यह लेख रायसीना क्रॉनिकल्स 2024 श्रृंखला का एक हिस्सा है.
जिस प्रकार से भारत तेज़ी के साथ प्रगति कर रहा है, वो न सिर्फ़ भारत की 140 करोड़ आबादी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका प्रभाव कहीं न कहीं पूरी दुनिया पर भी पड़ेगा. वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका आज इतनी अहम हो गई है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता से लेकर वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र की मज़बूती तक, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने से लेकर जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने तक और आज के दौर के ऐसे हर अहम मुद्दे का समाधान तलाशने की क़ामयाबी भारत द्वारा की जाने वाली कार्रवाई पर ही निर्भर करती है. कहने का मतलब है कि तमाम वैश्विक मसलों पर भारत क्या रुख अपनाता है, उसका न केवल मानवता के भविष्य पर, बल्कि दुनिया के तमाम देशों के नज़रिए को निर्धारित करने में और विश्व की दिशा तय करने में भी गहरा असर पड़ेगा.
भारत के उभार को व्यापक स्तर पर बेहद अच्छा माना जाता है, यानी भारत को एक ऐसा देश माना जाता है, जो दुनिया में नैतिकता और अच्छाई के लिए लड़ाई करता है और बुरी चीज़ों का विरोध करता है.
इस लिहाज़ से देखा जाए तो भारत के उभार को व्यापक स्तर पर बेहद अच्छा माना जाता है, यानी भारत को एक ऐसा देश माना जाता है, जो दुनिया में नैतिकता और अच्छाई के लिए लड़ाई करता है और बुरी चीज़ों का विरोध करता है. एक ऐसी दुनिया में, जिसमें विचारों को लेकर ज़बरदस्त खींचतान मची हुई है और जिसका बंटवारा सा हो चुका है, इन परिस्थितियों में भारत एक पुल के रूप में सामने आया है, यानी एक ऐसे माध्यम के तौर पर उभरा है, जिसकी आज के दौर में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. इसके अलावा, विश्व में जब भी मूल्यों को लेकर सवाल उठते हैं, तो भारत सामान्य तौर पर सही पक्ष के साथ खड़ा नज़र आता है.
भारत का बढ़ता प्रभुत्व
मुझे लगता है कि आज पूरी दुनिया दो गुटों में विभाजित हो रही है, जिसमें एक गुट का नेतृत्व अमेरिका कर रहा है, जबकि दूसरे गुट की अगुवाई चीन कर रहा है. ये परिदृश्य देखा जाए तो शीत युद्ध 2.0 जैसा है. जैसा कि बताया गया है कि कई देश ऐसे हैं जो इनमें से किसी गुट भी में शामिल नहीं होना चाहते हैं. जहां तक भारत की बात है, जिस प्रकार से भारत एक विशाल देश है और जिस तरह से उसकी अर्थव्यवस्था तेज़ी के साथ मज़बूती की ओर बढ़ हो रही है, वो उसे इन दोनों गुटों से अलग रह कर अपनी एक स्वतंत्र स्थिति बनाए रखने का अवसर प्रदान करती है.
मेरे (पश्चिमी) नज़रिए के मुताबिक़ इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है. पश्चिमी नेतृत्व की कमज़ोरी ख़ास तौर पर इसकी अपने पारंपरिक मूल्यों एवं मान्यताओं को नकारकर खुद की आलोचना करने एवं दूसरों पर दबाव बनाने वाली या डराने-धमकाने वाली विरोधाभासी प्रवृत्ति है. देखा जाए तो पश्चिम का यह रवैया कहीं न कहीं एक वैकल्पिक लोकतांत्रिक आवाज़ के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहा है. इसके विपरीत, भारत आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरा हुआ राष्ट्र है. भारत एक ऐसा देश है, जो न केवल तेज़ी से आधुनिकीकरण की राह पर अग्रसर है, बल्कि विकास की नई बुलंदियों को भी छू रहा है. इसके साथ ही भारत वैश्विक स्तर पर बड़ी तादात में नई-नई साझेदारियां भी स्थापित कर रहा है. देखा जाए तो भारत की ये साझेदारियों एक नए तरह के वैश्वीकरण को दिखाती हैं.
