Author : Leigh Mante

Expert Speak Raisina Debates
Published on Nov 10, 2025 Updated 2 Hours ago

धरती का ताप बढ़ रहा है, फसलें सिकुड़ रही हैं और किसान सबसे पहले झुलस रहे हैं. ऐसे में अमेज़न में जुटने वाला COP30 इस सवाल का जवाब ढूंढेगा — क्या जलवायु कार्रवाई अब सचमुच खेतों से शुरू होगी?

धरती को बचाने की जंग अब खेतों से—मंच है अमेज़न!

पारंपरिक रूप से, कृषि, खाद्य प्रणाली, भूमि क्षरण और जलवायु परिवर्तन के आपसी संबंध को जलवायु वार्ताओं में बहुत कम महत्व मिला है, जबकि कृषि क्षेत्र वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है. हालाँकि, हाल के वर्षों में कृषि से जुड़े मुद्दों को अधिक प्रमुखता मिलने लगी है. COP23 में ‘कोरोनीविया संयुक्त कार्य कार्यक्रम (KJWA)’ शुरू हुआ, COP27 में इसके क्रियान्वयन की योजना बनी, और COP28 ने यूएई घोषणा के माध्यम से सतत कृषि, मज़बूत खाद्य प्रणालियों और जलवायु कार्रवाई के महत्व को और बढ़ाया. इस घोषणा में देशों से आग्रह किया गया कि वे 2025 तक अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (NDCs) और अनुकूलन योजनाओं में कृषि और खाद्य प्रणालियों को शामिल करें.

पहली बार कृषि और खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन को COP एजेंडा के मुख्य स्तंभ के रूप में शामिल किया जा रहा है. यह बदलाव ब्राज़ील की दोहरी पहचान को दर्शाता है, एक ओर वह कृषि शक्ति है, तो दूसरी ओर उसके पास अमेज़न के घने वर्षावन हैं, जो अक्सर एक-दूसरे के विरोध में दिखते हैं. आम तौर पर COP की औपचारिक वार्ता बहुपक्षीय होती हैं, लेकिन हर मेज़बान देश अपनी प्राथमिकताएं तय कर सकता है. कई देश नए ऐलानों के ज़रिए अपनी छवि बनाना चाहते हैं, जिससे अमल पर ध्यान कम हो जाता है. परंतु ब्राज़ील का उद्देश्य क्रियान्वयन को केंद्र में रखकर वास्तविक बदलाव लाना है. फिर भी, जलवायु वित्त जुटाने और आंतरिक राजनीतिक मतभेदों से निपटने जैसी चुनौतियाँ उसकी राह में रुकावट बन सकती हैं.

स्थानीय जलवायु-संवेदनशील कृषि पर फोकस

COP30 का एजेंडा कृषि और खाद्य प्रणालियों को जलवायु कार्यवाही के केंद्र में रखता है. यह जैव विविधता सम्मेलन (CBD) और यूएनसीसीडी जैसी पिछली बैठकों में शुरू किए गए लचीले कृषि और खाद्य ढाँचों को एक साथ जोड़ने का अवसर देता है. 2024 में हुई जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और मरुस्थलीकरण पर तीन लगातार सीओपी बैठकों ने कृषि-खाद्य प्रणालियों पर चर्चा का दायरा बढ़ाया और छोटे किसानों, स्थानीय समुदायों व आदिवासी समूहों के अधिकारों को मान्यता दी. ब्राज़ील, मेज़बान देश के रूप में, 300 से अधिक पिछली पहल की समीक्षा कर उन्हें एक साझा रूपरेखा में लाने और सामूहिक कार्यवाही को बढ़ावा देने की योजना बना रहा है. इसमें भूमि पुनर्स्थापन, सतत कृषि, खाद्य सुरक्षा और पोषण पर विशेष ध्यान रहेगा. इसके साथ ही, ब्राज़ील का सामाजिक विकास मंत्रालय “बेलें घोषणा पत्र” तैयार कर रहा है, जो भूख, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को जलवायु कार्यवाही के केंद्र में लाने पर केंद्रित होगा.

वर्तमान में, कृषि-खाद्य प्रणालियों में निवेश कुल जलवायु वित्त का केवल 4.3% (लगभग 60–75 अरब डॉलर) है, जबकि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पाने के लिए 1.1 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है.

कृषि परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए COP30 के औपचारिक सत्रों के साथ-साथ साइड इवेंट्स जैसे अनौपचारिक मंच भी महत्वपूर्ण है, जहाँ विभिन्न हितधारक ज्ञान और अनुभव साझा कर सकते हैं. ऊर्जा क्षेत्र के विपरीत, कृषि क्षेत्र में उत्सर्जन घटाने के लिए स्थानीय परिस्थितियों पर आधारित समाधान जरूरी हैं. इस दिशा में ब्राज़ील “मुरिताओ” अवधारणा अपना रहा है, जो स्थानीय समुदायों और आदिवासी समूहों की भूमिका को नीति-निर्माण में केंद्र में रखती है. पीपुल्स समिट में सामाजिक आंदोलनों, स्थानीय संगठनों और पारंपरिक समुदायों को एक साथ लाकर एग्रोइकोलॉजी, पुनर्योजी कृषि और मृदा प्रबंधन की रणनीतियों पर चर्चा की जाएगी. साथ ही, कृषि, खाद्य प्रणाली, खाद्य सुरक्षा, मत्स्य पालन और पारिवारिक खेती पर केंद्रित एक थीमैटिक डे भी आयोजित होगा, ताकि साझेदारियाँ मजबूत हों और बेहतर प्रथाओं का आदान-प्रदान हो, “कार्यान्वयन” पर ध्यान बनाए रखते हुए.

