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Published on Feb 28, 2025 Updated 0 Hours ago

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और म्यांमार में अस्थिरता की वजह से इन पड़ोसी देशों में भारत की कई कनेक्टिविटी परियोजनाओं रुक गई है और इस वजह से भारत को अपनी एक्ट ईस्ट और नेबरहुड फर्स्ट नीतियों के मकसद को हासिल करने में कई अड़चनों से जूझना पड़ रहा है.

नॉर्थ ईस्ट और कनेक्टिविटी: भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’और एक्ट ‘ईस्ट नीति’ के सामने चुनौतियाँ

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पिछले दशक में भारत की विदेश नीति में नॉर्थ ईस्ट के इलाक़े को सबसे अधिक तवज्जो दी गई है. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में आठ राज्य हैं.[1] इसके अलावा पूर्वोत्तर की सीमाएं भारत के पांच पड़ोसी देशों से सटी हुई हैं.[2] कहने का मतलब है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र की भू-रणनीतिक स्थिति बेहद अहम है, जिसे न केवल भारत की पड़ोसी प्रथम नीति को आगे बढ़ाते के वक़्त बखूबी समझा गया था, बल्कि वर्ष 2014 में जब एक्ट ईस्ट पॉलिसी लाई गई थी, तब भी इस क्षेत्र के सामरिक महत्व को महसूस किया गया था. भारत की एक्ट ईस्ट नीति का उद्देश्य पूर्वी क्षेत्र में मौज़ूद पड़ोसी मुल्कों के साथ पारस्परिक रिश्तों को सशक्त करना है. भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र न सिर्फ़ दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को भारत के बाक़ी हिस्सों से जोड़ने का काम करता है, बल्कि बांग्लादेश की काफ़ी लंबी तटीय सीमा से जुड़ा हुआ है. इसके इलावा नेपाल और भूटान को बंगाल की खाड़ी तक पहुंच स्थापित करने के लिए भी यह पुल की तरह काम करता है.

 पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस इलाक़े में सक्रिय विद्रोही गुटों के साथ बातचीत का दौर शुरू किया गया और भारत सरकार ने उनके साथ शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए.

कई वर्षों तक भारत का पूर्वोत्तर का इलाक़ा राजनीतिक उथल-पुथल और जातीय हिंसा की चपेट में रहा. इतना ही नहीं, रणनीतिक लिहाज़ के बेहद अहम इस क्षेत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस इलाक़े में सक्रिय विद्रोही गुटों के साथ बातचीत का दौर शुरू किया गया और भारत सरकार ने उनके साथ शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इससे धीरे-धीरे पूर्वोत्तर में स्थिरता का दौर शुरू हुआ और वहां विकास से जुड़ी पहलें शुरू करने का रास्ता साफ हुआ. इसके साथ ही इस क्षेत्र की भू-रणनीतिक और भू-राजनीतिक संभावनाओं का लाभ उठाने की शुरुआत भी हुई. पूर्वोत्तर राज्यों और पड़ोसी देशों के बीच तमाम साझा परियोजनाओं के निर्माण को लेकर समझौते हुए, जिनमें से ज़्यादातर कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से जुड़ी परियोजनाएं थीं. ज़ाहिर है कि रिश्तों की मज़बूती के लिए सुगम कनेक्टिविटी सबसे पहली और बुनियादी ज़रूरत होती है. इसी से आपसी व्यापार और ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग का रास्ता तैयार होता है. लेकिन पूर्वोत्तर के साथ ही पड़ोसी देशों बांग्लादेश और म्यांमार में अशांति के बादल फिर से घिर जाने की वजह से नॉर्थ ईस्ट और पड़ोसी मुल्कों के बीच चल रहीं कई द्विपक्षीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं में रुकावट पैदा हो गई हैं. पूर्वोत्तर और उसकी सीमा से जुड़े राष्ट्रों में जिस प्रकार से अस्थिरता का माहौल बना हुआ है, उसके मद्देनज़र वहां चल रहीं विकास व कनेक्टिविटी परियोजनाओं की ज़मीनी हक़ीक़त और उनके भविष्य पर गहराई से सोचने की जरूरत है.