भारत एक ऐसा देश है, जो न केवल तेज़ी से आधुनिकीकरण की राह पर अग्रसर है, बल्कि विकास की नई बुलंदियों को भी छू रहा है.
उदाहरण के तौर पर जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने इस मंच का उपयोग अपनी वैश्विक पहुंच को मज़बूत करने के लिए किया. जी20 अध्यक्षता के दौरान भारत की ओर से अपने विकास के एजेंडे को वैश्विक स्तर पर नया मुकाम दिलाने के लिए ज़बरदस्त तरीक़े से प्रयास किए गए और भारत की इन कोशिशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भरपूर समर्थन भी हासिल हुआ. जी20 के मंच पर भारत ने न केवल अपनी बातों को मज़बूती के साथ रखा, बल्कि अफ्रीका से लेकर लैटिन अमेरिकी देशों समेत तमाम और राष्ट्रों को लेकर अपने विचारों एवं चिताओं को भी बेबाक़ तरीक़े से सभी के सामने रखा. इतना ही नहीं, जी20 के दौरान तमाम दूसरे विषयों पर हुई चर्चा-परिचर्चाओं में भी भारत द्वारा इसी प्रकार का रुख अपनाया गया. चाहे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो, या भू-राजनीतिक संघर्ष का मसला, या फिर बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का मुद्दा, ऐसे हर वैश्विक मसले पर भारत ने खुलकर अपने पक्ष को दुनिया के सामने रखा. भारत ने जिस अंदाज़ में अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया उससे यह लग रहा था कि वह कई पश्चिमी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को ग्लोबल साउथ के विचारों को सुनने के लिए बाध्य कर रहा है.
आमतौर पर 21वीं सदी को एशिया की सदी कहा जाता है. लेकिए आज के दौर की यह सच्चाई है कि एशिया महाद्वीप एकजुट नहीं है. जिस प्रकार से एशिया में अलग-अलग देशों की ताक़त बढ़ी है, इसमें कोई शक नहीं है कि उसने वैश्विक सुरक्षा, नियम-क़ानून पर आधारित बहुपक्षवाद और वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने तमाम चुनौतियां पेश की हैं. ज़ाहिर है कि इनमें के किस विचारधारा का दबदबा स्थापित होता है और अंत में किसकी जीत होती है, उससे यह निर्धारित होगा कि वैश्विक व्यवस्था पर दबाव बनाने वाली और विघटनकारी ताक़तों का बोलबाला होगा, या फिर सहयोग, मेलजोल एवं सहभागिता को बढ़ावा देने वाली शक्तियों का प्रभुत्व होगा.
मैंने कुछ साल पहले रायसीना डायलॉग में कहा था कि भारत का लोकतंत्र सिर्फ़ पश्चिमी उदारवादियों का गढ़ नहीं बनेगा, बल्कि यह अपनी समृद्ध संस्कृति और अपने राष्ट्रवाद को अपनाते हुए आगे बढ़ेगा. कुछ साल बाद वर्ष 2022 में आयोजित हुए रायसीना डायलॉग में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इसी तरह के विचार प्रकट किए थे. तब जयशंकर ने ज़ोर देते हुए कहा था कि भारत को अपनी पहचान पर गर्व करते हुए और अपनी शर्तों के मुताबिक़ पूरे आत्मविश्वास के साथ दुनिया से रिश्ता जोड़ना चाहिए, न कि किसी और का अनुकरण करते हुए दुनिया को ख़ुश करने की कोशिश करनी चाहिए. मुझे लगता है कि हम सभी इस बात से सहमत हो सकते हैं कि भारत आज इसी नज़रिए का अनुसरण कर रहा है. लगातार बदल रही वैश्विक व्यवस्था में भारत अपनी परंपराओं और शर्तों के मुताबिक़ न केवल अपने लिए उचित स्थान हासिल कर रहा है, बल्कि इसके लिए अपना रास्ता भी खुद तैयार कर रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में वैश्विक स्तर पर मज़बूत नेतृत्व एवं