Author : Hari Bansh Jha

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 22, 2022 Updated 0 Hours ago

इस चुनाव में साफ जीत की कमी इस ओर इशारा करती हैं कि नेपाल राजनैतिक उथल-पुथल का सामना करने की कगार पर हैं. 

नेपाल के चुनावी परिणाम: राजनीतिक अस्थिरता की दस्तक!
नेपाल के चुनावी परिणाम: राजनीतिक अस्थिरता की दस्तक!

साल 2015 में हुई संविधान की घोषणा के पश्चात, नेपाल ने फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (एफपीटीपी) और आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) सिस्टम के अंतर्गत, 20 नवंबर को दूसरी पार्लियामेंट्री और प्रांतीय चुनाव करवाया. इस आम चुनाव में, सरकार बनाने के लिए ज़रूरी वोट, किसी भी राजनीतिक दल को नहीं मिली. हालांकि, अगर बाकी अन्य चीजें पूर्ववत रही तो, सत्ताधारी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल, जिनमें नेपाली काँग्रेस (एनसी), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाली-माओईस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी), एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपीएन-एमसी), और लोकतांत्रिक समाजबादी पार्टी (एलएसपी), हाशिये में खड़ी पार्टी/पार्टियां या स्वतंत्र/निर्दलीय उम्मीदवार के पास एक संघीय सरकार के साथ ही कई राज्यों में भी सरकार बनाने के काफी बड़े अवसर हैं, हालांकि, केंद्र और राज्यों में स्थिर सरकार बनने की काफी क्षीण गुंजाइश है.   

हालांकि, चुनाव में भाग ले रही सभी पार्टियों में से, चुनाव आयोग ने मात्र सात पार्टियों जिनमें सीपीएन-यूएमएल, एनसी, सीपीएन (एमसी), आरएसपी, अरपीपी, जेएसपी, जेपी शामिल हैं उनको ही राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता प्रदान की है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए, एक पार्टी को एफपीटीपी सीट में कम से कम एक सीट को जीतना अत्यंत आवश्यक है.

275 – सदस्यीय संघीय संसद में, एफपीटीपी और पीआर वोटों के आधार पर, एनसी 89 सीटें जीत कर अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी, जबकि उनकी प्रमुख प्रतिद्वंदी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल – एकीकृत - मार्कसिस्ट- लेनिनिस्ट (सीपीएन-यूएमएल) 77 सीटें जीत कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. इसके आगे, 32 सीटों के साथ सीपीएन-एमसी तीसरी बड़ी पार्टी, और उसका अनुसरण करते हुए, 21 सीटों के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसडब्लू), राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी (आररपीपी) 14 सीट, जनता समाजवादी पार्टी (आरएसडब्लू) 12 सीट, सीपीएन-यूएस 10 सीटें, जनमत पार्टी (जेपी) 6 सीट, एलएसपी 4 सीटों के साथ, नागरिक उन्मुक्ति पार्टी (एनयूपी) 3 सीटों के साथ गठबंधन में शामिल हुईं.  

हालांकि, चुनाव में भाग ले रही सभी पार्टियों में से, चुनाव आयोग ने मात्र सात पार्टियों जिनमें सीपीएन-यूएमएल, एनसी, सीपीएन (एमसी), आरएसपी, अरपीपी, जेएसपी, जेपी शामिल हैं उनको ही राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता प्रदान की है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए, एक पार्टी को एफपीटीपी सीट में कम से कम एक सीट को जीतना अत्यंत आवश्यक है. 

275 सदस्यीय संघीय संसद की आम चुनाव में, 165 सीधे-सीधे नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं, जबकि शेष 110 चुनाव में प्राप्त वोटों के अनुपात में, राजनीतिक दलों द्वारा चुने जाते हैं. एफपीटीपी के अंतर्गत, संसद के लिए लगभग 2412 उम्मीदवार, और 2199 उम्मीदवारों ने 110 आनुपातिक प्रतिनिधित्व सीटों के लिए चुनाव लड़ा. उसी तरह से, 3224 उम्मीदवार, एफपीटीपी अंतर्गत, 330 प्रांतीय सीटों के लिए और 3708 उम्मीदवार, 220 आनुपातिक प्रतिनिधि सीटों के लिए कतार में थे.      

