Author : Khalid Shah

Published on Jul 06, 2021 Updated 0 Hours ago

यह पहली बार नहीं हुआ है जबकि दोनों देशों की सेना ने सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमति जताई हो.

क्या भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में जमी बर्फ़ पिघल सकती है?

कश्मीर को लेकर अक्सर निरर्थक अफ़वाहों का बाज़ार गर्म रहता है.  साल जून महीने से ही भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा संगठन से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों की एक गुप्त बैठक की बात सामने आ रही है. इसका एक पहलू यह बताया जा रहा है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने इस्लामाबाद से बातचीत करने के लिए गुप्त रूप से क़दम बढ़ाया – जो बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के निश्चित रूप से मूर्खतापूर्ण ख़बर लगती है. इसका दूसरा पहलू यह बताया जा रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बैकचैनल माध्यम से परिचर्चा आयोजित की गई. लेकिन हैरानी तो इस बात की है कि वक़्तबेवक़्त इस तरह की अफवाहें अक्सर ख़बरों से ज़्यादा वास्तविक साबित होती हैं.

भारत और पाकिस्तान की सेना ने एक आश्चर्यजनक घटना के रूप में लाइन ऑफ कंट्रोल और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर युद्धविराम को लागू करने की घोषणा कर दी. दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) ने हॉटलाइन पर बात करने के बाद संयुक्त बयान भी जारी किया और कहा कि युद्धविराम को मानने के लिए एक समझौते पर दोनों देश पहुंचे हैं. “24/25 फरवरी 2021 की मध्य रात्रि से लाइन ऑफ कंट्रोल और दूसरे सभी सेक्टर में दोनों देश सभी समझौते, सहमति और युद्धविराम को मानेंगे”. इतना ही नहीं दोनों देश के सैन्य अधिकारियों ने उन मुद्दों और मामलों पर बातचीत करने की सहमति भी जताई जिससे शांति भंग होने या फिर हिंसा भड़कने की आशंका बढ़ जाती है”.

ज़ाहिर है, हाल की कुछ घटनाएं जैसे एलओसी पर सीज़फायर उल्लंघन के मामलों में कमी आना और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के द्वारा बयान जारी करना दोनों देशों के बीच रिश्ते को सामान्य करने की दिशा में बेहतर भविष्य की ओर इशारा करता है.

हालांकि, साझा बयान के जारी होने के महज़ कुछ घंटों बाद ही भारत के एक प्रमुख अख़बार ने लिखा कि युद्धविराम की यह कोशिश भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के स्पेशल असिस्टेंट मोइद यूसुफ के बीच बैकचैनल वार्ता का नतीजा है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि दोनों ही उच्च अधिकारियों की मुलाक़ात एक तीसरे देश में कम से कम एक बार हुई थी. ज़ाहिर है, हाल की कुछ घटनाएं जैसे एलओसी पर सीज़फायर उल्लंघन के मामलों में कमी आना और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के द्वारा बयान जारी करना दोनों देशों के बीच रिश्ते को सामान्य करने की दिशा में बेहतर भविष्य की ओर इशारा करता है.     

मोइद यूसुफ ने भी अपने बयान में कहा कि दोनों देशों के बीच “पर्दे के पीछे” वार्ता जारी है और उन्होंने इशारा भी किया कि इससे “दोनों देशों के बीच बंद दरवाज़ों के और ज़्यादा खुलने की उम्मीद है “. दिलचस्प बात है कि अक्टूबर 2020 में द वायर को दिए गए एक इंटरव्यू में यूसुफ ने दावा किया था कि भारत ने बातचीत के लिए इच्छा जताई थी” – जिस दावे को नई दिल्ली ने  सिरे से ख़ारिज़ कर दिया. इसके बाद मोइद यूसुफ ने कई सारी ट्वीट कर यह जानकारी दी कि उनके और भारत के एनएसए अजित डोवाल के बीच कोई वार्ता नहीं हुई.

दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में खटास ज़्यादा बढ़ गई जब अगस्त 2019 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने समेत दूसरे संवैधानिक बदलावों को लागू किया. 5 अगस्त 2019 को जिन संवैधानिक बदलावों को लागू किया गया उसके बाद इस्लामाबाद ने नई दिल्ली के साथ अपने रिश्तों को लेकर तल्खी दिखानी  शुरू की – पाकिस्तान ने भारत में अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया, दोनों देशों के बीच के एयरस्पेस और कारोबार को आंशिक रूप से बंद कर दिया. यही नहीं दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा की अपील भी पाकिस्तान ने कर दी.

कूटनीतिक रिश्ते बहाल हो     

हालांकि, अगस्त 2019 के बाद भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ के बीच युद्धविराम की घोषणा करना दोनों देशों के रिश्तों के बीच तल्खी को कम करने का एक महत्वपूर्ण क़दम था. रिपोर्ट की मानें तो दोनों ही देश नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अपने उच्चायुक्तों की नियुक्ति कर फिर से कूटनीतिक रिश्ते को बहाल कर सकते हैं. और तो और पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन के आयोजन को भारत हरी झंडी दिखा सकता है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्लामाबाद जाने का रास्ता साफ़ हो सकता है.

एलओसी पर सीज़फायर लागू करना ना सिर्फ़ दोनों देशों की सेना के लिए एक अच्छा क़दम साबित होगा बल्कि सीमा से सटे जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए भी यह बेहतर होगा. साल 2020 में एलओसी पर सीज़फायर उल्लंघन की 5,100 घटनाएं रिपोर्ट की गईं. यह ऐसे वक्त में हुआ जब लद्दाख के पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना चीन की सेना के साथ आमनासामना करने में लगी थी.  साल 2003 के बाद सीज़फायर उल्लंघन की यह सबसे ज़्यादा घटनाएं थी – जिसमें 36 लोगों की मौत हो गई – जिसमें 24 जवान शहीद हुए और करीब 130 लोग घायल हो गए. साल 2019 में भारत पाकिस्तान सीमा पर 3,289 सीज़फायर उल्लंघन की घटनाएं दर्ज़ की गईं. ऐसे में नए समझौते जो हुए हैं उससे सीमा पर सीज़फायर उल्लंघन की घटनाओं में कमी आएगी और सीमा से सटे इलाकों में बसे लोगों को राहत मिलेगी.

अगस्त 2019 के बाद भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ के बीच युद्धविराम की घोषणा करना दोनों देशों के रिश्तों के बीच तल्खी को कम करने का एक महत्वपूर्ण क़दम था. रिपोर्ट की मानें तो दोनों ही देश नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अपने उच्चायुक्तों की नियुक्ति कर फिर से कूटनीतिक रिश्ते को बहाल कर सकते हैं.

विशेष रूप से 5 अगस्त 2019 के बाद जो संवैधानिक बदलाव किए गए उसके बाद भारत सरकार पाक अधिकृत कश्मीर को भारतीय सीमा में वापस लिए जाने पर अपना ध्यान केंद्रित करने लगी. सरकार के कई वरिष्ठ लोगों के बयान से ऐसे संकेत मिलने लगे कि पाक अधिकृत कश्मीर को सैन्य ताक़त से कब्ज़ा करना ही भारत के लिए अगला विकल्प हो सकता है.

इसमें दो राय नहीं कि दोनों देशों के डीजीएमओ स्तर की वार्ता सभी के लिए एक हैरानी पैदा करने वाली घटना है लेकिन दोनों देशों के बीच ऐसी किसी संभावना को लेकर कई दिनों से उम्मीद की किरण भी देखी जा रही थी. यहां तक कि नई दिल्ली से आने वाली बयानबाजियों में भी कई बदलाव देखे गए हैं. लद्दाख में चीन के द्वारा घुसपैठ करने के बाद पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का ज़िक्र अब जोर शोर से नहीं किया जा रहा है. यहां तक कि सरकार के कई मंत्रियों ने यह भी बयान दिया है कि भारत ना तो पाकिस्तान और ना ही चीन की ज़मीन चाहता है. भारत हमेशा से शांति और अहिंसा की वक़ालत करता है – इसे दोनों देशों के बीच तल्ख़ होते रिश्तों को सामान्य करने के तौर पर देखा गया. 

