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नेपाल- भारत और बांग्लादेश (NIB) के बीच ऊर्जा का व्यापार तो समंदर की एक बूंद के बराबर है. तीनों देशों के बीच अगर आर्थिक गलियारे का गठन हो जाए तो, NIB क्षेत्र की वास्तविक संभावनाओं को साकार किया जा
2024 का आग़ाज़, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की दो दिनों की नेपाल यात्रा के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने विदेश मंत्रियों की अगुवाई वाले एक साझा उच्च स्तरीय आयोग की बैठक में हिस्सा लिया. विदेश मंत्री जयशंकर के इस नेपाल दौरे की एक प्रमुख बात नेपाल के 10 हज़ार मेगावाट (MW) बिजली भारत को बेचने पर भी चर्चा की गई. इस सौदे के बाद नेपाल के भारत के रास्ते, बांग्लादेश को पनबिजली बेचने का रास्ता भी खुलेगा. इससे नेपाल, भारत और बांग्लादेश (NIB) के बीच ऊर्जा के व्यापार को एक ठोस शुरुआत मिलेगी. हालांकि, ऊर्जा का व्यापार तो उन संभावनाओं के समंदर की एक बूंद भर है, जो इस NIB क्षेत्र में छुपी हुई है. ये ऐसी संभावना है, जिसे तभी साकार किया जा सकता है, जब तीनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़े और ख़ास तौर से NIB के बीच आर्थिक गलियारा बनाया जाए. दक्षिण एशिया की आबादी 1.8 अरब के आस-पास है. लेकिन, पूरे क्षेत्र में संगठित व्यापार और निवेश बेहद कम है. दक्षिण एशिया के लिए क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) सुप्तावस्था में है और 2014 के बाद से उसकी कोई बैठक नहीं हुई है. वहीं, 2004 में बहुत शोर-शराबे के साथ जिस दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (SAFTA) पर दस्तख़त किए गए थे, वो भी काग़ज़ का शेर बनकर रह गया है. सार्क देशों के बीच समस्याओं को देखते हुए बहुत से लोगों को ये लगा था कि BIMSTEC का ढांचा, इसका एक कारगर समाधान बन सकता है. लेकिन, व्यापार के मोर्चे पर ये भी बहुत ज़्यादा उम्मीदें नहीं जगाता है. 2021 में बिमस्टेक के देशों के बीच आपसी व्यापार, इसके जैसे दूसरे क्षेत्रीय संगठनों जैसे कि आसियान की तुलना में दस प्रतिशत से भी कम था. वहीं दूसरी तरफ़, बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (BBIN) की क्षेत्रीय पहल भी, 2015 में चारों देशों के बीच मोटरगाड़ियों के समझौते (MVA) के साथ की गई थी. लेकिन, BBIN के बीच मोटरगाड़ियों के समझौते के तहत भूटान ने अपनी सड़कों पर असीमित गाड़ियों की आवाजाही के दरवाज़े खोलने को लेकर ये कहते हुए आशंकाएं जताईं कि इससे उसके पर्यावरण पर बुरा असर पड़ सकता है. मार्च 2022 में प्रोटोकॉल को लेकर हुई पिछली बैठक के बाद से इस मामले में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है. बहुत से लोगों ने सोचा था कि BBIN के बीच मोटरगाड़ियों की आवाजाही के इस समझौते से BBIN आर्थिक गलियारे का निर्माण होगा और व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के दरवाज़े खुलेंगे. लेकिन, MVA के अधर में लटक जाने से इस विचार को लेकर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं. वैसी स्थिति में, नेपाल, भारत और बांग्लादेश (NIB) के बीच एक वैकल्पिक आर्थिक गलियारे के निर्माण का प्रस्ताव आख़िर क्यों नहीं दिया जा सकता है?
MVA के अधर में लटक जाने से इस विचार को लेकर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं. वैसी स्थिति में, नेपाल, भारत और बांग्लादेश (NIB) के बीच एक वैकल्पिक आर्थिक गलियारे के निर्माण का प्रस्ताव आख़िर क्यों नहीं दिया जा सकता है?
