किया गया है. इसके मुताबिक़ मॉस्को और बीजिंग का यह गठजोड़ “पश्चिमी देशों के उद्देश्यों और हितों के विरुद्ध है, साथ ही पश्चिम के ख़िलाफ़ राजनीतिक लामबंदी को प्रोत्साहित करता है.”[46] ख़ास बात यह है कि फ्रांस के इस अपडेटेड रणनीतिक दस्तावेज़ में इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में चीन के बढ़ते निवेश, विशेष रूप से अफ्रीका में बढ़ते चीनी निवेश पर भी चिंता जताई गई है. इसके अनुसार यह न सिर्फ़ चीन पर निर्भरता को बढ़ाता है, बल्कि इससे जासूसी का भी ख़तरा पैदा होता है.[47]

उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह फ्रांस भी चीन की ओर से पैदा होने वाली चुनौतियों एवं ख़तरों को भलीभांति समझता है, लेकिन उसने कोई सख़्त रवैया अपनाने के बजाए, चीन के साथ अपने रिश्तों में यानी सहयोग और होड़ के बीच संतुलन बनाने का विकल्प चुना है. 

उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह फ्रांस भी चीन की ओर से पैदा होने वाली चुनौतियों एवं ख़तरों को भलीभांति समझता है, लेकिन उसने कोई सख़्त रवैया अपनाने के बजाए, चीन के साथ अपने रिश्तों में यानी सहयोग और होड़ के बीच संतुलन बनाने का विकल्प चुना है. चीन के साथ संबंधों को लेकर यह दुविधा अप्रैल 2023 में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की बीजिंग यात्रा के दौरान भी दिखाई दी थी. अपने दौरे में मैक्रों ने चीन के साथ आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने पर बल दिया था. इस दौरान उन्होंने में 160 एयरबस विमानों की बिक्री पर समझौता किया था, साथ ही दुनिया के सबसे बड़े विमानन मार्केट यानी चीन में अपनी विमान निर्माण क्षमता को दोगुना करने के लिए एक नई एयरबस असेंबली लाइन खोलने पर सहमति जताई थी. लेकिन चीन यात्रा के दौरान मैक्रों का ताइवान को लेकर दिया गया बयान बेहद अहम था. उन्होंने कहा था कि “यूरोप के लोगों को जिस सवाल का जवाब देने की ज़रूरत है, वो यह है....क्या ताइवान संकट के मुद्दे को तूल देना हमारे हित में है? नहीं,  इससे भी ख़राब बात यह सोचना होगा कि हम यूरोपीय लोगों को इस मुद्दे पर अमेरिका का पिछलग्गू बनना चाहिए या फिर चीन का समर्थन करना चाहिए.” मैक्रों ने आगे कहा था कि ताइवान संकट "हमारा नहीं" है और यूरोप को इससे बाहर रहना चाहिए, साथ ही इस मुद्दे पर अमेरिका का अनुसरण नहीं करना चाहिए.[48] फ्रांसीसी राष्ट्रपति का यह बयान ताइवान पर यूरोपीय संघ कमिश्नर के रुख़ के उलट है. इससे यह सवाल उठता है कि क्या फ्रांस अब यूरोपियन यूनियन से अलग रुख़ अपना रहा है.

नीदरलैंड: संरक्षणवाद का सहारा

नीदरलैंड ने वर्ष 2013 में चीन को लेकर अपनी पहली पॉलिसी जारी की थी. इस नीति में चीनी निवेश को आकर्षित करने पर विशेष ज़ोर दिया गया था.[49] इसके बाद वर्ष 2019 में चीन को लेकर एक नई पॉलिसी तैयार की गई.[50] नीदरलैंड की सरकार द्वारा इस नीति में चीन के बढ़ते प्रभाव का विस्तृत आंकलन किया गया और इस पर गहन चिंतन किया गया कि चीन के उभार के नीदरलैंड और यूरोप पर क्या असर पड़ने वाला है. इस नीति की सबसे प्रमुख बात यह थी कि "जहां संभव हो ओपन रहना है और जहां ज़रूरी हो वहां सुरक्षात्मक रवैया अपनाना है." नीदरलैंड की इस पॉलिसी में चीन को लेकर यूरोपीय संघ की रणनीति को अपनाया गया, यानी चीन को प्रतिपर्धी राष्ट्र भी बताया गया और साझीदार देश भी बताया गया. इस पॉलिसी के सामने आने के बाद डच सरकार ने अपने राष्ट्रीय महत्व के सेक्टरों को चीन के बढ़ते प्रभाव से बचाने के लिए कई उपाय किए. इन उपायों में देश के चिप-निर्माण उद्योग एवं सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में अधिक से अधिक निवेश करना शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर डच सरकार ने प्रोजेक्ट PhotonDelta में 1.1 बिलियन यूरो का निवेश किया[51] और रॉयल IHC जहाज निर्माण कंपनी को दीवालिया होने और चीन द्वारा संभावित अधिग्रहण से बचाया.[52] इसके अलावा, नीदरलैंड ने चीन को माइक्रोचिप निर्माण में उपयोग की जाने वाली हाईटेक मशीनों को चीन को निर्यात करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. इसके साथ ही चीन के ख़िलाफ़ इस प्रकार का क़दम उठाने वाला नीदरलैंड यूरोप का पहला देश बन गया.[53] नीदरलैंड द्वारा ऐसा इसलिए किया गया, ताकि डच टेक्नोलॉजी का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए या सामूहिक विनाश के हथियारों का निर्माण करने के लिए नहीं किया जा सके. इसके अतिरिक्त, नीदरलैंड ने एक निवेश निगरानी व्यवस्था को भी अपनाया है[B] नीदरलैंड द्वारा इस निगरानी व्यवस्था को 1 जून 2023 को लागू किया गया.

नीदरलैंड द्वारा वर्ष 2023 में अपनी नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की गई, जिसमें चीन का उल्लेख आपस में जुड़े दो मुद्दों के संदर्भ में किया गया है. ये वो मुद्दे हैं, जो संभावित रूप से नीदरलैंड की सुरक्षा को व्यापर स्तर पर प्रभावित करेंगे. पहला मुद्दा है, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा. नीदरलैंड की नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी के मुताबिक़ चीन और अमेरिका के बीच यह होड़ मुख्य तौर पर सैन्य और आर्थिक क्षेत्रों में दिखाई देती है और ऐसे में इन देशों पर निर्भरता होने से संभावित तौर पर ख़तरे की गुंजाइश बहुत अधिक है. ज़ाहिर है कि इन दोनों महाशक्तियों की इस होड़ से नीदरलैंड के लिए परेशानियां पैदा हो सकती है, क्योंकि अमेरिका उसका सहयोगी भागीदार देश है, जबकि चीन एक ऐसा देश है, जो अंतर्राष्ट्रीय नियम-क़ानूनों और संधियों की कोई परवाह नहीं करता है. दूसरा मुद्दा है, रूस और चीन के बीच बढ़ती नज़दीकी. ज़ाहिर है कि रूस और चीन के बीच प्रगाढ़ होते संबंध वर्तमान वैश्विक व्यवस्था के समक्ष चुनौती खड़ी कर रहे हैं. ये दोनों देश पश्चिम के साथ भू-रणनीतिक मुक़ाबले में जुटे हुए हैं. साथ ही यह माना जाता है कि रूस और चीन अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पहले से स्थापित अंतर्राष्ट्रीय एवं बहुपक्षीय व्यवस्थाओं को नुक़सान पहुंचा रहे हैं. डच स्ट्रैटेजी के मुताबिक़ यो जो भी घटनाक्रम हैं, वे देखा जाए तो एक ऐसे विश्व की ओर ले जाएंगे, जो मल्टीपोलर यानी बहुध्रुवीय होगा. ऐसा होने पर नीदरलैंड को "वैश्विक स्तर पर बदलते शक्ति संतुलन के मुताबिक़ खुद को फिर से तैयार करना होगा और रणनीतिक क़दम उठाने होंगे."

बाल्टिक देशों का नया रुख़

एक समय ऐसा था, जब बाल्टिक देश चीन के साथ साझेदारी को लेकर बेहद उत्साहित होते थे, लेकिन अब ये देश चीन को लेकर अपने नज़रिए में बदलाव ला रहे हैं. इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें चीन के साथ व्यापार में भारी असंतुलन, चीन द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाना और चीन द्वारा अपने वादों को पूरा करने में 17+1 मैकेनिज़्म[C] की नाक़ामी प्रमुख हैं. इतना ही नहीं, जिस प्रकार से चीन ने रूस के साथ अपनी साझेदारी को असीमित क्षेत्रों में बढ़ाने यानी “नो लिमिट पार्टनरशिप” का ऐलान किया है, उसकी वजह से भी बाल्टिक देशों के यह मुद्दे और पेचीदा हो गए हैं.[54]

लिथुआनिया: सामरिक विकल्प के लिए तैयारी

 

देखा जाए तो लिथुआनिया ने वर्ष 2019 में जब अपने नेशनल थ्रेट असेसमेंट यानी राष्ट्रीय जोख़िम मूल्यांकन को जारी किया था, तभी से चीन के साथ उसके रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई थी. अपने इस मूल्यांकन में लिथुआनिया ने देश में चीनी जासूसी गतिविधियों को लेकर चिंता जताई थी और इसमें यह भी कहा गया था कि बीजिंग चाहता था कि "लिथुआनिया तिब्बत और ताइवान की आज़ादी का समर्थन नहीं करे और इन मुद्दों को वैश्विक मंचों पर नहीं उठाए."[55] लिथुआनिया में वर्ष 2020 में इंग्रिडा सिमोनिटे सरकार के आने के बाद चीन से रिश्तों को लेकर हालात और ख़राब हो गए. इंग्रिडा सिमोनिटे सरकार ने न सिर्फ 'मूल्य-आधारित विदेश नीति' का पालन करने पर ज़ोर दिया, बल्कि मानवाधिकारों एवं लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के किसी भी उल्लंघन का सक्रिय रूप से विरोध करने का भी संकल्प लिया. इतना ही नहीं, लिथुआनिया की नई सरकार ने बेलारूस से लेकर ताइवान तक दुनिया में कहीं भी अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे लोगों का सहयोग करने का भी संकल्प लिया था.[56]

चीन और लुथिआनिया को रिश्तों में उस वक़्त बहुत अधिक कड़वाहट आ गई थी, जब वर्ष 2021 में विनियस ने ताइवान में अपना व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की घोषणा की थी. लुथिआनिया के इस क़दम के बाद ताइपे ने भी लिथुआनिया में ताइवानी प्रतिनिधि दफ़्तर खोलने का निर्णय लिया. ज़ाहिर है कि यह यूरोप में ताइवान का पहला प्रतिनिधि कार्यालय था.[57] लुथिआनिया इसके बाद चीन के 17+1 समूह से बाहर निकल गया. लिथुआनिया ने चीन द्वारा गठित किए गए इस समूह को "यूरोप के हितों के लिहाज़ से बांटने वाला और गैर-प्रभावी" करार दिया था.[58] इतना ही नहीं, लिथुआनिया ने बीजिंग का मुक़ाबला करने के लिए यूरोपीय देशों की तरफ से सामूहिक कोशिश करने का भी आह्वान किया. इस सारे घटनाक्रमों की वजह से लिथुआनिया और चीन के द्विपक्षीय संबंधों में गतिरोध पैदा हो गया.

चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों के बीच लिथुआनिया की सरकार ने वर्ष 2021 में एक अपडेटेड राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की. इस नई स्ट्रैटेजी में पहली बार चीन और रूस को ऐसे तानाशाही और अधिनायकवादी देशों के रूप में वर्णित किया गया, जो पश्चिम के लोकतांत्रिक राष्ट्रों के सामने चुनौतियां पेश करते हैं. इस सामरिक दस्तावेज़ में चीन की विचारधारा और सिद्धांतों को लिथुआनिया के राष्ट्रीय हितों एवं मूल्यों के विपरीत बताया गया है. 

चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों के बीच लिथुआनिया की सरकार ने वर्ष 2021 में एक अपडेटेड राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की. इस नई स्ट्रैटेजी में पहली बार चीन और रूस को ऐसे तानाशाही और अधिनायकवादी देशों के रूप में वर्णित किया गया, जो पश्चिम के लोकतांत्रिक राष्ट्रों के सामने चुनौतियां पेश करते हैं. इस सामरिक दस्तावेज़ में चीन की विचारधारा और सिद्धांतों को लिथुआनिया के राष्ट्रीय हितों एवं मूल्यों के विपरीत बताया गया है. लिथुआनिया की सरकार द्वारा वर्ष 2023 में जारी किए गए राष्ट्रीय ख़तरे के मूल्यांकन में चीन को लेकर एक अलग से अध्याय है, जिसमें बताया गया है कि बीजिंग ने ग्लोबल सिक्योरिटी इनीशिएटिव[D] जैसी अपनी नई नीतियों का इस्तेमाल "वैश्विक सुरक्षा एजेंडे को ज़मीनी स्तर पर लागू करने और पश्चिमी गठबंधनों के विरुद्ध चुनौतियां खड़ी करने या उनके साथ अपने संबंधों में संतुलन स्थापित करने के लिए किया है."[59] इस रणनीतिक दस्तावेज़ में रूस और चीन के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों को लेकर भी चिंता जताई गई, ख़ास तौर पर यूक्रेन युद्ध के बाद जिस प्रकार से दोनों देशों में नज़दीकियां बढ़ी हैं, उनको लेकर आशंका व्यक्त की गई है. इसमें विशेष रूप से कहा गया है कि मास्को के साथ रिश्तों को सशक्त करने से बीजिंग के लक्ष्य में कोई परिवर्तन नहीं आया है. लेकिन यूक्रेन संकट की वजह से चीन के समक्ष कुछ जटिल सवाल ज़रूर खड़े हो गए हैं, जिसमें यह सवाल भी शामिल है कि “चीन अपनी 'हस्तक्षेप नहीं करने की पॉलिसी, रूस के साथ साझेदारी और अपने आर्थिक हितों के कारण पश्चिमी देशों में अपनी छवि बिगड़ने से रोकने की ज़रूरत के बीच संतुलन कैसे बनाएगा.”[60]

लुथियानिया की इस नई रणनीति में ताइवान जलसंधि में उपजे हालातों को लेकर भी विस्तार से चर्चा की गई है. इसमें कहा गया है कि चीन द्वारा ताइवान पर सैन्य हमला करने की संभावना तो दूर-दूर तक नज़र नहीं आती है, लेकिन यह निश्चित है कि ताइवान को लेकर चीन अपनी आक्रामकता में बढ़ोतरी करेगा. इस रणनीतिक दस्तावेज़ में लिथुआनिया ने यह भी उम्मीद जताई है कि चीन विभिन्न क्षेत्रों में पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश करेगा. चीन ऐसा इसलिए करेगा, ताकि ताइवान पर सैन्य हमला करने की स्थिति में अगर चीन को पश्चिमी देशों से प्रतिबंधों का सामना करना पड़े, तो उस पर पड़ने वाले गंभीर असर को कम से कम किया जा सके.[61]

एस्टोनिया: एक विकसित और सोचा-समझा सुरक्षा दृष्टिकोण

एस्टोनिया भी कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह वर्तमान में रूस को एक तात्कालिक ख़तरे के रूप में देखता है, जबकि चीन को एक दीर्घकालिक ख़तरा मानता है. हाल के वर्षों में, एस्टोनिया ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए कई क़दम उठाए हैं. वर्ष 2005 में तेलिन द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स संचार अधिनियम पास किया गया था. वर्ष 2020 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों को ज़्यादा अधिकार दिए गए. इनमें देश में सभी दूरसंचार कंपनियों और सेवा प्रदाताओं की सुरक्षा और भविष्य में होने वाली इनकी विस्तार योजनाओं की समीक्षा करने का अधिकार भी शामिल था. इसके साथ ही देश के दूरसंचार नेटवर्क से चीनी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को भी बाहर करने का भी निर्णय लिया गया था.[62] इतना ही नहीं वर्ष 2022 में एस्टोनिया भी चीन द्वारा बनाए गए 17+1 ब्लॉक से बाहर निकल गया.[63] ‘2023 अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और एस्टोनिया’ नाम की रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर चीन के बढ़ते दबदबे को लेकर एस्टोनिया की चिंताओं को सामने रखा गया है.

वैश्विक स्तर पर चीन का प्रभाव स्थापित करने के लिए बीजिंग अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने में पूरी ताक़त से जुटा हुआ है, इसके साथ ही पड़ोसी देशों के साथ चीन लगातार संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपना दबदबा स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. अपनी अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रिपोर्ट में एस्टोनिया ने चीन के इस नज़रिए को लेकर गंभीर चिंता जताई है.[64] इस रिपोर्ट में चीन के इस बदले हुए नज़रिए के बारे में विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा गया है कि “चीन का वैश्विक दृष्टिकोण एवं बातें अब पूरी तरह से बदल चुकी हैं. पहले, चीन की महात्वाकांक्षाएं अपने रीजन तक ही सीमिति थीं और वह खुद को क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में पेश करता था, लेकिन अब चीन वैश्विक महाशक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को खुलकर पूरी दुनिया को बताने लगा है.[65]

एस्टोनिया की इस रिपोर्ट में चीन से जुड़े तीन ख़ास मुद्दों का विस्तार से उल्लेख किया गया है. पहला मुद्दा है राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में बीजिंग के तानाशाही की ओर बढ़ते क़दम, जिसमें वह पश्चिमी देशों के साथ अपने विरोध और कटुता को बढ़ाने में जुटा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक़ चीनी ख़ुफिया एजेंसियों का मानना है कि चीन की वैश्विक सुरक्षा पहल प्रभावशाली तरीक़े से पश्चिम के सुरक्षा ताने-बाने को नुक़सान पहुंचा सकती है. रिपोर्ट में जिस दूसरे मुद्दे का उल्लेख किया गया है, उसके अनुसार बीजिंग ने ताइवान पर अपना शिकंजा कसने के मकसद से अपनी ताइवान विरोधी कोशिशों को तेज़ कर दिया है. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि चीन ताइवान पर आक्रमण करे, लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि चीन का कोई भरोसा नहीं है और वो ऐसा कर भी सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक़ अगर चीन और ताइवान की बीच टकराव के हालात पैदा होते हैं, तब पश्चिमी देश चाहे कितने भी प्रतिबंध लगा लें, लेकिन वे चीन के मंसूबों को रोकने में नाक़ाम साबित होंगे. ऐसा इसलिए है, क्योंकि जब चीन ने हॉन्गकॉन्ग और शिनजियांग में अपनी आक्रमकता दिखाई थी, तब पश्चिम द्वारा उठाए गए कड़े क़दमों का उस पर कोई असर नहीं पड़ा था. तीसरा मुद्दा चीन और रूस के संबंधों में लगातार होने वाला बदलाव है. रिपोर्ट के अनुसार जैसे कि यूक्रेन युद्ध से पहले इस बात की आंशका जताई गई थी कि चीन की बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में रूस की भूमिका बढ़ेगी, यानी रूस इसमें सहायता कर सकता है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दोनों की साझेदारी में उतार-चढ़ाव बढ़ रहा है. जहां तक चीन का मसला है, तो रूस के साथ नज़दीकी उसके लिए बहुत फायदेमंद है. इसकी वजह यह है कि "आक्रामक रूस अपने लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अग्रसर है और चीन अगर इन हालातों में रूस के साथ खड़ा रहता है, तो ज़ाहिर सी बात है कि वह भी उन लक्ष्यों में भागीदार होगा, लेकिन चूंकि वो प्रत्यक्ष रूप से किसी गतिविधि में शामिल नहीं है, इसलिए चीन अपनी निष्पक्ष और शांतिपूर्ण छवि गढ़ने में क़ामयाब रह सकता है." एस्टोनिया की इस रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन और रूस शंघाई सहयोग संगठन और BRICS जैसे गैर-पश्चिमी संगठनों में अपना दबदबा स्थापित करने के लिए एक-दूसरे से होड़ करते रहेंगे.

ज़ाहिर है कि रूस और चीन मिलकर इन गैर-पश्चिमी संगठनों के सदस्य देशों में पश्चिम विरोधी भावनाओं को उकसाने में जुटे हुए हैं. इसके अलावा, यह दोनों देश गैर पश्चिमी देशों के बीच अमेरिकी डॉलर के दबदबे को कम करने के मंसूबों को भी अंज़ाम दे रहे हैं. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर चीन काफी सजग है और रूस की एक-एक हरकत पर पैनी नज़र रखे हुए है. रिपोर्ट के मुताबिक़ यूक्रेन पर रूस का हमला चीन के लिए एक केस स्टडी बन चुका है और चीन इससे यह सबक ले रहा है कि भविष्य में कभी अगर ऐसे हालात बनते हैं, तो पश्चिमी देशों की एकजुटता और उनके मज़बूत इरादों का सामना करने के लिए उसे क्या कुछ नहीं करना है. इसके अलावा, बीजिंग द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक शक्ति संतुलन पर पड़ने वाले असर पर भी बारीक़ी से नज़र रखी जा रही है. ऐसा महसूस हो रहा है कि बीजिंग उन हालातों में जब "यदि पश्चिम के साथ उसका संघर्ष बहुत बढ़ जाता है", तो रूस की तरह वह खुद को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ने से किस प्रकार बचा सकता है, उसका भी रास्ता तलाश रहा है. इसके लिए चीन प्रभावशाली रणनीति बनाने और बेहतर विकल्प तैयार करने की दिशा में भी काम कर रहा है.

