Author : Abhishek Sharma

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 07, 2024 Updated 0 Hours ago

चीन के द्वारा असर बनाने के बढ़ते अभियान चुनाव की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त उपायों को लागू करना अनिवार्य बनाते हैं.

चुनाव की सुरक्षा, इन्फ्लुएंस ऑपरेशन और इंडो-पैसिफिक: लोकतंत्र के लिए नई चुनौतियां

पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में लोकतांत्रिक देशों को अधिनायकवादी (टोटैलिटैरियन) देशों जैसे कि चीन और उत्तर कोरिया से पैदा ख़तरों के बारे में प्रकाश डाला गया है. इन दोनों देशों ने देश की नीति के हथियार के रूप में असंतुलित युद्ध (एसिमेट्रिक वॉरफेयर) के इस्तेमाल में महारत हासिल कर ली है. इसके अलावा जिस चीज़ ने कई लोगों को सतर्क कर दिया है वो है अभियानों के प्रदर्शन को बढ़ाने में जेनरेटिव AI जैसी नई उभरती तकनीकों का एकीकरण और न्यू मीडिया के ज़रिए बड़े पैमाने पर इनफ्लुएंस ऑपरेशन (IO) यानी अपना असर बढ़ाने के अभियान के टूल के तौर पर साइबर गतिविधियों का इस्तेमाल. इन घटनाक्रमों से लोकतांत्रिक देशों में ख़तरे की घंटी बजनी चाहिए और उन्हें चुनाव की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की व्यवस्था की ज़रूरत के बारे में फिर से सोचने के लिए मजबूर होना चाहिए. भारत इन्हें लेकर विशेष रूप से असुरक्षित है क्योंकि यहां बार-बार और लगातार चुनाव का चक्र चलता रहता है, ख़ास तौर पर लोकसभा चुनाव जो कई हफ़्तों तक चलता है. 

ये ऑपरेशन लोकतांत्रिक देशों में चुनाव की सुरक्षा के लिए एक ख़तरा हैं. ये सभी कार्रवाई लोकतांत्रिक देशों में नैरेटिव और बातचीत पर असर डालकर अपने हितों को बढ़ाने के चीन के व्यापक सामरिक लक्ष्यों का हिस्सा हैं. 

सामरिक लक्ष्यों को पूरा करने वाले साइबर ऑपरेशन

2024 में जारी माइक्रोसॉफ्ट की रिपोर्ट में बताया गया है कि निशाना बनाकर साइबर अभियान चलाने की प्रेरणा विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है. हालांकि क्षेत्रों के भीतर भी चीन की सरकार से जुड़े किरदारों के लिए साइबर अभियान चलाने के उद्देश्य से विशेष प्रेरणा हो सकती है. इनमें सैन्य, आर्थिक, राजनीतिक, खुफिया और सामाजिक दिलचस्पी शामिल हैं. उदाहरण के लिए, दक्षिणी प्रशांत के द्वीपों के साथ मज़बूत संबंध बनाना चीन के लिए एक आर्थिक और सामरिक प्रेरणा है. पापुआ न्यू गिनी के मामले में प्रेरणा पूरी तरह से आर्थिक हो सकती है क्योंकि ये बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है. दक्षिण कोरिया जैसे देशों में साइबर अभियान चलाने के कारण अलग हो सकते हैं

चीन के साइबर से जुड़े आकलन में सैन्य हित भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मिसाल के तौर पर, चीन की सरकार से जुड़े एक एक्टिविटी ग्रुप रास्पबेरी टायफून ने एक बड़े बहुपक्षीय समुद्री युद्ध अभ्यास से केवल एक हफ्ते पहले इंडोनेशिया और मलेशिया में सैन्य इकाइयों को निशाना बनाया. इसी तरह ख़तरा फैलाने वाले एक और किरदार (थ्रेट एक्टर) फ्लैक्स टायफून के द्वारा अमेरिका-फिलीपींस के सैन्य अभ्यासों पर निशाना साधना हमलों की लंबी सूची को और बड़ा करता है. इन सभी साइबर ऑपरेशन का मक़सद या तो संवेदनशील जानकारी या ऑपरेशन से जुड़ा विवरण हासिल करना है. हालांकि इन्फ्लुएंस ऑपरेशन साइबर स्पेस में इन ख़तरे से जुड़े किरदारों की भागीदारी का एक और तरीका है. ये ऑपरेशन लोकतांत्रिक देशों में चुनाव की सुरक्षा के लिए एक ख़तरा हैं. ये सभी कार्रवाई लोकतांत्रिक देशों में नैरेटिव और बातचीत पर असर डालकर अपने हितों को बढ़ाने के चीन के व्यापक सामरिक लक्ष्यों का हिस्सा हैं. 

