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ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान निवेश बढ़ाने के लिए डाले जा रहे राजनीतिक और कूटनीतिक दबावों को देखते हुए खतरा यह भी है कि भारत-अमेरिका रिश्तों का स्वरूप बायर - सेलर मॉडल में ढलने न लग जाए .
भारत और अमेरिका के रिश्तों का सबसे मजबूत स्तंभ है रक्षा साझेदारी . पिछले दो दशकों में हुई हथियारों की खरीद, तकनीकी हस्तांतरण और हिंद- प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तालमेल से यह बात साबित होती है.
इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में एक के बाद एक कई ऐसी घटनाएं हुई, जिनसे आपसी संबंधों में प्रॉग्रेस और परसेप्शन के बीच दूरी कम होने के बजाय बढ़ गई. हालांकि आपसी रिश्तों में आशा जगाने वाली प्रगति जारी थी. फिर भी ट्रंप की खास नाटकीयता के कारण सोच बनी कि दोनों देशों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. इस सोच और सच्चाई में इसी फर्क को दिखाने वाला ताजा उदाहरण है रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके अमेरिकी समकक्ष पीट हेगसेथ के बीच 31 अक्टूबर को हुआ डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट .
नए डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को बेहद अहम माना जा रहा है. इसकी कम से कम चार बड़ी वजहें हैं. पहली, यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब ट्रंप ने भारत पर सबसे ज्यादा टैरिफ लाद रखे हैं . दूसरी बात यह है कि भारत-अमेरिका रिश्तों में रक्षा और व्यापार का चोली-दामन जैसा साथ रहा है. ऐसे में यह दीर्घकालिक रक्षा समझौता काफी हद तक आश्वस्त कर देता है कि व्यापार समझौते को लेकर चल रही बातचीत भी देर-सबेर पटरी पर आ ही जाएगी.
फ्रेमवर्क एग्रीमेंट न केवल भारत को अहम रक्षा उपकरणों की तेजी से सप्लाई सुनिश्चित कर सकता है बल्कि तकनीकी सहयोग और उसके हस्तांतरण की भी राह आसान बना सकता है.
एक और बात यह है कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट न केवल भारत को अहम रक्षा उपकरणों की तेजी से सप्लाई सुनिश्चित कर सकता है बल्कि तकनीकी सहयोग और उसके हस्तांतरण की भी राह आसान बना सकता है. आखिर में, सबसे बड़ी वजह यह है कि दशकों से दोनों देशों के बीच जो डिफेंस पार्टनरशिप थी, इस एग्रीमेंट से वह रिन्यू हो गई है. डिफेंस पार्टनरशिप 1995 में शुरू हुई . इसे 2005 में तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी और उनके अमेरिकी समकक्ष डोनाल्ड रम्सफेल्ड ने बढ़ाया, जब भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के नए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर हुए. जून 2015 में तत्कालीन भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री ऐश कार्टर ने नए डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे.
भारत-अमेरिका रक्षा और सुरक्षा रिश्तों के लिहाज से 2025 फ्रेमवर्क से एक नया रोडमैप तैयार होगा. वह भी ऐसे वक्त में, जब तकनीक ही नहीं युद्ध का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है. इस समझौते को खास तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता, प्रतिरोध, तकनीकी सहयोग और सूचनाओं के लेन-देन के लिहाज से खास माना जा रहा है. डिफेंस क्षेत्र में फायदों के अलावा यह समझौता हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को लेकर दीर्घकालिक सामरिक नजरिया अपनाता है. इसमें मुक्त, खुले और नियम आधारित हिंद - प्रशांत पर जोर दिया गया है इससे ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर घटते भरोसे को इससे थोड़ी मजबूती मिलती है.
भारत-अमेरिका रक्षा और सुरक्षा रिश्तों के लिहाज से 2025 फ्रेमवर्क से एक नया रोडमैप तैयार होगा.
फिर भी, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर अमेरिका की घोषित प्रतिबद्धता और चीन के साथ आर्थिक समझौते पर पहुंचने की उसकी बेकरारी में विरोधाभास दिखता है . आसियान शिखर बैठक के दौरान हाल में हुए अमेरिका-चीन आर्थिक समझौते ने अमेरिकी कंपनियों को राहत भले पहुंचाई हो, इसने क्वॉड फ्रेमवर्क के तहत भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रीय साझेदारों द्वारा बनाए गए तालमेल के लिए चिंता भी बढ़ाई है.
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान निवेश बढ़ाने के लिए डाले जा रहे राजनीतिक और कूटनीतिक दबावों को देखते हुए खतरा यह भी है कि भारत-अमेरिका रिश्तों का स्वरूप बायर - सेलर मॉडल में ढलने न लग जाए
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान निवेश बढ़ाने के लिए डाले जा रहे राजनीतिक और कूटनीतिक दबावों को देखते हुए खतरा यह भी है कि भारत-अमेरिका रिश्तों का स्वरूप बायर - सेलर मॉडल में ढलने न लग जाए . यह ऐसा मॉडल है, जिससे आगे बढ़ने का फैसला दोनों पक्ष 2015 के समझौते में ही कर चुके हैं. सच पूछें तो दोनों ही देशों को नए दशकीय समझौते को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए. दोनों यह भी सुनिश्चित करें कि यह साझेदारी साझा नवाचार, आपसी भरोसे और रणनीतिक गहराई से ताकत पाती रहे.
2035 में एग्रीमेंट फिर से रिन्यू होना चाहिए. वहां तक की यात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि दोनों ही पक्ष इस रास्ते पर चलते हुए कितना सहयोग, सामंजस्य और समन्वय बनाए रख पाते हैं. सुरक्षा और रक्षा संबंधों का नया अध्याय भी इसी से तय होगा.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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