 

चीन को लेकर अलग रुख़ अपनाने वाले यूरोपीय देश

 

 

उल्लेखनीय है कि यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश चीन के साथ अपने रिश्तों का नए सिरे से मूल्यांकन कर रहे हैं और लगभग सभी देशों ने चीन के प्रति एक तरह का रुख़ अपनाया है. लेकिन ग्रीस और हंगरी दो ऐसे यूरोपीय देश हैं, जिन्होंने चीन के साथ अपने संबंधों का मूल्यांकन करने में अलग नज़रिया अपनाया है और इसी वजह से ये दोनों देश बाक़ी यूरोपीय राष्ट्रों से अलग हैं.

ग्रीस: चीन को लेकर धीमी कार्रवाई और ढुलमुल रवैया

 

ग्रीस पर जब प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिपरस (2015-2019) का शासन था, तब चीन और ग्रीस के रिश्तों ने नई ऊंचाइयों को छुआ था. तत्कालीन सरकार का लक्ष्य ग्रीस को चीन के लिए यूरोप का प्रवेशद्वार बनाना था. आर्थिक रूप से डंवाडोल स्थिति, यूरोज़ोन के कठोर उपायों एवं पूर्वी भूमध्य सागर में भौगोलिक रूप से ग्रीस की सामरिक स्थिति ने इसे चीनी निवेश के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बनाने का काम किया है. हंगरी की तरह ही ग्रीस का चीन के साथ क़रीबी व्यापारिक रिश्ता है और निवेश के लिए भी ग्रीस काफ़ी हद तक चीन पर ही निर्भर है. इन आर्थिक लाभों ने ग्रीस को कहीं न कहीं बीजिंग से समाने दबाव में ला दिया है और यूरोप के राजनीतिक मामलों में चीनी बयानबाज़ी को लेकर उसने तटस्थ रुख़ अपना लिया है. इतना ही नहीं दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रामकता और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों के विरुद्ध ईयू के बयानों को भी ग्रीस ने ख़ारिज कर दिया है और चीन के पक्ष में खड़ा नज़र आ रहा है.

चीन और ग्रीस के पारस्परिक रिश्ते प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस की कंजर्वेटिव सरकार के कार्यकाल में परवान चढ़े हैं. नवंबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ग्रीस का दौरा किया था और तब उसे चीन-ग्रीस रिश्तों में नए युग की शुरुआत के रूप में बखान किया गया था. उस वक़्त प्रधानमंत्री मित्सोटाकिस ने शी जिनपिंग से कहा था कि “चीन ने जिस प्रकार से ग्रीस पर अपना भरोसा जताया है और चीनी कंपनियों ने मेरे देश में ऐसे समय में निवेश किया है, जब कई लोग यह सोचते थे की ग्रीस में निवेश की संभावनाएं समाप्त हो चुकी हैं.”[66] चीन कंपनियों द्वारा ग्रीस में जो बड़े निवेश किए गए हैं, उनमें पीरियस बंदरगाह में COSCO का निवेश भी शामिल है. ग्रीस के इस सबसे अहम पोर्ट में इस चीनी कंपनी की 67 प्रतिशत हिस्सेदारी है. इतना ही नहीं इस बंदरगाह को यूरोप में चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) के “ड्रैगन का हेड” माना जाता है, जो बताता है कि यह पोर्ट चीन के लिए कितना अधिक महत्वपूर्ण है.

ग्रीस को दुनिया के सबसे बड़े मर्चेंट फ्लीट्स यानी व्यापारिक बेड़े वाला देश माना जाता है और ग्रीन की शिपिंग कंपनियों के लिए चीन सबसे बड़ा ग्राहक है. कोरोना महामारी के दौरान उस वक़्त चीन को लेकर ग्रीस के नज़रिए में बदलाव देखने को मिला था, जब चीन ने स्वयं को एक परोपकारी और दानदाता देश के रूप में पेश किया था. चीन के इस बर्ताव की वजह से ग्रीस में उसे लेकर नकारात्मक विचार पनपने लगे थे. इतना ही नहीं उस दौरान ग्रीस में चीन की मौज़ूदगी को लेकर दुविधा का माहौल बन गया था.  

ग्रीस को दुनिया के सबसे बड़े मर्चेंट फ्लीट्स यानी व्यापारिक बेड़े वाला देश माना जाता है और ग्रीन की शिपिंग कंपनियों के लिए चीन सबसे बड़ा ग्राहक है. कोरोना महामारी के दौरान उस वक़्त चीन को लेकर ग्रीस के नज़रिए में बदलाव देखने को मिला था, जब चीन ने स्वयं को एक परोपकारी और दानदाता देश के रूप में पेश किया था. चीन के इस बर्ताव की वजह से ग्रीस में उसे लेकर नकारात्मक विचार पनपने लगे थे. इतना ही नहीं उस दौरान ग्रीस में चीन की मौज़ूदगी को लेकर दुविधा का माहौल बन गया था.[67] इसके अतिरिक्त, पीरियस बंदरगाह को लेकर पैदा हुए तमाम विवादों, जैसे कि वर्ष 2021 में पोर्ट के कंटेनर टर्मिनल में हुए भयानक हादसे ने चीनी निवेश पर असर डाला है.[68] इतना ही नहीं, कई मौक़ों पर चीनी कंपनियों को सरकारी टेंडरों की प्रक्रिया में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. इसके अलावा, ग्रीस के रेलवे ऑपरेटर TrainOSE के निजीकरण एवं ग्रीक इंश्योरेंस कंपनी Ethniki Asfalistiki की बिक्री जैसे सौदों से भी चीन को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.[69] प्रधानमंत्री मित्सोटाकिस ने 2021 में ऐलान किया था कि "ग्रीस ख़ास तौर पर चीनी निवेश पर निर्भर नहीं है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी ऐलान किया कि ग्रीस के 5G नेटवर्क से चीनी कंपनी हुआवेई को बाहर किया जाएगा.[70]

हाल को वर्षों में ग्रीस की अर्थव्यवस्था में तेज़ी से सुधार हुआ है. ग्रीस में वर्ष 2021 में जीडीपी ग्रोथ की दर 8.4 प्रतिशत थी, जबकि वर्ष 2022 में 5.9 प्रतिशत थी.[71] इसके साथ ही एथेंस के नज़रिए में भी परिवर्तन दिखाई दिया है और वह अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संतुलन बनाने में जुटा हुआ है. एथेंस एक तरफ पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्तों को मज़बूत कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ यूरोपियन यूनियन की नीतियों का भी अनुसरण कर रहा है (ग्रीस यूरोपीय संघ के चीन को लेकर तीन आयामी नज़रिए का पालन करता है). इतना ही नहीं, वह चीन एवं अमेरिका के साथ अपने संबंधों में भी संतुलन स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, ख़ास तौर पर तुर्किये के साथ तनावपूर्ण संबंधों और एजियन सागर से जुड़े विवादों के मामले में ग्रीस इन दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन बना रहा है.

हंगरी: चीन का यूरोपीय ट्रोज़न हॉर्स यानी लकड़ी का घोड़ा

हंगरी ने हमेशा यूरोपियन यूनियन की नीतियों से अलग रुख़ अपनाया है. चाहे NATO में स्वीडन की सदस्यता को रोकने का मसला हो, या रूस की ऊर्जा आपूर्ति को बाधित नहीं करने का फैसला, या फिर यूक्रेन को पश्चिम से मिलने वाली सैन्य मदद में रोड़ा अटकाना हो, ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि हंगरी हमेशा यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण और उसकी नीतियों के विरोध में खड़ा रहा है. चीन को लेकर यूरोप के बाक़ी देशों से अलग हंगरी के यह विचार, उसकी चीन नीति में भी साफ तौर पर दिखाई देते हैं. यही वजह है कि हंगरी को यूरोप में चीन का ट्रोजन हॉर्स कहा जाता है. कहने का मतलब है कि हंगरी को यूरोप में चीन की धूर्तता और धोखेबाजी का प्रतिनिधि माना जाता है.[72]

ज़ाहिर है कि बीजिंग को लेकर ज़्यादातर यूरोपीय देशों का रवैया नकारात्मक होता जा रहा है, जबकि बुडापेस्ट ने चीन को अपना भरपूर समर्थक देना जारी रखा है. हंगरी के विदेश मंत्री पीटर सिज्जार्तो ने तो चीन से दूरी बनाने के यूरोपीय देशों के फैसले को पूरे यूरोप के लिए "आत्महत्या" करने जैसा करार दिया है. कोरोना महामारी के दौरान यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में सिर्फ़ हंगरी ही ऐसा था, जिसने चीन की कोविड-19 वैक्सीनों का उपयोग किया था. इतना ही नहीं, पूरे यूरोपीय संघ में हंगरी ही वो पहला देश था, जो चीन के बीआरआई में शामिल हुआ था और जिसने 2.3 बिलियन यूरो की बुडापेस्ट-बेलग्रेड रेलवे परियोजना का समर्थन किया था.[73] तमाम यूरोपीय देशों ने अपने 5G नेटवर्क से चीनी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन हंगरी ने हुआवेई के साथ रणनीतिक साझेदारी की है. और तो और हंगरी में चीन के बाहर हुआवेई का सबसे पड़ा सप्लाई सेंटर भी बना हुआ है.[74]

प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन वर्ष 2010 में हंगरी की सत्ता पर काबिज हुए थे. उसके बाद से ही उन्होंने 'केलेटी न्यातास' (पूर्व के लिए दरवाज़े खोलने) की नीति अपनाई और पश्चिम पर हंगरी की निर्भरता को कम करने और पूर्व के साथ रिश्तों को मज़बूत करने की रणनीति पर काम किया.[75] चीन के साथ नज़दीकी राजनीतिक और आर्थिक संबंधों ने देखा जाए तो हंगरी को अमेरिका एवं यूरोपियन यूनियन पर निर्भरता कम करने और स्वतंत्र होकर अपने हित में निर्णय लेने में सक्षम बनाया है. ख़ास तौर पर ब्रुसेल्स के साथ चल रहे क़ानूनी विवादों और यूरोपीय संघ की वित्तपोषण से जुड़ी शर्तों की बात की जाए तो हंगरी अब अपने दम पर फैसले ले रहा है. कहने का मतलब यह है कि बीजिंग अब हंगरी की आर्थिक एवं निवेश से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने का अहम ज़रिया बन गया है. इसके साथ ही हंगरी अब यूरोपीय संघ की तुलना में राजनीतिक रूप से भी ताक़तवर हो गया है. एक और बात यह है कि प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन का सरकार चलाने का अंदाज़ भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तरह तानाशाही वाला है. इस वजह से भी उन्हें चीन के साथ अपने रिश्तों को बढ़ाने में कोई दिक़्क़त नहीं होती है. जबकि बाक़ी यूरोपीय देशों के समक्ष यह समस्या आती है, क्योंकि चीन के अधिनायकवादी रवैये से उनकी चीन के साथ पटरी नहीं बैठती है.

