Published on Sep 11, 2020 Updated 0 Hours ago

इस समस्या से निपटने का एक और उपाय ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर रेट्रोफिट के माध्यम से वित्तीय संसाधन जुटाने का है. इसके तहत अमेरिका के चेस्टर शहर की मिसाल दी जाती है.

शहरों में बारिश के पानी के प्रबंधन के लिए पहली चुनौती खड़ी की गई

जलवायु परिवर्तन के चलते अब मॉनसून का मिज़ाज बेहद अस्थिर हो गया है. मॉनसूनी बारिश को लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी कर पाना मुश्किल हो गया है. इसके अलावा हाल के बरसों में किसी सीमित क्षेत्र में अचानक बारिश के बढ़ते चलन के कारण शहरों में बाढ़ की चुनौती बढ़ती जा रही है. इससे लोगों की जान भी जाती है और उनकी रोज़ी भी छिनती है. हाल ये है कि मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, और बैंगलोर जैसे बड़े शहर ही नहीं भुवनेश्वर, और तिरुवनंतपुरम जैसे छोटे शहर नियमित रूप से जल भराव और बाढ़ का शिकार बन रहे हैं. मॉनसून का सीज़न आते ही इन शहरों में चाहे कुछ दिनों के लिए ही सही, मगर बाढ़ की समस्या खड़ी ज़रूर होती है. जिससे जन और धन, दोनों की क्षति होती है.

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जून 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी. इसका शीर्षक था-भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन. इस रिपोर्ट में सरकार ने साफ कहा था कि दिन में एक बार या कई बार अचानक होने वाली भारी बारिश ने पूरे देश में बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है. रिपोर्ट में आगे कहा गया था कि, लोकल स्तर पर अचानक भारी बारिश के कारण शहरी इलाक़ों में बाढ़ की समस्या बढ़ती जा रही है.

2019 में दक्षिण पश्चिम मॉनसून सीज़न को लेकर हुए एक अध्ययन में भी मॉनसून के अस्थिर होने की बात को विस्तार से बताया गया था. इस अध्ययन में कहा गया था कि जून महीने में पूरे भारत में औसत रूप से 33 प्रतिशत कम बारिश हुई थी. लेकिन, जुलाई महीना आते आते पता चला कि औसत से 4.6 प्रतिशत ज़्यादा बारिश हो चुकी थी. और अगस्त 2019 तक पूरे देश में औसत से 35 प्रतिशत अधिक बारिश हो चुकी थी. इसका अर्थ ये है कि आज बारिश के दिन तो कम हो गए हैं. मगर बरसात की मात्रा अधिक हो गई है. इससे कुछ घंटों के भीतर अचानक बहुत तेज़ बारिश हो जाती है. जिससे शहरों की जल निकासी व्यवस्था पर दबाव बहुत बढ़ जाता है. इसकी एक वजह ये भी है कि शहरों से जल निकासी के सिस्टम को न तो ऐसे अचानक पड़ने वाले दबाव के लिए डिज़ाइन किया गया था. न ही उनमें ये क्षमता है कि वो अचानक भारी बारिश के पानी की निकासी का काम कर सकें.

आज बारिश के दिन तो कम हो गए हैं. मगर बरसात की मात्रा अधिक हो गई है. इससे कुछ घंटों के भीतर अचानक बहुत तेज़ बारिश हो जाती है. जिससे शहरों की जल निकासी व्यवस्था पर दबाव बहुत बढ़ जाता है.

शहरों के ड्रेनेज सिस्टम बहुत पुराने पड़ चुके हैं. और ये मैनुअल ऑन सीवरेज ऐंड सीवरेज ट्रीटमेंट द्वारा तय किए गए दिशा निर्देशों के अनुसार बनाए गए थे. शहरों के जल निकासी के सिस्टम के लिए इन दिशा निर्देशों को सेंट्रल पब्लिक हेल्थ ऐंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग ऑर्गेनाइज़ेशन (CPHEEO) ने तैयार किया है. CPHEEO की गाइडलाइन्स के मुताबिक़, भारी बारिश का पानी निकालने वाले नालों को प्रति घंटे 12 से 15 मिलीमीटर बारिश का बोझ सहने के हिसाब से बनाया गया था. लेकिन, ये मानक आज के दौर की भारी बारिश के लिहाज़ से बहुत पुराने पड़ चुके हैं. इस समस्या का समाधान करने के लिए, 2019 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MOHUA) ने स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम के लिए ड्राफ्ट मैन्युअल को जारी किया था. जिसमें नाले बनाने के नए डिज़ाइन संबंधी निर्देश थे. राज्य सरकारों को अब इन नए नियमों का पालन करते हुए अपने अपने यहां के शहरी प्रशासन निकायों को ये निर्देश देना था कि वो ड्रेनेज सिस्टम को इन नए दिशा निर्देशों के अनुसार ढालें. फिर चाहे इसके लिए उन्हें पुराने ड्रेनेज सिस्टम की जगह नयी व्यवस्था का विकास करना हो. या फिर, पुरानी जल निकासी व्यवस्था का पुनर्निर्माण किया जाए. इस ड्राफ्ट मैन्युअल में ड्रेनेज व्यवस्था के बजट और उसके लिए पूंजी जुटाने को लेकर भी सुझाव दिए गए हैं. हालांकि, अभी इन दिशा निर्देशों को लागू नहीं किया गया है. ये केल सुझाव के तौर पर दिए गए हैं.