2017 के आम चुनाव में, लोगों ने, देश के सात में से छह प्रांतों के अलावा केंद्र में सरकार बनाने के लिए, लगभग दो तिहाई बहुमत के साथ कम्युनिस्टों को सरकार बनाने के लिए साफ बहुमत दिया. परंतु अंदरूनी मतभेदों की वजह से, कम्युनिस्ट बेहतर प्रदर्शन कर पाने में असफल रहे और इस दौरान विघटित हो गये. इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस (एनसी), कम्युनिस्टों के बिखरे समूह और मधेस आधारित राजनीतिक दलों की मदद से में 13 जुलाई 2021 में सरकार बना पाने में सफल रही, जबकि उनके पास 275 सदस्यीय संसद में मात्र 61 सीट थी.    

चुनाव के प्रति लोगों में उत्साह क्यों कम?

एक महत्वपूर्ण प्रगति के तहत, प्रमुख राजनीतिक दलों ने 20 नवंबर की चुनाव से पहले, दो चुनावी गठबंधन बनाए – पहली एनसी नेता शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ गठबंधन और दूसरी केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली विरोधी गठबंधन. परंतु पारंपरिक रूप से स्थापित राजनैतिक दलों द्वारा सैद्धांतिक आधार पर पैदा की गई दुविधा और खराब डिलीवरी और बेरोज़गारी एवं अति महंगाई से पहले से ही परेशान नागरिकों की वजह से, चुनाव के प्रति लोगों में काफी कम उत्साह देखा गया. ये मतदान के दौरान अच्छे तरीके से देखा गया, चूंकि नेपाल के 18 मिलियन पात्र मतदाताओं मे से मात्र 61 प्रतिशत ने ही अपना मत बैलट में डाला;  जबकि कुछ महीने पहले ही 13 मई को हुए स्थानीय चुनाव में, 72 प्रतिशत मतदाता, अपने मतों का दान करने के लिए प्रस्तुत हुए थे.     

वे राजनैतिक दल ,जिन्हें इस चुनाव के दौरान सबसे ज्य़ादा फायदा हुआ, वे पारंपरिक रूप से स्थापित नेपाली काँग्रेस हैं. देश के भीतर उसके व्यापक आधार और प्रजातंत्र के पैरोकार के रूप में बनी उनकी छवि की वजह से उनकी स्थिति और भी सुदृढ़ हुई. आश्चर्यजनक रूप से, नवंबर चुनाव से चंद महीने पहले जुलाई 2022 में ही चुनाव आयोग से पंजीकृत आरएसपी पार्टी खासकर के काठमांडू और देश के अन्य कोने के युवा और शिक्षित लोगों के समर्थन को भुना पाने में सफल रही.   

आज सिद्धांतों के बजाय सत्ता के लिए भूख ही नेपाल में आज की राजनीति का सच है. इसी वजह से, सत्तारूढ़ गठबंधन की माओईस्ट पार्टी और विपक्षी गठबंधन की जेएसपी ने हाल ही में इशारों में कहा कि चुनावी गठबंधन के दिन अब खत्म हो रहे हैं, जिसका मतलब ये है कि पिछले चुनावी गठबंधन के बावजूद, वे किसी भी सरकार से जुड़ने के लिए उपलब्ध हैं. 

उसी तरह से, मार्च 2019 में चुनाव आयोग से पंजीकृत नवस्थापित जेपी राजनीतिक पार्टी भी तराई क्षेत्र में एक मज़बूत ताकत के रूप में उभर कर आई. इस पार्टी के नेता सी.के. राऊत ने, मधेसी जनता समाजवादी पार्टी के नेता उपेन्द्र यादव को संसदीय चुनाव में भारी मतों के अंतर से पराजित किया. 

