Published on Sep 12, 2025 Commentaries 3 Days ago

सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने से कुछ दिन पहले तक नेपो किड्स के खिलाफ अभियान चल रहा था. सोशल मीडिया पर 'नेपो बेबी' ट्रेंड के तहत वीडियो और मीम शेयर किए जा रहे थे. ऐसे में जब प्रतिबंध लगा तो युवाओं ने इसे भ्रष्टाचार छुपाने की एक कोशिश के तौर पर देखा और वो इससे भड़क गए. आखिरकार इस आंदोलन का नतीजा सत्ता परिवर्तन के तौर पर सामने आया.

भ्रष्टाचार और 'नेपो' किड्स के खिलाफ़ गुस्सा: नेपाल में 'क्रांति' के लिए ज़मीन लंबे समय से तैयार हो रही थी?

Image Source: गेटी

नेपाल आज एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, जहां से देश या तो स्थिरता की ओर बढ़ सकता है या गहरी अस्थिरता में गिर सकता है. दो दिन यानी 8 और 9 सितंबर की घटनाओं ने देश की राजनीतिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने देश के संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप, राजनीतिक रूप से इस मुद्दे को सुलझाने की ज़रूरत पर बल देते हुए इस्तीफा दे दिया. प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांग थी. उनका आरोप था कि 8 सितंबर को पुलिस फायरिंग में हुई 19 मौतों के लिए केपी शर्मा ओली ज़िम्मेदार हैं. हालांकि, अब पुलिस फायरिंग में मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 34 हो चुका है. अपने साथियों की मौत से नाराज़ प्रदर्शनकारियों ने कई वरिष्ठ नेताओं को उनके ही घरों और सरकारी आवासों में निशाना बनाया. विपक्षी और सत्तारूढ़ गठबंधन, दोनों के नेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया गया. इतना ही नहीं, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सर्वोच्च न्यायालय, नेपाल का केंद्रीय सचिवालय (सिंह दरबार) और अन्य सरकारी इमारतों को भी आग के हवाले कर दिया गया. 9 सितंबर को, नेपाल की सेना से सड़कों पर तैनाती के लिए कहा गया. इसके बाद नेपाल के सेना प्रमुख ने लोगों से पीछे हटने और कानून-व्यवस्था की स्थिति उन्हें संभालने देने की अपील की. 

2008 के बाद पहली बार इतना बड़ा आंदोलन

2008 में राजशाही के तख्तापलट के बाद से नेपाल में इतने बड़े पैमाने पर हिंसा नहीं देखी गई थी. देश में गहराई से जमी समस्याओं के खिलाफ़ जेन-ज़ी के विरोध प्रदर्शनों ने 2008 की हिंसा की याद दिला दी. 26 सोशल मीडिया साइटों पर प्रतिबंध लगाने के आदेश ने इस आंदोलन के लिए तत्काल उत्प्रेरक यानी ट्रिगर प्वाइंट का काम किया. सरकार का कहना था कि जब तक ये ऐप खुद को नेपाल में पंजीकृत नहीं करते, तब तक उन्हें काम नहीं करने दिया जाएगा. 3 सितंबर से नेपाल में सिर्फ तीन ऐप्स काम कर रहे थे, जिनमें टिकटॉक भी शामिल था. टिकटॉक पिछले साल ही नेपाल के कानून के साथ पंजीकृत हुआ था और इसलिए वर्तमान प्रतिबंध में सूचीबद्ध नहीं था. हालांकि, इस ऐप पर भी 2023 में प्रतिबंध लगा दिया गया था और ओली के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में लौटने के बाद ही इसका इस्तेमाल किया जा सका.

प्रदर्शनकारियों की मांगें सोशल मीडिया पर बैन से भी आगे यानी सर्वव्यापी थीं. इन मांगों में देश में भ्रष्टाचार और कुशासन का अंत करने का आह्वान भी किया गया था. प्रतिबंध लगने से कुछ दिन पहले, सोशल मीडिया पर 'नेपो बेबी' ट्रेंड के तहत वीडियो प्रसारित हुए थे. ये वीडियो राजनीतिक अभिजात वर्ग के परिवारों, खासकर उनके बच्चों और आम लोगों के बीच की जीवनशैली के अंतर की आलोचना करते थे.