वर्ष 2018-19 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे (IIT Bombay) ने देश के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की राजधानियों में भारी बारिश के दिनों पर एक अध्ययन किया था. इस स्टडी में पाया गया कि लगभग हर शहर में एक घंटे की भारी बारिश के दौरान लगभग 50 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी. और भारी बारिश के इस आंकड़े का सीधा संबंध इन शहरों में अचानक आई बाढ़ से पाया गया था. इस अध्ययन में देखा गया कि भारत के पूर्वी तट पर स्थित ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में 2018-19 में हर दिन 50 मिलीमीटर से अधिक बारिश की तादाद 11 गुना अधिक थी. और मॉनसून सीज़न में 100 मिलीमीटर प्रति दिन बारिश होने की मात्रा छह गुना अधिक थी. 20 अगस्त 2018 को भुवनेश्वर में 190 मिलीमीटर बारिश हुई थी. इसी बीच कोलकाता में एक दिन के दौरान 50 मिलीमीटर की मात्रा दस गुना अधिक थी और एक दिन में 100 मिलीमीटर या इससे अधिक बारिश की तादाद पूरे सीज़न में तीन गुना अधिक दर्ज की गई. 25 जून 2018 को कोलकाता में 160 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी. इसी दौरान, मुंबई में भारी बारिश के लगातार नए रिकॉर्ड दर्ज किए जा रहे हैं. मुंबई में एक दिन में 50 मिलीमीटर से अधिक बारिश, सीज़न में 12 गुना अधिक हो रही है तो एक दिन में 100 मिलीमीटर या इससे अधिक बरसात. 2018 के मॉनसून सीज़न में नौ गुना अधिक दर्ज की गई. 24 जून 2018 को मुंबई में 230 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी. इन आंकड़ों से साफ़ है कि जब तक शहरों की जल निकासी की क्षमता को नहीं बढ़ाया जाएगा, तब तक शहरों में जल भराव और बाढ़ की समस्या ख़त्म नहीं की जा सकेगी.

बरसाती नालों का आकार बढ़ाने के काम को तो प्राथमिकता के आधार पर करना ही होगा. इसके अलावा, शहरों के ड्रेनेज सिस्टम में और भी कई कमियां हैं. इन्हीं कमियों के कारण तमाम शहरों की जल निकासी व्यवस्था ढह गई है. शहरों के ड्रेनेज सिस्टम काम न करने की वजह उनका ठीक रख रखाव और सही ढंग से संचालन न होना भी है. आइए हम शहरों के ड्रेनेज सिस्टम की इन ख़ामियों और उन्हें दुरुस्त करने के संभावित उपायों पर एक नज़र डालते हैं:

बरसाती नालों का आकार बढ़ाने के काम को तो प्राथमिकता के आधार पर करना ही होगा. इसके अलावा, शहरों के ड्रेनेज सिस्टम में और भी कई कमियां हैं. इन्हीं कमियों के कारण तमाम शहरों की जल निकासी व्यवस्था ढह गई है.

