Published on Apr 29, 2024 Updated 0 Hours ago

स्लोवाकिया के राष्ट्रपति चुनाव में पीटर पेलेग्रिनी की जीत हुई है. इसके बाद इस बात की आशंका जताई जा रही है कि कहीं अब स्लोवाकिया भी यूक्रेन के मुद्दे पर हंगरी की राह पर ना चल पड़े. ये यूरोपीयन यूनियन को चिंता में डालने वाली ख़बर है.

स्लोवाकिया: यूरोपीयन यूनियन का नया सिरदर्द!

सजावटी पद यानी जिस पद पर बैठे नेता को नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार नहीं होता, उस पद के लिए हुए चुनाव को आम तौर पर ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती. ऐसा ही कुछ हाल में स्लोवाकिया में हुए राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान भी हुआ. 6 अप्रैल को हुए राष्ट्रपति चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री पीटर पेलेग्रिनी ने पूर्व विदेश मंत्री इवान कोरकोक को हराया. इस जीत के साथ ही स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने सरकारी तंत्र के उस आखिरी अहम पद पर भी कब्ज़ा कर लिया, जो अब तक विपक्ष के पास था.

स्लोवकिया में 23 मार्च को राष्ट्रपति पद के लिए पहले दौर की वोटिंग हुई. इस राउंड में सबसे ज्यादा 42.5 प्रतिशत वोट कोरकोक को जबकि पेलेग्रिनी को 37 फीसदी वोट मिले.


कौन थे चुनाव में उम्मीदवार?

स्लोवकिया में 23 मार्च को राष्ट्रपति पद के लिए पहले दौर की वोटिंग हुई. इस राउंड में सबसे ज्यादा 42.5 प्रतिशत वोट कोरकोक को जबकि पेलेग्रिनी को 37 फीसदी वोट मिले. इसके बाद इन्हीं दोनों में फाइनल मुकाबला हुआ.

पीटर पेलेग्रिनी प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको के लंबे वक्त से सहयोगी रहे हैं. हालांकि बीच में कुछ दिन दोनों के बीच मनमुटाव हुआ. पेलेग्रिनी पहले फिको की ही स्मेर-एसडी पार्टी में थे. ये पार्टी स्लोवाकिया में वामंपथी राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है. फिको ने 2018 से 2020 के बीच पेलेग्रिनी को प्रधानमंत्री भी बनाया क्योंकि खोज़ी पत्रकार जान क्यूसियका और उनकी मंगेतर की हत्या के बाद भ्रष्टाचार के ख़िलाफ हुए प्रदर्शन की वजह से फिको को इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद पेलेग्रिनी उनसे अलग होकर हलास (वॉयस) पार्टी में चले गए. हलास को स्मर-एसडी पार्टी की तुलना में नरम रुख़ वाला माना जाता है. लेकिन 2022 में जब रॉबर्ट फिको की पार्टी सत्ता में लौटी तो हलास पार्टी ने उसके साथ गठबंधन कर लिया. इस सरकार में पेलेग्रिनी को संसद का स्पीकर बनाया गया.

अगर बात इवान कोरकोक की करें तो उनका करियर एक राजनयिक का रहा है. वो 2020 से 2022 के बीच स्लोवाकिया के विदेश मंत्री रहे. इससे पहले वो यूरोपीयन यूनियन और NATO में स्लोवाकिया के दूत रहे. इसके अलावा वो जर्मनी और अमेरिका में राजदूत भी रह चुके हैं. रॉबर्ट पेलेग्रिनी से पहले ज़ुज़ाना कपुतोवा स्लोवाकिया की राष्ट्रपति रहीं लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.

चुनाव अभियान

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि स्लोवाकिया में राष्ट्रपति का पद महज एक सजावटी पद होता है लेकिन राष्ट्रपति के पास कुछ ऐसे अधिकार हैं, जिन्हें काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. वो किसी भी विधेयक को वीटो कर सकता है. अन्तर्राष्ट्रीय संधियों पर मुहर लगा सकता है. संवैधानिक अदालतों में जजों की नियुक्ति का अधिकार भी राष्ट्रपति के पास होता है. ऐसे में नीतियों को लेकर तो कुछ दांव में नहीं था लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के अभियान में जिस मुद्दे ने अहम भूमिका निभाई, वो थी रशिया-यूक्रेन युद्ध में स्लोवाकिया का क्या रुख होना चाहिए. प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको का झुकाव रूस की तरफ है. सत्ता में आने के बाद उन्होंने यूक्रेन को भेजे जाने वाली हथियारों की खेप रोक दी थी. ये एक तरह से उस देश का यू-टर्न था, जो अब तक इस युद्ध में यूक्रेन का समर्थन कर रहा था. स्लोवाकिया ने अपने लड़ाकू विमानों मिग-29 के पूरे बेड़े को यूक्रेन को दान करने का फैसला किया था. पेलेग्रिनी एक तरफ ख़ुद को शांति का समर्थक बताते हैं, दूसरी तरफ उन्होंने इवान कोरकोक पर ज़बरदस्त हमला किया. कोरकोक को यूरोपीयन यूनियन और NATO का समर्थक माना जाता है. युद्ध में भी वो यूक्रेन की मदद कर रहे थे. यही वजह है कि पेलेग्रेनी कैंप के लोग कोरकोक को "वॉरमोंगर" यानी युद्ध उन्माद फैलाने वाला बता रहे थे. उनका कहना था कि अगर इवान कोरकोक राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं तो वो स्लोवाकिया की सेना को युद्ध में यूक्रेन की मदद करने के लिए भेज देंगे. हालांकि उनके इस दावे का कोई ठोस आधार नहीं था और स्लोवाकिया का संविधान इसकी इजाज़त भी नहीं देता.