चीन न केवल हंगरी का सबसे बड़ा निवेशक देश है, बल्कि यूरोपीय संघ के बाहर हंगरी उसका सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है. चीन द्वारा व्यापक स्तर पर किए जाने वाला निवेश हंगरी की आर्थिक प्रगति के लिहाज़ से तो बहुत लाभदायक है, लेकिन इससे उसके चीन के "ऋण जाल" के फंसने की संभावना भी बहुत ज़्यादा है और यह कहीं न कहीं यूरोप की सुरक्षा के लिए भी यह एक बहुत बड़ा ख़तरा पैदा करने वाली बात है. चीनी कंपनी कंटेम्परेरी एम्पेरेक्स टेक्नोलॉजी कंपनी लिमिटेड की हंगरी में यूरोप का सबसे बड़ा बैटरी प्लांट (7 बिलियन यूरो से अधिक की लागत से) स्थापित करने की योजना है. देखा जाए तो यह हंगरी के ऑटोमोबाइल उद्योग (इसके निर्यात का पांचवां हिस्सा) के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगा.[76] चीन से आने वाले इन निवेशों ने हंगरी को उत्साह से भर दिया है और इसके चलते यूरोपीय संघ के भीतर उसका बर्ताव भी बदल गया है. जैसे कि ईयू ने दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रमकता और हॉन्गकॉन्ग में दमन को लेकर चीन के विरुध जो सख़्त रवैया अपनाया है, हंगरी उससे कतई इत्तेफाक़ नहीं रखता है.

व्यापार और निवेश फैक्टर

 

यूरोपीय देशों और चीन के बीच के रिश्तों में पारस्परिक व्यापार और अर्थव्यवस्था की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हैं. जिस प्रकार से यूरोपीय देशों द्वारा बीजिंग के साथ अपने संबंधों का नए सिरे से मूल्यांकन करने एवं संबंधों को नए तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिशें की जा रही है, तब एक सवाल यह उठता है कि आर्थिक लिहाज़ से एक-दूसरे पर इतनी अधिक निर्भरता को देखते हुए ऐसा संभव कैसे होगा. जहां तक चीन के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को लेकर यूरोपियन यूनियन एवं इसके सदस्य देशों के विचारों का सवाल है, तो इसमें काफ़ी विरोधाभास नज़र आता है और उनके विचार सहमति एवं असहमति के बीच झूलते नज़र आ रहे हैं. यूरोपी संघ आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के मार्च 2023 में दिए गए भाषण को ही देखें, तो उसमें उन्होंने चीन को लेकर काफ़ी सख़्त रुख़ अपनाया था, साथ ही यूरोपीय देशों को आर्थिक क्षेत्र में चीन पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करने की ज़रूत पर बल दिया था.

यह अलग बात है कि जब अलग-अलग यूरोपीय देशों के चीन के साथ व्यापर के आंकड़ों का गहन अध्ययन किया गया, तो एक अलग ही तस्वीर सामने आई है. (तालिका 1 देखें) पिछले कुछ वर्षों के आंकडों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि चीन और इन यूरोपीय राष्ट्रों के बीच व्यापार में बढ़ोतरी हुई है. ऐसा तब हुआ है, जब इन यूरोपीय देशों के बीजिंग को लेकर रवैये में बदलाव आया है, साथ ही बाज़ार तक एक समान पहुंच और चीनी कंपनियों की आक्रामक गतिविधियों जैसे मुद्दों को लेकर इन्हें चीन से कई शिकायतें हैं. आंकड़ों से स्पष्ट है कि लिथुआनिया और एस्टोनिया जैसे यूरोपीय देश, जिनका चीन के साथ तमाम मुद्दों पर छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है, उनकी भी चीन के साथ होने वाले व्यापार में वृद्धि हुई है. इस प्रकार से देखा जाए तो चीन यूरोपीयन यूनियन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश बना हुआ है. वर्ष 2022 में चीन और यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार 850 बिलियन यूरो से अधिक का था.[77]

तालिका 1: चीन के साथ यूरोपीय देशों के व्यापारिक संबंध

 

  2019 2020 2021 2022
डेनमार्क
निर्यात 4,836,593 5,540,716 5,929,263 5,690,449
आयात 6,544,486 6,920,806 8,952,497 10,929,046
कुल व्यापार 11,381,079 12,461,522 14,881,760 16,619,495
जर्मनी
निर्यात 95,983,94 95,840,086 103,564,379 106,879,139
आयात 110,054,162 117,373,256 142,964,313 192,006,011
कुल व्यापार 119,652,556 213,213,342 246,528,692 298,885,150
स्वीडन
निर्यात 7,111,023 7,953,835 7,385,024 -
आयात 9,119,388 8,721,820 12,174,168 -
कुल व्यापार 16,230,411 16,675,655 19,559,192 -
ब्रिटेन
निर्यात 35.9 27.2 27.3 37.6
आयात 50.8 50.8 57.4 66.5
कुल व्यापार 86.7 84.6 93.8 111.0
चेक गणराज्य  
निर्यात 2,330,053 2,457,450 2,828,352 -
आयात 26,735,848 29,282,947 33,101,578 -
कुल व्यापार 29,065,901 31,740,397 35,929,930 -
फ्रांस
निर्यात 20,937 17,620 24,417 24,102
आयात 53,276 56,497 64,412 78,269
कुल व्यापार 74,213 74,117 88,829 102,371
नीदरलैंड्स
निर्यात 515,264 482,713 589,202 594,065 (Jan-Oct)
आयात 459,893 423,823 527,055 554,782 (Jan-Oct)
कुल व्यापार 975,157 906,526 1,116,257 1,148,847 (Jan-Oct)
लिथुआनिया
निर्यात - 316 227.9 99.6
आयात - 1,172.29 1,570.00 1,986.44
कुल व्यापार - 1,488.29 1,797.90 2,086.05
एस्टोनिया
निर्यात 166 244 194 210
आयात 548 647 712 954
कुल व्यापार 714 891 906 1164
ग्रीस
निर्यात 942,528 919,961 1,596,546 -
आयात 4,289,096 4,033,062 11,178,473 -
कुल व्यापार 5,231,624 4,953,023 12,775,019 -
हंगरी
निर्यात 1,572,206 1,946,173 2,335,970 -
आयात 6,753,296 8,507,370 9,270,022 -
कुल व्यापार 8,325,502 10,453,543 11,605,992 -
                 
                   

 

नोट: सभी आंकड़े मिलियन यूरो में हैं, सिर्फ़ यूके के आंकड़े बिलियन पाउंड्स में हैं.

स्रोत: स्टैटिस्टिक्स, फेडरल स्टैटिकल ऑफिस के आंकड़े, यूके गवर्नमेंट, विश्व बैंक, डिपार्टमेंट ऑफ स्टैडिस्टिक्स एंड फॉरेन ट्रेड स्टडीज़, स्टैटिस्टिक्स नीदरलैंड, लिथुआनिया दूतावास[78]

जिस प्रकार से हाल-फिलहाल में ही यूरोपियन यूनियन द्वारा विदेशी निवेश निगरानी तंत्र, विदेशी सब्सिडी विनियमन और दबाव रोकने के वाले उपायों को अपनाया गया है, देखा जाए तो इनका मकसद कहीं न कहीं चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों में संतुलन स्थापित करना तो है ही, साथ ही आर्थिक सुरक्षा को भी सुनिश्चित करना है. चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों की बात की जाए तो यूरोपीय संघ ने इलेक्ट्रिक वाहनों को मिलने वाली चीनी सब्सिडी की जांच शुरू की है. ईयू द्वारा यह क़दम चीन से होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात में बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद उठाया गया है. वर्ष 2023 के पहले सात महीनों में चीनी ईवी आयात में 112 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, जबकि वर्ष 2021 में 361 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई थी.[79] इन घटनाक्रमों ने चीन और ईयू के बीच की जटिल साझेदारी को और अधिक पेचीदा बना दिया है. उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर असहमति, यूरोप में बढ़ते चीनी प्रभाव, बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मसलों और चीनी बाज़ारों तक एक समान पहुंच नहीं होने की वजह से चीन और ईयू के पारस्परिक रिश्ते पहले से ही ठीक नहीं थे.

इतना ही नहीं, व्यापार से जुड़े मुद्दों पर यूरोपीय संघ देखा जाए तो अमेरिका और चीन के बीच चल रहे गतिरोध में फंस गया है. उदाहरण के तौर पर अमेरिका ने ईयू के सदस्य देशों और विभिन्न यूरोपीय कंपनियों पर चीन के विरुद्ध चिप्स निर्यात प्रतिबंध को क़ायम रखने के लिए दबाव डाला है. नीदरलैंड ने अमेरिका के इस निर्देश को मानते हुए चीन को किए जाने वाले सेमीकंडक्टर उपकरण के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है.[80] नीदरलैंड के इस फैसले को लेकर चीन की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया जताई गई है. हालांकि, ईयू के दूसरे सदस्य देशों द्वारा इस मामले में चीन के विरुद्ध अमेरिका का समर्थन नहीं किया गया है.

यह घटनाक्रम साफ तौर पर ज़ाहिर करता है कि यूरोपीय देशों द्वारा चीन के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण में एकरूपता नहीं है, बल्कि उसमें काफ़ी विरोधाभास है. यूरोपीय संघ के कई देशों ने चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता से संबंधित चिंताएं जताई हैं, साथ ही चीन पर निर्भरता से पैदा होने वाले ख़तरों के बारे में चिंता प्रकट की है. हालांकि यूरोपीय देशों ने यह भी माना है कि चीन के साथ उनके आर्थिक संबंध बेहद मायने रखते हैं और उन्हें किसी भी सूरत में नज़रंदाज नहीं किया जा सकता है. कई यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा चीन के साथ किए गए समझौते से इसे आसानी से समझा जा सकता है (जैसे कि मैक्रों और स्कोल्ज़ की चीन यात्रा के दौरान इस प्रकार की संधियां हुई थीं). चीन को लेकर नीतिगत मोर्चे पर इस भटकाव से सवाल उठता है कि क्या यूरोपीय देशों के पास चीन पर एक व्यापक और स्पष्ट नीति है.

यूरोपीय संघ के कई देशों ने चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता से संबंधित चिंताएं जताई हैं, साथ ही चीन पर निर्भरता से पैदा होने वाले ख़तरों के बारे में चिंता प्रकट की है. हालांकि यूरोपीय देशों ने यह भी माना है कि चीन के साथ उनके आर्थिक संबंध बेहद मायने रखते हैं और उन्हें किसी भी सूरत में नज़रंदाज नहीं किया जा सकता है. 

