Author : Ramanath Jha

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Published on Feb 04, 2025 Updated 0 Hours ago

ये बात साबित हो चुकी है कि न्यूयॉर्क में लागू किए जा रहे कंजेशन चार्ज जैसे क़दमों का सड़कों पर जाम लगने और लोगों रहन सहन की गुणवत्ता पर सकारत्मक असर होता है. हालांकि, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और जनता के विरोध की वजह से ऐसे नुस्खों को भारत में लागू कर पाना मुश्किल होता है.

कंजेशन प्राइसिंग यानी भारत के शहरों में यातायात सुधार का अगला कदम!

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5 जनवरी 2025 को न्यूयॉर्क, अमेरिका का पहला शहर बन गया, जिसने मैनहट्टन के सेंट्रल बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट (CBD) में दाख़िल होने वाली गाड़ियों पर कंजेशन शुल्क लगाया. सेंट्रल बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट का दायरा 13 किलोमीटर में फैला है. ये 60वीं स्ट्रीट से शुरू होकर वित्तीय ज़िले के बैटरी पार्क तक जाता है. साप्ताहिक दिनों में सुबह पांच बजे से रात नौ बजे और सप्ताहांत में सुबह नौ बजे से रात 9 बजे के दौरान न्यूयॉर्क के CBD इलाक़े में प्रवेश करने वाली गाड़ियों को कंजेशन चार्ज के रूप में 9 डॉलर देने होंगे. छोट ट्रक और ग़ैर यात्री बसों पर 14.40 डॉलर की दर से कंजेशन शुल्क लगाया जाएगा. जबकि बड़े ट्रकों और सैलानियों की बसों को 21.60 डॉलर का कर देना पड़ेगा. ग़ैर पीक ऑवर्स में सभी गाड़ियों को 75 प्रतिशत की छूट मिला करेगी. ये चार्ज दिन में एक बार ही देना होगा, भले ही इस दौरान कोई गाड़ी सेंट्रल बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट में कई चक्कर लगाए. कुछ आपातकालीन और सरकारी गाड़ियों, स्कूल और यात्री बसों, कम आमदनी वाले ड्राइवरों और किसी बीमारी की वजह से सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल कर पाने में असमर्थ लोगों को इससे छूट दी गई है.

कंजेशन प्राइसिंग की परिकल्पना को कुछ लोग वैल्यू प्राइसिंग भी कहते हैं. ये कोई नया नुस्खा नहीं है. सबसे पहले सिंगापुर ने इसे 1975 में आज़माया था. उसके बाद से दुनिया के कई शहर-डरहम (2002), लंदन (2003), स्टॉकहोम (2006),एलेट्टा (2007), मिलानो (2008), और गोथेनबर्ग (2013)-कंजेशन चार्ज का फार्मूला आज़मा चुके हैं. एडिनबरा में लागू की गई कंजेशन फी हटाना पड़ा था, क्योंकि इस क़दम को वहां के लोगों ने एक जनमत संग्रह के दौरान 3:1 के वोट से ख़ारिज कर दिया था.

शहरों की सड़कों से संदर्भ में कंजेशन चार्ज को इस तरह परिभाषित किया जा सकता है कि ये बेहद भीड़-भाड़ भरी सड़कों को इस्तेमाल करने वालों पर लगाया जाता है, ताकि मांग और इस्तेमाल को कम करके पीक ट्रैफिक आवर्स के दौरान गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को घटाया जा सके.

शहरों की सड़कों से संदर्भ में कंजेशन चार्ज को इस तरह परिभाषित किया जा सकता है कि ये बेहद भीड़-भाड़ भरी सड़कों को इस्तेमाल करने वालों पर लगाया जाता है, ताकि मांग और इस्तेमाल को कम करके पीक ट्रैफिक आवर्स के दौरान गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को घटाया जा सके. इसके लिए शहर, कुछ इलाक़ों को ‘सघन क्षेत्र’ या फिर ‘जाम वाले क्षेत्रों’ के तौर पर चिह्नित करते हैं. अब न्यूयॉर्क ने मैनहट्टन में एक ही कंज़ेशन ज़ोन को निर्धारित किया है. न्यूयॉर्क की मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (MTA) ने अपने मूल्यांकन से ये अनुमान लगाया है कि कंज़ेशन चार्ज लगाने से तय CBD इलाक़े में ट्रैफिक कम से कम 10 प्रतिशत घटाया जा सकेगा.