लद्दाख के इलाक़े से भारत और चीन की सेनाओं के हटने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर को लेकर सहमति बनी. क्योंकि जब से पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेना का आमना सामना हुआ तब से दो मोर्चों पर जंग छिड़ने की आशंका गहराने लगी थी. इस परिप्रेक्ष्य में एलओसी पर सीज़फायर की घोषणा भारतीय सेना के दबाव को कम करने वाला क़दम हो सकता है क्योंकि पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना के स्ट्राइक कॉर्प्स की एक बार फिर से तैनाती हो रही है. इसके साथ ही कोरोना संक्रमण के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में जो गिरावट दर्ज़ की गई है उसको देखते हुए दोनों मोर्चों पर भारतीय सैन्य टुकड़ियों की तैनाती फिलहाल आर्थिक रूप से काफी महंगा साबित होगा.

चीन की चुनौतियां


ऐसे में कई विशेषज्ञों की राय में भारत को पश्चिमी मोर्चे पर शांति बहाली के लिए पाकिस्तान से बातचीत के लिए आगे बढ़ना चाहिए जबकि पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तान के मुक़ाबले कहीं ताक़तवर शत्रु से निपटने की तैयारी करनी चाहिए. रणनीतिक लिहाज़ से पाकिस्तान के साथ मौज़ूदा समझौता भारत को राहत पहुंचा सकता है – इस दौरान चीन की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत अपनी सैन्य शक्ति को और ज़्यादा संगठित और आधुनिक बना सकता है.

लद्दाख के इलाक़े से भारत और चीन की सेनाओं के हटने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर को लेकर सहमति बनी. क्योंकि जब से पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेना का आमना सामना हुआ तब से दो मोर्चों पर जंग छिड़ने की आशंका गहराने लगी थी

पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते और तल्ख़ हुए हैं जिसके चलते दोनों देश जंग के मुहाने पर भी खड़े दिखे. दुनिया के तमाम शक्तिशाली मुल्क़ों ने दोनों देशों के बीच बढ़ती दूरियों को पाटने और तनाव को कम करने की नसीहत दी है. क्योंकि दुनिया का हर मुल्क़ इस बात को लेकर चिंतित है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अगर जंग होती है उसका कितना भयानक असर होगा. 5 अगस्त 2019 के बाद दुनिया का ध्यान इस ओर ज़्यादा खींचा हुआ है. ऐसे माहौल में तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक दबाव का होना स्वभाविक हो जाता है. ऐसे में दोनों देशों द्वारा शांति बहाली की ओर उठाए गए क़दम दुनिया को एक सकारात्मक संकेत देते हैं – एक कल्पना – कि भारत और इस्लामाबाद दोनों ही इस स्थिति में हों कि वो आपसी तनाव को कम करने को इच्छुक हों और द्विपक्षीय वार्ता के ज़रिए इसे कम कर सकें.

पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते और तल्ख़ हुए हैं जिसके चलते दोनों देश जंग के मुहाने पर भी खड़े दिखे. दुनिया के तमाम शक्तिशाली मुल्क़ों ने दोनों देशों के बीच बढ़ती दूरियों को पाटने और तनाव को कम करने की नसीहत दी है

लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत पाकिस्तान के बीच रिश्तों की जमी बर्फ पिघल सकती है ? यह पहली बार नहीं हुआ है जबकि दोनों देशों की सेनाओं ने सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमति जताई हो. साल 2018 में भी दोनों देश की सेना 2003 समझौते के मुताबिक़ सीमा पर हालात को करने को राजी हो गई थी, जिसे आज भी दोहराने की ज़रूरत है. हालांकि, यह समझौता एक असामान्य घटना की वज़ह से बीच में ही टूट गया. ऐसे में मौज़ूदा सहमति भी पहले की तरह ही बेहद तनावपूर्ण है. सवाल तो यही है कि क्या मौज़ूदा सहमति दोनों देशों के बीच शांति के लिए एक बेहतर क़दम साबित होगा यह आने वाले दिनों में घटने वाली घटनाओं पर निर्भर करता है. क्योंकि पुलवामा जैसी एक घटना ही दोनों देशों के बीच तल्ख़ी को फिर से बढ़ाने के लिए काफी हो सकती है जो जंग का कारण भी बन सकता है.

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