Author : Sohini Bose

Published on Oct 05, 2020 Updated 0 Hours ago

संयुक्त राष्ट्र ने ओडिशा की तैयारी को ‘वैश्विक सफलता की कहानी’ के रूप में मान्यता दी और दूसरे शहरों के लिए भी इसे मॉडल के तौर पर इस्तेमाल करने की योजना बनाई.

भारत में आपदा प्रबंधन मॉडल: समुदाय आधारित विकास में ओडिशा की अग्रणी भूमिका

बंगाल की खाड़ी के तट पर बसा भारत का पूर्वी राज्य ओडिशा अक्सर चक्रवात, बाढ़ और कभी-कभी सुनामी की चपेट में आता है. यही वजह है कि अक्सर ओडिशा को देश का ‘आपदा राज्य’ कहा जाता है. लेकिन इस साल अगस्त की शुरुआत में ओडिशा के तट पर बसे दो गांवों, गंजम ज़िले का वेंकटरायपुर और जगतसिंहपुर ज़िले का नोलियासाही, को UNESCO-इंटरगवर्नमेंटल ओशियानोग्राफिक कमीशन से ‘सुनामी के लिए तैयार’ की मान्यता मिली. इसकी वजह से हिंद महासागर के क्षेत्र में भारत पहला ऐसा देश हो गया है जिसने सामुदायिक स्तर पर इस तरह की आपदा से निपटने की तैयारी की है.

हाल के वर्षों में ओडिशा बार-बार अपने तट से टकराने वाली आपदा और लोगों पर उसके असर से मुक़ाबले में आदर्श तौर-तरीक़े अपनाने के लिए ख़बरों में रहा है. आपदा प्रबंधन में समुदाय आधारित जोखिम में कमी ओडिशा के दृष्टिकोण के केंद्र में रहा है. राज्य की आपदा प्रबंधन योजना के विषयों में से एक प्रमुख विषय है “असरदार आपदा प्रबंधन के लिए समुदाय आधारित आपदा तैयारी प्रमुख है.” ये इसलिए क्योंकि किसी भी आपदा के दौरान लोगों पर सबसे ख़राब असर पड़ता है और उन्हें सबसे पहले आपदा का जवाब देना पड़ता है. इसलिए आपदा प्रबंधन की प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी स्थानीय लोगों के अधिकार, स्थानीय ज़रूरत पर ध्यान और एक-दूसरे की मदद की संस्कृति को बढ़ावा देकर नुक़सान की रोकथाम और कम-से-कम नुक़सान को सुनिश्चित करती है. चूंकि भारत बढ़-चढ़कर देश में समुदाय आधारित आपदा जोखिम में कमी और प्रबंधन की प्रणाली को विकसित करने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में ये समझना महत्वपूर्ण है कि समुदाय को आगे रखकर ओडिशा ने हाल की आपदा से कैसे मुक़ाबला किया है. आपदा प्रबंधन के ओडिशा के जिस तरीक़े को पूरे विश्व में तारीफ़ मिली है, उसकी ख़ास बातों की पहचान करना ज़रूरी है.

राज्य की आपदा प्रबंधन योजना के विषयों में से एक प्रमुख विषय है “असरदार आपदा प्रबंधन के लिए समुदाय आधारित आपदा तैयारी प्रमुख है.” ये इसलिए क्योंकि किसी भी आपदा के दौरान लोगों पर सबसे ख़राब असर पड़ता है और उन्हें सबसे पहले आपदा का जवाब देना पड़ता है.