वैसे स्थानीय संसाधनों से बनी चीज़ों और कृषि उत्पादों का व्यापार असंगठित रूप से हो रहा है, और इन्हें प्रोत्साहन देकर संगठित व्यापार का हिस्सा बनाने की ज़रूरत है. मगर, तीनों देशों के बीच असली आर्थिक संभावनाएं तो पर्यटन के क्षेत्र में हैं. नेपाल, पूर्वी और उत्तरी पूर्वी भारत और बांग्लादेश (NIB) के बीच एक आर्थिक गलियारा 40 करोड़ से ज़्यादा लोगों का बाज़ार है. अगर हम चार पूंजियों की शब्दावली इस्तेमाल करें, जिसमें भौतिक, मानव, प्राकृतिक और सामाजिक पूंजी शामिल हैं, तो भौतिक पूंजी को छोड़ दें तो NIB क्षेत्र में बाक़ी सभी पूंजियां प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं. इस क्षेत्र के व्यापक खनिज संसाधन, जंगल और नदियों की घाटियां प्रमुख क़ुदरती पूंजी की बुनियाद मुहैया कराते हैं. मिसाल के तौर पर NIB क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में पहाड़ हैं, वो इकोसिस्टम की सेवाओं का बेहद अहम स्रोत हैं. इससे इस तरह के संसाधनों का टिकाऊ तरीक़े से लाभ उठाने के लिए संस्थागत सहयोग की ज़रूरत रेखांकित होती है. इसके अलावा, नदियों की घाटी, धातुओं और खनिजों के बड़े भंडार और जंगलों जैसी व्यापक प्राकृतिक पूंजी भी क़ुदरत पर आधारित उत्पादों के वैश्विक बाज़ार में तुलनात्मक बढ़त प्रदान करने वाले हैं. हालांकि, इन संभावनाओं का दोहन नहीं किया जा रहा है. इकोसिस्टम की सेवाओं के कुछ बड़ी सावधानी से लगाए गए अनुमान बताते हैं कि दक्षिण एशिया में मानव समुदाय, संगठित और असंगठित आर्थिक गतिविधियों से होने वाली आमदनी की तुलना में इकोसिस्टम से कहीं ज़्यादा मूल्य (25 प्रतिशत या इससे भी ज़्यादा) हासिल करते हैं.
मानव पूंजी की बात करें तो, नेपाल, पूर्वी और उत्तरी-पूर्वी भारत और बांग्लादेश में प्रचुर मात्रा में सस्ते कामगार उपलब्ध हैं. इस बीच, पश्चिमी भारत औऱ उसके पास-पड़ोस की अर्थव्यवस्थाएं श्रम की कम लागत, खपत की बढ़ी हुई दर, शहरीकरण और खेती एवं निर्माण पर ज़ोर देने से रफ़्तार पकड़ रही हैं. कोविड से ठीक पहले बांग्लादेश, 6 लाख फ्रीलांसर्स के समुदाय के साथ, IT सेक्टर की फ्रीलांसिंग के गढ़ के रूप में उभरा था. NIB क्षेत्र की आबादी का बड़ा हिस्सा महत्वाकांक्षी, भविष्य की ओर अग्रसर युवाओं वाला है, जिसका औपनिवेशिक अतीत से कोई ख़ास संबंध नहीं है. आबादी का ये तबक़ा ही भविष्य की राजनीतिक तस्वीर गढ़ने वाला है. मिसाल के तौर पर 2018 से भारत के कामकाजी लोगों की उम्र वाली आबादी, अपने ऊपर निर्भर आबादी से अधिक बनी हुई है. भारत के पास आबादी की ये बढ़त 2055 तक बनी रहने वाली है, जो 37 साल का दायरा है. इसी तरह नेपाल की 65 प्रतिशत आबादी 15 से 64 साल के कामकाजी लोगों की है और इसमें से भी 59 फ़ीसद तो 30 साल से कम उम्र के हैं. इसके अलावा, नेपाल की आबादी में 15 साल से कम उम्र के लोगों की तादाद 29 प्रतिशत है. हालांकि ये संख्या सिमट रही है. आबादी की संरचना में ये बदलाव, तेज़ विकास को बढ़ावा दे सकता है, अगर अच्छी शिक्षा और बढ़िया स्वास्थ्य सेवा जैसे मज़बूत सामाजिक सूचकांक और रोज़गार के अच्छे अवसर उपलब्ध कराए जाएं.
असल चुनौती इस तरह के व्यापार को संगठित क्षेत्र में लाने की है. ई-कॉमर्स के पोर्टल, बांग्लादेश के समुद्री भोजन को पूर्वी भारत और नेपाल तक पहुंचाने का रास्ता उपलब्ध कराते हैं.
