Author : Hari Bansh Jha

Published on Jan 05, 2023 Updated 0 Hours ago

नेपाली राजनीति में नई पार्टियों एवं युवाओं का प्रवेश एक स्वागत योग्य प्रगति है क्योंकि लोग पुराने नेतृत्व एवं नेताओं में दिलचस्पी खो चुके हैं.

नेपाल की राजनीति में युवाओं का प्रवेश; क्या इससे देश में परिवर्तन की हवा बहेगी?

पिछले तीन दशक से, नेपाल में कई तरह के राजनीतिक और सामाजिक उतार-चढ़ाव आये. जिनमें माओवादी विद्रोह (1996 – 2006) सरीखी प्रमुख उथल पुथल, 239 साल पुराने राजशाही का खात्मा, हिन्दू राज्य का एक प्रजातान्त्रिक गणराज्य में परिवर्तन होना, एकसंघीय तरह की सरकार का संघीय व्यवस्था में तब्दीली होना, मधेसी उद्भव, 2015 में नए संविधान की घोषणा और स्थानीय, प्रांतीय और संघीय स्तर के दो चुनावों का आयोजन – जिसमें से एक 2017 और दूसरा 2022 में सम्पन्न हुआ. परंतु जो नहीं बदला वो था पारंपरिक राजनीति दलों का नेतृत्व. वही नेता जो सन् 1990 में राजनीति के अखाड़े के प्रमुख खिलाड़ी हुआ करते थे, अब भी मैदान में वही जमे हुए हैं. परंतु राजनीति में युवा ताकतों की अचानक से एंट्री और 13 मई और हाल ही में 7 प्रांतीय असेंबली और 20 नवंबर को हुए संघीय संसद के चुनावों में इनको मिली हालिया जीत ने ये ज़रूर जता दिया है कि नेपाली राजनीति में इन पुराने खिलाड़ियों के मात्र गिने-चुने दिन ही अब बचे रह गये हैं. 

राजनीति में युवा ताकतों की अचानक से एंट्री और 13 मई और हाल ही में 7 प्रांतीय असेंबली और 20 नवंबर को हुए संघीय संसद के चुनावों में इनको मिली हालिया जीत ने ये ज़रूर जता दिया है कि नेपाली राजनीति में इन पुराने खिलाड़ियों के मात्र गिने-चुने दिन ही अब बचे रह गये हैं. 

हालिया हुए संसदीय चुनाव में लगभग 50 प्रतिशत नए चेहरों ने सीटें जीती हैं. चुनावी सरगर्मी के दौरान, नेपाली सोशल मीडिया आम वोटरों के द्वारा “नहीं, अब नहीं” जैसे स्लोगन और नारों के मार्फ़त, पुरानी पार्टियों और पुराने नेताओं को वोट न देने की अपील से भरे पड़े थे. जिसके परिणामस्वरूप, पारंपरिक राजनीतिक दलों के कई स्थापित नेताओं को मतदाताओं ने एक सिरे से नकार दिया.  

राजनीति में नए चेहरे इस चुनाव में और बेहतर प्रदर्शन करते अगर देश की 4 – 5 मिलियन से भी ज़्यादा का मतदाता वर्ग, जो कि  देश के कुल मत का 25 से 30 प्रतिशत भाग होते हैं, उन्हें इन चुनावों में मत देने का अधिकार दिया गया होता. परंतु नेपाली मतदाताओं का एक बड़ा समूह सिर्फ़ इसलिये मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया गया है क्योंकि वे देश से बाहर रहते हैं. देश से बाहर रह रहे लोगों के मतदान में भाग लेने का कोई प्रावधान यहां नहीं है.   

कट्टर क्षेत्र नेवार से निर्दलीय उम्मीदवार और पेशे से इंजीनियर बलेन शाह का मेयर चुना जाना और नेपाल की राजधानी काठमांडु के मेट्रोपॉलीटन सिटी के लिये अन्य समुदायों ने जिस तरह से मई माह में हुए स्थानीय चुनावों में सफलता हासिल की उसने देशभर के युवाओं में जोश भरने का काम किया है. पिछले छः महीने में, काठमांडू के जीवन में सुधार लाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की वजह से बलेन शाह नेपाली राजनीति में एक काफी बड़ी शख्सियत के तौर पर उभर कर आए हैं. इसने देशभर के मतदाताओं को एक तरह से काफी प्रभावित किया और उन्हें चुनाव में युवा ताकतों को अपना समर्थन देने को प्रेरित किया है.  

