Author : Satish Misra

Published on Apr 11, 2019 Updated 0 Hours ago

कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र के माध्यम से, यह स्पष्ट कर दिया है कि वह नेहरूवादी समाजवाद के रास्ते का दृढ़ता से अनुपालन कर जा रही है। समाज के कमजोर, अल्पसंख्यक, दलित और सीमांत वर्गों पर ध्यान केंद्रित करके यह जनकल्याण के नेहरूवादी ढांचे के दायरे में ही जनादेश हासिल करना चाहती है।

गरीबों, किसानों और युवाओं पर केंद्रित कांग्रेस का घोषणा-पत्र

आगामी चुनावी संघर्ष की रेखाएँ अब स्पष्ट रुप से खींची जा चुकी हैं और अपने मूल चित्र-पटल से बाहर निकलकर सबके सामने है। दो मुख्य राष्ट्रीय दलों —  भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के अपने चुनावी मुद्दे और वैचारिक आधार स्पष्ट हो चुका है और उनको लेकर भ्रम लगभग मिट चुका है। इन मुद्दों को इस चुनाव में ये दो बड़े राष्ट्रीय दल अनुसरण करने जा रहे हैं। चल रहे आम चुनावों में ये दोनों विचारधाराएं मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।

दोनों दलों ने अपने-अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए हैं और अपनी प्राथमिकताएं तय कर ली हैं। दोनों राष्ट्रीय दलों की अगुवाई वाले गठबंधन के नेता अब अपने-अपने उम्मीदवारों और अपने सहयोगियों के लिए चुनाव-प्रचार करने में व्यस्त हैं ताकि लोगों का ध्यान आकर्षित करके अपने-अपने दलों के लिए वोट इकठ्ठे किए जा सकें।

एक ओर, सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रवाद उसका परिभाषित ढांचा है जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा एक प्रबल मुद्दा बनने जा रहा है।

राष्ट्रवाद के ढांचे में, विकास जैसे अन्य सभी मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा। भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर जोर दे रही है जिसे वर्तमान में आतंकवाद से खतरा है। यह आतंकवाद मुख्य रुप से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित है, ऐसी बातें की जा रही हैं।

वैचारिक रूप से, भाजपा “हिंदुत्व” के मार्ग पर चल रही है, जिसकी सीमा के भीतर ही लोगों की समस्याओं का समाधान किया जाना है। ‘राष्ट्र’ भाजपा के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है और अन्य सभी मुद्दे इसके पीछे हैं। जब यह अपना घोषणा-पत्र जारी करेगी तब इसकी कार्य-योजना का ब्यौरा सामने आ जाएगा।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र के माध्यम से, यह स्पष्ट कर दिया है कि वह नेहरूवादी समाजवाद के रास्ते का दृढ़ता से अनुपालन कर जा रही है। समाज के कमजोर, अल्पसंख्यक, दलित और सीमांत वर्गों पर ध्यान केंद्रित करके यह जनकल्याण के नेहरूवादी ढांचे के दायरे में ही जनादेश हासिल करना चाहती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी ने शपथ ली है कि वह रोजगार, गरीबों को आय समर्थन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के सृजन के माध्यम से अपने राजनैतिक आधार को पुन: प्राप्त करना चाहती है। कांग्रेस युवाओं, किसानों और गरीबों को ध्यान में रखते हुए सामाजिक कल्याण के रास्ते पर लौट चुकी है।

घोषणा-पत्र को छ: खण्डों में विभाजित किया गया है — काम, दाम, शान, सुशासन, स्वाभिमान और सम्मान। इस घोषणा-पत्र के हिंदी संस्करण का शीर्षक है — “हम निभाएंगे।”

देश में बढ़ती बेरोजगारी को दूर करने के संबंध में कांग्रेस ने कहा है कि मार्च 2020 से पहले केंद्र सरकार के 4 लाख रिक्त पदों को भर कर 34 लाख नौकरियों को सुनिश्चित किया जाएगा, राज्य सरकारों को 20 लाख रिक्त पदों को भरने और प्रत्येक ग्राम पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय में 10 लाख सेवा मित्र के पदों के सृजन हेतु तैयार किया जाएगा। कांग्रेस की अगली सरकार में एक रोजगार मंत्रालय भी होगा। इसके अतिरिक्त, मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत 150 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा।

