Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

थाईलैंड में म्यांमार के शरणार्थियों की बढ़ती आमद ने उसकी राष्ट्रीय शरणार्थी नीति में सुधार की आवश्यकता को और अधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया है.

थाईलैंड में सिर उठा रहे ‘विस्थापन’ की चुनौती की बड़ी वजह बना म्यामांर
थाईलैंड में सिर उठा रहे ‘विस्थापन’ की चुनौती की बड़ी वजह बना म्यामांर

2416 किलोमीटर लंबी म्यांमार-थाईलैंड की सीमा पर बहुत बड़ी संख्या में विस्थापित लोगों की आवाजाही बढ़ गई है क्योंकि दोनों के बीच आपसी झड़प बढ़ गई है और इसका प्रभाव पूरे क्षेत्र में दिखने लगा है. म्यांमार से आने वाले विस्थापित लोगों की संख्या पिछले कुछ दिनों में बहुत ज़्यादा बढ़ गई है. क्रिसमस से एक दिन पहले म्यांमार जुंटा (सेना) द्वारा किए गए हमले में क़रीब 30 लोग मारे गए, जिसमें करेन समुदाय की महिलाएं और बच्चे एवं ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के दो कर्मचारी शामिल थे. इस हमले कारण पूरे देश में डर का माहौल बना हुआ है. ये तथ्य कि उन लोगों का अपहरण करके उन्हें जिंदा जला दिया गया, इसे पचाना बहुत ही कठिन है. इसके अलावा, अगले दिन क्रिसमस के मौके पर हवाई हमलों ने कई गांवों को बर्बाद कर दिया, जिसके कारण कई नागरिकों की मौत हो गई. मरने वालों में से ज़्यादातर ऐसे अल्पसंख्यक जातीय समूह के लोग थे, जिन पर बहुसंख्यक सत्ता हावी है.

 म्यांमार जुंटा (सेना) का कायन राज्य में मानवाधिकारों के हनन का इतिहास रहा है, जिसे इसके पूर्व नाम करेन राज्य के नाम से भी जाना जाता है. करेन उन कई जातीय अल्पसंख्यकों में से एक हैं जो दशकों से और अधिक स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 

हालिया घटनाओं के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं ने जन्म लिया है, जहां म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत नोलीन हेज़र ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए पूरे म्यांमार में “नए साल पर युद्धविराम” का आह्वान किया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर हुए हत्याकांड को लेकर जवाबदेही की मांग की है. एक बयान जारी करते हुए, “सभी तरह की हिंसक गतिविधियों की तत्काल समाप्ति और मानवाधिकारों के सम्मान और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्व पर ज़ोर दिया गया.” साथ ही, दुनिया भर में करेन्नी समुदाय से जुड़े 67 संगठनों ने 30 दिसंबर को एक संयुक्त बयान में मांग करते हुए कहा कि क्रिसमस की पूर्व संध्या पर किए गए हमलों और अन्य अपराधों के लिए म्यांमार सेना को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.

म्यांमार जुंटा (सेना) का कायन राज्य में मानवाधिकारों के हनन का इतिहास रहा है, जिसे इसके पूर्व नाम करेन राज्य के नाम से भी जाना जाता है. करेन उन कई जातीय अल्पसंख्यकों में से एक हैं जो दशकों से और अधिक स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. करेनी महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार, उन्हें दी गई यातनाएं और उनसे बलात श्रम कराए जाने समेत हर तरह की व्यवस्थागत हिंसा कई मायनों में दस्तावेज़ों में दर्ज है. पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को मानव ढाल के रूप में लगातार और अधिकाधिक रूप से उपयोग किया जा रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत निषिद्ध है. इन गतिविधियों के बीच तख़्तापलट ने मामले को और ज़्यादा बिगाड़ दिया है. म्यांमार के भीतर आईडीपी शिविरों (आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के शिविर) की कठोर निगरानी के कारण यात्रा पर प्रतिबंध और बुनियादी ज़रूरतों जैसे भोजन और दवाओं की कमी बढ़ती जा रही है. मानवीय कार्यकर्ता सहायता सामग्री की आपूर्ति करते समय सैन्य बलों के हाथों उत्पीड़न और हिरासत का सामना करने से बचने के लिए विभिन्न मार्गों को अपनाने का प्रयास कर रहे हैं. इन सबके कारण म्यांमार में लगातार बिगड़ते हालातों से बचने के लिए कई पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को थाईलैंड-म्यांमार सीमा पर शरण लेने के लिए प्रेरित किया है.