आयरलैंड को छोड़कर चीन का यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय निवेश समझौता है. इसके अलावा इस पेपर में जितने यूरोपीय देशों का विश्लेषण किया गया है, उस सभी के साथ चीन ने डबल टैक्सेशन यानी दोहरे कराधान से बचने से जुड़े समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. एक और बात यह है कि यूरोपीय संघ और चीन के बीच मौज़ूदा समय में कोई व्यापार या निवेश संधि नहीं है. दोनों के बीच सैद्धांतिक रूप से कंप्रहेंशिव एग्रीमेंट ऑन इन्वेस्टमेंट यानी निवेश पर व्यापक समझौता (CAI) हुआ है, लेकिन इसे अभी लागू नहीं किया गया है. जब सीएआई लागू होगा तो यह यूरोपीय देशों एवं चीन के बीच द्विपक्षीय निवेश संधियों की जगह लेगा. इसे चीन और ईयू के बीच एक ऐतिहासिक समझौता माना जाता है. इस समझौते के मुताबिक़ चीन को अपने बज़ार में यूरोपीय देशों की कंपनियों की पहुंच सुनिश्चित करनी होगी, साथ ही यूरोपीय संघ और अपने देश की कंपनियों, दोनों के लिए एक समान अवसर उपलब्ध कराने होंगे. इसके साथ ही चीन को अपनी कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी में पारदर्शिता लानी होगी और जबरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के ख़िलाफ़ नियम बनाने होंगे. फिलहाल सीएआई को मंजूरी नहीं मिल पाई है, क्योंकि यूरोपीय संघ पार्लियामेंट[81] द्वारा इसकी मंजूरी की प्रक्रिया को वर्ष 2021 में रोक दिया गया था. ऐसा यूरोपियन यूनियन द्वारा अपने सदस्य देशों को चीन के साथ हुए समझौतों का फिर से मूल्यांकन करने के लिए कहने और चीन द्वारा ईयू संसद के कई सदस्यों पर प्रतिबंध लगाने के बाद किया गया था.

इस सबसे बावज़ूद, चीन यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के लिए निवेश का महत्वपूर्ण गंतव्य बना हुआ है. देखा जाए तो इसकी प्रमुख वजह चीन की ज़बरदस्त आर्थिक तरक़्क़ी और उसका व्यापक बाज़ार है. वर्ष 2022 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़ 2018-2021 के दौरान चीन में जितना निवेश हुआ था, उसमें नीदरलैंड, यूके, फ्रांस और जर्मनी की हिस्सेदारी लगभग 87 प्रतिशत थी (कुल निवेश में जर्मनी की हिस्सेदारी 43 प्रतिशत थी). गौरतलब है कि चीन में इतना ज़्यादा निवेश करने के बावज़ूद ये देश अब चीन के साथ संबंधों को लेकर अपनी रणनीतियों का नए सिरे से मूल्यांकन कर रहे हैं. वास्तविकता में चीन में जो भी यूरोपीय निवेश है, वो कुछ यूरोपीय देशों तक ही सीमित है. चीन में निवेश करने वाली बड़ी यूरोपीय कंपनियों की संख्या बहुत कम है और इनमें भी ज़्यादातर कंपनियां जर्मनी की हैं. एक तरफ ये बड़ी यूरोपीय कंपनियां चीन में चल रही अपने फैक्टरियों और उत्पादन इकाइयों में निवेश बढ़ा रही हैं, जबकि दूसरी ओर चीन में मौज़ूद कई दूसरी यूरोपीय कंपनियां नया निवेश करने से हिचकिचा रही हैं."[82] (यूरोपीय देशों द्वारा चीनी निवेश को जानने के लिए तालिका 2 देखें).

तालिका 2: चीन में यूरोपीय देशों के निवेश का विवरण

 

चीनी निवेशक यूरोपीय लक्ष्य देश सेक्टर स्थिति (2022 के अंत तक)
Aeonmed हेयर मेडिकल जर्मनी  मेडिकल उपकरण सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया
Beijing Infinite Vision Technology मैनचेस्टर विश्वविद्यालय यूके कैमरा प्रौद्योगिकी सरकार द्वारा लाइसेंसिंग डील रोक दी गई
CCUI and CRRC Alpi एविएशन इटली ड्रोन्स सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया
CIMC Maersk की बॉक्स निर्माण इकाई, MCI डेनमार्क लॉजिस्टिक्स मोनोपॉली विरोधी समीक्षा से जुड़ी चिंताओं के बाद प्रस्ताव वापस ले लिया गया
China General Nuclear (CGN) साइज़वेल परमाणु परियोजना यूके परमाण ऊर्जा U यूके सरकार ने सीजीएन की हिस्सेदारी ख़रीदी
China Power International Holding XRE अल्फा लिमिटेड यूके महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर कुछ नियमों के तहत अनुमति दी गई है
COSCO HHLA कंटेनर टर्मिनल टोलरॉर्ट जर्मनी लॉजिस्टिक्स कम इक्विटी शेयर और कुछ नियमों के तहत अनुमित
EFORT Intelligent Equipment रोबॉक्स इटली रोबॉटिक्स इक्विटी वृद्धि की अनुमती, टेक्नोलॉजी ट्रांसफल डील से इनकार
Nexperia न्यूपोर्ट वेफर फैब यूके सेमीकंडक्टर्स शुरुआत में मंजूरी दी गई, फिर अतिरिक्त शेयरों की ज़बरन बिक्री की गई
Redrock Investment Limited इलेक्ट्रिसिटी नॉर्थ वेस्ट यूके महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर सौदे पर सरकार द्वारा तमाम शर्तें थोपने के बाद समाप्त हो गया
SAI Microelectronics एल्मॉस जर्मनी सेमीकंडक्टर्स ब्लॉक किया
Shanghai Kington Technology Perpetuus यूके Graphene समीक्षा के बाद समाप्त
Shanghai Sierchi Enterprise Management Partnership Flusso यूके सेमीकंडक्टर्स जांच-पड़ताल की गई, लेकिन मंजूरी दे दी गई
Super Orange HK Holding Limited (Univista) Pulsic Limited यूके सेमीकंडक्टर्स ब्लॉक किया
Syngenta (चीनी स्वामित्व) Verisem इटली कृषि कोर्ट ने सरकार के वीटो को बरक़रार रखा है
अज्ञात चीनी कंपनी ERS इलेक्ट्रॉनिक जर्मनी सेमीकंडक्टर्स ब्लॉक किया

स्रोत: रोडियम ग्रुप और MERICS द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट[83]

इसके साथ ही चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए यूरोप सबसे प्रमुख गंतव्य रहा है. वर्ष 2016 में चीन की तरफ से यूरोप में रिकॉर्ड 37.3 बिलियन यूरो का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया गया था. हालांकि, उसके बाद से यूरोपीय देशों में चीनी एफडीआई धीरे-धीरे कम होती गई है और वर्ष 2022 में यह महज 7.9 बिलियन यूरो ही रह गई थी. यानी चीनी एफडीआई में 83 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई.[84] चीनी निवेश में आई  कमी के दो प्रमुख संभावित कारण हो सकते हैं. पहला कारण, विभिन्न आंतरिक (ज़ीरो-कोविड-19 पॉलिसी) और बाहरी कारकों (यूक्रेन संकट) की वजह से चीन के बाहर कंपनियों के विलय और अधिग्रहण में कमी आना हो सकता है, वहीं दूसरा कारण, यूरोपीय देशों द्वारा चीनी निवेश पर बढ़ती निगरानी हो सकता है.

चीन की ओर से किए जाने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिहाज़ से देखें तो यूके, फ्रांस, जर्मनी और हंगरी शीर्ष यूरोपीय राष्ट्र हैं. इसमें से चीनी एफडीआई का 68 प्रतिशत से अधिक हिस्सा यूके, फ्रांस और जर्मनी में निवेश किया गया है.[85] हालांकि, जिस प्रकार से चीनी निवेशों की जांच-पड़ताल में बढ़ोतरी हुई है और यूरोपियन यूनियन द्वारा निवेश निगरानी नियमों को लागू किया गया है, उसकी वजह से यूरोपीय देशों में चीनी निवेश में कमी आई है. ख़ास तौर पर संवेदनशील टेक्नोलॉजी के सेक्टर में होने वाले चीनी निवेश में तो बहुत ज़्यादा कमी दर्ज़ की गई है.

यूरोप हो या चीन, दोनों जगहों पर हाल के वर्षों में बाज़ार तरह-तरह की चुनौतियों से जूझ रहे हैं. एक समय ऐसा था, जब यूरोप की प्रमुख कंपनियों और उद्योगों के बीच चीनी बाज़ारों को लेकर बहुत उत्साह देखा जाता था, लेकिन अब आर्थिक विकास में छाई मंदी और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव की वजह से हालात एकदम बदल चुके हैं. यूरोपीय संघ की निवेश से संबंधित नई स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं और ईयू के कुछ सदस्य देशों की डी-रिस्किंग नीतियों से जुड़े मसलों ने भी हालात को और ज़्यादा पेचीदा बना दिया है. हालांकि, डी-रिस्किंग की प्रक्रिया यानी आर्थिक ख़तरों को कम करने की प्रक्रिया में काफ़ी समय लगेगा, क्योंकि इसे किस तरह से अमल में लाया जाएगा, इस पर अभी विचार-विमर्श किया जा रहा है. इस बीच, एक सच्चाई यह भी है कि ये सभी यूरोपीय देश चीनी निवेश की जांच-पड़ताल और निगरानी के लिए नए-नए नियम-क़ानूनों को बनाना जारी रख सकते हैं, भले ही चीन से व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए इन देशों ने अपने विकल्प खुले रखे हों.

निष्कर्ष

चीन को लेकर यूरोप के नज़रिए में आने वाले बदलाव की बात की जाए, तो ऐसे तमाम यूरोपीय देश हैं, जिन्होंने चीन के प्रति नया सामरिक दृष्टिकोण तैयार किया है, लेकिन इनमें के कुछ ही देश ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी चीन से जुड़ी रणनीति को आधिकारिक रूप से जारी किया है. हालांकि, सच्चाई यह है कि ज़्यादातर यूरोपीय देशों के व्यापक नीतिगत फ्रेमवर्क में चीन को लेकर एक विशिष्ट नज़रिया है.

चीन को लेकर यूरोप की जो नीति है उसमें कोई एकरूपता नहीं है, बल्कि वो अलग-अलग दिशाओं में भटकती हुई प्रतीत होती है. जैसे कि मध्य और पूर्वी यूरोप के देश चीन के प्रति अमेरिका के सख़्त और हमलावर नज़रिए के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, जबकि जर्मनी और फ्रांस जैसे ज़्यादा ताक़तवर यूरोपीय देश अमेरिका और चीन के बीच संतुलन स्थापित करते हुए सुरक्षित रास्ता खोज रहे हैं. लेकिन कुल मिलाकर इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन को लेकर यूरोप के समग्र दृष्टिकोण में बदलाव आया है और यूरोपीय देश चीन के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से स्थापित करने की रणनीति पर गंभीरता से कार्य कर रहे हैं.