नए दलों का उदय 

वृद्ध होते नेताओं और इन पारंपरिक दलों को लेकर मतदाताओं में घर करती निराशा ने इन युवा जनों को राजनीति में शामिल होने के लिये न सिर्फ़ प्रोत्साहित किया बल्कि मददगार कारक भी साबित हुई है. इसके प्रतिफल में, चौथी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी है, जिसका पंजीकरण चुनाव के मात्र कुछ माह पहले ही चुनाव आयोग द्वारा किया गया था. उसी तरह से, दो साल पहले ही पंजीकृत हुई जनमत पार्टी भी तराई क्षेत्र में एक प्रमुख राजनीतिक दल बन कर उभरी. पश्चिमी नेपाल में, नागरिक उन्मुक्ति पार्टी, जिनके नेता जो अब भी जेल में हैं, वो भी एक शक्ति के तौर पर उभर कर सामने आयी है जिसे नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

अतीत के विपरीत, प्रवासी समुदाय ने इस बार अपने नज़दीकी और प्रिय लोगों को नए चेहरे को अपना मत देने के लिए प्रभावशाली तरीके से प्रेरित किया. संसद के चुनाव में जीतने वाले राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों के भारी मतों से जीत प्राप्त करने के पीछे इन्हीं प्रवासी समुदायों का काफी सहयोग था. सोशल मीडिया, जिसमें फेसबूक, ट्विटर और यूट्यूब भी इस पार्टी के समर्थन से भरी पड़ी थी. राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी का नेतृत्व करने वाले रबी लमेछाने ने “सीधा कुरा जनता सांगा (जनता से सीधी बात) कार्यक्रम के ज़रिए प्रवासी कामगारों का मुद्दा उठाया और सरकारी एजेंसियां और भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा दिए जाने वाली दयनीय सेवाओं पर से पर्दा उठाया. 

उसी तरह से, जनमत पार्टी भी मधेस में, अपने मतदाताओं खासकर के ग़रीब जनता और खाड़ी देशों में कार्यरत मधेसी प्रवासी से प्राप्त समर्थन के बूते, एक मज़बूत प्रांतीय पार्टी के तौर पर उभरी है. इस पार्टी के नेता, सी.के.राउत काफी ख्य़ातिप्राप्त हो गए, क्योंकि- एक वक्त में उन्होंने भी अलग मधेस के लिए अलगाववादी आंदोलन चलाया था, परंतु बाद में वे केपी शर्मा-के नेतृत्व वाली सरकार के साथ मार्च 2019 में हुए एक सहमति के पश्चात प्रमुख धारा की राजनीति में शामिल हो गए.  

इस दरम्यान, विविध पृष्टभूमि जैसे संगीत, पत्रकारिता या फिर उद्यमी वर्ग से संसद में चुने गए दर्जनों युवा नेता, नेपाली राजनीति के पुराने रक्षक के आधिपत्य को चुनौती देने लगे हैं. उन्हे ऐसा लगता है कि पूर्वस्थापित पुरानी पार्टियां राणा और शाह राज की विचारधारा का अनुसरण करते हैं और वे किसी निजी लिमिटेड कंपनियों  की तरह से कार्य करते हैं. इसके अलावे वे बड़े पैमाने पर प्रशासनिक सेवाओं में बहाली संबंधी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, और पदोन्नति, या फिर कर्मचारियों के स्थानांतरण/ट्रांसफर आदि में व्याप्त पक्षपात आदि से पूर्व-परिचित हैं. इसलिए, देश को नई दिशा देने के प्रयास में, वे सिर्फ़ समकालीन मुद्दों पर ही बात करना पसंद करते हैं न की पुराने आदर्शों पर.    

इलेक्शन मैनिफेस्टो या दलों की सिद्धांत के बजाय युवाओं का जोश अथवा एजेंडा ही है जिसने मतदाताओं को आकर्षित किया. मतदाताओं ने उन पर, बदलाव लाने और देने की प्रतिबद्धता पर भरोसा किया. इसने देश में दक्षिणपंथी राजनीति का सूत्रपात किया. नवगठित राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी संघीय जनतांत्रिक गणतंत्र के विरुद्ध एकात्मक प्रणाली चाहता है. उसी तरह से, हिन्दू समर्थक और राजशाही समर्थक, राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी, ने 2017 के चुनाव में मिली पराजय के बाद अपनी छवि में आंशिक तौर पर सुधार किया है.   