थाईलैंड में शरणार्थियों का जमघट

थाईलैंड के दस राज्य म्यांमार की सीमा से लगते हैं, रानोंग, प्रचुआप खीरी खान, फेटचबुरी, चुम्फॉन, रत्चबुरी, कंचनबुरी, टाक मे, होंग सोन, चियांग मे और चियांग रे. कोरोना महामारी आने से पहले तक थाईलैंड आना-जाना आसान था, लेकिन उसके बाद से वहां की पर्यटन व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है, जो उनकी अर्थव्यवस्था का आधार है. जबकि थाईलैंड धीरे-धीरे नवंबर में खुलने लगा, वहीं म्यांमार के प्रवासी सीमा पार करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. फरवरी 2021 में तख़्तापलट की शुरुआत के बाद से ही हज़ारों की संख्या में लोग थाईलैंड की सीमा को पार गए और अब वे खुले मैदानों और मवेशी खानों में रह रहे हैं. अप्रवासन ब्यूरो के अनुसार, जनवरी 2021 से अक्टूबर 2021 तक 32,170 लोगों ने सीमा पार की है. अकेले सितंबर और अक्टूबर के महीने में क़रीब 11, 101 लोग अवैध रूप से सीमा पार कर चुके हैं. ऐसा अनुमान है कि 6,000 से अधिक विस्थापित म्यांमारियों ने दिसंबर में थाईलैंड के ताक प्रांत की सीमा पार की है. थाईलैंड के अन्य स्थानों में भी लगातार लोगों की आमद हो रही है. थाईलैंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित सहायता संगठन लोगों को शरणार्थी शिविरों में रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रवेश करने वालों की संख्या काफी अधिक रही है. वर्तमान में 9 मुख्य अस्थाई शिविरों में म्यांमार से आए लगभग 91,411 विस्थापित लोग रह रहे हैं और उन शिविरों को जगह की कमी की समस्या से जूझना पड़ रहा है.

बढ़ते संकट के मद्देनज़र थाई अधिकारियों की ओर से तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है ताकि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अपने देश में हो रहे उत्पीड़न से बचने के लिए भाग रहे विस्थापित लोगों को उचित अधिकार और सुरक्षा प्रदान करने के प्रयासों को तेज किया जा सके.

कई अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की तरह, थाईलैंड 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. इसलिए, वहां अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के अनुसार शरणार्थियों को कानूनी दर्जा देने या सुरक्षा प्रदान करने के प्रावधानों का अभाव है. हालांकि, सरकार ने कहा था कि वे 2016 के अंत तक उन शरणार्थियों को देश में कानूनी दर्जा प्रदान करेंगे, जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता होगी. इसके अलावा, सरकार ने शरणार्थी बच्चों को हिरासत में न लिए जाने का आश्वासन भी दिया था. इसके बाद, एक अवसर पर चियांग रे के किशोर एवं परिवार न्यायालय (जुवेनाइल एंड फैमिली कोर्ट) ने एक सोमाली बच्चे के देश में अवैध रूप से प्रवेश करने पर उसे दंडित करने से इनकार कर दिया. इस फैसले को शरणार्थियों के लिए किशोर कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर माना गया. 2018 में, देश ने विस्थापित लोगों के लिए बेहतर अवसर पैदा करने की दिशा में वैश्विक शरणार्थी समझौता (ग्लोबल कॉम्पैक्ट ऑन रिफ्यूजीज) के अनुमोदन पर मतदान किया. 24 दिसंबर 2019 को, थाई मंत्रालय ने नेशनल स्क्रीनिंग मैकेनिज्म (एनएसएम) के गठन को स्वीकृति प्रदान की. जबकि इस नीतिगत फैसले में थाईलैंड के भीतर शरणार्थियों और अन्य लोगों के लिए सुरक्षा में सुधार करने का वादा किया गया था, एनएसएम के कार्यान्वयन में बार-बार देरी हुई है.