 

भारत-बांग्लादेश कनेक्टिविटी के सामने खड़ी चुनौतियां

भारत के चार पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश से सटी हुई है.[3] यह चारों तरफ भूमि से घिरे इस क्षेत्र को यानी लैंड लॉक्ड रीजन को भारत के बाक़ी हिस्सों से बेहतर सड़क संपर्क उपलब्ध कराता है, साथ ही दूसरे देशों के साथ व्यापार करने के लिए बंगाल की खाड़ी तक समुद्री पहुंच भी प्रदान करता है. बीते 15 वर्षों में देखा जाए तो भारत सरकार और बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार के बीच रिश्ते काफ़ी प्रगाढ़ थे और दोनों देशों ने मिलकर कई कनेक्टिविटी परियोजनाएं शुरू की. भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों के इस दौर को द्विपक्षीय संबंधों का “स्वर्णिम काल” कहा जाता है. भारत द्वारा बांग्लादेश में चल रही विकास परियोजनाओं में 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया है और भारत इस प्रकार बांग्लादेश का सबसे प्रमुख विकास भागीदार देश बनकर उभरा है. अगस्त 2024 में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन हो गया और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना मुल्क छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी. इसके बाद मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया है. बांग्लादेश में अचानक मची इस राजनीतिक उथल-पुथल ने दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को पूरी तरह से बदल दिया है. फिलहाल भारत और बांग्लादेश के संबंधों में तल्खी बनी हुई है. वहीं बांग्लादेश में सत्ता पर काबिज लोगों के भारत विरोधी बयानों और पूर्व पीएम शेख हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर चल रही खींचतान ने दोनों देशों के तल्ख रिश्तों को और ख़राब किया है. इन हालातों में दोनों देशों के बीच चल रही कनेक्टिविटी परियोजनाओं का भविष्य अधर में लटक गया है.

 

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत को बांग्लादेश के चटगांव और मोंगला पोर्ट्स के अधिक से अधिक इस्तेमाल की मंजूरी दी थी, ताकि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को समुद्री मार्गों के जरिए व्यापार की सुविधा मिल सके. इसके बाद, जून 2024 में भारत को मोंगला बंदरगाह पर एक टर्मिनल के संचालन का अधिकार मिला था. बांग्लादेश के खुलना से मोंगला पोर्ट तक सुगम कनेक्टिविटी के लिए भारत ने खुलना-मोंगला बंदरगाह रेल लिंक परियोजना के निर्माण को वित्तपोषित किया है. इस रेल लिंक परियोजना को निर्माण का मकसद पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच लॉजिस्टिक से जुड़ी दिक़्क़तों को दूर करना और माल ढुलाई की लागत में कमी लाना है. इस रेल लिंक पर अभी मालगाड़ियों की आवाजाही शुरू नहीं हुई है. इसके अलावा, बांग्लादेश में आशुगंज इनलैंड कंटेनर पोर्ट के विकास में भी भारत मदद कर रहा है, लेकिन इसके निर्माण पर भी फिलहाल रोक लगा दी गई है. आशुगंज बंदरगाह बनने से भारत के त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच हाल ही में शुरू किए गए अखौरा-अगरतला रेल लिंक का पूरा लाभ उठाया जा सकेगा, जिससे त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच व्यापार में बढ़ोतरी होगी.

 कहने का मतलब है कि बांग्लादेश में नई सरकार आने के बाद से दोनों देशों की सीमाएं बंद हुई हैं, कस्टम क्लीयरेंस यानी सीमा शुल्क से जुड़े मुद्दे खड़े हुए हैं और सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई हैं. इन सब कारणों से दोनों देशों के बीच वस्तुओं के निर्बाध आयात-निर्यात में रुकावटें आई हैं.