सरकार बनाने की प्रक्रिया में भूमिका 

युवा चेहरों को दिए गए समर्थन की वजह से, नेपाली काँग्रेस, CPN-UML, या फिर CPN- माओवादी जैसी पुरानी पार्टियों को भी बहुमत नहीं मिल सका है. यहां तक की नेपाली-कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार, सरकार बनाने के लिए ज़रूरी, 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा (HoR) में, 158 का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए ज़रूरी दो वोटों से दूर हैं. इसलिए उसे सरकार बनाने के लिए, इन नवगठित फ्रिंज पार्टियों के समर्थन की सख्त़ ज़रूरत है.   

फ्रिंज या हाशिये की पार्टियों जैसे नागरिक उन्मुक्ति पार्टी, जिसने संसद में 3 सीटें जीतीं, या फिर जनमत पार्टी जिसके पास छह सीट है, का समर्थन प्राप्त करने के लिए, देउबा की नेतृत्व वाली सरकार ने नेशनल क्रिमिनल प्रोसीजर (कोड) धारा, 2017 को एक अध्यादेश के ज़रिए सुधारने का निर्णय लिया है ताकि विशेष तौर पर रेशम चौधरी, जो 2015 के टिकापुर नरसंहार केस, जिसमें 8 नागरिक मारे गए थे, के सिलसिले में आजीवन कारावास की सजा झेल रहे हैं. एक बार जब राष्ट्रपति बिद्या देवी भण्डारी इस अध्यादेश को सत्यापित कर देती हैं, उसके बाद फिर सरकार के पास चौधरी और साथ ही उन राजनैतिक कार्यकर्ताओं को माफी देने की राह प्रशस्त हो जाएगी, जिन्हें इन जघन्य अपराधों के लिए जेल में सड़ने के लिए रखा गया है.    

राजनीति में इन युवाओं और नए राजनीतिक दलों का प्रवेश एक सराहनीय कदम है. लोग अब कुछ बदलाव महसूस कर रहे हैं चूंकि उनका पुरानी पारंपरिक राजनीतिक दलों और उनके पुराने धुरंधरों से मोह भंग हो चुका था.

सरकार ने इस अध्यादेश को लेकर किए गए अपने बचाव में पिछली सरकारों के दौरान घटी घटनाओं का उदाहरण दिया है, जहां विभिन्न कट्टरपंथी ताकतों को राष्ट्र की मुख्यधारा की राजनीति में लाने के प्रयास में राजनैतिक कैदियों को माफ़ी देने के उद्देश्य से ऐसे ही अध्यादेशों को प्रस्तुत किया गया था. परंतु इस अध्यादेश के विरोधियों ने राष्ट्रपति से इसे अपनी सहमति नहीं देने की मांग की है. 

राजनीति में इन युवाओं और नए राजनीतिक दलों का प्रवेश एक सराहनीय कदम है. लोग अब कुछ बदलाव महसूस कर रहे हैं चूंकि उनका पुरानी पारंपरिक राजनीतिक दलों और उनके पुराने धुरंधरों से मोह भंग हो चुका था. अब एक वैकल्पिक राजनीति का समय शुरू हो चुका है जहां इन फ्रिंज/हाशिये की पार्टियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. ऐसी स्थिति में, उन लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा की राजनीति में एक साथ लाने के प्रयास में, सरकारों द्वारा चंद लोगों को माफ़ी देने के प्रयास को नकारा नहीं जा सकता है. हालांकि, एक स्थिर प्रशासन देने की दिशा में, महंगाई पर नियंत्रण, और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने, रोज़गार के अवसर का सृजन और अपने तत्कालीन पड़ोसी भारत और चीन के बीच के संबंधों में सामंजस्य, ख़ासकर उस वक्त जब राष्ट्र संघीय पार्लियामेंट और प्रांतीय असेंबली में पड़े विभाजित मतदान की वजह से एक राजनैतिक अस्थिरता की ओर जा रहा है, तो ऐसी स्थितिं में राजनीतिक दलों में शामिल ये युवा चेहरे किस प्रकार से अपनी बेहतर सेवा दे पाएंगे, ये फ़िलहाल वक्त कह पाना मुश्किल होगा. 

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