छोटे किसानों के लिए बड़ा मंच

स्थानीय स्तर पर लचीली कृषि को मजबूत करने के कई समाधान मौजूद हैं, लेकिन इन्हें बड़े स्तर पर लागू करने के लिए वित्तीय सहयोग जरूरी है. COP30 कृषि क्षेत्र और छोटे किसानों के लिए वित्त जुटाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है. इसमें “बाकू-से-बेलें रोडमैप” (Baku-to-Bélem Roadmap) और रेज़िलिएंट एग्रीकल्चर इन्वेस्टमेंट फॉर नेट-ज़ीरो लैंड डिग्रेडेशन जैसी नई पहलें शामिल हैं, जो किसानों को भूमि पुनर्स्थापन के लिए जलवायु वित्त तक पहुँचाने में मदद करेंगी. यह कदम अन्य वित्तीय पहलों, जैसे ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी, के प्रयासों को भी पूरक बनाता है.

वर्तमान में, कृषि-खाद्य प्रणालियों में निवेश कुल जलवायु वित्त का केवल 4.3% (लगभग 60–75 अरब डॉलर) है, जबकि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पाने के लिए 1.1 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है. छोटे किसान, जो दुनिया का लगभग एक-तिहाई भोजन उत्पादन करते हैं, उन्हें कुल जलवायु वित्त का सिर्फ 0.8% मिलता है, जिससे वे जलवायु जोखिमों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं. हालांकि, कृषि क्षेत्र निजी निवेशकों के लिए नए अवसर प्रदान कर रहा है, क्योंकि हाल के वर्षों में ब्लेंडेड फाइनेंस (सरकारी और निजी पूंजी के संयुक्त निवेश) में कृषि का हिस्सा सबसे बड़ा रहा है.

त्रिस्तरीय रणनीति

कृषि वित्त से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ लाभ की अनिश्चितता, खाद्य उत्पादन की बिखरी हुई व्यवस्था एवं पूरी मूल्य श्रृंखला में कमजोर समन्वय, और प्रभाव आकलन में असंगति से उत्पन्न होती हैं. इसलिए, इस दिशा में एक त्रिस्तरीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें शामिल हैं:

1.     कृषि के लिए स्थानीय परिस्थितियों पर आधारित समाधान विकसित करना,

2.     निवेश को जोखिम-मुक्त (de-risk) बनाना ताकि निजी पूंजी आकर्षित हो सके, और

3.     जलवायु वित्त के प्रभाव आकलन को बेहतर करना.

पश्चिमी देशों में विकास सहायता (ODA) घटने की वजह से अनुकूलन के लिए निजी निवेश जुटाना चुनौतीपूर्ण रहेगा. COP29 में शुरू किया गया नया जलवायु वित्त लक्ष्य (NCQG) अभी स्पष्टता और दक्षता की कमी से जूझ रहा है, जिसे COP30 में सुधारने की जरूरत होगी. साथ ही, यूएई ग्लोबल क्लाइमेट रेजिलिएंस फ्रेमवर्क के तहत यूएनएफसीसीसी विशेषज्ञ समूह ने कृषि और खाद्य क्षेत्र के लिए 10 अनुकूलन संकेतक तय किए हैं, जिनसे जलवायु आपदा से निपटने, भूमि क्षरण, कृषि हानि और खाद्य असुरक्षा जैसे मुद्दों पर प्रगति का आकलन किया जा सकेगा.

लॉस एंड डैमेज फंड की प्रगति से छोटे किसानों को भी लाभ मिल सकता है. COP30 में इस फंड के तहत परियोजनाओं के प्रस्ताव आमंत्रित किए जाएंगे. यह फंड किसानों को जलवायु-लचीली तकनीकें अपनाने, उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु झटकों से सुरक्षा में मदद करेगा, जिससे खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