जहां तक चीन और रूस के संबंधों में आई नज़दीकी का सवाल है, तो क़रीब-क़रीब सभी यूरोपीय देशों ने इस पर चिंता जताई है और रूस के साथ 'नो-लिमिट पार्टनरशिप' वाले चीन के क़दम को लेकर एहतियात बरतने की बात कही है. जिस प्रकार से यूक्रेन संकट पर चीन ने रूस का समर्थन किया है, उससे इस बात की संभावना भी बढ़ गई है कि चीन सैन्य साज़ो-सामान और गोला-बारूद भी रूस को आपूर्ति कर सकता है. इसने यूरोपीय देशों की चिंता बढ़ा दी है. ज़ाहिर है कि चीन और रूस के बीच बढ़ते व्यापारिक संबंधों ने रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों को बेअसर कर दिया है.

इसके अतिरिक्त, ट्रांस अटलांटिक देशों के संबंध पर भी गौर किए जाने की ज़रूरत है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ट्रांस अटलांटिक देशों के संबंधों में मज़बूती आई है. कहने का मतलब यह है कि यूरोपीय देशों ने रूस पर बहुत ज़्यादा निर्भरता से सबक लिया है और चीन के साथ रिश्ते बढ़ाने के मामले में ये देश अब फूंक-फूंक कर क़दम उठा रहे हैं. हालांकि, यह भी निश्चित है कि अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं मद्देनज़र यूरोपीय देश चीन के मामले में संभावित रूप से अमेरिका का पिछलग्गू बनने से बच रहे हैं. जहां तक यूरोपीय देशों की सामरिक आज़ादी हासिल करने की बात है, तो उन्हें लगता है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए जितना चीन पर निर्भरता कम करना ज़रूरी है, उतना ही अमेरिका पर भी निर्भरता कम करना आवश्यक है. इसके अलावा अमेरिका में अभी अनिश्चितिता का माहौल है और यह पता नहीं है कि अमेरिका की राजनीति क्या करवट लेगी. इन परिस्थितियों में यूरोपीय देश चीन के मुद्दे पर अमेरिकी नीतियों का आंख बंद करके अनुसरण करने का कोई जोख़िम नहीं लेना चाहते हैं. यानी कि यूरोपीय देश चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनने के बजाए, दोनों देशों के साथ अपने संबंधों में रणनीतिक संतुलन स्थापित कर आगे बढ़ना चाहते हैं. ख़ास तौर पर ऐसी परिस्थितियों में जब रूस के साथ आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को समाप्त करने के बाद यूरोप काफ़ी दबाव में है और यूरोपीय देश आर्थिक लाभ के लिए चीनी बाज़ारों पर बहुत निर्भर हैं, तब उनके लिए चीन से किनारा करना और अमेरिका की गोद में बैठना बेहद मुश्किल होगा. ज़ाहिर है कि जिस प्रकार से अमेरिका द्वारा चीन को खुली चुनौती दी जा रही है, यूरोपीय देश इस मामले में अमेरिका के पक्ष में खड़े नज़र नहीं आते हैं. लेकिन यह तय है कि चीन के आक्रामक रवैये को लेकर जिस तरह से पूरे यूरोप में चिंता का माहौल बना हुआ है, उसके चलते इन देशों का झुकाव कहीं न कहीं अमेरिका की तरफ बना रहेगा, नतीज़तन चीन के प्रति यूरोप का संशय भरा दृष्टिकोण लगातार यू हीं मज़बूत होता रहेगा.

जिस प्रकार से अमेरिका द्वारा चीन को खुली चुनौती दी जा रही है, यूरोपीय देश इस मामले में अमेरिका के पक्ष में खड़े नज़र नहीं आते हैं. लेकिन यह तय है कि चीन के आक्रामक रवैये को लेकर जिस तरह से पूरे यूरोप में चिंता का माहौल बना हुआ है, उसके चलते इन देशों का झुकाव कहीं न कहीं अमेरिका की तरफ बना रहेगा, नतीज़तन चीन के प्रति यूरोप का संशय भरा दृष्टिकोण लगातार यू हीं मज़बूत होता रहेगा.

एक और सच्चाई यह है कि यूरोपीय देशों के लिए चीन के साथ विभिन्न क्षेत्रों में गठजोड़ और बिजनेस अब ऐसा नहीं रह गया है, जिस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सके, यानी इसको लेकर गहन जांच-पड़ताल करना ज़रूरी होता जा रहा है. हालांकि, इसके बावज़ूद यूरोपीय देशों के चीन से संबंधित एजेंडे में व्यापार और निवेश से जुड़े मुद्दे सबसे ऊपर रहेंगे. इसके अतिरिक्त, यूरोपीय देशों के जेहन में यह बात गहरे से बैठ चुकी है कि चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों पर नए सिरे से विचार किए जाने ज़रूरत है, लेकिन इस कार्य को कैसे अंज़ाम दिया जाएगा, इसको लेकर अनिश्चितिता बनी हुई है. इतना ही नहीं, यूरोपियन यूनियन और इसके सदस्य देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को चीन की निर्भरता से आज़ाद करने की बात तो खुलकर करते हैं, लेकिन इस जटिल कार्य को कैसे अंज़ाम तक पहुंचाया जाएगा, इसके बारे में बात करने पर वे टाल-मटोल करने लगते हैं.

गौरतलब है कि अमेरिका की चीन के साथ रणनीतिक होड़ है, लेकिन यूरोप के साथ ऐसा नहीं है. यानी यूरोपीय देशों की वैश्विक स्तर पर चीन के साथ कोई सामरिक प्रतिस्पर्धा नहीं है. वास्तविकता यह है कि अगर चीन के साथ आर्थिक संबंधों में और चीनी बाज़ारों तक पहुंच में एक समान अवसर मिलता है, तो यूरोपीय देशों की चीन से नाराज़गी कम हो सकती है. कहने का अर्थ है कि अगर यूरोप और चीन के बीच लंबित सीएआई यानी समग्र निवेश समझौता परवान चढ़ता है, तो इससे यूरोपीय देशों का चीन के साथ मौज़ूदा व्यापार असंतुलन दूर हो सकता है. ऐसा होने पर चीन को लेकर ईयू सहज हो सकता है, साथ ही चीन एक बार फिर से यूरोप के लिए अवसरों से भरपूर गंतव्य देश बन सकता है. पिछले कुछ समय के दौरान यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा किए गए चीनी दौरों से निकले नतीज़ों से भी यह पता चलता है. इन दौरों में यूरोपीय नेताओं का सबसे प्रमुख मुद्दा तो यूक्रेन था, लेकिन उनके साथ भारी-भरकम व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी चीन गया था, जहां चीनी कंपनियों के साथ व्यापक स्तर पर आर्थिक समझौते भी किए गए थे. [86] [86]इसके अतिरिक्त, इस पूरे विश्लेषण से यह भी सामने आता है कि अगर यूरोपीय संघ और सदस्य देश चीन को लेकर पुख्ता नीतियां बनाने में क़ामयाब भी हो जाते हैं, फिर भी उन्हें व्यापार के लिहाज़ से चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने में बहुत वक़्त लगेगा और ऐसा करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा.

Endnotes

 

[A] डिकपलिंग का मतलब है दो या दो से अधिक देशों के बीच संबंध पूरी तरह से समाप्त होना. इसमें दो देशों के मध्य चल रहे व्यापारिक और निवेश रिश्तों को समाप्त करना और आपूर्ति श्रंखलाओं को खत्म करना शामिल है, साथ ही किसी नए देश के साथ आर्थिक साझेदारी स्थापित करना शामिल है. दूसरी ओर, डी-रिस्किंग अलगाव के लिए धीरे-धीरे अपनाई जाने वाली प्रक्रिया है, इसके अंतर्गत किसी देश के साथ संबंधों को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाता है, बल्कि जिन आर्थिक क्षेत्रों में ख़तरे या जोख़िम की आशंका होती है, उसी सेक्टर में अलगाव किया जाता है. इसमें आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना, वस्तुओं और सेवाओं के वैकल्पिक स्रोतों की पहचान करना और संभावित बाधाओं के ख़तरे को कम करने के उपायों को लागू करना शामिल होता है. अधिक जानकारी के लिए देखें: Alex Capri, “China decoupling versus de-risking: What’s the difference?,” Hinrich Foundation, December 12, 2023, https://www.hinrichfoundation.com/research/article/trade-and-geopolitics/china-decoupling-vs-de-risking/#:~:text=Alex%20Capri&text=Like%20decoupling%2C%20de%2Drisking%20is,risks%20have%20been%20dealt%20with .

[B] निवेश, विलय और अधिग्रहण की सिक्योरिटी स्क्रीनिंग से जुड़ा अधिनियम 1 जून, 2023 को लागू हुआ था. इस अधिनियम में राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व को देखते हुए एक निवेश निगरानी फ्रेमवर्क प्रस्तुत किया गया. यह अधिनियम ऊर्जा और दूरसंचार सेक्टर में मौज़ूदा क्षेत्र-विशिष्ट निगरानी तंत्र की सहायता करेगा. अधिक जानकारी के लिए देखें: "Investment Screening", UNCTAD,

https://investmentpolicy.unctad.org/investment-policy-monitor/measures/4328/netherlands-introduces-fdi-screening-regime  

[C] यह बीजिंग की अगुवाई वाला एक समूह है, जिसकी स्थापना वर्ष 2012 में चीन और मध्य एवं पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच सहयोग का विस्तार करने और क्षेत्र में आर्थिक व बुनियादी ढांचे के विकास को प्रोत्साहन देने के लिए की गई थी.

[D] 2022 में जारी किए गए ग्लोबल सिक्योरिटी इनीशिएटिव में छह प्रतिबद्धताएं शामिल हैं: (1) सामान्य, व्यापक, सहकारी और टिकाऊ सुरक्षा के नज़रिए को लेकर प्रतिबद्धता; (2) सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की प्रतिबद्धता; (3) एन चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों को लेकर प्रतिबद्धता; (4) सभी देशों की वैध सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से लेने की प्रतिबद्धता; (5) देशों के बीच मतभेदों और विवादों का बातचीत और सलाह-मशविरे के ज़रिए शांतिपूर्ण तरीक़े से हल निकालने की प्रतिबद्धता; और (6) पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक दोनों क्षेत्रों में सुरक्षा बनाए रखने की प्रतिबद्धता.

