Published on Jul 14, 2023 Updated 0 Hours ago
भारत-अमेरिका संबंधः आने वाले “टैकेड” के बारे में बताएगी विश्वास पर आधारित एक साझेदारी

संदेह से शत्रुता, बीते हुए कल की शिकायतों से आने वाले कल क संभावनाओं तक, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और भारत को मज़बूत आर्थिक-रणनीतिक संबंध बनाने में एक सदी की दो तिहाई लग गई. जो 1947 में शुरू हो सकता था और होना चाहिए था वह 2023 में हो रहा है. वीज़ा और सेमीकंडक्टर से विमान इंजन और अंतरिक्ष अन्वेषण तक, दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच आर्थिक रूप से संवेदनशील और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समझौतों की बुनावट, संख्या नहीं, है जो धीरे-धीरे बढ़ते आपसी विश्वास के भव्य उत्कर्ष में सामने आई है. यह ऐसे समय में हो रहा है जबकि अमेरिका खुद को चीन से जुड़े जोखिमों से अलग कर रहा है और ऐसे साझीदार की तलाश में है जिस पर विश्वास किया जा सके और जिसके पास क्षमताएं हों.

भारत अमेरिका संबंध

“दुनिया की सबसे अहम साझेदारियों में से एक, जो मज़बूत, घनिष्ठ और अब तक के इतिहास में किसी भी समय से ज़्यादा गतिशील है”. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन  ने भारत-अमेरिकी संबंधों की व्याख्या ऐसे की. उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि मिलकर हम लोग एक ऐसे साझा भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें असीमित संभावनाएं हैं.” बाइडेन  ने व्यापार संवर्द्धन के साथ ही सेमीकंडक्टर की आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने पर ज़ोर दिया, “मुख्य रक्षा साझेदारी” को मज़बूत करने की बात कही, जिसमें क्वाड शामिल है और ओपन रैन (RAN) टेलीकम्युनिकेशन्स नेटवर्क को आगे बढ़ाने पर बात की, जो 5G, 6G और इनके बाद आने वाले नेटवर्कों के लिए महत्वपूर्ण तकनीक है. नवम्बर 2024 में आने वाले अमेरिकी चुनावों को देखते हुए उन्होंने एयर इंडिया द्वारा 200 बोइंग विमान खरीदे जाने को अमेरिका में दस लाख नौकरियां पैदा करने वाला सौदा बताया.”

नवम्बर 2024 में आने वाले अमेरिकी चुनावों को देखते हुए उन्होंने एयर इंडिया द्वारा 200 बोइंग विमान खरीदे जाने को अमेरिका में दस लाख नौकरियां पैदा करने वाला सौदा बताया.”

अपनी बात रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गहराई में उतर कर  इस आर्थिक-रणनीतिक प्रयोजन-विषयों में शामिल अन्य हितधारकों के महत्व को स्वीकारा. उन्होंने कहा, “हम दोनों सहमत हैं कि किसी भी रणनीतिक तकनीकी साझेदारी को अर्थपूर्ण बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि सरकारें, उद्योग और अकादमिक संस्थान मिलकर काम करें.” “कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), सेमीकंडक्टर्स, अंतरिक्ष, क्वांटम और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाकर हम एक मज़बूत और भविष्यवादी साझेदारी का निर्माण कर रहे हैं. माइक्रोन (Micron), गूगल (Google) और अप्लाइड मैटेरियल्स  (Applied Materials) जैसी अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश करने का फ़ैसला इस भविष्यवादी साझेदारी का ही प्रतीक है.”

जिन तीन हितधारकों का प्रधानमंत्री मोदी ने ज़िक़्र किया उनमें से दो सही दिशा में हैं. पहला, जीटूजी (सरकार से सरकार तक) संबंध, जो धीरे-धीरे और लगातार बढ़ रहा है, अब और मज़बूत हुआ है. दूसरा, बीटूबी (व्यापार से व्यापार) संबंध; उदाहरण के लिए, जीई एयरोस्पेस (GE Aerospace) ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (Hindustan Aeronautics) के साथ भारतीय वायु सेना के लिए लड़ाकू विमान बनाने के लिए  एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. यहां तक कि एलन मस्क (Elon Musk) की टेस्ला-स्पेसएक्स (Tesla-SpaceX) भी आने को तैयार हो रही है. अब जो चीज़ साधनी रह गई है वह अकादमिक संस्थानों के साथ संबंध हैं, जिनके साथ मुख्यधारा का मीडिया भी जुड़ा हुआ है, दोनों ही भारत विरोधी और हिंदू विरोधी शब्दाडंबर  के जाल में फंसे हुए हैं और ग्रसित हैं और इसकी वजह से निष्पक्षता के अपने सिद्धांत पर खरे नहीं उतर रहे. बेशक व्यापक रूप से देखें तो दोनों ही देशों में वह न तो आकर्षण के केंद्र में हैं और न ही गतिविधियों के.

