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समिट ऑफ द फ्यूचर के एजेंडा पर विभिन्न देशों के प्रभाव से नौकरशाही को बचाने और UN 2.0 रहना आवश्यक है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय संगठनों पर विभिन्न देशों की ओर से दबाव डाले जाने के आरोप लगने लगे हैं.
24 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र ने इंटरनेशनल डे ऑफ़ मल्टीलेटरेलिज्म एंड डिप्लोमेसी फॉर पीस यानी शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय बहुपक्षीय एवं कूटनीति दिवस मनाया. इसे 2018 में जनरल असेंबली ने स्वीकार किया था, ताकि बहुपक्षवाद और कूटनीति के लाभों का प्रसार किया जा सके. हाल ही में जब इस दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, तब संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी उपप्रतिनिधि ने यह टिप्पणी की कि कैसे यूनाइटेड स्टेट्स (US) "रुल्स बेस्ड इंटरनेशनल ऑर्डर" यानी नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था की आड़ में अपना एजेंडा आगे बढ़ाकर इसे अन्य देशों पर थोप रहा है. चीन के बयान का अधिकांश हिस्सा UN को एक सेंट्रल मल्टीलेटरल प्लेटफॉर्म यानी केंद्रीय बहुपक्षीय मंच के रूप में बढ़ावा देने पर बल देते हुए यह कह रहा था कि कैसे इक्वल (समान) और मल्टीपोलर (बहुध्रुवीय) विश्व की परिकल्पना को साकार करने के लिए इस मंच में सुधार लागू किए जाने आवश्यक है. इस बयान के अनुसार चीन, सितंबर में होने वाले समिट ऑफ द फ्यूचर का इंतजार कर रहा है, जिसमें बहुपक्षीय प्रशासनिक ढांचे को नया आयाम देकर इसे वर्तमान वास्तविक वैश्विक स्थितियों के अनुरूप बनाया जाएगा. मौजूदा वैश्विक प्रशासन पर चीन के आधिकारिक बयान में साफ़ कहा गया है कि वह, ‘हेजेमोनी यानी नेतृत्व, पॉवर पॉलिटिक्स यानी शक्ति की राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर कुछ चुनिंदा देशों के एकाधिकार’ का विरोध करता है. यूनाइटेड किंगडम की संसद इस वक़्त संयुक्त राष्ट्र के चीन द्वारा इंस्ट्रुमेंटलाइज़ेशन यानी संयुक्त राष्ट्र का उपकरण बनाकर इस्तेमाल करने के मामले की जांच कर रहा है. यूनाइटेड किंगडम की संसद इस बात को भी गंभीरता से ले रही है कि कैसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने बहुपक्षीयवाद प्रणाली से अपने पक्ष में अनुमोदन पाने के लिए UN की प्रणाली को घूस देकर प्रभावित करने का प्रयास किया है. इसे देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एकाधिकारवाद को लेकर चीन की ओर से जताई जा रही चिंताओं को विडंबना ही कहा जा सकता है.
यूनाइटेड किंगडम की संसद इस बात को भी गंभीरता से ले रही है कि कैसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने बहुपक्षीयवाद प्रणाली से अपने पक्ष में अनुमोदन पाने के लिए UN की प्रणाली को घूस देकर प्रभावित करने का प्रयास किया है.
UK संसद की विदेश मामलों की कमेटी ने 2021 में एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया था कि अनेक ऑटोक्रेटिक स्टेटस यानी निरंकुश सरकारें बहुपक्षीय संगठनों को रणनीतिक रूप से सहयोजित करने का प्रयास कर रही है. निरंकुश सरकारों का ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि वे इन संगठनों की स्थापना के दौरान तय किए गए प्रिंसिपल्स यानी सिद्धांतों को नए सिरे से तैयार करें, ताकि ये संगठन उनके राष्ट्रीय हितों का ध्यान रख सकें. इस रिपोर्ट के आने के पश्चात कमेटी ने जनवरी 2024 में इस बात की जांच शुरू की कि चीन समेत अन्य देश किस प्रकार बहुपक्षीय संगठनों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. कमेटी की जांच के दायरे में बहुपक्षीय संगठन में शामिल ब्राज़ील, फ्रांस, भारत, तुर्किए (तुर्की), दक्षिण अफ्रीका, नाइज़ीरिया, मैक्सिको, इज़िप्ट (मिस्र), सऊदी अरब, रूस और इंडोनेशिया जैसे देशों की भूमिका भी शामिल हैं. जांच के इस दायरे के बावजूद कमेटी के समक्ष सबसे पुख़्ता सबूत चीन के ख़िलाफ़ पेश किए गए हैं. इसमें संयुक्त राष्ट्र की नौकरशाही को प्रभावित करने की चीन की भूमिका पर रोशनी डाली गई है. कमेटी ने हाल ही में UK की नागरिक एम्मा रीली से एक लिखित सबूत स्वीकार किया है. रीली को हाल ही में UN के मानवाधिकार काउंसिल से बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि वे संगठन की नीति के ख़िलाफ़ जाकर एक व्हिसल ब्लोअर के रूप में सार्वजनिक साक्षात्कार दे रही थीं.