ब्राज़ील में प्रगति और मतभेद की दोहरी तस्वीर

हाल के वर्षों में बढ़ते जलवायु आपदाओं को देखते हुए, ब्राज़ील ने मजबूत लचीलापन नीतियाँ अपनाई हैं और निजी निवेश को भी प्रोत्साहित किया है. देश अब कम-कार्बन कृषि को अपनी राष्ट्रीय नीतियों का प्रमुख हिस्सा बना रहा है, जिसमें क्षतिग्रस्त भूमि का पुनः उपयोग और सतत ईंधन विकल्पों को बढ़ावा देना शामिल है.  ब्राज़ील की एबीसी+ योजना (ABC+ Plan) के तहत 2030 तक लगभग 72.68 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर सतत कृषि प्रणालियाँ और प्रथाएं (SPSABC) अपनाकर 1.1 अरब टन CO₂ उत्सर्जन घटाने का लक्ष्य है.  साथ ही, कैमिन्हो वर्दे कार्यक्रम के ज़रिए 40 मिलियन हेक्टेयर क्षतिग्रस्त और वनों से रहित भूमि को कृषि और पशुपालन के लिए उपयोग में लाने की योजना है.  इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय जैवईंधन नीति (National Policy for Biofuels) कृषि अपशिष्ट जैसे गन्ने के अवशेष और गोबर से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देती है.

ब्राज़ील के भीतर पर्यावरणविदों और कृषि उद्योग समूहों के बीच मतभेद हैं, जो देश की जलवायु न्याय में नेतृत्व की क्षमता को सीमित करते हैं.  कृषि व्यवसाय समूह खुद को जलवायु परिवर्तन समाधान का प्रमुख भागीदार दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और सतत कृषि की अपनी बेहतर प्रथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं,

ब्राज़ील की ये राष्ट्रीय नीतियाँ अब COP30 एजेंडा में उसके वैश्विक रुख और प्रस्तावों को आकार दे रही हैं. हालांकि, इन नीतियों में कुछ विरोधाभास भी हैं जो ब्राज़ील की जलवायु नेतृत्व की छवि को जटिल बना सकते हैं.  उदाहरण के लिए, एबीसी योजना फसल विविधीकरण की बात करती है, लेकिन व्यवहार में यह अब भी सीमित दो से चार मोनोकल्चर फसलों पर केंद्रित है.

हाल ही में ब्राज़ील ने “बेलें कमिटमेंट फॉर सस्टेनेबल फ्यूल्स” शुरू किया है, जिसका लक्ष्य 2035 तक हाइड्रोजन, बायोगैस, बायोफ्यूल और सिंथेटिक फ्यूल जैसे सतत ईंधनों के उत्पादन और उपयोग को चार गुना बढ़ाना है.  हालाँकि जीवाश्म ईंधनों से दूर जाना ज़रूरी है, लेकिन बायोफ्यूल विस्तार से वनों की कटाई का खतरा भी बढ़ सकता है, जैसा कि दक्षिण-पूर्व एशिया में पाम ऑयल आधारित बायोफ्यूल उत्पादन के दौरान देखा गया था. इसलिए, सस्टेनेबल फ्यूल प्रतिज्ञा में यह स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए कि नई फसल भूमि केवल बायोफ्यूल उत्पादन के लिए परिवर्तित न की जाए.

ब्राज़ील के भीतर पर्यावरणविदों और कृषि उद्योग समूहों के बीच मतभेद हैं, जो देश की जलवायु न्याय में नेतृत्व की क्षमता को सीमित करते हैं.  कृषि व्यवसाय समूह खुद को जलवायु परिवर्तन समाधान का प्रमुख भागीदार दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और सतत कृषि की अपनी बेहतर प्रथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जबकि वे अब भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बड़ा योगदान देते हैं. 

हाल ही में पारित पर्यावरण अनुमति कानूनों में ढील और सोया मोराटोरियम समाप्त करने से जुड़े विधेयक इन विरोधाभासों को और उजागर करते हैं, जिससे वनों की कटाई और स्थानीय समुदायों पर असर बढ़ सकता है. इन आंतरिक विभाजनों और विरोधाभासों के बीच ही ब्राज़ील तय करेगा कि वह COP30 में सतत कृषि के मुद्दे को किस दिशा में ले जाएगा.

वादों से आगे, अमल की चुनौती

अमेज़न को COP30 के स्थल के रूप में चुना जाना एक प्रतीकात्मक निर्णय है, जो जलवायु, कृषि और वित्त से जुड़े कई मुद्दों को एक साथ लाता है. यह अवसर कृषि क्षेत्र को उत्सर्जन घटाने और वित्त जुटाने की प्राथमिकता बनाने में मदद कर सकता है. हालाँकि, अमेज़न की दूरस्थ स्थिति के कारण कई गैर-सरकारी और नागरिक समाज संगठनों के लिए भागीदारी कठिन हो सकती है. साथ ही, ब्राज़ील को अपने आंतरिक मतभेदों को दूर कर एकजुट रुख अपनाना होगा. COP30 की सफलता इसी में होगी कि वह कृषि और खाद्य प्रणालियों में बदलाव के लिए दिए गए वादों को वास्तविक परिणामों में बदल सके और केवल घोषणाओं तक सीमित न रहकर, बल्कि वित्त, साझेदारी और स्थानीय समाधानों को बड़े पैमाने पर लागू करने में सक्षम बने.


यह लेख मूल रूप से ORF मिडिल ईस्ट में प्रकाशित हुआ था 

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