  1. ज़मीन के भीतर के नालों के आंकड़ों और नक़्शों का  होना: शहरी निकायों के प्रशासन को अक्सर ये पता नहीं होता कि उनके यहां ज़मीन के नीचे और ऊपर बारिश का पानी निकालने का नेटवर्क कैसा है और कितना बड़ा है. इसकी वजह ये है कि कभी भी शहरी निकाय अपने यहां के नालों और नालियों की मैपिंग नहीं करते. मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में ज़मीन के नीचे बिछाए गए पाइप सौ साल से भी ज़्यादा पुराने हैं. ऐसे में सभी शहरों के निगमों को चाहिए कि वो अपने यहां की अंडरग्राउंड नालियों और पाइप की मैपिंग करें. इसके अलावा ज़मीन के ऊपर बने नालों की भी मैपिंग करें. इससे उनको पता चलेगा कि उन शहरों के नालों-नालियों के मौजूदा हालात कैसे हैं. इसके अलावा उन्हें नए बनाए गए नालों के बारे में भी अंदाज़ा होगा. नालों की मैपिंग से वो पानी के क़ुदरती बहाव के अनुसार नए नाले या नालियां बना सकेंगे. अंडरग्राउंड पाइप बिछा सकेंगे.
  1. नालों के रखरखाव और संचालन की व्यवस्था करना: मुंबई में 2005 में आई बाढ़ के बाद मुंबई नगर निगम ने शहर के नालों को अपग्रेड करने के लिए युद्ध स्तर पर काम शुरू था. इसे बृहनमुंबई स्टॉर्म वाटर ड्रेन (BRIMSTOWAD) अपग्रेडेशन प्रोजेक्ट का नाम दिया गया था. अब इस प्रोजेक्ट को भी पंद्रह बरस बीत चुके हैं. फिर भी 20 अरब रुपयों के इस प्रोजेक्ट का केवल 70 प्रतिशत हिस्सा ही पूरा हुआ है. इसके अतिरिक्त, नालों की साफ सफाई, उनसे सिल्ट और प्लास्टिक जैसे कचरे निकालने का काम हर मॉनसून सीज़न से पहले पूरा किया जाना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए की वो आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी किए गए मैन्युअल के अनुसार इन कामों को प्राथमिकता के आधार पर कराएं. 
  1. ड्रेनेज सिस्टम से कटे हुए अनियमित इलाक़े: शहरों में अतिक्रमण करके जो अनियमित बस्तियां बस जाती हैं, वो अक्सर शहर के ड्रेनेज सिस्टम से नहीं जुड़ी होतीं. अक्सर वहां से निकलने वाला पानी, शहर के ड्रेनेज नेटवर्क से जा मिलता है. इन अवैध बस्तियों का पानी, सीवेज और कचरा शहरों के मौजूदा सिस्टम को चोक कर देता है. ऐसे में शहरी निकायों द्वारा इस बात का सघन अभियान चलाना चाहिए कि कि या तो वो ऐसी अवैध बस्तियों को बसने से रोकें. या फिर, इन बस्तियों में पानी, कचरा और सीवेज की निकासी को शहर के ड्रेनेज नेटवर्क से जोड़ें.

इस समस्या से निपटने का एक और उपाय ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर रेट्रोफिट के माध्यम से वित्तीय संसाधन जुटाने का है. इसके तहत अमेरिका के चेस्टर शहर की मिसाल दी जाती है.

  1. फंड की कमी: शहरों के प्रशासनिक निकायों के पास बारिश के पानी की निकासी के सिस्टम को अपग्रेड करने के लिए पैसों की भारी कमी है. चूंकि, नगर निगमों का ज़्यादातर पैसा मौजूदा सिस्टम के संचालन और रख-रखाव में ही ख़र्च हो जाता है. शहरों के ड्रेनेज सिस्टम को अपग्रेड करने के लिए AMRUT योजना के तहत निकायों को पैसे दिए जाते हैं. जिनका इस्तेमाल होना ही चाहिए. इसके अलावा आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय शहरों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि वो सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी (PPP) के तहत शहरों के ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर बनाने की कोशिश करें. इसके अलावा शहरी मामलों का मंत्रालय, राज्य सरकारों को ये सुझाव भी देता है कि वो शहर के नागरिकों पर यूज़र चार्ज लगाए. जिससे वो शहरों के ड्रेनेज सिस्टम का इस्तेमाल करने के एवज़ में पैसे दें. इस समस्या से निपटने का एक और उपाय ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर रेट्रोफिट के माध्यम से वित्तीय संसाधन जुटाने का है. इसके तहत अमेरिका के चेस्टर शहर की मिसाल दी जाती है. चेस्टर शहर ने सामुदायिक स्तर पर निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी (CBP3) की मदद से बारिश के पानी की निकासी के बुनियादी ढांचे की योजना बनाकर, उसके लिए फंड जुटाए और फिर जल निकासी का नेटवर्क तैयार किया. चेस्टर ने इस तरीक़े से जल निकासी के सिस्टम को बनाने के लिए 5 करोड़ डॉलर जुटाए हैं. अब अगले 20-30 वर्षों में चेस्टर शहर में 350 एकड़ का ड्रेनेज नेटवर्क विकसित किया जाएगा. ये शहर में जल भराव और प्रदूषण की समस्या से छुटकारा दिलाएगा.

अगर भारत के शहर फौरन ही ये उपाय करके अपने यहां के ड्रेनेज सिस्टम को नहीं सुधारते हैं, तो हालात और भी ख़राब होते जाएंगे. भारत जो जलवायु परिवर्तन के जोखिम वाले देशों में पहले ही पांचवें नंबर पर है, वो इस फ़ेहरिस्त में और भी नीचे खिसक जाएगा.

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