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प्राकृतिक संसाधनों की कमी को देखते हुए सभी बड़ी ताकतें अफ्रीका के देशों के साथ अपना तालमेल बढ़ा रही हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर एवं कनेक्टिविटी की परियोजनाओं में निवेश कर रही हैं.
हाल के दिनों में अफ्रीका तेज़ी से बढ़ते भू-राजनीतिक मुकाबले के क्षेत्र के तौर पर उभरा है. ये स्थिति तब है जब अलग-अलग बाहरी झटकों- यूक्रेन में युद्ध, वैश्विक महंगाई और इज़रायल-हमास संघर्ष- ने कोरोना के बाद इस महादेश के आर्थिक सुधार में रुकावट डाली है. अफ्रीका ऐसा महादेश है जिसकी बहुत ज़्यादा खोज-बीन नहीं की गई है. इस तरह यहां खनिजों और ऊर्जा स्रोतों का बहुत बड़ा भंडार है जिनमें से कई हरित परिवर्तन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. हैरानी की बात नहीं है कि कई बड़ी ताकतें जैसे कि अमेरिका, यूरोपियन यूनियन (EU), चीन, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया अफ्रीका के देशों के साथ अपना तालमेल बढ़ा रही हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर एवं कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के ज़रिए इन संसाधनों की तलाश कर रही हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि वैश्विक भू-आर्थिक रुझानों को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में इंफ्रास्ट्रक्चर कूटनीति इस महादेश में फल-फूल रही है. इस मक़सद के लिए 2022 और 2023 में चीन (10 अरब अमेरिकी डॉलर), EU (164.98 अरब अमेरिकी डॉलर), अमेरिका (55 अरब अमेरिकी डॉलर) और जापान (30 अरब अमेरिकी डॉलर) ने बहुत बड़ी सहायता का वादा किया है ताकि अफ्रीका में क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाया जा सके.
ये लेख NCEA कॉरिडोर पर नज़र डालता है और इसके भू-आर्थिक एवं सामरिक अर्थ का विश्लेषण करता है.
वैसे तो चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के ज़रिए अपने पश्चिमी विरोधियों की तुलना में बढ़त हासिल कर ली है लेकिन अमेरिका, EU और उनके पश्चिमी सहयोगियों ने भी अपनी कोशिशें तेज़ कर दी हैं. ग्रुप ऑफ सेवन (G7) के पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGII) के अलावा EU की ताज़ा कोशिश- ग्लोबल गेटवे (GG) इन अफ्रीका/यूरोप इन्वेस्टमेंट पैकेज 2022- पश्चिमी देशों की एक और कोशिश है जिसका मक़सद चीन के असर का मुकाबला करना और इस महाद्वीप के महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए साझेदारी तैयार करना है.
EU का इन्वेस्टमेंट पैकेज 2022 164.98 अरब अमेरिकी डॉलर का है जिसमें 11 आर्थिक कॉरिडोर हैं और पूरे महादेश को तीन क्षेत्रीय कॉरिडोर- नॉर्थ-सेंट्रल-ईस्ट अफ्रीकन (NCEA) सामरिक कॉरिडोर, वेस्ट अफ्रीकन सामरिक कॉरिडोर और साउथ अफ्रीकन सामरिक कॉरिडोर- में बांट दिया गया है. ये लेख NCEA कॉरिडोर पर नज़र डालता है और इसके भू-आर्थिक एवं सामरिक अर्थ का विश्लेषण करता है.