स्लोवाकिया में राष्ट्रपति का पद महज एक सजावटी पद होता है लेकिन राष्ट्रपति के पास कुछ ऐसे अधिकार हैं, जिन्हें काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. वो किसी भी विधेयक को वीटो कर सकता है. 


हालांकि कोरकोक ने इन आरोपों का खंडन तो किया लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि अगर वो राष्ट्रपति बने तो यूक्रेन को स्लोवाकिया के समर्थन को दोगुना कर देंगे. कोरकोक का मानना है कि स्लोवाकिया की सुरक्षा के लिए ये ज़रूरी है कि यूक्रेन सुरक्षित रहे. उनका कहना है कि अगर यूक्रेन सुरक्षित नहीं रहेगा तो युद्ध का ख़तरा स्लोवाकिया की दहलीज़ तक आ जाएगा. ऐसे में कोरकोक के ख़िलाफ पेलेग्रिनी के आक्रामक चुनाव अभियान ने असर दिखाया. राष्ट्रपति चुनाव के पहले राउंड में मिली हार को पलटते हुए पेलेग्रिनी ने निर्णायक वोटिंग में 53 प्रतिशत वोट हासिल किए.

चुनाव नतीजों का मूल्यांकन

इन चुनाव नतीजों से ये साबित हो गया कि स्लोवाकिया सरकार में सभी अहम पदों पर अब प्रधानमंत्री फिको और उनके सहयोगियों का नियंत्रण है. यानी अब सरकार के किसी भी विधेयक के पारित होने में कोई बाधा नहीं आएगी. इसके अलावा अब सरकार पर किसी तरह का मानसिक अंकुश भी नहीं रहा. इससे पहले जब ज़ुज़ाना कैपुटोवा राष्ट्रपति थी तो प्रधानमंत्री फिको खुलकर अपनी मनमर्ज़ी नहीं चला पा रहे थे. इसी अंकुश की वजह से स्लोवाकिया वैचारिक रूप से पश्चिमी देशों (यूरोपीयन यूनियन) की विपरीत दिशा में नहीं जा पाया था.

विशेषज्ञ इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि इन चुनाव नतीजों का देश की कानून-व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा. फिको सरकार स्पेशल प्रोसिक्यूटर ऑफिस को पहले ही ख़त्म कर चुकी है. इसका काम करप्शन के मामलों की जांच करना था. माना जा रहा है कि सरकार कुछ और कानूनों में बदलाव कर सकती है. पेलेग्रिनी के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री फिको के लिए विधेयक पास कराना आसान हो जाएगा. इसी तरह की चिंताएं मीडिया परिदृश्य में होने वाले बदलावों को लेकर भी जताई जा रही हैं.

और सबसे अहम सवाल. यूक्रेन को स्लोवाकिया के समर्थन का क्या होगा. फिको पहले भी इस मामले में यूरोपीयन यूनियन से अलग रुख अपना चुके हैं. उनका मानना है कि इस युद्ध की वजह से स्लोवाकिया के नागरिक एक-दूसरे के ख़िलाफ हो सकते हैं. इसका मतलब ये निकाला गया कि वो यूक्रेन को दिया जा रहा स्लोवाकिया का समर्थन वापस ले सकते हैं. इससे रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों की एकजुट कार्रवाई में दरार पड़ सकती है. पश्चिमी देशों की एक चिंता फिको और पेलेग्रिनी की तरफ से सुझाए जा रहे शांति प्रस्तावों को लेकर भी है. स्लोवाकिया का कहना है कि यूक्रेन युद्ध तुरंत रुकना चाहिए. इसका अर्थ ये हुआ कि यूक्रेन के जो हिस्से फिलहाल रूस के कब्ज़े में हैं, वो रूस के पास ही रहेंगे. यानी यूक्रेन को अपने इलाके गंवाने पड़ेंगे.

स्लोवाकिया का कहना है कि यूक्रेन युद्ध तुरंत रुकना चाहिए. इसका अर्थ ये हुआ कि यूक्रेन के जो हिस्से फिलहाल रूस के कब्ज़े में हैं, वो रूस के पास ही रहेंगे. यानी यूक्रेन को अपने इलाके गंवाने पड़ेंगे.

पश्चिमी देशों को शक है कि स्लोवाकिया भी हंगरी की राह पर जा सकता है. इसका मतलब ये होगा कि पोलैंड में डोनाल्ड टस्क की सरकार के गठन पर यूरोपीयन यूनियन को जो खुशी हुई, वो बहुत जल्द ख़त्म होने वाली है. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान को स्लोवाकिया के रूप में नया सहयोगी मिल सकता है. ये यूरोपीयन यूनियन के लिए नया सिरदर्द होगा.

किस बात की प्रबल संभावना?

अब ये संभावना जताई जा रही है कि स्लोवाकिया का बहुत जल्द या कुछ दिनों बाद यूरोपीयन यूनियन के साथ टकराव हो सकता है. इस बात पर लगातार नज़र रखनी पड़ेगी कि स्लोवाकिया में भ्रष्टाचार और कानून का राज कमज़ोर तो नहीं हो रहा है. यूक्रेन भी स्लोवाकिया की विदेश नीति पर करीबी नज़र रखेगा. हालांकि पेलेग्रिनी को लेकर पूरी तरह निराश होने की ज़रूरत नहीं है. फिको की तुलना में उन्हें कम कट्टर माना जाता है. हो सकता है कि स्लोवाकिया की विदेश नीति में बड़े बदलाव आएं लेकिन तब तक यूरोप और यूक्रेन को स्लोवाकिया पर नज़र बनाए रखनी होगी.

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Abhishek Khajuria

Abhishek Khajuria

Abhishek Khajuria is a Research Intern with the Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation ...

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