कमेटी को सौंपे गए लिखित सबूत में कहा गया है कि UN को चीन के साथ ही बराबरी में अनेक मुद्दों पर लक्षित किया गया है. आरोप है कि PRC ने UN की फंडिंग को लेकर ख़ुलासा करने की कमज़ोर नीति का लाभ उठाया है, जिसमें केवल दान किए गए फंड की राशि को ही उज़ागर किया जाता है, जबकि दी गई राशि के साथ जुड़ी शर्तो का ख़ुलासा नहीं किया जाता. रीली के लिखित सबूत के अनुसार PRC, UN से जुड़ी एजेंसियों के जाल को मिलने वाले फंड यानी राशि को ताइवान के साथ कूटनीतिक संबंध रखने वाले देशों में ख़र्च नहीं करने की गुप्त शर्त थोपता है. रीली का बयान यह भी ख़ुलासा करता है कि UN के समन्वय के साथ PRC का संयुक्त फंडिंग तंत्र पीस एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट फंड, दरअसल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को छुपे तौर पर आगे बढ़ाने का एक तंत्र है. इस फंड को 10-10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के दो हिस्सों में भरा जाता है. इसमें से पहला हिस्सा BRI संबंधी परियोजनाओं के लिए आरक्षित रखा जाता है और दूसरे हिस्से से UN के सेक्रेटरी जनरल को उनके पसंदीदा परियोजना पर ख़र्च करने में सहायता की जाती है. इस तरह इस फंड को UN स्थित जांच से बचाया जाता है.
UN के समन्वय के साथ PRC का संयुक्त फंडिंग तंत्र पीस एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट फंड, दरअसल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को छुपे तौर पर आगे बढ़ाने का एक तंत्र है.
इस लिखित सबूत वाले बयान में चीन पर यह आरोप भी लगा है कि उसने अपना काम निकालने के लिए UN के कम चर्चा में रहने वाले विभागों का इस्तेमाल भी किया है. उदाहरण के लिए UN परिसर से NGO के प्रतिनिधियों को गैरकानूनी तरीके से बाहर करने के मामले को देखा जा सकता है. इसमें अंडर सेक्रेटरी जनरल के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल अफेयर्स (DESA) का इस्तेमाल करते हुए इन प्रतिनिधियों को बाहर का रास्ता दिखाकर उनकी जगह चीनी नागरिक के लिए स्थान आरक्षित कर दिया गया. DESA पर लगे ये आरोप इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं, क्योंकि यह विभाग ही उन UN सुरक्षाकर्मियों से सरोकार रखने वाली नोडल एजेंसी है, जो NGO प्रतिनिधियों को UN में आयोजित कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर देती है. इसी विभाग के पास UN की ओर से न्यूयॉर्क में होने वाले कार्यक्रमों में NGO प्रतिनिधियों को अधिस्वीकृति पत्र जारी करने का अधिकार भी है. जैसा कि आरोप लगाया गया है, चीनी प्रभाव की वज़ह से DESA में कुछ परिवर्तन किए गए हैं. इन परिवर्तनों के अनुसार अब केवल वे NGO प्रतिनिधि ही UN परिसर में प्रवेश कर सकते हैं, जिन्हें किसी ऐसे देश ने ID मुहैया करवाई है जो या तो UN का सदस्य है या फिर जिसे UN की ओर से निरीक्षक/प्रेक्षक का दर्ज़ा मिला हुआ है. DESA की ओर से किए गए इन परिवर्तनों का अर्थ यह है कि ऐसे NGO प्रतिनिधि, जिन्हें ऐसी सरकारों ने ID मुहैया करवाई थी, जो UN के सदस्य नहीं हैं या निरीक्षक/प्रेक्षक नहीं हैं, अब UN में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. इस परिवर्तन का सीधा असर ताइवान के NGOs पर पड़ा है.
UN की एक और इकाई जो संसदीय जांच के घेरे में आ रही है, वह है ऑफिस ऑफ़ द हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स (OHCHR) यानी मानवाधिकारों के लिए उच्चायुक्त का कार्यालय. रीली की व्हिसल ब्लोइंग के बाद इस कार्यालय पर भी सवालिया निशान लग गए हैं. आरोपों में चीन ही प्रमुख मुद्दा बना हुआ है, क्योंकि चीनी राजनयिक पर आरोप लगे हैं कि वे OHCHR से अधिस्वीकृति पाने वाले ऐसे व्यक्तियों के नाम को लेकर दबी आवाज में पूछताछ कर रहे थे, जो चीन के द्वारा होने वाले मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर चीन के ख़िलाफ़ बात करने वाले थे. इस श्रेणी में आने वाले लोगों के नाम की जानकारी OHCHR से PRC’s के राजनयिक तक UN के पेशेवर स्टाफ के माध्यम से पहुंचती थी. लेकिन जब से यह भ्रष्टाचार उज़ागर हुआ है तब से यह काम जूनियर-लेवल के 6 से 8 सप्ताह के ठेके पर लिए गए अस्थाई कर्मचारियों के माध्यम से होने लगा है. ऐसे ठेका कर्मी UN के अधिकृत नौकरशाहों के मुकाबले असुरक्षित होते हैं. और ज़रूरत पड़ने पर UN के अधिकृत कर्मचारी इनके द्वारा किए गए कार्यों या इनके द्वारा लिए गए फ़ैसलों को लेकर प्लॉसिबल डिनियाबिलिट यानी स्वीकार्य अस्वीकार्यता का प्रदर्शन भी कर सकते हैं या उनके कार्यों से अपना पल्ला झाड़ भी सकते हैं.
