Published on Feb 21, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन को निर्विवाद रूप से अपना विकास साझीदार चुनकर मालदीव के राष्ट्रपति यामीन ने एक प्रकार का 'स्थिरमित्र' भी बना लिया है।

मालदीव: विपक्ष की राष्ट्रपति यामीन के खिलाफ आम उम्मीदवार उतारने की योजना

मालदीव की विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रैटिक पार्टी (एमडीपी) के नेता मोहम्मद ‘अन्नी’ नाशीद ने मालदीव में सत्ता परिवर्तन के लिए फिर से एक और नई चाल चलते हुए कहा है कि अब उनका लक्ष्य 2018 में होने वाला राष्ट्रपति चुनाव होना चाहिए और उन्हें सत्तारूढ़ राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के खिलाफ भी एक आम उम्मीदवार खड़ा करना चाहिए। लगभग इसके प्रत्युत्तर में ही यामीन के नेतृत्व ने उन्हें ब्रिटेन से वापस अपने देश लौटने को कहा है जहां उन्हें 13 वर्ष की जेल की सजा (इसका ज्यादा हिस्सा अभी भी पूरा नहीं हुआ है) काटने के लिए राजनीतिक शरण दी गई थी। नाशीद ने उन्हें खुद चुनाव लड़ने को कहा है।

नाशीद ने अमेरिका में, जहां वे ब्रिटेन से एक सम्मेलन में भाग लेने एवं जलवायु परिवर्तन के लिए गए थे, यह भी कहा कि वे सतारूढ़ प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति मॉमून अब्दुल गयूम के धड़े के साथ भी बातचीत कर रहे हैं। यह पहले की अकेले चुनाव लड़ने एवं बाद में गयूम के साथ करार करने, जिसे उन्होंने बाद में इंकार कर दिया था, की रणनीति के विपरीत है (जब इसकी घोषणा की गई, उस वक्त भी यह पूरी तरह अपरिपक्व प्रतीत हो रहा था)।

‘मालदीव इंडिपेंडेंट’ ने अमेरिका में फ्रेंच न्यूज एजेंसी एएफपी के साथ उन्हें बातचीत करते हुए उद्धृत किया, “वास्तव में हम एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव देखना चाहेंगे-जरुरी नहीं कि हम सरकार को बदलने की कोशिश करें ही। लेकिन, मैं नहीं समझता कि फिलहाल जो हालात हैं, उसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो पाएंगे। इसलिए, हमें पूरे विपक्ष को एकजुट करना होगा और एक ही उम्मीदवार के साथ चुनाव लड़ना होगा।”

मसला चाहे, उनकी जेल सजा की बची अवधि को पूरी करने या उनके खिलाफ अन्य अदालती मामलों का रहा हो, नाशीद इस संदर्भ में अधिक समझौतावादी प्रतीत हुए। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि मैं बिना किसी जोखिम के घर वापस लौट सकता हूं। मैं नहीं समझता कि कभी भी इस प्रकार का कोई अनुकूल समय आएगा। मेरा अनुमान है कि अगर मुझे ऐसा करना है तो मुझे जोखिम अवश्य उठाना चाहिए और ऐसा करना चाहिए।” फिर भी कहना आसान है और करना मुश्किल क्योंकि विपक्ष को अभी भी एक ईमानदार गठबंधन पर कार्य करना और एक ‘जीतने योग्य’ उम्मीदवार की पहचान करना बाकी है। नाशीद के अतिरिक्त, गयूम एवं जम्हूरे पार्टी (जेपी) के संस्थापक गैसिम इब्राहिम को भी एमडीपी के सहयोग से यामीन से प्रभावित संसद द्वारा निर्धारित 65 वर्ष की अधिकतम उपरी आयु सीमा का प्रतिबंध लगाने के द्वारा मना कर दिया गया है।