सामुदायिक तैयारी में निवेश: अतीत से सबक

कई मौक़ों पर आपदा प्रबंधन के दौरान कमज़ोर समुदाय के लोग सबसे आगे रहे हैं. इसकी वजह ये है कि उन्हें सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों से आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग मिली है. लेकिन सामुदायिक तैयारी सिर्फ़ आपदा प्रबंधन की गतिविधियों में उनकी भागीदारी तक सीमित नहीं है. इसमें स्थानीय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन विभागों के साथ समुदाय के सदस्यों की प्रभावशाली और सक्रिय सहयोग भी ज़रूरी है. रोकथाम और मुक़ाबले की रणनीति बनाते वक़्त अतीत की आपदा से सबक़ सीखने को भी ध्यान में रखना चाहिए. 1999 में ओडिशा ने एक सुपर साइक्लोन का सामना किया था जिसमें 10,000 लोगों की मौत हो गई थी. उस वक़्त के दुर्भाग्यपूर्ण अनुभव ने राज्य को 480 किमी. लंबे तट पर बहुउद्देशीय चक्रवाती आश्रय स्थल बनाने के लिए प्रेरित किया जो सामुदायिक रसोई और जीवन बचाने वाले उपकरणों से लैस थे. इन आश्रय स्थलों में वो सभी सुविधाएं मौजूद हैं जिनका इस्तेमाल आपातकाल में होता है और यहां प्रचार करने वाली गाड़ियां भी हैं. कुछ इमारतों को भी चक्रवाती शरण स्थली का दर्जा दिया गया है ताकि चक्रवात से बचाए गए लोग अलग-अलग जगह जाने के बदले अपने क़रीबी लोगों के साथ रह पाएं.

सुनामी के एक पुराने अनुभव के आधार पर, जब समुद्र का पानी तटीय इलाक़े में 1.5 किमी. अंदर तक घुस गया था, सरकार ने 328 गांवों को सुनामी के ख़तरे वाले गांव की श्रेणी में रखा और उनकी आपदा तैयारी को बढ़ाने के लिए क़दम उठाए. जिन दो गांवों को समुदाय के प्रदर्शन पर आधारित IOC-UNESCO हिंद महासागर सुनामी तैयारी कार्यक्रम के तहत ‘सुनामी के लिए तैयार’ घोषित किया गया है, वो भी इन गांवों में शामिल हैं. UNESCO की टीम जब दिसंबर 2019 में इन गांवों में आई तो गांव में रहने वाले लोगों ने इस कार्यक्रम के लिए तैयार मानदंडों के मुताबिक़ अपनी तैयारी का प्रदर्शन किया जिसमें सामुदायिक सुनामी जोखिम में कमी की योजना से लेकर सुनामी के जोखिम वाले इलाक़े घोषित करना, फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए आसानी से समझ में आने वाला नक्शा, सालाना आयोजित होने वाला सुनामी का सामुदायिक अभ्यास और हर वक़्त आधिकारिक सुनामी अलर्ट हासिल करने के लिए भरोसेमंद ज़रिया शामिल है. सरकार की योजना है कि राज्य के छह तटीय ज़िलों में से हर ज़िले में ऐसा एक आदर्श गांव हो.

बचाव के काम में लोगों की सक्रिय भूमिका

सामुदायिक स्तर पर आपदा तैयारी तेज़ी से एलर्ट की जानकारी लोगों तक पहुंचाने और लोगों को इकट्ठा करने में मददगार है. ये बचाव के काम को असरदार ढंग से लागू करने के लिए ज़रूरी क़दम हैं. आपदा प्रबंधन में ओडिशा की कामयाबी के पीछे सामुदायिक तैयारी प्रमुख वजह है. विश्व बैंक के मुताबिक़ ओडिशा में लोगों तक पहुंचने की अच्छी प्रणाली है जिसके ज़रिए वक़्त पर लोगों तक पहुंचा जा सकता है. 450 साइक्लोन आश्रय स्थल का एक नेटवर्क है और हर आश्रय स्थल में एक देखरेख समिति है जो राहत और बचाव के काम में प्रशिक्षित है. इन आश्रय स्थलों और समितियों के नेटवर्क के ज़रिए राज्य ने सभी लोगों को जोड़ रखा है. इससे लोगों तक चेतावनी पहुंचाने और उनके बचाव का काम आसान हो जाता है.

हाल की आपदाएं बचाव के काम में ओडिशा की तैयारी की गवाही देती हैं. बंगाल की खाड़ी में अब तक के सबसे ज़ोरदार चक्रवाती तूफ़ानों में से एक अंफान के दौरान राज्य में क़रीब 2 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया गया. तूफ़ान से निपटने की तैयारी उसी वक़्त शुरू हो गई जब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अलर्ट जारी किया और मरम्मत का काम भी युद्ध स्तर पर किया गया जिससे कि जैसे ही चक्रवात का रुख़ ओडिशा से पश्चिम बंगाल की तरफ़ हुआ बिजली की बहाली का 85 प्रतिशत से ज़्यादा काम हो चुका था. ओडिशा में अंफान से तबाही का जायज़ा लेने के लिए पहुंची केंद्रीय टीम के प्रमुख, केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री प्रकाश ने बयान दिया कि “लोगों की भागीदारी” आपदा प्रबंधन की प्रक्रिया में “ओडिशा सरकार की उपलब्धियों” में से एक है.