ग्लोबल गेटवे (GG) निवेश परिवहन कॉरिडोर- जिसमें हवाई अड्डे, रेलवे, सड़क और बंदरगाह शामिल हैं और जो किसी देश की आर्थिक प्रगति को तेज़ करने के लिए महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर हैं- का निर्माण करके यूरोप ने अफ्रीका के देशों का दिल जीतने की कोशिश की है. NCEA अंतर्राष्ट्रीय कॉरिडोर में तीन क्षेत्रों में फैले चार क्षेत्रीय कॉरिडोर शामिल हैं. इसका लक्ष्य मध्य, पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका के 18 देशों (तालिका 1 देखें) में सड़क, रेलवे और बंदरगाह तैयार करना है और इसका असर एक दर्जन से ज़्यादा आर्थिक क्षेत्रों जैसे कि परिवहन, खनन, सतत ऊर्जा, बंदरगाह विकास और ब्लू इकोनॉमी (समुद्री अर्थव्यवस्था) के सेक्टर जैसे कि फिशरीज (मत्स्य पालन) एवं गहरे समुद्र में खनन पर पड़ेगा.
स्रोत: ग्लोबल गेटवे EU/अफ्रीका इन्वेस्टमेंट डॉज़ियर
ध्यान देने की बात है कि ऊपर जिन 18 देशों का ज़िक्र किया गया है उनमें से आठ देशों में महत्वपूर्ण खनिजों का बहुत बड़ा भंडार है और ये किसी भी अफ्रीकी रीजन में सबसे ज़्यादा है. EU को उम्मीद है कि लॉबिटो कॉरिडोर (अमेरिका के द्वारा मध्य अफ्रीका में प्रस्तावित रेलवे लाइन जो ज़ांबिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के खनिज खदानों को अंगोला के लॉबिटो पोर्ट से जोड़ेगी) के MoU (समझौता ज्ञापन) की तरह इन परियोजनाओं में शामिल अफ्रीकी भागीदार भी यूरोप और उसके सहयोगियों के तट तक महत्वपूर्ण खनिजों या उसके प्रसंस्कृत (प्रोसेस्ड) उत्पादों के निर्यात के लिए तैयार हो जाएंगे. इससे EU के ऊर्जा सुरक्षा एजेंडे को बढ़ावा मिलेगा और यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के साथ जारी तनातनी में उसकी भू-आर्थिक स्थिति मज़बूत होगी.
लंबे समय से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा और महाद्वीप के भीतर व्यापार कॉरिडोर का निर्माण अफ्रीका के व्यापक व्यापार समझौते (AfCTA) की पूरी संभावना का फायदा उठाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहा है.
हालांकि केवल भू-आर्थिक अनिवार्यता ही अफ्रीका में EU के निवेशों को बढ़ावा नहीं दे रही है. लंबे समय से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा और महाद्वीप के भीतर व्यापार कॉरिडोर का निर्माण अफ्रीका के व्यापक व्यापार समझौते (AfCTA) की पूरी संभावना का फायदा उठाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहा है. इसी तरह अफ्रीकन यूनियन (AU) के द्वारा 2018 में अपनाए गए 2063 के लिए अफ्रीका के साझा दृष्टिकोण में क्षेत्रीय परिवहन और व्यापार कॉरिडोर के निर्माण के ज़रिए अधिक आर्थिक एकीकरण एक प्रमुख लक्ष्य है. ग्लोबल गेटवे अफ्रीका/यूरोप इन्वेस्टमेंट पैकेज के तहत इन कॉरिडोर को निर्धारित करने के लिए EU के रिसर्च का तरीका सावधानीपूर्वक अफ्रीकन विज़न 2063 के सिद्धांतों को एकीकृत करना है. अफ्रीकन विज़न 2063 एक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक दृष्टिकोण है जिसे अफ्रीकन यूनियन ने 2018 में अपनाया था और AfCTA के आर्थिक लक्ष्यों को EU-AU तालमेल के लिए लक्ष्यों और दृष्टिकोण के साथ जोड़ा गया था ताकि ज़मीनी स्तर पर एवं एक व्यापक पैमाने पर निर्णायक असर छोड़ा जा सके.
