Published on Apr 06, 2019 Updated 0 Hours ago

अपेक्षित पैकेज पेश करने के लिए अब भी पर्याप्‍त समय है।

अमेरिका के साथ व्यापार समझौता भारत के हित में

व्यापार के मोर्चे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कड़ी कार्रवाइयों के साथ-साथ ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ संबंधी अपने दृढ़संकल्‍प को पूरा करने की उनकी कोशिशों से स्थितियां निश्चित तौर पर कुछ हद तक तो असहज या चिंताजनक हो ही गई हैं। उनकी नीतियां स्पष्ट रूप से संरक्षणवादी नजर आती हैं जिनके तहत बड़े उभरते देशों को एक तरफ तो और अधिक अमेरिकी वस्‍तुओं को खरीदने तथा दूसरी तरफ अमेरिका को किए जा रहे अपने स्वयं के निर्यात पर अंकुश लगाने के लिए विवश किया जा रहा है। भारत के खिलाफ हालिया कार्रवाई इसका एक सटीक उदाहरण है। दरअसल, अमेरिका ने गत 4 मार्च को घोषणा की कि वह 40 साल से भी अधिक समय से निरंतर दी जा रही जीएसपी (सामान्यीकृत तरजीही प्रणाली) संबंधी शुल्‍क रियायत को वापस ले लेगा जिसे अमेरिका ने अतीत में भारतीय आयात पर देना मंजूर किया था। जीएसपी वर्ष 1976 में भारत के लिए अमेरिका द्वारा शुरू की गई थी और इसने 1,900 भारतीय वस्‍तुओं के निर्यात को अमेरिका में शुल्क मुक्त प्रवेश पाने में सक्षम बना दिया।

अमेरिका ने नवंबर 2018 में पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि वह जीएसपी विनियमन में परिभाषित उत्पाद विशिष्ट प्रतिस्पर्धी क्षमता संबंधी सीमाओं का उपयोग करते हुए 75 मिलियन डॉलर के भारतीय निर्यात पर अपने व्यापार तरजीही कार्यक्रम को वापस ले लेगा। इसका मतलब यही है कि यदि किसी विकासशील देश जैसे भारत से आयात 185 मिलियन डॉलर के आंकड़े को छू लेगा, तो यह देश जीएसपी लाभ गंवा देगा। मौजूदा समय में अमेरिका को होने वाले कुल भारतीय निर्यात के महज कुछ ही हिस्से पर जीएसपी तरजीह या वरीयता प्राप्त है और एनडीए सरकार का य‍ह मानना है कि यदि उपर्युक्‍त कार्यक्रम को वापस ले लिया जाता है तो सीमा शुल्क मद में कुल नुकसान महज 190 मिलियन डॉलर का ही होगा। विकासशील देशों की वस्‍तुओं को तरजीह देने की शुरुआत साठ और सत्‍तर के दशकों में गैट (जिसका स्‍थान बाद में विश्व व्यापार संगठन ने लिया) के तहत की गई थी। इसकी शुरुआत विकसित देशों ने सकारात्‍मक सोच का परिचय देते हुए व्यापार और विकास में विकासशील देशों की मदद करने के उद्देश्‍य से की थी। इसके तहत गरीब देशों के उत्पादों को विकसित देशों के बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच या प्रवेश की सुविधा दी गई।

यूरोपीय संघ ने वर्ष 2014 में यह निर्णय लिया था कि उच्च मध्यम-आय वाले देश जीएसपी के तहत शुल्‍क संबंधी विशेष रियायत पाने के पात्र नहीं होंगे क्योंकि वे बड़ी तेजी से औद्योगीकरण कर रहे थे और यूरोपीय संघ के उत्पादों की तुलना में उनके उत्‍पाद अत्यधिक प्रतिस्पर्धी थे। यूरोपीय संघ ने अब मुख्य रूप से बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान जैसे अल्‍प विकसित देशों को ही शुल्क मुक्‍त बाजार पहुंच की सुविधा देना तय किया है। हालांकि, भारत अब भी मध्यम-आय वाला देश नहीं है। भले ही ट्रम्प ने भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में संदर्भित किया हो और इसके साथ ही यह सवाल किया हो कि भारत व्यापार के मामले में कोई विशेष शुल्‍क रियायत पाने का पात्र आखिरकार क्यों है, लेकिन कटु सच्चाई यही है कि भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में तुर्की की तुलना में बहुत गरीब है। मालूम हो कि तुर्की ही वह दूसरा देश है जहां से अपने यहां होने वाले आयात पर जीएसपी को स्‍थगित करने का फैसला अमेरिका ने किया है।