आख़िर में डिजिटलीकरण और भूमंडलीकरण से दुनिया सिमट रही है. वैसे तो किसी देश का कोई भी सामान, दूसरे देश में असंगठित रूप से उपलब्ध है. लेकिन, असल चुनौती इस तरह के व्यापार को संगठित क्षेत्र में लाने की है. ई-कॉमर्स के पोर्टल, बांग्लादेश के समुद्री भोजन को पूर्वी भारत और नेपाल तक पहुंचाने का रास्ता उपलब्ध कराते हैं. इसी तरह, काठमांडू में बनने वाली उम्दा क्वालिटी और उत्तम स्तर की चीज़, ढाका के ज़्यादा आमदनी वाले तबक़े तक पहुंचाए जा सकते हैं. डिजिटल प्लेटफॉर्म आज भुगतान और करों की वसूली को आसान बना रहे हैं. इससे पहुंच और पारदर्शिता में सुधार हो रहा है. लॉजिस्टिक्स कंपनियां अब बदल गई हैं और सीमाओं पर घूस वसूलने और देने के बजाए, सेवाएं प्रदान कर रही हैं.
इसके साथ ही साथ, इस विचार से मध्य पूर्व, यूरोपीय संघ, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के बढ़ते आर्थिक संबंधों का इस्तेमाल किया जा सकेगा. क्षेत्र में सहजता से उपलब्ध मानवीय और प्राकृतिक पूंजी के ज़रिए NIB का गलियारा, तीनों देशों के ऊर्जावान उत्पादन बाज़ार को एक बड़ा बाज़ार मुहैया करा सकता है. NIB को बस अपनी भौतिक पूंजी को विकसित करना होगा, और इस मामले में भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को नेतृत्व प्रदान करने की ज़रूरत होगी.
विकासशील देशों के बीच आर्थिक सहयोग का एक सफल मॉडल पूर्वी अफ्रीकी समुदाय (EAC) है. EAC का वीज़ा, एक ही वीज़ा से कीनिया, रवांडा और युगांडा जाने का मौक़ा मुहैया कराता है. इसका फ़ायदा बढ़ते क्षेत्रीय व्यापार और लोगों की आवाजाही के तौर पर दिखता है. चूंकि किसी एक देश के सामान को दूसरे देश से ले जाकर, किसी तीसरे देश के बाज़ार में बेचा जा सकता है. इस वजह से सीमा के आर-पार व्यापर और आवाजाही को आसान बनाया गया है. सीमाओं के आर-पार की इन संभावनाओं को देखते हुए ही दुबई स्थित DP वर्ल्ड जैसी कंपनियां, लॉजिस्टिक्स के केंद्र स्थापित कर रही हैं. रुसोमो पनबिजली परियोजना को रवांडा, बुरुंडी और तंज़ानिया ने मिलकर विकसित किया है, और इससे बनी बिजली का इस्तेमाल भी तीनों देश मिलकर करते हैं. EAC एक ऐसा मॉडल है जिसे दक्षिण एशिया में अपनाया जा सकता है, और ख़ास तौर से NIB आर्थिक गलियारा बनाने में इससे काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है. NIB आर्थिक गलियारे का मक़सद व्यापार की बाधाएं दूर करना, कारोबार करने के लिए अच्छा माहौल बनाना, अंदरूनी कारोबार के लिए लेन-देन की लागत कम करना होना चाहिए. वहीं, इसका सबसे अहम लक्ष्य तो एक ऊर्जावान उत्पादन बाज़ार बनाने का होना चाहिए, जो उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के साथ साथ विकसित देशों के उस बाज़ार की बढ़ती मांग को पूरा कर सके, जिसका ज़िक्र हमने पहले किया था.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) की 2023 की विश्व व्यापार रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्रीय सहयोग के रूप में भूमंडलीकरण का दौर एक बार फिर से लौटेगा. NIB आर्थिक गलियारे में इस बात की पूरी संभावना है कि वो इस प्रस्तावित मॉडल का सर्वोत्तम उदाहरण बन सके.
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Dr Nilanjan Ghosh is Vice President – Development Studies at the Observer Research Foundation (ORF) in India, and is also in charge of the Foundation’s ...
Read More +Sujeev Shakya is the Chair of the Nepal Economic Forum and a Senior Fellow at the National University of Singapore Institute of South Asian Studies ...
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