इस प्रकार से देखा जाए तो बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश के बीच व्यापार में कमी दर्ज़ की गई है. कहने का मतलब है कि बांग्लादेश में नई सरकार आने के बाद से दोनों देशों की सीमाएं बंद हुई हैं, कस्टम क्लीयरेंस यानी सीमा शुल्क से जुड़े मुद्दे खड़े हुए हैं और सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई हैं. इन सब कारणों से दोनों देशों के बीच वस्तुओं के निर्बाध आयात-निर्यात में रुकावटें आई हैं. आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की ओर से बांग्लादेश को किए जाने वाले निर्यात में अप्रैल से अक्टूबर 2023 के बीच 13.3 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि आयात में 2.3 प्रतिशत की कमी दर्ज़ की गई है. यहां तक कि निर्माण से जुड़ी गतिविधियों के सबसे व्यस्ततम समय में भी कोलकाता बंदरगाह के ज़रिए भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट से फ्लाई ऐश के निर्यात में भी 15 से 25 प्रतिशत की कमी आई है. भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित बेनापोल-पेट्रापोल लैंड पोर्ट पर एक समय ज़बरदस्त भीड़ भाड़ रहती थी और दोनों देशों के बीच क़रीब 30 प्रतिशत द्विपक्षीय व्यापार वहीं से होता था, लेकिन अब वहां सन्नाटा पसरा हुआ है और आवाजाही काफ़ी कम हो गई है. इस लैंड पोर्ट पर छाए सन्नाटे की वजह से, रोजी-रोटी के लिए वहां पर निर्भर लोगों की परेशानी बहुत बढ़ गई है. भारत और बांग्लादेश के बीच चलने वाले तीन ट्रेनों, यानी मैत्री एक्सप्रेस (कोलकाता-ढाका), बंधन एक्सप्रेस (कोलकाता-खुलना) और मिताली एक्सप्रेस (सिलीगुड़ी-ढाका) का संचालन भी जुलाई 2024 के बाद से रोक दिया गया है. ट्रेनों का संचालन बंद होने से दोनों देशों के बीच आने-जाने वाले लोगों को परेशानी हो रही हैं और कनेक्टिविटी पर भी बुरा असर पड़ा है. दोनों देशों के बीच बस सेवाएं और सार्वजनिक परिवहन के दूसरे माध्यम उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में दोनों में आवाजाही के लिए निजी वाहनों का ही विकल्प बचा है. नतीज़तन निजी वाहन संचालक सीमा पार आवाजाही करने वालों से बहुत ज़्यादा रकम वसूल रहे हैं.

 

भारत और बांग्लादेश ने पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए जो आख़िरी साझा वक्तव्य [4] जारी किया था, ज़ाहिर है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद उसमें शामिल किए गए प्रस्तावों को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. इस अंतिम साझा वक्तव्य में क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश-भूटान-इंडिया-नेपाल (BBIN) मोटर व्हीकल एग्रीमेंट को ज़ल्द से ज़ल्द चालू करने की बात कही गई थी, लेकिन अब यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया है. इसी प्रकार से भारत और बांग्लादेश के बीच माल ढुलाई को सुगम बनाने के लिए गेदे (भारत) से चिलाहाटी (बांग्लादेश) और हल्दीबाड़ी (भारत) होते हुए दर्शना (बांग्लादेश) तक मालगाड़ियों को चलाने पर सहमति बनी थी. साथ ही इन गुड्स ट्रेन सर्विसेज को भारत-भूटान सीमा पर दलगांव (असम) से होते हुए हसीमारा (भूटान के पास स्थित भारतीय सीमावर्ती कस्बे) तक बढ़ाने पर भी रज़ामंदी हुई थी. यह समझौता भी खटाई में पड़ गया है. दोनों देशों के बीच ज़मीनी संपर्क की बात तो छोड़ ही दीजिए, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद द्विपक्षीय व्यापार के लिए सीमा पार बीबीआईएन-एमवीए लाइसेंस के डिजिटलीकरण और भारती एयरटेल एवं जियो इन्फोकॉम जैसी भारतीय टेलीकॉम कंपनियों द्वारा 4जी/5जी सेवाओं की शुरुआत के ज़रिए दोनों देशों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाने से संबंधित योजनाएं भी परवान नहीं चढ़ पाई हैं.

 

ज़ाहिर है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य रणनीतिक लिहाज़ से बेहद अहम हैं और उनमें अपार संभावनाएं मौज़ूद हैं, लेकिन भारत द्वारा इनका लाभ उठाने के लिए ढाका की मदद बेहद ज़रूरी है. यानी वर्तमान में बांग्लादेश में पैदा हुई चुनौतियां भारत द्वारा इन संभावनाओं का लाभ उठाने के आड़े आ गई हैं. इतना ही नहीं, बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर स्थित म्यांमार के रखाइन प्रांत पर विद्रोही गुट अराकान आर्मी (AA) ने कब्ज़ा कर लिया है और इसने भारत के लिए हालातों को और ज़्यादा पेचीदा बना दिया है.