भारत अब भी मध्यम-आय वाला देश नहीं है। भले ही ट्रम्प ने भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में संदर्भित किया हो और इसके साथ ही यह सवाल किया हो कि भारत व्यापार के मामले में कोई विशेष शुल्‍क रियायत पाने का पात्र आखिरकार क्यों है, लेकिन कटु सच्चाई यही है कि भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में बहुत गरीब है।

वैसे तो यह प्रतीत होता है कि चीन के साथ अमेरिका का व्यापार युद्ध अब खत्‍म हो गया है क्‍योंकि चीन ने विदेशी निवेश और अमेरिकी आयात से जुड़ी अपनी नीतियों में समायोजन करके अमेरिका के साथ मेल-मिलाप कर लिया है, लेकिन अब कई विशेषज्ञों को ऐसा लगता है कि अमेरिका भारत को निशाना बना रहा है और वह व्यापार युद्ध के चरम पर पहुंच गया है। भारत अब भी ट्रम्प की नाराजगी का स्रोत बना हुआ है क्‍योंकि उन्‍हें यह सच्‍चाई कतई नहीं भा रही है कि अमेरिका के साथ व्यापार में भारत सरप्‍लस (अधिशेष) की स्थिति में है, भारत अपने बाजारों को पर्याप्त रूप से नहीं खोल रहा है और भारत विशेषकर कृषि वस्तुओं के मामले में भारतीय बाजारों तक ‘न्यायसंगत और उचित’ पहुंच पर जोर देता रहा है। अमेरिका ने भारत की कृषि सब्सिडी, विशेषकर चावल और गेहूं पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को लेकर विश्व व्यापार संगठन में शिकायत दर्ज कराई है। अमेरिका कृषि क्षेत्र को लेकर भारत सरकार के रुख को अत्यधिक संरक्षणवादी मानता है।

ट्रम्प ने भारत को ‘टैरिफ किंग’ करार दिया है और उन्‍होंने अतीत में भारत द्वारा अमेरिका की हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर लगाए गए उच्च आयात शुल्क के बारे में शिकायत दर्ज कराई थी, जबकि ट्रम्‍प के अनुसार भारतीय मोटरसाइकिलें अमेरिका के बाजार में बगैर किसी शुल्‍क के प्रवेश कर रही हैं। ट्रम्प भारत के साथ व्यापार अधिशेष की समस्या को हल करने के लिए ठीक वही तरीका अपना रहे हैं जैसा कि उन्होंने चीन के मामले में अपनाया था। लेकिन यह बात ध्‍यान देने योग्‍य है कि चीन से अमेरिका को निर्यात अत्‍यंत ज्‍यादा 495.49 अरब डॉलर का होता है, जबकि भारत से अमेरिका को निर्यात केवल 47.9 अरब डॉलर का ही होता है। अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा साझेदार है और कुल व्यापार 74.5 अरब डॉलर आंका गया है। भारत अमेरिका से 26.6 अरब डॉलर मूल्‍य की वस्‍तुओं का आयात करता है और वित्त वर्ष 2018 में व्यापार अधिशेष 21.3 अरब डॉलर आंका गया था।

भारत अब भी ट्रम्प की नाराजगी का स्रोत बना हुआ है क्‍योंकि उन्‍हें यह सच्‍चाई कतई नहीं भा रही है कि अमेरिका के साथ व्यापार में भारत सरप्‍लस (अधिशेष) की स्थिति में है और भारत अपने बाजारों को पर्याप्त रूप से नहीं खोल रहा है।