ज़्यादा जानकारी के लिए देखें: “Jointly Implementing the Global Security Initiative For Lasting Peace and Security of the World,” Ministry of Foreign Affairs, PRC, https://www.mfa.gov.cn/eng/wjbxw/202311/t20231102_11172214.html )

[1] “EU trade chief seeks more balanced economic ties on China visit,” Reuters, September 22, 2023, https://www.reuters.com/markets/eu-trade-chief-seeks-more-balanced-economic-ties-china-visit-2023-09-21/

[2] “EU-China Summit: Speech by High Representative/Vice-President Josep Borrell at the EP plenary,” European External Action Service, April 6, 2022, https://www.eeas.europa.eu/eeas/eu-china-summit-speech-high-representativevice-president-josep-borrell-ep-plenary_en

[3] “EU-China – A strategic outlook,” European Commission, March 12, 2019, https://commission.europa.eu/system/files/2019-03/communication-eu-china-a-strategic-outlook.pdf.

[4] “Speech by President von der Leyen on EU-China relations to the Mercator Institute for China Studies and the European Policy Centre,” European Commission, March 30, 2023, https://ec.europa.eu/commission/presscorner/detail/en/speech_23_2063.

[5] Lisa O’ Carroll, “EU softens China strategy by adopting ‘de-risking’ approach,” The Guardian, June 30, 2023, https://www.theguardian.com/world/2023/jun/30/eu-china-strategy-de-risking-ursula-von-der-leyen-brussels

[6] “Speech by President von der Leyen at the European China Conference 2023 organised by the European Council on Foreign Relations and the Mercator Institute for China Studies,” European Commission, November 6, 2023, https://ec.europa.eu/commission/presscorner/detail/es/speech_23_5851#:~:text=We%20must%20recognise%20that%20there,and%20strategic%20in%20our%20response.

[7] Andreas B. Forsby, “Denmark: Enhanced vigilance in countering potential dependencies on China,” European Think-tank Network on China, April 2022, https://merics.org/sites/default/files/2022-04/etnc_2022_report.pdf.

[8] “Foreign and Security Policy Strategy 2022,” Ministry of Foreign Affairs of Denmark, https://um.dk/udenrigspolitik/aktuelle-emner/udenrigs-og-sikkerhedspolitisk-strategi-2022.

[9] “Foreign and Security Policy Strategy 2023,” Ministry of Foreign Affairs of Denmark, https://um.dk/en/foreign-policy/foreign-and-security-policy-2023.

[10] "Denmark to join EU defence policy after historic vote,” Al Jazeera, June 01, 2022, https://www.aljazeera.com/news/2022/6/1/exit-polls-danish-voters-want-back-joining-eus-defence-policy.

[11] Erin Parsons, “Is China’s ‘Debt-Trap Diplomacy’ in Greenland Simply on Ice?,” The Diplomat, January 05, 2022, https://thediplomat.com/2022/01/is-chinas-debt-trap-diplomacy-in-greenland-simply-on-ice/.

[12] “Danish foreign minister defends China trip amid criticism from opposition,” The Local DK, August 15, 2023, https://www.thelocal.dk/20230815/danish-foreign-minister-defends-china-trip-amid-criticism-from-opposition.

[13] “Denmark’s Strategic Partnership with China,” Ministry of Foreign Affairs of Denmark, https://kina.um.dk/en/about-denmark/denmarks-strategic-partnership-with-china.

[14] “Strategy on China of the Government of the Federal Republic of Germany,” Federal Republic of Germany, June 2023, https://www.auswaertiges-amt.de/blob/2608580/49d50fecc479304c3da2e2079c55e106/china-strategie-en-data.pdf.

[15] Olaf Scholz, “We don’t want to decouple from China, but can’t be overreliant,” Politico, November 03, 2022, https://www.politico.eu/article/olaf-scholz-we-dont-want-to-decouple-from-china-but-cant-be-overreliant/.

[16] “Strategy on China of the Government of the Federal Republic of Germany”

[17] Shairee Malhotra, “Germany’s China strategy: An anchor at last?,” Expert Speak, Observer Research Foundation, August 07, 2023, https://www.orfonline.org/expert-speak/germanys-china-strategy/.

[18] Klaus Ulrich, “Are German carmakers too dependent on China?,”Deutsche Welle, October 27, 2020, https://www.dw.com/en/are-german-carmakers-too-dependent-on-china/a-55400204.

[19] Agatha KratzNoah Barkin, Lauren Dudley, “The Chosen Few: A Fresh Look at European FDI in China,” Rhodium Group, September 14, 2022, https://rhg.com/research/the-chosen-few/.

[20] Agust Börgjesson, “Sweden and China, Once Bitten, Twice Shy,” Institute for Security and Development Policy, April 13, 2023, https://isdp.se/sweden-and-china-once-bitten-twice-shy/

[21] Lily Kuo, “Hong Kong bookseller Gui Minhai jailed for 10 years in China,” The Guardian, February 25, 2020, https://www.theguardian.com/world/2020/feb/25/gui-minhai-detained-hong-kong-bookseller-jailed-for-10-years-in-china

[22] “Unfavorable Views of China Reach Historic Highs in Many Countries,” Pew Research Center, October 6, 2020, https://www.pewresearch.org/global/2020/10/06/unfavorable-views-of-china-reach-historic-highs-in-many-countries/.

[23] “Approach to matters relating to China,” Swedish Ministry of Foreign Affairs,  September 26, 2019, https://www.government.se/contentassets/e597d50630fa4eaba140d28fb252c29f/government-communication-approach-to-matters-relating-to-china.pdf.

[24] “The Swedish Defence Commission’s report on security policy,” Excerpts, The Defence Commission’s Secretariat, June 19, 2023, https://www.regeringen.se/contentassets/de808e940116476d8252160c58b78bb7/sammandrag-pa-engelska-av-allvarstid-ds-202319.pdf.

[25] Trita Parsi, “Sweden Is the Land of Ikea, ABBA—and China Hawks,” Foreign Policy, July 24, 2023, https://foreignpolicy.com/2023/07/24/sweden-is-the-land-of-ikea-abba-and-china-hawks/#cookie_message_anchor.

[26] Swedish Presidency of the Council of the European Union, 2023, https://swedish-presidency.consilium.europa.eu/media/ntkerqpw/the-swedish-presidency-programme.pdf.

[27] “Global Britain in a Competitive Age: the Integrated Review of Security, Defence, Development and Foreign Policy,” Cabinet Office, Government of the UK, 16 March 2021, https://www.gov.uk/government/publications/global-britain-in-a-competitive-age-the-integrated-review-of-security-defence-development-and-foreign-policy.

[28] “Integrated Review Refresh 2023: Responding to a more contested and volatile world,” Cabinet Office, Government of the UK,  16 May 2023, https://www.gov.uk/government/publications/integrated-review-refresh-2023-responding-to-a-more-contested-and-volatile-world/integrated-review-refresh-2023-responding-to-a-more-contested-and-volatile-world.

[29] Aubrey Allegretti, “Rishi Sunak signals end of ‘golden era’ of relations between Britain and China,” The Guardian, November 28, 2022, https://www.theguardian.com/politics/2022/nov/28/rishi-sunak-signals-end-of-golden-era-of-relations-between-britain-and-china.

[30] Laurie Chen and Andrew Macaskill, “UK foreign minister to visit China in attempt to repair damaged ties,” Reuters, August 29, 2023, https://www.reuters.com/world/uk-foreign-minister-visit-china-aug-30-2023-08-29/.

[31] Darren Dodd, “UK ‘global outlier’ as inflation refuses to fall,” Financial Times, June 22, 2023, https://www.ft.com/content/da2ded05-40a2-4196-aced-b32bb4ae89fc.

[32] Timothy Oliver, “Why David Cameron’s past and present relations with China could be Rishi Sunak’s first political headache of 2024,” University of Manchester, January 4, 2024, https://www.manchester.ac.uk/discover/news/david-camerons-past-and-present-relations-with-china/#:~:text=As%20foreign%20secretary%2C%20Cameron%20is,during%20his%20time%20in%20office.

[33] Ryan Browne, “Chinese takeover of the UK’s biggest chip plant blocked on national security grounds,” CNBC, November 16, 2022, https://www.cnbc.com/2022/11/16/chinese-takeover-of-biggest-uk-chip-plant-blocked-by-government.html.

[34] “China,” Intelligence and Security Committee of Parliament, House of Commons, The UK, July 13, 2023, https://isc.independent.gov.uk/wp-content/uploads/2023/07/ISC-China.pdf.

[35] “National semiconductor strategy,” Government of the UK, May 19, 2023, https://www.gov.uk/government/publications/national-semiconductor-strategy/national-semiconductor-strategy

[36] “Critical Minerals Refresh: Delivering Resilience in a Changing Global Environment,” Government of the UK, March 13, 2023, https://www.gov.uk/government/publications/uk-critical-mineral-strategy/critical-minerals-refresh-delivering-resilience-in-a-changing-global-environment-published-13-march-2023

[37] “Czech cyber watchdog calls Huawei, ZTE products a security threat,” Reuters, December 17, 2018, https://www.reuters.com/article/us-czech-huawei-idUSKBN1OG1Z3

[38] “Security Strategy of the Czech Republic 2015,” Ministry of Foreign Affairs of the Czech Republic, February 2015, https://www.army.cz/images/id_8001_9000/8503/Security_Strategy_2015.pdf

[39] “Security Strategy of the Czech Republic 2023,” Ministry of Foreign Affairs of the Czech Republic, June 2023 https://www.mzv.cz/file/5119429/MZV_BS_A4_brochure_WEB_ENG.pdf

[40] “Czech president-elect says west must accept China is ‘not friendly’,” The Financial Times, February 1, 2023,  https://www.ft.com/content/df41b4a8-97f0-4e20-9ef4-4a53c0ab8f30

[41] “Czech lower house speaker Adamová in Taiwan with huge delegation,” Focus Taiwan, March 25, 2023, https://focustaiwan.tw/politics/202303250015

[42] “French White Paper - Defence and National Security 2013,” 2013, https://ccdcoe.org/uploads/2018/10/White-paper-on-defense-2013-1.pdf

[43] “Strategic Update 2021”, French Ministry of Defence, 2021, https://otan.delegfrance.org/IMG/pdf/strategic_review_2021.pdf?1326/3874cfafd4bde77f93880652921601c39bbdb174

[44] “National Strategic Review 2022,” Republic of France, 2022, https://www.sgdsn.gouv.fr/files/files/rns-uk-20221202.pdf

[45] “National Strategic Review 2022,” Republic of France, 2022

[46] “National Strategic Review 2022,” Republic of France, 2022

[47] “National Strategic Review 2022,” Republic of France, 2022

[48] Jamil Anderlini and Clea Caulcutt, “Europe must resist pressure to become ‘America’s followers,’ says Macron,” Politico, April 9, 2023, https://www.politico.eu/article/emmanuel-macron-china-america-pressure-interview/#:~:text=%E2%80%9CThe%20question%20Europeans%20need%20to,Chinese%20overreaction%2C%E2%80%9D%20he%20said.