 

म्यांमार की विकट परिस्थितियां और भारत की मुश्किलें

 

विद्रोही अराकान आर्मी (AA) ने म्यांमार के रखाइन प्रांत के 18 में से 15 शहरों को अपने कब्ज़े में ले लिया है. इसके साथ ही अराकान आर्मी ने बांग्लादेश से लगी बड़ी सीमा को भी अपने नियंत्रण में ले लिया है. इसके अलावा AA ने म्यांमार के चीन प्रांत के पलेतवा पर भी कब्ज़ा कर लिया है. यह पूरा क्षेत्र म्यांमार में भारत के कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP) के लिहाज़ से बेहद अहम है. भारत की म्यांमार के साथ ऐसी कई कनेक्टिविटी परियोजनाएं हैं, जो मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को म्यांमार से जोड़ने का काम करती हैं. ज़ाहिर है कि ये परियोजनाएं भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और बिम्सटेक यानी बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन जैसी व्यापक क्षेत्रीय एवं उप-क्षेत्रीय पहलों का अटूट हिस्सा है.

 

भारत की KMMTTP परियोजना के तहत आने वाले सितवे बंदरगाह को 2023 में चालू कर दिया गया था और 2024 में भारत ने इस पर अपना नियंत्रण कर लिया. बावज़ूद इसके म्यांमार में अस्थिरता की वजह से भारत को कई चुनौतियां से जूझना पड़ रहा है और KMMTTP को आगे बढ़ाने में दिक़्क़तें आ रही हैं. जिस प्रकार से अराकान आर्मी ने चीन के युद्ध विराम प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है, उससे स्पष्ट है कि इस इलाक़े में संघर्ष लंबा चलेगा और जिसके चलते आपूर्ति श्रृंखलाओं को चालू रखने एवं लॉजिस्टिक्स की राह में तमाम बाधाएं पैदा होंगी. म्यांमार में भारत के राजदूत अभय ठाकुर ने जनवरी 2025 में सितवे पोर्ट का दौरा किया था, जो बताता है कि भारत न सिर्फ़ इन चुनौतियों को देख-समझ रहा है, बल्कि इनसे पार पाने की कोशिशों में भी जुटा है.

 

तमाम क़ानूनी अड़चनों और लॉजिस्टिक से जुड़े मसलों की वजह से KMMTTP परियोजना का एक अहम रोड लिंक प्रोजेक्ट यानी 109 किलोमीटर लंबा पलेतवा-ज़ोरिनपुई हाईवे के निर्माण का कार्य भी अधूरा पड़ा है. म्यांमार में अस्थिरता एवं सुरक्षा के ख़तरों के कारण अब इसके पूरे होने में तमाम मुश्किल पैदा हो गई हैं. हालांकि, अराकान आर्मी ने शुरुआत में KMMTTP का विरोध किया था, लेकिन अब स्थानीय हितों को देखते हुए इस महत्वाकांक्षी परियोजना का समर्थन करता नज़र आ रहा है. बावज़ूद इसके, जिस प्रकार से इस इलाक़े में जुंटा की तरफ से हवाई हमले किया जा रहे हैं और AA के साथ लड़ाई चल रही है, ऐसे में KMMTTP परियोजना की प्रगति में रोड़े बने हुए हैं. भारत की इंडियन रेलवेज कंस्ट्रक्शन इंटरनेशनल (IRCON) कंपनी ने निर्माण से जुड़े पिछले सभी अनुबंधों को समाप्त करने के बाद, वहां नए सिरे से निर्माण कार्य शुरू किया है और इसके लिए स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी की है. लेकिन म्यांमार में जारी अस्थिरता के कारण परियोजना निर्माण में लगातार देरी हो रही है.

 भारत की इंडियन रेलवेज कंस्ट्रक्शन इंटरनेशनल (IRCON) कंपनी ने निर्माण से जुड़े पिछले सभी अनुबंधों को समाप्त करने के बाद, वहां नए सिरे से निर्माण कार्य शुरू किया है और इसके लिए स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी की है. 