यामीन के साथ डुन्या की वापसी

फिर भी, नाशीद द्वारा सुखद भविष्य को लक्षित करके किए गए नए हमले से केवल कुछ ही दिन एवं सप्ताह पहले, यामीन विरोधी खेमे को एक सीमित झटका झेलना पड़ा जब गयूम की बेटी एवं पूर्व विदेश मंत्री डुन्या मौमून स्वास्थ्य मंत्रालय में राज्य मंत्री की अपेक्षाकृत कमतर भूमिका में यामीन के पक्ष में लौट आई। डुन्या की उसके पिता के साथ तात्कालिक पहचान उसके राजनीतिक रसूख के कारण थी, लेकिन गयूम खेमे से उसका अलग होना अपने आप में एक अलग कहानी कहता है।

यामीन खेमे में डुन्या की वापसी उसके दो भाईयों में से एक घास्सान मौमून के उसके चाचा राष्ट्रपति के साथ रहने के प्रारंभिक फैसले के बाद हुई है, जबकि उसकी जुड़वां बहन जुम्ना एवं भाई फारिस गयूम के साथ ही रह रहे हैं। लेकिन यामीन विरोधी खेमे के लिए बड़ा प्रश्न सभी समूहों द्वारा एक जुट होकर काम करने और उनके कैडर एवं वोट बैंकों को भी प्रेरित करने की क्षमता से संबंधित है, जैसी कि नाशीद की इच्छा रही है। इससे भी महत्वपूर्ण बात, यह है कि उन्हें एक समान उम्मीदवार की पहचान करनी होगी और एकजुट होकर उसकी सहायता करनी होगी- और यह भी उम्मीद करनी होगी कि उसे कानूनी या किसी भी प्रकार से समझौता न करना पड़े।

पूर्व में, जब देश ने गयूम के खिलाफ 2008 के ऐतिहासिक राष्ट्रपति चुनावों के पहले दौर में 60-40 का मतदान किया था, तो अन्य तीन प्रमुख उम्मीदवार एकजुट होकर केवल सत्तारूढ़ दल का ही विरोध कर रहे थे। दूसरे दौर में, जेपी के गैसिम समेत दो अन्य उम्मीदवारों ने कम वोट प्रतिशत के साथ द्वितीय स्थान पर रहने वाले नाशीद का समर्थन किया था जिससे कि वह निर्णायक दूसरे दौर में जीत सके।

यामीन का 2013 का चुनाव भी कोई अलग नहीं था। लेकिन 2018 का चुनाव अलग हो सकता है क्योंकि एक कमजोर, समझौतापरस्त और निस्तेज आम उम्मीदवार पहले दौर में ही बाहर हो जा सकता है। वर्तमान में देश के पसंदीदा उम्मीदवार के अभाव को देखते हुए 2018 कम से कम फिलहाल तो यामीन के लिए लाभदायक प्रतीत हो रहा है।

स्थायी मित्र

विपक्ष के अदूरदर्शी होने एवं जमीनी हकीकतों पर प्रतिक्रिया करने में उसकी सुस्ती को देखते हुए, राष्ट्रपति यामीन अपने विकास एजेंडे को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, और उम्मीद कर रहे हैं कि वे अधिक रोजगारों का सृजन कर सकेंगे जिसे युवा स्वीकार करेंगे तथा वे उन्हें अपने वोटों में तबदील कर सकेंगे। फिर भी, एक संकीर्णतावादी समाज में — और केवल धमिर्क लिहाज से ही-यामीन के अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक ऋण बॉन्ड को उतारने के प्रयासों के राजनीतिक दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।

इसका अभी भी अर्थ यही होगा कि आईएमएफ की तर्ज पर कोई शर्त नहीं होगी जिसने बुरी तरह नाशीद के अल्पकालिक शासन काल को शर्मिंदा किया था। चीन को निर्विवाद रूप से अपना विकास साझीदार चुन कर यामीन ने एक प्रकार का ‘स्थिर मित्र’ भी बना लिया है जो संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य मानवाधिकार मंचों पर मालदीव के पक्ष में मतदान करेगा।