[49] Vera Kranenburg and Frans-Paul van der Putten, “Constraints for Engagement with China: Dutch Ports and the BRI,” IAI Commentaries 22,  April 16, 2022, https://www.iai.it/it/pubblicazioni/constraints-engagement-china-dutch-ports-and-bri#_ftn4

[50] “Policy memorandum ’Netherlands-China: a new balance’,” Parliamentary Papers, Ministry of Foreign Affairs, The Netherlands, 2019, https://www.tweedekamer.nl/kamerstukken/detail?id=2019Z09525&did=2019D19427

[51] “Photonics sector Eindhoven gets major boost with 1.1 billion euro investment,” Eindhoven University of Technology, April  22, 2022, https://www.tue.nl/en/news-and-events/news-overview/22-04-2022-photonics-sector-eindhoven-gets-major-boost-with-11-billion-euro-investment

[52] “Dutch-Belgian offshore consortium keeps Royal IHC from Chinese hands,” Project Cargo Journal, May 4, 2020, https://projectcargojournal.com/shipping/2020/05/04/dutch-offshore-companies-keep-royal-ihc-from-chinese-hands/?gdpr=accept

[53] Pieter Haeck, “The Netherlands to block export of advanced chips printers to China,” Politico, March 8, 2023, https://www.politico.eu/article/netherlands-impose-restrictions-chips-export-to-china-asml/

[54] “Russia and China line up against US in ’no limits’ partnership,” The Times of India, February 4, 2022, http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/89351575.cms?from=mdr&utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst

[55] “National Threat Assessment-2019,” State Security Department of the Republic of Lithuania and Defence Intelligence and Security Service Under the Ministry of National Defence, 2019 https://www.vsd.lt/wp-content/uploads/2019/02/2019-Gresmes-internetui-EN.pdf

[56] Andrius Sytas, “Lithuania to support ‘those fighting for freedom’ in Taiwan,” Reuters, November 9, 2020, https://www.reuters.com/article/us-lithuania-china-idUSKBN27P1PQ

[57] “Lithuania says it will open trade office in Taiwan, China hits back,” ANI, March 5, 2021,

https://www.aninews.in/news/world/asia/lithuania-says-it-will-open-trade-office-in-taiwan-china-hits-back20210305165255/

[58] Kinling Lo, “Lithuania quit 17+1 because access to Chinese market did not improve, its envoy says,” South China Morning Post, June 1, 2021, https://www.scmp.com/news/china/diplomacy/article/3135522/lithuania-quit-171-because-access-chinese-market-did-not

[59] “National Threat Assessment-2023,” State Security Department of the Republic of Lithuania and Defence Intelligence and Security Service Under the Ministry of National Defence, 2023, https://kam.lt/wp-content/uploads/2023/03/Assessment-of-Threats-to-National-Security-2022-published-2023.pdf

[60] “National Threat Assessment-2023,” State Security Department of the Republic of Lithuania

[61] “National Threat Assessment-2023,” State Security Department of the Republic of Lithuania

[62] “The Electronics Communications Act,” National Defense Commission, Riga, Estonia, January 28, 2020, https://www.riigikogu.ee/tegevus/eelnoud/eelnou/0d2732e6-1877-42bd-9643-dfd304b6eaf1/Elektroonilise%20side%20seaduse%20muutmise%20seadus

[63] Stuart Lau, “Down to 14 + 1: Estonia and Latvia quit China’s club in Eastern Europe,” Politico, August 11, 2022, https://www.politico.eu/article/down-to-14-1-estonia-and-latvia-quit-chinas-club-in-eastern-europe/

[64] “International Security and Estonia 2023,” Estonian Foreign Intelligence Agency, 2023, https://raport.valisluureamet.ee/2023/en/

[65] “International Security and Estonia 2023”

[66] John Psaropoulos, “Greece and China hail strategic partnership, as US and EU look on,”  Al Jazeera, November 11, 2019, https://www.aljazeera.com/economy/2019/11/11/greece-and-china-hail-strategic-partnership-as-us-and-eu-look-on

[67] Philippe Le Corre, “Greece’s ambivalent romance with China,” Euractiv, October 25, 2021, https://www.euractiv.com/section/eu-china/opinion/greeces-ambivalent-romance-with-china/

[68] Plamen Tonchev, “Chinese Influence in Greece,” Center for European Policy Analysis, August 24, 2022, https://cepa.org/comprehensive-reports/chinese-influence-in-greece/.

[69] Philippe Le Corre, “Greece’s ambivalent romance with China”

[70] “Prime Minister Kyriakos Mitsotakis’ interview to Ben Hall at The Global Boardroom digital conference,” May 05, 2021, https://primeminister.gr/en/2021/05/05/26464.

[71] Eleni VarvitsiotiMartin ArnoldMary McDougall, “Greece’s ‘greatest turnround’: from junk to investment grade,” The Financial Times, May 14, 2023, https://www.ft.com/content/fcef4f83-f8db-4059-ae9b-34c4c871cb41.

[72] Perle Petit, “Sino-Hungarian Relations: Xi’S ‘Trojan Horse’ In The EU,” 9Dashline, November 15, 2023, https://www.9dashline.com/article/sino-hungarian-relations-xis-trojan-horse-in-the-eu

[73] Sebestyén Hompot, “Eastern Opening” Meets “Belt and Road”: State-Backed Narratives of Global Order in China-Hungary Relations,” Central European Institute of Asian Studies, August 8, 2023, https://ceias.eu/eastern-opening-meets-belt-and-road-state-backed-narratives-of-global-order-in-china-hungary-relations/.

[74] “Hungary sees Huawei as strategic partner despite security concerns,” Reuters, April 9, 2019, https://www.reuters.com/article/hungary-huawei/hungary-sees-huawei-as-strategic-partner-despite-security-concerns-idUSL8N21R430/

[75] Gabriela Greilinger, “China’s Growing Foothold in Hungary,” The Diplomat, February 27, 2023, https://thediplomat.com/2023/02/chinas-growing-foothold-in-hungary/

[76] Gabriela Greilinger, “China’s Growing Foothold in Hungary”

[77] Arendse Huld, “EU-China Relations – Trade, Investment, and Recent Developments,” China Briefing, April 4, 2023, https://www.china-briefing.com/news/eu-china-relations-trade-investment-and-recent-developments/

[78] Statistics Denmark, https://www.statbank.dk/BEC2M; The database of the Federal Statistical Office, Germany https://www-genesis.destatis.de/genesis/online?operation=abruftabelleBearbeiten&levelindex=1&levelid=1698210687418&auswahloperation=abruftabelleAuspraegungAuswaehlen&auswahlverzeichnis=ordnungsstruktur&auswahlziel=werteabruf&code=51000-0003&auswahltext=&wertauswahl=256&wertauswahl=253&wertauswahl=1308&wertauswahl=257&wertauswahl=254&wertauswahl=1307&werteabruf=Value+retrieval#abreadcrumb; “Sweden trade balance, exports and imports by country,” World Integrated Trade Solution, World Bank, https://wits.worldbank.org/CountryProfile/en/Country/SWE/Year/LTST/Summarytext; China - Trade and Investment Factsheet, Government of the UK, https://assets.publishing.service.gov.uk/media/652d4776d86b1b000d3a4ff5/china-trade-and-investment-factsheet-2023-10-19.pdf ; “Czech Republic trade balance, exports and imports by country,” World Integrated Trade Solution, World Bank, https://wits.worldbank.org/CountryProfile/en/Country/CZE/Year/LTST/TradeFlow/EXPIMP/Partner/by-country; “Country data -China,” General Directorate of Customs and Indirect Duties (DGDDI), the Department of Statistics and Foreign Trade Studies, Republic of France, https://lekiosque.finances.gouv.fr/site_fr/A129/data_brutes.asp?id=P50CN_Z5550_Z5500; “Department of Statistics and Foreign Trade Studies,” Estonia, https://data.stat.ee/profile/partner/cn/?locale=en#eksport; “International trade-import and export values,” Statistics Netherlands, The Netherlands, https://opendata.cbs.nl/#/CBS/en/dataset/70017eng/table?dl=95A23; Statistics from Embassy of Lithuania, New Delhi; “Greece trade balance, exports and imports by country,” World Integrated Trade Solution, World Bank, https://wits.worldbank.org/CountryProfile/en/Country/GRC/Year/2021/TradeFlow/EXPIMP/Partner/by-country; “Hungary trade balance, exports and imports by country,” World Integrated Trade Solution, World Bank, https://wits.worldbank.org/CountryProfile/en/Country/HUN/Year/2019/TradeFlow/EXPIMP

[79] “EU-China trade relations,” European Parliament, Plenary-October 2023,

https://www.europarl.europa.eu/RegData/etudes/ATAG/2023/753952/EPRS_ATA(2023)753952_EN.pdf

[80] Toby Sterling, “Dutch curb chip equipment exports, drawing Chinese ire,” Reuters, June 30, 2023, https://www.reuters.com/technology/amid-us-pressure-dutch-announce-new-chip-equipment-export-rules-2023-06-30/

[81] “MEPs refuse any agreement with China whilst sanctions are in place,” Press Release, EU Parliament, May 20, 2021, https://www.europarl.europa.eu/news/en/press-room/20210517IPR04123/meps-refuse-any-agreement-with-china-whilst-sanctions-are-in-place

[82] “The Chosen Few: A Fresh Look at European FDI in China”

[83] Agatha Kratz, Max J. Zenglein, Gregor Sebastian and Mark Witzke, “EV Battery Investments Cushion Drop To Decade Low: Chinese FDI in Europe: 2022 Update,” Rhodium Group and the Mercator Institute for China Studies (MERICS), May 2023, https://merics.org/sites/default/files/2023-05/merics-rhodium-group-chinese-fdi-in-europe-2022%20%281%29.pdf

[84] “EV Battery Investments Cushion Drop To Decade Low: Chinese FDI in Europe: 2022 Update,” May 2023

[85] “EV Battery Investments Cushion Drop To Decade Low: Chinese FDI in Europe: 2022 Update,” May 2023

[86] Charles Szumski and Clara Bauer-Babef, “France signs economic deals with China,” Euractiv, April 7, 2023, https://www.euractiv.com/section/politics/news/france-signs-economic-deals-with-china/

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Authors

Shairee Malhotra

Shairee Malhotra

Shairee Malhotra is Associate Fellow, Europe with ORF’s Strategic Studies Programme. Her areas of work include Indian foreign policy with a focus on EU-India relations, ...

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Ankita Dutta

Ankita Dutta

Ankita Dutta was a Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. Her research interests include European affairs and politics European Union and affairs Indian foreign policy ...

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