साल 2009 में विकसित देशों ने इस बात की प्रतिबद्धता जताई कि वो साल 2020 में विकसित देशों में पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों के लिए 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पूंजी का इतंजाम करेंगे. और इस ज़िम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा पूरा करने के लिए मल्टीलैटरल बैंकों को चुना गया था.
पर्यावरण जैसे मुद्दे पर कार्यक्रमों के लिए पूंजी जुटाना और उसे दुनिया भर में गतिशील करना प्राथमिक तौर पर काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि (1) इस अवधारणा को लेकर अभी तक निरंतरता और सहमति की कमी है (2) वित्तीय मामलों की रिपोर्टिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मानक और नियमों का अभाव होना.
कई एमडीबी – जैसे अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, यूरोपियन बैंक फॉर रिकन्सट्रक्शन एंड डेवलपमेंट, यूरोपियन इनवेस्टमेंट बैंक, इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक ग्रुप, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक, और वर्ल्ड बैंक ग्रुप – इस समस्या को ख़त्म करने के लिए एक साथ एक मंच पर आए. और क्लाइमेट चेंज को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट गतिविधियों को अपनाकर इस लक्ष्य को हासिल करने की योजना तैयार की गई. विभाग तय करने की प्रक्रिया का इस्तेमाल बैंक के द्वारा पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रम को वित्तीय सहयोग देने के आधार पर पोर्टफोलियो तय करने में किया गया. इन प्रक्रियाओं को एमडीबी और अंतरराष्ट्रीय डेवलपमेंट फाइनेंस क्लब द्वारा साल 2015 में सामान्य सिद्धान्तों पर साझा सहमति बनने के बाद रेखांकित किया गया जिसका मक़सद पर्यावरण कार्यक्रमों के लिए पूंजी को ट्रैक करना था.
साल 2019 में विकसित देशों में पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने के पहले के स्तर में बढ़ृोतरी देखी गई क्योंकि तब यह आंकड़ा 46.4 अमेरिकी बिलियन डॉलर तक पहुंच गया.
इन सिद्धान्तों का असर इस बात से आंका गया कि कम और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था में पर्यावरण कार्यक्रमों के लिए कितनी पूंजी आवंटित की गई. क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर मल्टीलैटरल डेवलपमेंट बैंकों की साल 2019 की साझा रिपोर्ट ऐसे कुछ सवालों का जवाब देती है. साल 2019 में विकसित देशों में पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने के पहले के स्तर में बढ़ृोतरी देखी गई क्योंकि तब यह आंकड़ा 46.4 अमेरिकी बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. हालांकि साल 2019 में विकसित देशों में पर्यावरण से जुड़ी गतिविधियों के लिए एमडीबी ने जो रकम आवंटित किए उसमें 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई लेकिन यह राशि एमडीबी द्वारा क्लाइमेट फाइनेंस के लिए अब तक की कुल राशि का महज़ 23 फ़ीसदी ही था.
हालांकि साल 2018 से लेकर 2019 के बीच विकसित देशों में एमडीबी द्वारा किए गए क्लाइमेट फाइनेंस में 7.7 फ़ीसदी की बढ़ोतरी ही दर्ज़ की गई, जो साल 2017 और 2018 के बीच 22 फ़ीसदी की तेजी से काफी कम थी. यहां तक कि यह राशि साल 2016 से 2017 के बीच 28 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के मुक़ाबले भी बेहद कम थी. जब तक कि विकसित देशों में क्लाइमेट फाइनेंस की राशि में निरंतर बढ़ोतरी दर्ज़ नहीं होती है, तब तक साल 2020 तक विकसित देशों के लिए साझा तौर पर क्लाइमेट फाइनेंस की राशि को प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े तक पहुंचाने का वादा पूरा करना आसान नहीं है. इस साल एमडीबी को कोरोना जैसी महामारी के लिए अपनी पूंजी को डायवर्ट करने की मज़बूरी रही जिससे क्लाइमेट फाइनेंस के प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य तक पहुंच पाना आसान नहीं दिखता है.
विकसित देशों के लिए बिना किसी बाधा और रूकावट के क्लाइमेट फाइनेंस की पहचान एमडीबी के क्लाइमेट फाइनेंस फ्लो के ज़रिए की गई है.
एमडीबी के क्लाइमेट फाइनेंस के फ्लो के स्वरूप और संरचना में कई तरह की सीमाएं देखी जा सकती है. अनुदान राशि के आंकड़े बेहद कम हैं और इसमें लगातार गिरावट दर्ज़ की जा रही है. जो देश विकसित नहीं है और जो छोटे द्वीप हैं उनके लिए भी वित्तीय सहायता की कोई व्यवस्था मौज़ूद नहीं है. विकसित देशों के लिए बिना किसी बाधा और रूकावट के क्लाइमेट फाइनेंस की पहचान एमडीबी के क्लाइमेट फाइनेंस फ्लो के ज़रिए की गई है.
पर्यावरण कार्यक्रम के लिए वित्तीय ढांचा
साल 2025 तक एमडीबी ने क्लाइमेट फाइनेंस में बढ़ोतरी का लक्ष्य 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर रखा है जो साल 2018 के स्तर से 50 फीसदी अधिक है. एमबीडी की योजना एनर्जी एफिशियेंसी, शहरी क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर और उद्योग क्षेत्र में भी निवेश को बढ़ावा देने की है.
एमडीबी के लिए पेरिस समझौते के तहत पूंजी को व्यवस्थित करना बेहद ज़रूरी है. और यह वाक़ई एक बेहतर मौका है जब कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए एक नई क्रियाविधि को तैयार किया जाए जो पर्यावरण के ग्रीन फायदों को भी सुनिश्चित कर सके.
एमबीडी की कमियों का अगर निपटारा कर लिया जाए तो एमबीडी 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को हासिल करने में दो अनोखी स्थितियों में है. पर्यावरण कार्यक्रमों के लिए वित्तीय आर्किटेक्चर खड़ा करने के लिए एमबीडी क्षेत्रीय और स्थानीय वित्तीय संस्थाओं से समन्वय स्थापित कर सकते हैं साथ ही पर्यावरण कार्यक्रमों में कैसे पूंजी की व्यवस्था की जाती है इससे जुड़े सबक भी साझा कर सकते हैं. इस आर्किटेक्चर की अगुवाई कई देशों को पेरिस जलवायु समझौते के तहत निर्धारित अपनी हिस्सेदारी को साझा करने के लिए प्रेरित भी कर रहा है. इतना ही नहीं इन देशों को इसमें आने वाली समस्याओं और अवरोधों की पहचान कर निवेश के आवंटन और उसमें तेजी लाना भी शामिल है. इसके अलावा कार्बन आधारित अर्थव्यवस्था से जीरो कार्बन की ओर बदलाव लाना और लोकल कैपेसिटी बिल्डिंग तैयार करने की योजना बनाना भी इसके तहत शामिल है. एमडीबी के लिए पेरिस समझौते के तहत पूंजी को व्यवस्थित करना बेहद ज़रूरी है. और यह वाक़ई एक बेहतर मौका है जब कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए एक नई क्रियाविधि को तैयार किया जाए जो पर्यावरण के ग्रीन फायदों को भी सुनिश्चित कर सके. कोविड 19 और ग्रीन क्लाइमेट के लिए पूंजी जुटाने के प्रति प्रतिबद्धता के आलोक में एमडीबी शेयरधारकों के लिए यह आवश्यक है कि वो ऐसी संस्थाओं में पर्याप्त पूंजी के प्रवाह को सुनिश्चित करें.
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