लेकिन एक ऐसे देश में, जहां कोई इस प्रकार के मिलन को लोग पसंद कर पाएंगे, यह देखा जाना अभी बाकी है और कई बार ऐसा महसूस भी किया जा रहा है संभवतः अब इसके लिए काफी देर हो चुकी है। आबादी का एक हिस्सा धार्मिक मामलों में लगातार संकीर्णवादी होता जा रहा है और यह अस्पष्ट है कि वे एक कम धार्मिक और कम्युनिस्ट देश के साथ लगातार संबंध बढ़ाने को लेकर किस प्रकार से प्रतिक्रिया (जब चुनावों में मतदान करने उनकी बारी आएगी, उस वक्त) व्यक्त करेंगे।

यामीन के मालदीव में माले हवाई अड्डा सी ब्रिज जैसे विकास के स्पष्ट संकेत चीन की फंडिंग एवं प्रत्यक्ष भागीदारी की वजह से हैं जिसके दोतरफा आयाम हो सते हैं। एक तरफ तो भारत के जीएमआर ग्रुप की भागीदारी आबादी केे एक बड़े हिस्से में ‘राष्ट्रवादी, संप्रभु’ भावनाएं भड़का सकती हैं, वहीं दूसरी तरफ आगे बढ़कर मालदीव-चीन के संबंधों में भी यही बात दिख सकती है।

अधिक दर्शनीयता

अपने शासन काल के दौरान, नाशीद खेमा लोगों के बदलते मूड को भांप पाने में सुस्त रहा क्योंकि वे अपने स्वयंभू लोकतांत्रिक साख को लेकर थोड़े अति उत्साहित हो गए और हवा में उड़़ने लगे, बाद में हालांकि उन्होंने उसका भी फिर से त्याग कर दिया। पूरी तरह इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ समय के बाद मालदीव की विकास परियोजनाओं में भागीदारी एवं प्रतिभागिता को लेकर ऐसी ही भावना विकसित होने लगे- हालांकि इस मामले में अभी तक ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह संकेत मिलता हो कि वे प्रत्यक्ष रूप से देश के आंतरिक मामलों में ‘हस्तक्षेप’ करते हों। यह छवि ऐसी थी जिसे भारत न तो भुला पाई और न ही उसे मिटा पाई।

इसी मामले को लेकर ऐसा लगता है कि यामीन के नेतृत्व में मालदीव, सऊदी अरब, जोकि इस्लाम के पवित्र नगरों का सरपरस्त है, के साथ काफी ज्यादा और अधिक सुस्पष्ट पहचान के साथ धार्मिक मुद्दों के समाधान की उम्मीद कर रहा है। विभिन्न स्तरों पर काफी अधिक द्विपक्षीय यात्राएं हो रही हैं जिसमें कई अवसरों पर यामीन खुद ही नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि वह ऐसा प्रभाव छोड़ना चाहते हैं कि सऊदी अरब न केवल एक राष्ट्र के रूप में मालदीव का भरोसेमंद दोस्त है बल्कि सऊदी राजशाही-व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तर पर भी उसका मित्र है और धार्मिक रूप से उतना ही भरोसेमंद है जैसैकि चीन वैचारिक रूप से साम्यवादी है और उसका भरोसेमंद मित्र है।

यामीन के नेतृत्व में, सऊदी अरब का मालदीव में मजहबी संस्थानों एवं विद्वानों पर खर्च बढ़ा है और यह पहले से अधिक दिख भी (या दिखाया भी जा रहा) रहा है। लेकिन तब बिना चीन के नजरिये से, गयूम प्रयोग का यह एक प्रचार वाक्य या कहें कि टैग-लाइन है क्योंकि उनकी विकास पहलों ने मालदीव एवं मालदीव के निवासियों को आर्थिक रूप से समृद्ध बना दिया था, जहां से उन्होंने यामीन के तहत 1978 में आरंभ किया था लेकिन कुछ समय के बाद, इसने चुनावी दृष्टि से उनकी मदद नहीं की।

‘भ्रष्टाचार मानव की प्रकृति है’