इन्फ्लुएंस ऑपरेशन और चुनावों की सुरक्षा 

चीन का इन्फ्लुएंस ऑपरेशन (IO) लोकतांत्रिक देशों, जहां लोगों को बोलने की स्वतंत्रता और स्वतंत्र प्रेस जैसे मूलभूत अधिकार हासिल है, में नैरेटिव को तोड़ने-मरोड़ने का एक घातक हथियार बन गया है. इस पृष्ठभूमि में चीन डॉपलगैंगर, जो कि रूस से जुड़ा एक इनफ्लुएंस ऑपरेशन नेटवर्क है, जैसे दूसरे IO से प्रेरणा लेकर असरदार ढंग से परंपरागत और नए मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है

हाल के वर्षों में चीन के द्वारा IO के उपयोग की बढ़ती कोशिशों को उजागर करने वाला एक पैटर्न सामने आया है. मेटा की रिपोर्ट ने चीन से काम करने वाले स्पामोफ्लेज की पहचान मैनिपुलेटिव इन्फॉर्मेशन (भ्रामक सूचना) के दो सबसे बड़े स्रोतों में से एक के रूप में की है. ट्विटर (अब एक्स) और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया कंपनियों ने कथित तौर पर सरकार समर्थित या सरकार से जुड़े कई अकाउंट को बंद कर दिया है. इसके अलावा चीन की गतिविधियां दूसरे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म जैसे कि पिंट्रेस्ट, कोरा, वीमियो, रेडिट और इंस्टाग्राम पर भी देखी जा सकती हैं

अगर इन्हें चीन के व्यापक राजनीतिक उद्देश्यों के साथ जोड़ा जाए तो ये लोकतांत्रिक देशों के लिए काफी चिंताजनक हैं. 

ताइवान में देखा गया चीन का ज़्यादातर साइबर नाटक (थीएट्रिक्स) ग्रे-ज़ोन टैक्टिक्स (चालबाज़ी) है. उदाहरण के लिए, 2024 में ताइवान के चुनाव के दौरान मतदान से 24 घंटे पहले ताइवान के ख़िलाफ़ साइबर हमले तेज़ी से बढ़ गए. माना जाता है कि ये चीन केमो हीअभ्यास का हिस्सा है जो सोवियत युग के दौरान राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सूचना इकट्ठा करने की रणनीति से प्रभावित है. इस अभ्यास का ज़िक्र 2024 की अमेरिकी खुफिया समीक्षा रिपोर्ट में भी किया गया है जो चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन को रूस की पटकथा से प्रभावित बताती है. रिपोर्ट में आगे ये भी उजागर किया गया है कि चीन अमेरिका में सामाजिक बंटवारे का लाभ उठाने, राजनीतिक संस्थानों को बदनाम करने, लोगों के संवाद को अपने मुताबिक ढालने और अमेरिकी नेतृत्व को लेकर संदेह पैदा करने की कोशिश कर रहा है. अगर इन्हें अलग-थलग देखा जाए तो इनमें से ज़्यादातर चालबाज़ी बिना किसी नुकसान के लग सकती है. हालांकि अगर इन्हें चीन के व्यापक राजनीतिक उद्देश्यों के साथ जोड़ा जाए तो ये लोकतांत्रिक देशों के लिए काफी चिंताजनक हैं. 