आगे बढ़ने के लिहाज़ से देखा जाए तो हक़ीक़त यह है कि भारत आज एक लोकतंत्र के रूप में अकेला खड़ा है और अपने दम पर फैसले लेने में सक्षम है. पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष और राजनेता जिस प्रकार से आज नई दिल्ली के दौरे कर रहे हैं और दुनियाभर के उद्यमी एवं व्यावसायी भारत के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच रहे हैं, वो इस बात का पुख़्ता प्रमाण हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आज कैसी साख है. आज जब वैश्विक स्तर के मामलों में पड़ने से पश्चिमी देश अपने क़दम पीछे खींच रहे हैं, तब भारत कुशलता के साथ दुनिया के साथ अपने संबंध स्थापित कर वैश्विक स्तर पर मची खींचतान में दख़ल देते हुए अपने लिए अनुकूल जगह बना रहा है. भारत को खुद पर और पारस्परिक रूप से जुड़ी दुनिया, दोनों पर ही अटूट भरोसा है. उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक भारत ने विभिन्न देशों के साथ जिस प्रकार से अलग-अलग और विरोधाभासी लगने वाली साझेदारियां की हैं, उनमें उसका यह विश्वास साफ तौर पर झलकता है.
समय के साथ-साथ रायसीना डायलॉग का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. ख़ास बात यह है कि रायसीना डायलॉग ऐसे क्षेत्रों और लोगों की आवाज़ को मंच प्रदान करने वाला साबित हुआ है, जिन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है.
आज का यह वक़्त ख़ास तौर पर लोकतांत्रिक देशों और हेटेरोजेनियस सोसाइटियों यानी विभिन्न जाति, संस्कृति, लिंग व उम्र वाले समाजों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है. दुनिया में एक युद्ध को चलते हुए तीसरा साल चल रहा है, जबकि दूसरा युद्ध भी शुरू हो गया है. इन युद्धों ने दुनियाभर के देशों और समुदायों को गुटों में बांट दिया है. यूक्रेन में चल रहा युद्ध, मध्य पूर्व में चल रहा टकराव और चीन द्वार अपने पड़ोसी मुल्कों में अस्थिरता फैलाने की कोशिश बताती हैं कि स्थिरता का मुद्दा बेहद अहम है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. इसके साथ ही इन घटनाक्रमों से यह भी साफ होता है कि मौज़ूदा वक़्त में साझेदारी, सहयोग के साथ-साथ ऐसे हालातों पर काबू पाने के लिए सख़्त क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है.
ये जो भी लड़ाईयां हैं, वे सिर्फ युद्ध के मैदान में ही नहीं लड़ी जाती है, बल्कि मूल्यों और विचारों के धरातल पर भी ये युद्ध लड़े जाते हैं. आज की जो डिजिटल दुनिया है उसमें अगर बेशुमार अवसर हैं, तो इसके गंभीर ख़तरे भी हैं. आज अगर दुनिया में कहीं भी कुछ हलचल होती है, सुरक्षा से जुड़ी चुनौती सामने आती है, वो हर तरफ फैल जाती है और लोगों को प्रभावित करती है. इतना ही नहीं, आज एक दूसरे पर आर्थिक निर्भरता को भी हथियार बनाया जा सकता है. एक तरफ नए दौर की ये मुश्किल चुनौतियां हैं, तो दूसरी तरफ भोजन और ऊर्जा जैसी बुनियादी ज़रूरतों को लेकर भी टकराव बढ़ रहा है. एक ओर अनिश्चितता से भरे इन हालातों का समाधान तलाशना ज़रूरी है, वहीं दूसरी और जो भी संभावनाएं हैं उनका फायदा उठाना भी ज़रूरी है. लेकिन सच्चाई यह है कि इस सबके लिए आज सबसे बड़ी आवश्यकता विचारशील और समझदारी भरी आवाज़ की है, यानी ऐसी आवाज़ की ज़रूरत है, जो सारे विपरीत हालातों को दुरुस्त कर सके.