फिर भी, केवल विकास एवं चीन-भारत समीकरण ही मालदीव के पुराने मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं, जिनका प्रभाव भले ही कम हो रहा हो, लेकिन वह जल्द समाप्त नहीं हो सकता, विशेष रूप से, परिवार और उन धार्मिक मूल्यों को देखते हुए जिन्हें वे प्रेरित करते हैं, खासकर, शहरी केंद्रों के बाहर। उनके लिए, राष्ट्रपति यामीन का ऋण बॉन्ड को न्यायोचित ठहराना एवं भ्रष्टाचार को ‘मानवीय प्रकृति’ के साथ जोड़ना-ये सभी राजनीतिक एवं धार्मिक नैतिकता, और इस प्रकार ‘राष्ट्रीय गौरव’ के मुद्दे बन सकते हैं।

मालदीव इंडिपेंडेंट ने उन्हे माले की बैठक में पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उद्धृत किया, “.. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इसके (भ्रष्टाचार के) लिए इस सरकार में कोई जगह नहीं है। इसके लिए जगह है।” उन्होंने कहा कि, “मैं इसे बिल्कुल ही न्यायोचित ठहराने का प्रयास नहीं कर रहा। बहरहाल, यह ऐसी चीज है जो मानव की प्रकृति में है और यह मालदीव निवासियों की प्रकृति में भी बनी रहेगी ही। मैं यही कहने का प्रयास कर रहा हूं। बहरहाल, उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने देश के भ्रष्टाचार रोधी आयोग, जो 2008 लोकतंत्र संविधान के तहत एक संगठन है, के साथ अधिकतम सहयोग किया है।”

दक्षिण एशिया के लोगों के लिए, यामीन का स्पष्टीकरण एक अधिक विख्यात भारतीय नेता, स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भ्रष्टाचार को एक ‘वैश्विक अवधारणा’ बताये जाने की पुनरावृत्ति हो सकती है। आज के मालदीव में, विपक्षी एमडीपी ऐसा अवसर हाथ में आ जाने पर इसे लेकर यामीन की आलोचना करने का कोई अवसर चूकने वाली नहीं थी।

एक बयान में, पार्टी ने यामीन की टिप्पणियों को ‘खतरनाक’ और इस्लाम के मूल्यों के खिलाफ बताया। मालदीव्स इंडीपेंडेंट ने एमडीपी बयान को उद्धृत करते हुए कहा, “जब अब्दुल्ला यामीन की सरकार के वरिष्ठ अधिकारी अपनी चोरी एवं घोटाले के खिलाफ कोई तर्कपूर्ण बचाव नहीं पेश कर सके, तो अब वे कह रहे हैं कि चोरी और भ्रष्टाचार मानवीय प्रकृति है और वे घोटाले और भ्रष्टाचार को ऐसे छोटे अपराध करार दे रहे हैं जिनसे समाज को चिंतित नहीं होना चाहिए।”

एमडीपी के कुछ नेताओं ने दावा भी किया कि भ्रष्टाचार विरोधी संगठन के ऊपर यामीन का दबदबा कई प्रकार से उनके एवं उनके अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की राह में आड़े आ रहा है। जाहिर है, पार्टी को ऐसा भी प्रतीत हो रहा है कि उसके कुछ आरोप और इसके बयान का चुनावों में अच्छा प्रभाव पड़ेगा जैसाकि राष्ट्रपति गयूम के समय उनके मामले में हुआ था।

ऐसा ही मामला एमडीपी की राह में भी आ सकता है जो अन्य यामीन विरोधी ताकतों के साथ गठजोड़ करने की कोशिश कर रही है जबकि पहले उन सभी को ‘भ्रष्ट एवं अलोकतांत्रिक’ करार देते हुए उनके खिलाफ सख्त लफ्जों का इस्तेमाल कर चुकी है। उनकी सफलता इस बात में निहित करेगी कि पार्टी अन्य चुनावी मुद्दों को पहले की तुलना में कितने अधिक जोर शोर से उठाती है जितनी वह पहले करती आ रही है और देश का भविष्य भी 2018 के चुनावों के परिणाम पर निर्भर करता है कि ये सारी पार्टियां कितनी कामयाबी से पुराने दशक की ‘मार्केटिंग’ कर पाई हैं।

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