रिपोर्ट में उल्लेख किए गए एक और देश दक्षिण कोरिया पर भी चीन के थ्रेट एक्टर्स के द्वारा निशाना साधा गया है. इसका उद्देश्य फुकुशिमा परमाणु प्लांट का वेस्टवॉटर जारी करने के जापान के फैसले को लेकर लोगों की सोच को प्रभावित करना था. हालांकि ये कोई पहली बार नहीं था जब दक्षिण कोरिया में चीन की गतिविधियों को बढ़ाया गया था. पिछले साल ऐसी ख़बरें आईं थीं कि चीन की दो पब्लिक रिलेशन कंपनियां कोरियाई भाषा में 38 फर्ज़ी न्यूज़ वेबसाइट (मॉक न्यूज़ साइट) चला रही थीं जिनका उद्देश्य चीन और अमेरिका को लेकर लोगों की राय में जोड़-तोड़ करना था. साइबर इन्फ्लुएंस की इन घटनाओं के अलावा दक्षिण कोरिया ने सियोल और जेजू आईलैंड में चीन के द्वारा चलाए जा रहे पुलिस स्टेशन की पहचान भी की थी. ये पुलिस स्टेशनघरेलू नीतियों में दखल या लोगों की राय को मोड़नेऔरखुफिया जानकारी इकट्ठा करनेके लिए बनाए गए थे. दक्षिण कोरिया में हंगामे के बाद इन पुलिस थानों को सरकार के द्वारा बंद कर दिया गया

भारत के मामले में चीन अलग-अलग तरीकों के ज़रिए पारंपरिक रूप से IO में शामिल रहा है, चाहे वो पत्रकारों के माध्यम से चलाना हो, शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को लुभाना हो या मुख्यधारा के अख़बारों को अपना राजनीतिक नैरेटिव पेश करने के लिए पैसे देना हो. हालांकि तकनीक के दबदबे वाली दुनिया में पश्चिमी देशों की तुलना में भारत के सोशल मीडिया के संवाद में चीन बहुत ज़्यादा विस्तार करने में सफल नहीं रहा है. इसका कारण चीन की गतिविधियों पर कार्रवाई में बढ़ोतरी और चीन के सोशल मीडिया न्यूज़ एप्लिकेशन पर पाबंदी है. लेकिन लाभ उठाने के तरीकों में कमी के साथ चीन अब अपने IO के लिए मौजूदा सोशल मीडिया इकोसिस्टम जैसे कि एक्स और यूट्यूब का इस्तेमाल करने के बारे में सोच रहा है. मौजूदा समय में IO के ज़रिए भारत के चुनाव में चीन के हस्तक्षेप के पैमाने और दायरे पर रिसर्च नहीं की जा रही है. लेकिन ये सरकार के लिए बड़ी चिंता बनी हुई है. पूर्व चुनाव आयुक्त अनूप चंद्रा ने कहा थासाइबर हमले और इन्फॉर्मेशन इन्फ्लुएंस ऑपरेशन चुनाव से जुड़े बुनियादी ढांचे और चुनावी ईमानदारी को लेकर सोच के बारे में बड़े ख़तरे बनते जा रहे हैं.” हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये थ्रेट एक्टर मौजूदा राजनीतिक मतभेदों का लाभ उठाएंगे. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर राजनीतिक असहमति का होना एक ऐसा मुद्दा है जिनका ये थ्रेट एक्टर आसानी से फायदा उठा सकते हैं. 