वैसे तो EU ने अफ्रीका के सामने एक ज़बरदस्त निवेश पहल की पेशकश की है लेकिन इस महाद्वीप में उसके सामने चीन की BRI के रूप में एक बड़ी चुनौती है. अफ्रीका में चीन के निवेश की जड़ें बहुत गहरी हैं और NCEA कॉरिडोर के क्षेत्रों में 16 महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों में से सात में उसका बोलबाला है. चीन की सरकारी और प्राइवेट कंपनियां ज़्यादा लंबे समय से अफ्रीका में महत्वपूर्ण खनिजों के खनन, परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और ऊर्जा का बुनियादी ढांचा बनाने एवं उसकी सर्विस में लगी हुई हैं. उदाहरण के लिए, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की 70 प्रतिशत तांबे की खदानों में चीन की हिस्सेदारी है और इस कॉरिडोर में भाग लेने वाले 18 देशों में से 11 में उसने ‘खनिज के लिए कर्ज़’ और ‘खनिज के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर’ सौदों को उधार दिया है*. इससे चीन को खनिजों की सप्लाई के मामले में EU के मुकाबले चीन को प्राथमिकता देने के लिए अफ्रीकी सरकारों पर वित्तीय दबाव बढ़ाने का मौका मिलता है.
ग्लोबल गेटवे प्रभावशाली निवेश पोर्टफोलियो का दावा करता है जिसमें हरित इंफ्रास्ट्रक्चर, हरित ऊर्जा परियोजनाओं, महत्वपूर्ण खनिजों के खनन और टिकाऊ बुनियादी ढांचे के विकास का विवरण है.
फिर भी पर्यावरण के मामले में ग्लोबल गेटवे BRI को मात देता है. ग्लोबल गेटवे प्रभावशाली निवेश पोर्टफोलियो का दावा करता है जिसमें हरित इंफ्रास्ट्रक्चर, हरित ऊर्जा परियोजनाओं, महत्वपूर्ण खनिजों के खनन और टिकाऊ बुनियादी ढांचे के विकास का विवरण है. साथ ही ‘ग्लोबल गेटवे डिजिटल कनेक्टिविटी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव’ के ज़रिए डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाने की बात भी है. BRI, जो इस महाद्वीप में मुख्य रूप से ऊर्जा के बुनियादी ढांचे वो भी तेल, गैस और कोयला परियोजनाओं पर केंद्रित है, की तुलना में ग्लोबल गेटवे की हरित परियोजनाएं उसे संभावित रूप से बढ़त दिलाती हैं क्योंकि दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रही है.
90 के दशक के आख़िर में पश्चिमी देशों के विद्वानों और नीति निर्माताओं ने अफ्रीका को ‘मौका गंवा चुका महाद्वीप (लॉस्ट कॉन्टिनेंट)’ माना था क्योंकि यहां उग्रवाद, आर्थिक बदहाली, राजनीतिक उथल-पुथल और गृह युद्ध जैसे हालात थे. इन राजनीतिक-आर्थिक मुद्दों ने अफ्रीका में निवेश के मामले में पश्चिमी देशों और वहां की प्राइवेट कंपनियों के लिए सुरक्षा का ख़तरा बढ़ा दिया था और इससे चीन को यहां सामरिक और आर्थिक पैठ बनाने का मौका मिला. आज जब दुनिया में ज़रूरी प्राकृतिक संसाधन ख़त्म होते जा रहे हैं तो पश्चिमी देशों के पास अफ्रीका के देशों से आर्थिक संबंध बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है और इस तरह ‘मौका गंवा चुके महाद्वीप’ को ‘मौकों की ज़मीन (लैंड ऑफ ऑपर्च्यूनिटी)’ में बदलना है.
पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
*लेखक के द्वारा इकट्ठा डेटा के ज़रिए स्वतंत्र विश्लेषण
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Prithvi Gupta is a Junior Fellow with the Observer Research Foundation’s Strategic Studies Programme. Prithvi works out of ORF’s Mumbai centre, and his research focuses ...
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