इसके अतिरिक्त, भारत में भी तमाम दिक़्क़तें हैं, जिनकी वजह से KMMTTP परियोजना मे देरी हो रही है. जैसे कि मिज़ोरम में बुनियादी ढांचा पर्याप्त नहीं है, साथ ही ज़मीन से जुड़े विवादों का समाधान नहीं होने से प्रोजेक्ट में देरी हो रही है. इसके अलावा मिज़ोरम में ज़ोरिनपुई को लॉन्गतलाई और आइजोल से जोड़ने वाले प्रमुख राजमार्गों को भी अपग्रेड करने की ज़रूरत है, ताकि वाहनों की बढ़ती तादाद को संभाला जा सके. भारत और म्यांमार में KMMTTP परियोजना के सामने खड़ी इन साझा चुनौतियों का समाधान तलाशने पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है. इन समस्याओं को जितनी ज़ल्दी निपटा लिया जाएगा, उतनी ज़ल्दी कलादान कॉरिडोर बनकर तैयार होगा और इस पर गाड़ियां चलनी शुरू हो जाएंगी.

 

इसी तरह से IMT-TH परियोजना यानी इंडिया-म्यांमार-थाईलैंड ट्रिलैटरल हाइवे परियोजना का मकसद भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को म्यांमार के ज़रिए थाईलैंड से जोड़ना है. यह परियोजना भी रीजनल कनेक्टिविटी, व्यापार और सामाजिक-आर्थिक एकीकरण के लिहाज़ से उतनी ही अहम है. आगे चलकर इस हाईवे परियोजना का कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और संभावित रूप से बांग्लादेश तक विस्तार करने का प्रस्ताव भी है, जो दिखाता है कि सामरिक नज़रिए से यह परियोजना कितनी ज़्यादा महत्वपूर्ण है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 2024 में इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) के साथ IMT-TH परियोजना को जोड़ने पर बल दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने तब इस परियोजना को न केवल हिंद महासागर में ज़मीनी संपर्क को सशक्त करने वाला बताया था, बल्कि पैसिफिक और अटलांटिक को जोड़ने की इसकी क्षमता का भी उल्लेख किया था. 

 

आईएमटी-टीएच परियोजना का 70 फीसदी कार्य पूरा हो चुका है, लेकिन म्यांमार में अस्थिरता और मणिपुर में चल रहे जातीय टकराव की वजह से इस हाईवे के पूरे होने में मुश्किलें आ रही हैं. इसके अलावा, इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण से जुड़ी तमाम चुनौतियां भी हैं, जैसे कि तामू-क्यिगोन-कलेवा रोड पर 69 पुराने पुलों की जगह पर नए पुलों का निर्माण करने एवं यार गी सेक्शन पर निर्माण की धीमी गति, हाईवे के तेज़ निर्माण में रोड़ा बनी हुई हैं. ज़ाहिर है कि यार गी सेक्शन पर सिर्फ़ 25 प्रतिशत काम ही हो पाया है. भारत सरकार इन परियोजनाओं के निर्माण में आने वाली परेशानियों को दूर करने एवं इनकी पुख्ता सुरक्षा के लिए म्यांमार के जुंटा शासन के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए है. इसके अलावा भारत सरकार ने हाल ही में इसके लिए म्यांमार के एथनिक आर्म्ड ऑर्गेनाइजेशन (EAOs) और नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) के साथ भी बातचीत शुरू की है.

 

जिस प्रकार से म्यांमार में अस्थिरता फैली हुई है वहां विभिन्न गुटों के बीच संघर्ष चल रहा है, ऐसे में वहां के हिंसा प्रभावित इलाक़ों में चल रही कनेक्टिविटी परियोजनाओं के सामने व्यापक स्तर पर सुरक्षा चुनौतियां बनी हुई हैं. कहने का मतलब है कि मौज़ूदा हालातों में KMMTTP प्रोजेक्ट और IMT-TH परियोजना का निर्माण इस बात पर निर्भर करता है कि म्यांमार में घरेलू परिस्थितियां कब तक सामान्य होती हैं. साथ ही यह इस पर भी निर्भर करता है कि भारत कितनी सफलता के साथ पेचीदा भू-राजनीतिक हालातों के बीच तालमेल स्थापित करते हुए इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं की सुरक्षा और निर्बाध निर्माण सुनिश्चित करता है. 