AI सक्षम IO और चुनाव

IO को लेकर एक महत्वपूर्ण मुद्दा इसकी पहुंच और यूज़र का ध्यान आकर्षित करने में सुधार के लिए AI का उपयोग है. इन टूल का इस्तेमाल करके लोकप्रिय प्लैटफॉर्म पर कई अकाउंट ने लोगों से जुड़ने के मामले में बड़ी सफलता हासिल की है. जेनरेटिव AI जैसे AI के उपयोग के साथ ये IO अधिक ख़तरनाक बन गए हैं क्योंकि तस्वीरों के मामले में आकर्षक कंटेंट बनाने की इनकी क्षमता में काफी सुधार हो गया है. इसकी वजह से इन अकाउंट के ज़रिए प्रोपगैंडा फैलाना आसान हो गया है; व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले लोग अबपूरे साल अधिक मात्रा में और बार-बारदुष्प्रचार फैला सकते हैं जो पहले नहीं हो पाता था. इस तरह ये नई पीढ़ी के युवाओं (GenZ) के बीच इसके बढ़ते असर को दिखाता है. इस तरह के AI एप्लिकेशन अमेरिका में टिकटॉक ऐप के मामले में देखे गए थे जहां इसका इस्तेमाल दोनों तरफ के अमेरिकी राजनेताओं पर निशाना साधने के लिए किया गया. इसके अलावा चीन के APT (एडवांस्ड परसिस्टेंट थ्रेट) ने फिशिंग के ज़रिए बाइडेन के कैंपेन से जुड़े स्टाफ पर भी निशाना साधा है. इसी तरह ताइवान के चुनाव के दौरान स्टॉर्म 1376, जिसे स्पॉमोफ्लेज या ड्रैगनब्रिज के नाम से भी जाना जाता है, जैसे थ्रेट एक्टर्स ने AI का इस्तेमाल किया. विदेशी चुनाव को प्रभावित करने के लिए किसी सरकार के साथ जुड़े किरदार को लेकर ये पहला मामला था. मेटा ने इन गतिविधियों को चीन की सरकारी एजेंसियों के साथ जुड़ा बताया है

AI सक्षम डीपफेक IO में एक और चुनौती के रूप में उभरा है, इसकी वजह से फेक कंटेंट बनाना आसान हो गया है.

AI सक्षम डीपफेक IO में एक और चुनौती के रूप में उभरा है, इसकी वजह से फेक कंटेंट बनाना आसान हो गया है. इसके अलावा AI सक्षम मीम, AI जेनरेटेड एंकर और AI से बेहतर बनाए गए वीडियो ने भी चीन की IO से जुड़ी चालबाज़ी में जगह बना ली है. ताइवान के चुनाव में स्टॉर्म 1376 जैसे किरदार ने AI सक्षम ऑडियो का इस्तेमाल किया. चुनाव के दिन लोगों के वोट डालने पर असर के लिए अरबपति कारोबारी टेरी गॉ के द्वारा किसी उम्मीदवार का समर्थन करने के मामले में ये देखा गया. इसी तरह ताइवान के उप राष्ट्रपति लाई चिंग-ते की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से अफवाह फैलाने के लिए एक डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल किया गया

आगे का रास्ता 

चुनाव के इकोसिस्टम, जो इन नुकसानदेह दखल के लिए नया बना हुआ है, की कमज़ोरी की वजह से काफी हद तक थ्रेट एक्टर्स के द्वारा चुनाव को निशाना बनाया जाता है. कुशल कर्मचारियों की कमी, सुरक्षा के कमज़ोर उपायों, तेज़ी से जवाब देने वाली व्यवस्था की अनुपस्थिति और बजट से जुड़ी मजबूरियों ने चुनाव को साइबर हमलों और IO के लिए एक आसान निशाना बना दिया है. लेकिन सार्वजनिक और निजी बुनियादी ढांचे में पर्याप्त निवेश, जिसका उद्देश्य डिजिटल मीडिया से जुड़ी साक्षरता और डिजिटल जागरूकता बढ़ाना हो, से इसका समाधान किया जा सकता है. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कई हितधारकों की भागीदारी के द्वारा इसे बढ़ाया जा सकता है. वैसे तो ये उम्मीद की जाती है कि आने वाले समय में चीन और उत्तर कोरिया के द्वारा चुनावों में दखल देने की और कोशिशें होंगी लेकिन समान विचार वाले देशों के बीच नज़दीकी तालमेल और सूचनाओं को साझा करके लोकतांत्रिक समाज पर ख़तरे को कम किया जा सकता है. इस उद्देश्य से चुनाव के लिए साइबर सुरक्षा से जुड़े समाधानों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी यानी हमारे चुनाव के डिजिटल इकोसिस्टम के सामर्थ्य को बढ़ाना होगा, बिग टेक (IT उद्योग की बड़ी कंपनियों) और चुनाव अभियानों के बीच आपसी विचार-विमर्श की फिर से समीक्षा करनी होगी और प्रमुख किरदारों जैसे कि बिग टेक, रेगुलेटर और सरकारों के बीच तालमेल बिठाना होगा


अभिषेक शर्मा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं

 

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