450 साइक्लोन आश्रय स्थल का एक नेटवर्क है और हर आश्रय स्थल में एक देखरेख समिति है जो राहत और बचाव के काम में प्रशिक्षित है. इन आश्रय स्थलों और समितियों के नेटवर्क के ज़रिए राज्य ने सभी लोगों को जोड़ रखा है. इससे लोगों तक चेतावनी पहुंचाने और उनके बचाव का काम आसान हो जाता है.

अंफान से पहले भी ओडिशा बचाव के काम के लिए तारीफ़ें बटोर चुका है. “शून्य हादसे” के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ओडिशा ने मानव इतिहास के सबसे बड़े बचाव अभियान में से एक को अंजाम दिया. 2019 में सुपर साइक्लोन फणी के दस्तक देने से पहले क़रीब 12 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया गया. स्थानीय अधिकारियों ने जिस तरह बचाए गए लोगों को 4,000 आश्रय स्थलों में जगह दी उसकी तारीफ़ संयुक्त राष्ट्र ने भी की. 4,000 में से 800 आश्रय स्थल ऐसे भी थे जो तूफ़ान को भी झेल सकते थे. 2013 में जब चक्रवाती तूफ़ान फैलिन आया था उस वक़्त भी क़रीब 10 लाख लोगों को बचाया गया. फैलिन के बाद संयुक्त राष्ट्र ने ओडिशा की तैयारी को ‘वैश्विक सफलता की कहानी’ के रूप में मान्यता दी और दूसरे शहरों के लिए भी इसे मॉडल के तौर पर इस्तेमाल करने की योजना बनाई.

भविष्य का दृष्टिकोण

समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की सबसे ज़रूरी ख़ासियत है प्राकृतिक आपदा में लोगों के ख़तरे या जोखिम को कम करना. इसको हासिल करने के लिए दीर्घकालीन योजना बनाना ज़रूरी है जहां संभावित ख़तरों जैसे जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखा जाए क्योंकि जलवायु परिवर्तन भविष्य में प्राकृतिक आपदा की तीव्रता और बार-बार आने का ख़तरा बढ़ाता है. इसलिए ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन योजना आपदा जोखिम में कमी को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना चाहती है. इसका मक़सद आपदा जोखिम को लोगों की आदत बनाना है ताकि वो न सिर्फ़ पहले से तैयार रहें बल्कि उसका मुक़ाबला करके उबर सकें.

2019 में सुपर साइक्लोन फणी के दस्तक देने से पहले क़रीब 12 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया गया. स्थानीय अधिकारियों ने जिस तरह बचाए गए लोगों को 4,000 आश्रय स्थलों में जगह दी उसकी तारीफ़ संयुक्त राष्ट्र ने भी की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में ओडिशा सरकार से साझेदारी में दिलचस्पी ज़ाहिर की. ये आपदा प्रबंधन में ओडिशा की कार्यकुशलता को सम्मान के साथ-साथ दूसरे राज्यों के लिए ‘आदर्श’ के तौर पर है. साइक्लोन फैलिन के संदर्भ में राज्य की कोशिशों को पहले ही 2019 के समुदाय आधारित आपदा जोखिम में कमी के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देश के मसौदे में सर्वश्रेष्ठ पद्धति के तौर पर जगह मिल चुकी है. ओडिशा ख़तरे के बीच मज़बूती का एक उदाहरण है और इसके आपदा प्रबंधन की प्रमुख विशेषताएं पूरे देश के लिए सबक़ हैं. ओडिशा के तौर-तरीक़े दूसरे राज्यों के लिए वास्तव में प्रेरणा हो सकते हैं लेकिन आंख मूंदकर इसकी नक़ल नहीं की जा सकती. हर राज्य में अपनी ज़रूरत के हिसाब से इसमें बदलाव ज़रूरी है. इसके बावजूद सामान्य दिशा-निर्देश के मुक़ाबले किसी उदाहरण से सीखना आसान है. ऐसे में समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन में ओडिशा को केस स्टडी के तौर पर अपनाना भारत में आपदा प्रबंधन में लोगों की भागीदारी की कोशिशों के लिए फ़ायदेमंद है.

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