लेकिन प्रदर्शनकारियों की मांगें सोशल मीडिया पर बैन से भी आगे यानी सर्वव्यापी थीं. इन मांगों में देश में भ्रष्टाचार और कुशासन का अंत करने का आह्वान भी किया गया था. प्रतिबंध लगने से कुछ दिन पहले, सोशल मीडिया पर 'नेपो बेबी' ट्रेंड के तहत वीडियो प्रसारित हुए थे. ये वीडियो राजनीतिक अभिजात वर्ग के परिवारों, खासकर उनके बच्चों और आम लोगों के बीच की जीवनशैली के अंतर की आलोचना करते थे. 'नेपो बेबीज़' की आलोचना इस बात के लिए की गई कि वो करदाताओं के पैसे से अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली का खर्च चलाते हैं, जबकि आम लोग या तो देश के भीतर या फिर खाड़ी देश, यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में पलायन करके, वहां कम वेतन वाली नौकरियों में फंसे हुए हैं. देश में आर्थिक विकास गतिरोध में है, उत्पादक क्षेत्रों में रोज़गार दुर्लभ है, और कुशल श्रमिकों की कमी के कारण मौजूदा रिक्तियां भी निरर्थक साबित हो रही हैं. युवाओं के विदेश पलायन ने नेपाल में एक शून्य, एक खालीपन पैदा किया है और देश की अर्थव्यवस्था को विदेशों से आने वाले धन पर निर्भर बना दिया है.

नेपाल में होते रहे हैं हिंसक आंदोलन 

अपने सत्रह साल के लोकतांत्रिक इतिहास में, नेपाल हमेशा राजनीतिक स्थिरता की तलाश में रहा है. इतने साल होने के बावजूद एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य के सकारात्मक नतीजे आम जनता को नहीं मिल पाए हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए मुख्यधारा की तीन राजनीतिक पार्टियां सत्ता-संघर्ष में उलझी रहीं. अपने निहित स्वार्थों और आत्म-प्रशंसा के लक्ष्यों की रक्षा करने की कोशिश में मशगूल नेताओं को देखकर लोगों के अंदर लोकतंत्र को लेकर विश्वास कम हो रहा है. नेपाल में सत्ता के दुरुपयोग की जांच करने वाले आयोग (सीआईएए) ने पिछले कुछ वर्षों में पूर्व प्रधानमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया है. यहां तक कि बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास में भी पक्षपात के आरोप लगे हैं. इन परियोजनाओं में चीन की कंपनियों को बिना उचित प्रक्रिया अपनाए दूसरों पर तरजीह दी गई. पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे जैसी कई चीनी वित्त पोषित परियोजनाएं वित्तीय कुप्रबंधन के आरोपों के घेरे में आ गईं. बड़ी आधारभूत परियोजनाओं से जुड़ी लालफीताशाही की वजह से ही भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों को फायदा उठाने और अपनी संपत्ति बढ़ाने का मौका मिला. भ्रष्टाचार ने नेताओं को तो समृद्ध किया, लेकिन देश के बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डाला। यह आम नागरिकों के लिए लगातार चिंता का विषय रहा है.

स्कूल की ड्रेस पहने और हाथों में किताबें लिए युवाओं का हुजूम 'यूथ अगेंस्ट करप्शन' और 'नेपाल का Gen-Z मूवमेंट' के बैनर लेकर सड़कों पर उतर आया. उन्होंने कुशासन, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खात्मे का आह्वान किया, लेकिन जल्द ही खून से लथपथ सड़कों और अपने साथियों को अस्पताल ले जाते युवाओं की तस्वीरें सामने आईं.

अधूरे और टूटे वादे

जुलाई 2024 में जब सीपीएन (यूएमएल) और नेपाली कांग्रेस गठबंधन ने सत्ता संभाली, तो उन्होंने बार-बार होने वाले सरकारी बदलावों को लेकर चिंताओं को दूर करने के लिए यह आश्वासन दिया. इस मिली-जुली सरकार ने कहा कि वो शासन के लिए एक साझा ढांचा अपनाने की दिशा में काम करेंगे, लेकिन जैसे-जैसे कार्यकाल आगे बढ़ा, कोई आम सहमति नहीं बन पाई और प्रधानमंत्री ने संसदीय प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए एकतरफ़ा कार्यकारी आदेश पारित करके शासन चलाया. इस तरह देखा जाए तो, सोशल मीडिया पर प्रतिबंध आकस्मिक नहीं लगाया गया, बल्कि इसे असहमति को दबाने की सरकार की कोशिश माना गया. सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने गुस्सा बढ़ाने का काम किया. न्यायिक प्रक्रिया के प्रति उनकी बेपरवाही और किसी भी तरह की असहमति को दबाने की प्रवृत्ति ने युवाओं की नाराज़गी को चरम पर पहुंचा दिया. ये सुलगता असंतोष आखिरकार हालिया विरोध प्रदर्शनों में पूरी ताकत से सामने आ गया, लेकिन असंतोष की इस आग ने नेपाल की कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों को भी जला दिया.

छात्रो का ये विरोध प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गया और कुछ प्रदर्शनकारियों के बैरिकेड तोड़कर संसद भवन में घुसने से अफरा-तफरी मच गई. पुलिस फायरिंग की वजह से पहले ही दिन यानी 8 सितंबर को 19 लोगों की मौत हो गई. 11 सितंबर तक मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 34 हो गया, जबकि करीब 400 लोगों का अस्पतालों में इलाज चल रहा है.