कांग्रेस को उम्मीद है कि न्यूनतम आय सहायता योजना (न्याय) के अपने वायदे के माध्यम से, जिसका अर्थ है कि देश के सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों को सालाना 72,000 रुपये की गारंटी मिलेगी, उसे चुनाव में जनमत प्राप्त हो जाएगा।

बजट में शिक्षा को सकल घरेलू उत्पाद का 6% वित्त आवंटित करने का वायदा करके, कांग्रेस ने मानव संसाधन विकास की महत्व को पहचाना है जिसके बिना कोई भी देश अपने पूरे सामर्थ्य के साथ आगे बढ़ने में असमर्थ है।

घोषणा-पत्र में चल रहे गहन कृषि संकट से निपटने के लिए अपनी पर्याप्त उपाय सुझाए गए हैं। कांग्रेस का कहना है कि वह एक अलग किसान बजट पेश करेगी। इसके अंतर्गत पारिश्रमिक मूल्य, कम निवेश लागत और संस्थागत ऋण के माध्यम से किसानों को ‘कर्ज़ माफ़ी’ (ऋण माफी) के मार्ग से हटाकर ‘कर्ज़ मुक्ति’ (ऋण से मुक्ति) के मार्ग पर लाया जाएगा।

कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में वामपंथी उग्रवाद या स्वायत्तता की मांग जैसी समस्याओं को हल करने के लिए शांति और समझौते के रास्ते पर चलने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। यह घोषणा करके कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वह राजद्रोह कानून को रद्द कर देगी जिसे औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों द्वारा जबरन दण्ड संहिता में शामिल किया गया है, कांग्रेस ने यह माना है कि आधुनिक भारत में इस बर्बर कानून की कोई प्रासंगिकता नहीं है।

घोषणा-पत्र में यह भी कहा गया है कि लिंचिंग जैसे घृणित अपराधों को रोकने और दंडित करने के लिए कानून बनाए जाएंगे जो बड़े पैमाने पर समाज में और विशेष रूप से अल्पसंख्यकों और दलितों में भय पैदा कर रहे हैं। इस तरह, कांग्रेस ने मानवतावाद और सामाजिक शांति को बढ़ावा देने वाले मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है।

इसी तरह, ‘अफ्सपा’ (AFSPA) — सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) कानून — और ‘अशांत क्षेत्र कानून’ जो विद्रोह और उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं, के संशोधित करने की अपनी मंशा को जाहिर करते हुए अपनी प्रतिबद्धता दिखाकर कांग्रेस ने जम्मू और कश्मीर और उत्तर-पूर्व के संकटग्रस्त क्षेत्रों के लोगों को एक सकारात्मक संकेत देने की कोशिश की है। इसी तरह, कांग्रेस ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि मानव अधिकारों की रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं में संतुलन बनाने के लिए मौजूदा कानूनों में उपयुक्त संशोधन किए जाएंगे।

यह बताते हुए कि उनकी सरकार मानहानि को एक आपराधिक कृत्य के स्थान पर एक नागरिक अपराध में तब्दील कर देगी, कांग्रेस ने नागरिक समाज में मानहानि अधिनियम के व्यापक दुरुपयोग पर मौजूदा चिंताओं को दूर करने का आश्वासन दिया है।

न्यायिक सुधारों के क्षेत्र में एक प्रमुख घोषणा के अंतर्गत इस घोषणा-पत्र में, उच्चतम न्यायालय को एक संवैधानिक न्यायालय में रुपांतरित करने का आश्वासन दिया गया है जो देश के संवैधानिक ढांचे के प्रति बढ़ती चुनौतियों पर न्यायिक स्पष्टता स्थापित करने के लिए संविधान की व्याख्या करेगा। और वर्तमान में शीर्ष अदालत द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को अपीली अदालत द्वारा निभाया जाएगा जिसकी प्रस्तावना कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में की है। यह अपीली अदालत देश के उच्च न्यायालयों के अपीली मामलों के निपटान हेतु कार्य करेगी।

यद्यपि, कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में खोए हुए राजनीतिक क्षेत्र को पुन: प्राप्त करने के उद्देश्य से जनता के विभिन्न वर्गों की चिंताओं का समाधान करने की कोशिश की है, फिर भी यह देखा जाना बाकी है कि क्या यह लोगों की आकांक्षाओं पर खरी उतर पाती है या नहीं? या फिर सत्तारूढ़ भाजपा के उग्र-राष्ट्रवाद के प्रतिस्पर्धात्मक भाषणों और बयानों से उठते हुए शोर-शराबे में खो जाती है और जनता द्वारा अनदेखी रह जाती है।

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