 

निष्कर्ष

भारत के लिए अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी और नेबरहुड फर्स्ट नीतियों का मकसद पूरा करने के लिहाज़ से पूर्वोत्तर का क्षेत्र हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. निसंदेह तौर पर बांग्लादेश और म्यांमार में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से इस इलाक़े में चल रही सीमापार कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर असर पड़ा है, इनमें IMT-TH परियोजना और कलादान कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट भी शामिल हैं. ज़ाहिर है कि पड़ोसी देशों में अस्थिरता के कारण नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में विस्थापित नागरिकों की संख्या बढ़ती है, साथ ही विद्रोही गतिविधियों में इज़ाफा होता है और सीमा पार तस्करी की घटनाओं में भी वृद्धि होती है. यानी कुल मिलाकर सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं पैदा होती हैं. पड़ोसी देशों में अस्थिरता के कारण भारत के पेट्रापोल (पश्चिम बंगाल) और दावकी (मेघालय) जैसे प्रमुख लैंड पोर्ट्स के ज़रिए होने वाले व्यापार में रुकावट आ रही हैं, वहीं बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश पर भी आशंका के बादल मंडरा रहे हैं. इसके अलावा, म्यांमार के डांवाडोल राजनीतिक हालातों ने न सिर्फ़ सीमावर्ती मोरे (मणिपुर) और जोखाव्थर (मिज़ोरम) के ज़रिए होने वाले व्यापार को सीमित कर दिया है, बल्कि सीमांत इलाक़ों में चल रही कई अहम सड़क और रेल परियोजनाओं के कार्यान्वयन में भी देरी की है. निसंदेह तौर पर इन परियोजनाओं में देरी होने से क्षेत्रीय स्तर पर कनेक्टिविटी मज़बूत करने के प्रयासों को झटका लगा है.

 भारत को इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए न सिर्फ़ सीमावर्ती इलाक़ों में विपरीत हालातों को काबू करते हुए अपनी स्थिति को सशक्त करना है, बल्कि पड़ोसी देशों में अपने हितों को साधने के लिए कूटनीतिक कोशिशों में भी तेज़ी लानी होगी

भारत को इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए न सिर्फ़ सीमावर्ती इलाक़ों में विपरीत हालातों को काबू करते हुए अपनी स्थिति को सशक्त करना है, बल्कि पड़ोसी देशों में अपने हितों को साधने के लिए कूटनीतिक कोशिशों में भी तेज़ी लानी होगी और इसके साथ ही लचीला बुनियादी ढांचा विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा. गौरतलब है कि भारत के लिए म्यांमार व बांग्लादेश में चल रही रेल व सड़क संपर्क परियोजनाओं की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चत करना पूर्वोत्तर राज्यों में अर्थिक विकास को बरक़रार रखने के लिए ही नहीं ज़रूरी हैं, बल्कि अपनी पड़ोसी प्रथम और एक्ट ईस्ट नीति के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए भी बेहद अहम है.


सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

श्रीपर्णा बनर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

अनसुइया बसु राय चौधरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के नेबरहुड इनिशिएटिव में सीनियर फेलो हैं.


[1] भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्य असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम हैं.

[2] भारत के नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र की सीमा पांच पड़ोसी देशों से लगती है: बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, भूटान, चीन.

[3] बांग्लादेश की सीमा भारत के चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, त्रिपुरा, मिजोरम और मणिपुर से लगती है.

[4] बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में भारत और बांग्लादेश सरकार के बीच अंतिम ज्वाइंट स्टेटमेंट यानी संयुक्त वक्तव्य 22 जून 2024 को जारी किया गया था.

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Authors

Sohini Bose

Sohini Bose

Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...

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Sreeparna Banerjee

Sreeparna Banerjee

Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...

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Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury is Senior Fellow with ORF’s Neighbourhood Initiative. She is the Editor, ORF Bangla. She specialises in regional and sub-regional cooperation in ...

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