आरएसपी और जेपी में जो बात समान थी वो ये की दोनों ही दल प्रवासी नेपाली और अन्य देशों से आये और वहां  रह रहे प्रवासी कामगारों के समर्थन को प्रेरित कर पाने में सफल रहे थे. नेपाल के कुल 30 मिलियन नागरिकों मे से कुल 5 मिलियन लोग जो भारत सहित अन्य देशों में काम कर रहे हैं. ज्य़ादातर ऐसे नेपाली कामगार जो की विदेशी धरती पर कार्य कर रहे थे, उन्होंने घर पर रह रहे अपने नज़दीकी लोगों को इन पार्टियों को अपना मत देने के लिए प्रेरित किया. दूसरी पार्टी जिसे फायदा हुआ वो हैं राजेन्द्र लिंगडें के नेतृत्व वाली और राजशाही और हिन्दू वादी समर्थक आरपीपी है. 

दूसरी तरफ, कम्युनिस्टों को तीन ग्रुप में बांटने की वजह से काफी नुकसान झेलना पड़ा; जबकि दोनों मधेसी राजनैतिक दलों जेएसपी और एलएसपी, को अपने नेताओं द्वारा मधेशी मुद्दों को प्रभावशाली तरीके से नहीं उठा पाने की वजह और उनमें से ज्य़ादातर के सत्ता के भीतर विभिन्न भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त होने की वजह से भी नुकसान उठाना पड़ा. 

एनसी के नेतृत्ववाली गठबंधन 275 सदस्यीय संसद में 138 सीटों के जादुई आंकड़ों के काफी नज़दीक हैं, लेकिन यूएमएल ने सरकार बनाने की आशा को नहीं त्यागा है और इसके लिए, सीपीएन-यूएस के अलावा, जो अब तक सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ है, वो सीपीएन-एमसी को राजी करने के लिए अब भी प्रयासरत हैं. पाँच पार्टी गठबंधन सदस्य के अलावा, एनसी जेपी और एनयूपी को भी अपने साथ लाने के लिये, रिझाने की कोशिश में लगी हुई है.  

सिद्धांतों के बजाय सत्ता की भूख

गौरतलब है कि आज सिद्धांतों के बजाय सत्ता के लिए भूख ही नेपाल में आज की राजनीति का सच है. इसी वजह से, सत्तारूढ़ गठबंधन की माओईस्ट पार्टी और विपक्षी गठबंधन की जेएसपी ने हाल ही में इशारों में कहा कि चुनावी गठबंधन के दिन अब खत्म हो रहे हैं, जिसका मतलब ये है कि पिछले चुनावी गठबंधन के बावजूद, वे किसी भी सरकार से जुड़ने के लिए उपलब्ध हैं. 

इस अनिश्चितता के बीच, अगले चंद दिनों में, संघीय और प्रांतीय स्तर पर दोनों ही जगह सरकार बनेगी. देश को और सभी प्रांतों को शीघ्र ही नया राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, स्पीकर, डेप्यूटी स्पीकर, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मिल जाएगा. हालांकि, जो बात बिल्कुल साफ है वो ये की केंद्र और प्रांतों में की भी सरकार स्थिर नहीं रहेगी, क्योंकि सरकार बनाने या न बनाने की प्रक्रिया में ये छोटी-छोटी पार्टियां एक निर्णायक कारक के तौर पर उभरी हैं. जैसे की अंतिम 16 सालों में जब नेपाल में 13 सरकारें रही हैं, सरकार में सतत् बदलाव और राजनीतिक दलों के बीच की तकरार पुनः दुहराई जाएगी. किसी भी सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं हैं चूंकि उसे धीमी पड़ी अर्थव्यवस्था, भारत और चीन के बीच के रिश्तों को सुधारना, और नेपाली की मिट्टी पर अन्य अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों के बढ़ते प्रभुत्व को कम करना होगा. 

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