अमेरिका ने व्यापार अधिशेष कम करने के लिए चीन से अपने बाजारों को खोलने और अमेरिका से अपने यहां आयात बढ़ाने को कहा। चीन ऐसा करने पर सहमत हो गया है और वह सोयाबीन, मक्का एवं गेहूं सहित 30 अरब डॉलर मूल्‍य की कृषि वस्‍तुएं खरीदेगा। चीन ने अमेरिका से होने वाले कुल आयात को मौजूदा 111.16 अरब डॉलर से बढ़ाकर 1.2 ट्रिलियन डॉलर करने का वादा किया है। यदि चीन ने मना कर दिया होता तो अमेरिका 200 अरब डॉलर मूल्‍य की चीनी वस्‍तुओं पर देय शुल्‍क को 10 प्रतिशत से काफी बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया होता। जाहिर है, यह स्थिति पहले से ही आर्थिक सुस्‍ती और बढ़ते कर्ज बोझ से जूझ रही चीनी अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित होती। चीन ने विदेशी निवेशकों की ओर से चीनी फर्मों को प्रौद्योगिकी के अनिवार्य हस्तांतरण पर जोर नहीं देने जैसे अन्य सुधारों को भी लागू करने का वादा किया है।

भारत अन्य मामलों में भी ट्रम्प प्रशासन की नाराजगी का एक स्रोत रहा है। भारत ने मोबाइल फोन एवं ऑटो पार्ट्स पर भारी-भरकम शुल्क थोप दिया है और इसके साथ ही भारत ऑनलाइन कंटेंट प्रदाताओं से जुड़े नियम-कायदों को कठोर बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत ने विदेशी फर्मों के लिए ई-कॉमर्स के नियमों में फेरबदल किए हैं, जिससे वालमार्ट और अमेजन जैसी दिग्‍गज कंपनियों का व्यवसाय प्रभावित हुआ है। इसके अलावा, भारत ने डेटा को स्थानीय स्तर पर स्‍टोर करने पर विशेष जोर दिया है। अमेरिका भारत की आईपीआर (बौद्धिक संपदा अधिकार) व्‍यवस्‍था पर भी चिंता जताता रहा है और वह इसकी कार्यान्वयन मशीनरी में ढिलाई से नाखुश है। भारत ने अमेरिका के चिकित्सा उपकरणों पर भी शुल्क बढ़ा दिया है।

हालांकि, भारत ट्रम्प की भावनाओं को आहत न करने को लेकर काफी सजग रहा है। अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का मित्र साबित हुआ है। यही कारण है कि अमेरिका द्वारा स्टील आयात पर शुल्क में 25 प्रतिशत और अल्युमीनियम आयात पर शुल्‍क में 10 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा करने के बाद भारत 29 अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिकारी या जवाबी शुल्‍क लगाने में काफी चौकन्‍ना रहा है। चीन, कनाडा, मेक्सिको, यूरोपीय संघ और तुर्की ने तो प्रतिकारी या जवाबी शुल्क थोप दिए हैं, लेकिन भारत इसे टालता रहा है।

अमेरिका भारत की आईपीआर (बौद्धिक संपदा अधिकार) व्‍यवस्‍था पर भी चिंता जताता रहा है और वह इसकी कार्यान्वयन मशीनरी में ढिलाई से नाखुश है।

वह अपेक्षित पैकेज पेश करने के लिए अब भी पर्याप्‍त समय है (मई तक) जिसके तहत भारत अमेरिका से आयात बढ़ाने और अमेरिकी आयात के समक्ष मौजूद कुछ समस्याओं को दूर करते हुए अपने बाजारों को खोलने का वादा अमेरिकी प्रशासन से कर सकता है। इसी तरह विदेशी निवेश पर अमेरिकी कंपनियों को कुछ और रियायतें देने के लिए अब भी पर्याप्‍त समय है। अमेरिका से कुल संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 45 अरब डॉलर और भारत से कुल संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 10 अरब डॉलर का आंका गया। दरअसल, भारत के साथ व्यापार अधिशेष (सरप्‍लस) को कम करने के लिए ट्रम्प जो भी चाहते हैं, यदि वे सारे ही कदम उठाए जाएं तो ट्रम्प नि:संदेह भारतीय उत्पादों पर जीएसपी को खत्म करने की अपनी धमकी को वापस ले लेंगे।

हालांकि, दुर्भाग्यवश, इस बात के ही प्रबल आसार नजर आ रहे हैं कि फि‍लहाल इस तरह की कोई भी व्‍यापक कवायद संभव नहीं होगी क्योंकि भारत में पूरी तरह से चुनावी माहौल है। ऐसे में अब तो अगली सरकार ही इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएगी और अमेरिका को मनाएगी एवं उसकी मांगों में समुचित सामंजस्‍य स्‍थापित करेगी।

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