रणनीतिक संगठनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना उस वक़्त तक सही संकेत देना नहीं होगा, जब तक ये सुधार कुछ देशों या UN के भीतर उन देशों के द्वारा किए जा रहे हस्तक्षेप को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं.
UK की विदेश मामलों की कमेटी उसके समक्ष प्रस्तुत आरोप को लेकर UN की मेज़बानी में काम करने वाले बहुपक्षीय संगठनों के जटिल लेकिन कार्यरत जाल को लेकर कोई फ़ैसला नहीं सुना सकती. लेकिन यह कमेटी आगामी सितंबर में आयोजित समिट ऑफ़ द फ्यूचर में बहुपक्षीयवाद की ट्रैजेक्टरी यानी प्रक्षेपवक्र यानी बहुपक्षीयवाद कौन सा रास्ता अपनाएगा, यह तय करने को लेकर बातचीत करने वालों के लिए बेहद अहम है. समिट यानी शिखर सम्मेलन के दौरान जिस एक क्षेत्र को प्रभावित करने का लक्ष्य है - वह है 'यूनाइटेड नेशन 2.0'. इसमें एक ऐसा दृष्टिकोण शामिल है, जिसके तहत UN को सांस्कृतिक और कौशल ट्रांसफॉर्मेशन यानी परिवर्तन को अपनाना होगा. यह परिवर्तन UN की सभी इकाइयों और कार्य संस्कृति में लाना होगा, ताकि वह अपने सदस्य देशों को बेहतर ढंग से सहायता दे सकें. UN 2.0 को साकार करने का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य पारदर्शिता है. इसके तहत नए साधन और पहलुओं को विकसित कर लागू किया जाएगा, ताकि बहुपक्षीय नौकरशाही बेहतर, सर्व समावेशक, कुशल और पारदर्शी कार्यस्थल बन सके. इस शिखर सम्मेलन का ज़्यादा ध्यान डाटा और नवाचार के ऊपर होने के बावजूद और भी बेहतर होगा यदि UN 2.0 के दौरान होने वाली चर्चा में व्हिसल ब्लोअर सेफ्टी और उसकी इकाइयों में कार्यरत पारदर्शी नौकरशाही के मुद्दे पर भी चर्चा की जाए. इसे अप्रिय अथवा दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि 1946 के बाद व्हिसल ब्लोइंग करने वाला UN का कोई भी व्हिसल ब्लोअर एक सफ़ल UN करियर नहीं बना पाया. UN 2.0 को DESA तथा OHCHR जैसी इकाइयों का राजनीतिकरण करने वाली दरारों यानी ऐसे तत्व जो इन इकाइयों का राजनीतिकरण कर रहे हैं, को लेकर कोई जवाब देना चाहिए या जवाब देने की कोशिश करनी चाहिए. ताकि UN नौकरशाही पर लग रहे आरोप, आरोप ही बनकर रह जाए. रणनीतिक संगठनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना उस वक़्त तक सही संकेत देना नहीं होगा, जब तक ये सुधार कुछ देशों या UN के भीतर उन देशों के द्वारा किए जा रहे हस्तक्षेप को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं. ज़रूरत इस बात की है कि ध्यान इस बात पर रखा जाए कि UN नौकरशाही ढांचा इन आरोपों से कैसे प्रतिरक्षित रहने में विफ़ल हुआ है, भले ही दोषी देश कोई भी क्यों न रहा हो. समिट ऑफ द फ्यूचर के एजेंडा पर UN 2.0 के साथ नौकरशाही को किसी भी देश के प्रभाव में आने से रोकने अथवा बचाने की बात सबसे ऊपर होनी चाहिए. ऐसा इसलिए नहीं होना चाहिए कि कुछ देशों ने UN की नौकरशाही को प्रभावित करने का प्रयास किया है, बल्कि इसलिए होना चाहिए कि UN प्रोजेक्ट अपनी तमाम ख़ामियों के बावजूद सहयोगात्मक कूटनीति के लिए आज भी एक उच्च बिंदु बना हुआ है.
अंगद बरार सिंह, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में एक रिसर्च असिस्टेंट है.
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Angad Singh Brar was a Research Assistant at Observer Research Foundation, New Delhi. His research focuses on issues of global governance, multilateralism, India’s engagement of ...
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