थाईलैंड में सबसे ज़्यादा संख्या में शरणार्थी

कोरोना महामारी प्रक्रियाओं के पालन में देरी का एक प्रमुख कारण है, जबकि एनएसएम की मजबूती को लेकर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के मत सामने रखे गए हैं. कई लोगों को ये चिंता है कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “शरणार्थी” शब्द की परिभाषा के साथ संगत नहीं है और इसमें ऐसी अस्पष्ट भाषा का प्रयोग किया गया है, जिससे थाईलैंड किसी शरणार्थी को वापिस उसके देश न लौटाने की बाध्यता (नॉन रिफाउलमेंट) जैसे नियम से बच सकता है. वहीं दूसरी ओर, शरणार्थियों के अधिकारों के लिए काम कर रहे कई संगठनों ने इस क़दम का स्वागत किया है. वे एनएसएम के तहत शरणार्थियों की स्थिति को लेकर फैसला करने वाले सरकारी अधिकारियों के प्रशिक्षण में नागरिक समाज की भागीदारी को आमंत्रित कर रहे हैं. अगर इस पहल से कुछ गतिविधियों के जन्म लेने और उसकी सफलता की उम्मीद की जाती है तो उसके लिए इस पहल को वित्तपोषण की आवश्यकता बनी रहेगी.

फरवरी 2021 में तख़्तापलट की शुरुआत के बाद से ही हज़ारों की संख्या में लोग थाईलैंड की सीमा को पार गए और अब वे खुले मैदानों और मवेशी खानों में रह रहे हैं. अप्रवासन ब्यूरो के अनुसार, जनवरी 2021 से अक्टूबर 2021 तक 32,170 लोगों ने सीमा पार की है.

बढ़ते संकट के मद्देनज़र थाई अधिकारियों की ओर से तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है ताकि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अपने देश में हो रहे उत्पीड़न से बचने के लिए भाग रहे विस्थापित लोगों को उचित अधिकार और सुरक्षा प्रदान करने के प्रयासों को तेज किया जा सके. 19 दिसंबर को, करेन राज्य में नरसंहार से ठीक चार दिन पहले, 623 म्यांमारियों को थाईलैंड से वापस भेज दिया गया था. ये 623 लोग वापिस म्यांमार लौटना चाहते थे. मौजूदा हालातों को देखते हुए ऐसी किसी कार्रवाई को अंजाम नहीं दिया जा सकता. थाइलैंड इस क्षेत्र में सबसे बड़ी शरणार्थी आबादी वाला एक देश है, लेकिन इसकी विभेदकारी नीतियां उन्हें सुरक्षा देने में विफल हैं. एक स्थानीय शक्ति के रूप में अपनी अवस्थिति को देखते हुए, थाईलैंड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा की मांग करने वालों को सुरक्षित मार्ग प्रदान करके और आवश्यक शरणार्थी नीतियों की स्थापना के साथ-साथ उनके क्रियान्वयन को सुनिश्चित करके खुद को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकता है. राष्ट्रीय नीति सुधार, अपने मूल में शरणार्थियों एवं अन्य विस्थापित व्यक्तियों के लिए स्थायी समाधान प्राप्त करने की दिशा में एक अनिवार्य क़दम है.

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