देश के लिए अगले कदमों पर कोई भी बातचीत तभी ठोस रूप ले पाएगी जब हिंसा रुकेगी. इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि विरोध प्रदर्शनों पर कब्ज़ा उन निहित स्वार्थी समूहों का हो सकता है, जो शुरुआती विरोध-प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं थे.

जब 8 सितंबर को सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन शुरू हुए, तो किसी ने भी अंदाज़ा नहीं लगाया था कि ये किस पैमाने और कितनी तीव्रता के साथ बढ़ेंगे. स्कूल की ड्रेस पहने और हाथों में किताबें लिए युवाओं का हुजूम 'यूथ अगेंस्ट करप्शन' और 'नेपाल का Gen-Z मूवमेंट' के बैनर लेकर सड़कों पर उतर आया. उन्होंने कुशासन, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खात्मे का आह्वान किया, लेकिन जल्द ही खून से लथपथ सड़कों और अपने साथियों को अस्पताल ले जाते युवाओं की तस्वीरें सामने आईं. दिन के अंत तक, गठबंधन के कुछ वरिष्ठ नेताओं, खासकर गृह मंत्री, ने इस्तीफ़ा दे दिया था, जबकि विपक्षी दल के नेता सरकार पर जनता की मांगों को सुनने का दबाव बना रहे थे. मंत्रिपरिषद की बैठक में, सरकार ने उस दिन की घटनाओं, विशेषरूप से पुलिस फायरिंग की न्यायिक जांच कराने का निर्णय लिया. अगले दिन, शहर के प्रमुख केंद्रों में बड़े विरोध-प्रदर्शन पर प्रतिबंध होने और कर्फ्यू के बावजूद, हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए. सोशल मीडिया पर विदेश मंत्री आरज़ू राणा देउबा और उनके पति और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा की पिटाई की तस्वीरें सबने देखीं. शेर बहादुर देऊबा नेपाल के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावा, वित्त मंत्री विष्णु पौडेल को सड़कों पर परेड कराते, पिटते और नेताओं को उनके घरों से हेलीकॉप्टरों द्वारा ले जाने की की तस्वीरें वायरल होने लगीं. 9 सितंबर की दोपहर तक प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफ़ा दे दिया था.

अस्थिरता का अंत नहीं है ये उथल-पुथल

नेपाल में जैसे-जैसे हिंसा बढ़ती गई, जेन-ज़ी के प्रदर्शनकारियों की ओर से बोलने वाले कई समूहों ने बयान जारी कर कहा कि तोड़फोड़ और आगज़नी की इन घटना में वो शामिल नहीं हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि निहित स्वार्थ वाले समूहों ने उपद्रव भड़काया और आगज़नी व हिंसा के ज़रिए आंदोलन को पटरी से उतारने की कोशिश की. इन चिंताओं के बावजूद, प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे को विरोध-प्रदर्शनों का एक ज़रूरी नतीजा माना जा रहा है. कई लोग विजय जुलूस निकालकर जश्न मना रहे थे. युवाओं को संगठित करने वाले कई गैर सरकारी संगठनों के नेता इसे अपनी जीत मान रहे हैं. हालांकि, इसके साथ ही हालात और और बिगड़ने से रोकने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया गया. देश के लिए अगले कदमों पर कोई भी बातचीत तभी ठोस रूप ले पाएगी जब हिंसा रुकेगी. इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि विरोध प्रदर्शनों पर कब्ज़ा उन निहित स्वार्थी समूहों का हो सकता है, जो शुरुआती विरोध-प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं थे.

देश अब विरोध और अराजकता के बाद की स्थिति से जूझ रहा है. नए राजनीतिक ढांचे की संरचना को लेकर सवाल और अटकलें तेज़ हैं. काठमांडू के मेयर बालेन शाह और जेल में संभावित धरना-प्रदर्शन की आशंकाओं के चलते जेल से रिहा किए गए रबी लामिछाने जैसे नेताओं ने प्रदर्शनकारियों से तोड़फोड़ बंद करने और देश के बुनियादी ढांचे को और ना जलाने की अपील की है. नेपाल का भविष्य अब इस बात पर निर्भर करेगा कि हिंसा पर कितनी जल्दी लगाम लगती है, और कब शांति स्थापित होती है. नेपाल में अब अपेक्षाकृत शांति है. अंतरिम सरकार बनाने पर बात चल रही है. हालांकि, इस अंतरिम सरकार के सामने भी बड़ी चुनौती होगी, फिलहाल स्थिति अनिश्चितता और प्रतीक्षा की है.


ये लेख एनडीटीवी की वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है.

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Authors

Harsh V. Pant

Harsh V. Pant

Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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