वर्तमान समय में जब लोगों के विचार और नज़रिए एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं, यानी परस्पर विरोधी होते हैं, तब तो इस तरह की विवेकशील आवाज़ का होना और भी अहम हो जाता है. ऐसे में रायसीना डायलॉग अपने व्यापक और दूरगामी विचार-विमर्श के साथ वर्तमान दौर के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा करने की एक क़ामयाब कोशिश के रूप में सामने आया है. रायसीना डायलॉग दसवें साल में प्रवेश कर रहा है और देखा जाए तो इसका मकसद भारत की महत्वाकांक्षाओं और इसकी वैश्विक मौज़ूदगी के बारे में चर्चाओं के माध्यम से वो निष्कर्ष निकालना है, जिसके बारे में स्पष्टता से मालूम नहीं है. पूरी दुनिया में चल रहे ज़बरदस्त परिवर्तन के इस दौर में रायसीना डायलॉग देखा जाए तो वैश्विक मुद्दों पर महत्वपूर्ण चर्चा के एक बड़े मंच के रूप में उभरा है और भारत के नए आत्मविश्वास एवं भरोसे का भी प्रतीक बन गया है.
समय के साथ-साथ रायसीना डायलॉग का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. ख़ास बात यह है कि रायसीना डायलॉग ऐसे क्षेत्रों और लोगों की आवाज़ को मंच प्रदान करने वाला साबित हुआ है, जिन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है. रायसीना डायलॉग में सिर्फ़ समाज के सबसे अमीर, शक्तिशाली और सबसे अधिक शिक्षित समूहों यानी अभिजात वर्ग के लोगों का ही जमावड़ा नहीं लगता है, बल्कि हक़ीक़त में यहां दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न जातीय, लिंग और वैचारिक विविधता वाले लोगों को भी अपनी बात कहने का अवसर प्राप्त होता है. यहां रायसीना यंग फेलो कार्यक्रम जैसी पहलों के ज़रिए अगली पीढ़ी के मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि चर्चा-परिचर्चाओं को प्रभावशाली बनाने के लिए हमारे भविष्य की आवाज़ को सुनना, यानी युवाओं के विचारों को सुनना और समझना बहुत ज़रूरी है.
निष्कर्ष
वर्ष 2016 में जब से रायसीना डायलॉग की शुरुआत हुई है, तब से मुझे कई बार यहां अपने विचार साझा करने का अवसर मिला है. रायसीना डायलॉग ने भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर भारत के प्रमुख सम्मेलन से लेकर दुनिया के एक सबसे अहम फोरम के रूप में स्थापित होने तक एक लंबी यात्रा तय की है. हर साल नई दिल्ली में आयोजित होने वाला यह रायसीना डायलॉग तमाम देशों और सरकारों के राष्ट्राध्यक्षों, राजनेताओं, विचारकों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और उद्योगपतियों एवं बिजनेस लीडर्स को एक छत के नीचे लाने का काम करता है. संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि रायसीना डायलॉग इस बात को साफ तौर पर ज़ाहिर करता है कि भारत अब अपनी ऐतिहासिक झिझक, संकोच और दुविधा को त्याग चुका है, साथ ही तेज़ी से बदल रहे वैश्विक परिदृश्य को गढ़ने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कमर कस चुका है.
आज दुनिया को न केवल रचनात्मक और खुली परिचर्चाओं की आवश्यकता है, बल्कि ऐसी बातचीत की भी ज़रूरत है, जिसमें विशेषज्ञ और अनुभवी लोग हिस्सा लें. रायसीना डायलॉग में जिस प्रकार से विभिन्न मुद्दों पर खुले मन से विचारों का आदान-प्रदान होता है, असहमति की आवाज़ को सुना जाता है, विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है और कूटनीति को लेकर चर्चाएं की जाती हैं, ये सब इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि यह मंच आज रचनात्मक और सारगर्भित चर्चाओं को बढ़ाने का माध्यम बन चुका है.
मुझे उम्मीद है कि मैं आने वाले कई वर्षों तक इस रायसीना डायलॉग में शामिल होता रहूंगा और अपने विचारों को साझा करता रहूंगा.
कृपया इसे विस्तार से यहां पढ़ें.
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