भारतीय अर्थव्यवस्था को परिणाम हासिल करने में सोलह साल लगे, जब यह 1991 के 270 अरब डॉलर से 2007 में 1.2 ट्रिलियन डॉलर तक विकसित हो गई जो एक बड़ा आकार था.

1947 और 1991 के बीच भारत-अमेरिकी संबंध रणनीतिक भटकाव की स्थिति में रहे और फिर उन्हें तीन आधार स्तंभों पर सिलसिलेवार और लगातार विकसित किया गया, जो तीनों बेहद महत्वाकांक्षी थे. पहला था, 1991 में प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नेतृत्व में विदेशी निवेश और उत्पादों के लिए अर्थव्यवस्था को खोलना. हालांकि वाशिंगटन की यह उम्मीद कि भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिकी कंपनियों के लिए नए बाज़ार उपलब्ध  करवाएगी, उतनी जल्दी पूरी नहीं हुई जितनी उम्मीद थी. भारतीय अर्थव्यवस्था को परिणाम हासिल करने में सोलह साल लगे, जब यह 1991 के 270 अरब डॉलर से 2007 में 1.2 ट्रिलियन डॉलर तक विकसित हो गई जो एक बड़ा आकार था.

दूसरा था, 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत-अमेरिका के बीच हुआ असैन्य परमाणु समझौता. भारत-अमेरिका संबंधों में यह एक परिवर्तनकारी क्षण था और इससे फिर आशाएं कई गुना बढ़ गई थी . इसी दौरान, भारत अमेरिका के बोइंग और फ्रांस के एयरबस से विमानों का मुख्य खरीदार भी बन गया था. हालांकि रक्षा सौदों के लिए अभी दो चुनावों का इंतज़ार किया जाना था.

1991 के आर्थिक सुधार और 2005 का रणनीतिक सौदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन , दोनों को ही आर्थिक-रणनीतिक संबंधों की उस पराकाष्ठा पर ले आया है जहां से वह अगले दस सालों को आशा और सामंजस्य के “टैकेड” (“techade”) के रूप में देख रहे हैं. भारत-अमेरिका संबंधों के इन मील के पत्थरों के बीच मौजूद हैं भारतीय मूल के चालीस लाख लोग, जो भले ही जनसंख्या का एक प्रतिशत हों लेकिन कर में योगदान छह प्रतिशत का देते हैं और भारत में रहने वाले सात लाख से अधिक अमेरिकी नागरिक जिन्होंने यहां पूंजी और कौशल लगाया है.

निष्कर्ष

शांत और सहयोगी भारतीय मूल के निवासियों ने बहुत अच्छी साख कमाई है जिसका दोनों ही नेताओं को फ़ायदा मिला है. भारतीय मूल के नागरिक अमेरिका  की शीर्ष की कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं जिनमें गूगल (Google) और माइक्रोसॉफ़्ट (Microsoft) से लेकर नोवार्टिस  (Novartis) और माइक्रोन (Micron) तक शामिल हैं. जहां तक शिक्षा का सवाल है अमेरिका अब भी प्रमुख आकर्षण बना हुआ है, जो 1,25,000 छात्र वीज़ा बढ़ाने से पता चलता है. इधर भारत विकास की संभावनाओं वाला क्षेत्र बना हुआ है और अपने विनियामक ढांचे में थोड़ी ठोक-पीट कर यह चीन से निर्वासित हो रहे कॉर्पोरेट को आकर्षित कर सकता है.

भारत और अमेरिका दोनों एक दूसरे की ओर देख रहे हैं और संदेह और शत्रुता की नज़र विश्वास और स्नेह में बदल रही है. यह एहसास  हो रहा है कि आर्थिक और रणनीति के ठोस क्षेत्रों में दोनों लोकतंत्र एक स्वाभाविक साझेदार हैं.

भारत और अमेरिका दोनों एक दूसरे की ओर देख रहे हैं और संदेह और शत्रुता की नज़र विश्वास और स्नेह में बदल रही है. यह एहसास  हो रहा है कि आर्थिक और रणनीति के ठोस क्षेत्रों में दोनों लोकतंत्र एक स्वाभाविक साझेदार हैं. दोनों के बीच यह समझ भी है कि मूल्यों और हितों के नाज़ुक क्षेत्रों में दोनों लोकतंत्र एक दिशा में बढ़ते रहेंगे. चीन के असली इरादों के खुलासे के बाद, जो अब सबके सामने हैं, दोनों लोकतंत्रों को यह एहसास  हुआ है कि खुले और उदार समाजों को साथ मिलकर काम करना चाहिए. यह समझ बनी है यह एक ऐसा संबंध है जो दोनों लोकतंत्रों के लोगों के ज़रिये व्यापार-रक्षा-तकनीक और नौकरी-कर-समृद्धि की दो मुख्य त्रिवेणियों को साथ लाता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.