कंजेशन प्राइसिंग की भूमिका 

मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी इस शुल्क का समर्थन करते हुए सहा है कि इसका मक़सद मैनहट्टन में लगने वाले जाम को कम करना और सार्वजनिक परिवहन के लिए पैसे जुटाना है. इससे जिन फ़ायदों की उम्मीद की जा रही है, उनमें ट्रैफिक में कमी, आवाजाही में लगने वाले वक़्त में कमी, सुरक्षित सड़कें, कम कार्बन उत्सर्जन और शहर के रहन सहन की गुणवत्ता में सकारात्मक योगदान शामिल हैं. वैसे तो न्यूयॉर्क के परिवहन अधिकारी 1970 के दशक से ही कंजेशन प्राइसिंग लागू करने की ख़्वाहिश जताते रहे हैं. लेकिन, सबसे पहले 2007 में शहर के तत्कालीन मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने इस विचार को गंभीरता से लिया था. हालांकि, बहुत से भागीदारों ने कंज़ेशन प्राइसिंग के असरदार होने को लेकर और समता पर इसके नकारात्मक प्रभाव के हवाले से सवाल उठाते रहे थे. पिछले कई वर्षों के दौरान कंजेशन चार्ज लगाने की राह में कई रोड़े उठे. पर आख़िरकार इस विचार को हक़ीक़त में तब्दील कर ही लिया गया.

हालांकि, कंजेशन चार्ज लगाने का न्यूयॉर्क के कई तबक़ों की ओर से कड़ा विरोध किया गया है, ख़ास तौर से रिपब्लिकन पार्टी और राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस पर कड़ा एतराज जताया. शहर के प्रशास ने कंजेशन चार्ज लगाने में इतनी जल्दबाज़ी इसलिए दिखाई, क्योंकि ट्रंप ने घोषित तौर पर इसका विरोध किया था और सत्ता में आने पर इसको समाप्त करने की घोषणा की थी. ट्रंप के रुख़ को देखते हुए कंजेशन चार्ज को हड़बड़ी में लागू करना शायद आज की दृष्टि से उचित न लगे, क्योंकि हो सकता है कि इसे आगे चलकर पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया जाए. न्यूयॉर्क में आगे चलकर क्या होता है, वो तो बाद की बात है. पर, इस वक़्त इसका पूरी निरपेक्षता से मूल्यांकन करने में कोई हर्ज नहीं है.

ये बात बख़ूबी पता है कि कंजेशन प्राइसिंग के विचार की कुछ समूह पुरज़ोर वकालत करते हैं, तो कुछ समूह उतनी ही शिद्दत से इसका विरोध करते हैं. यातायात की समस्या और इसके साइड इफेक्ट, ख़ास तौर पर इंसानों की सेहत पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को लेकर शहरों में फ़िक्र बढ़ रही है. भारी यातायात की समस्या को कम करने का एक पारंपरिक तरीक़ा सड़कों के जाल का विस्तार करना या फिर मौजूदा सड़कों का चौड़ीकरण करना है. हालांकि, ये नुस्खा सिर्फ़ एक हद तक ही कारगर होता है, जिसके बाद ज़मीनों की अनुपलब्धता या व्यावहारिकता न होने के चलते सड़कों का विस्तार कर पाना मुमकिन नहीं रह जाता है. सड़कों के विस्तार के लिए अगर पहले से बने ढांचों को गिराना पड़े, तो नगर निकायों को ज़मीन के अधिग्रहण के साथ साथ मकान मालिकों को निर्माण की लागत भी अदा करनी पड़ेगी. ये शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता से परे की बात है. बड़े स्तर पर फ्लाईओवर और अंडरपास बनाकर सड़कों की स्थिति सुधारी जा सकती है. लेकिन, ऐसे बुनियादी ढांचों का निर्माण बेहद महंगा सौदा होता है. इसके अलावा, समय के साथ साथ मांग बढ़ने और गाड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी के कारण ऐसे उपायों का सकारात्मक असर भी घटता जाता है. इसीलिए, जाम की समस्या से निपटने का एक व्यावहारिक तरीक़ा कंजेशन प्राइसिंग है. इस विकल्प को अर्थशास्त्री और परिवहन के योजना निर्माता ज़्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि ये ज़्यादा असरदार होता है. हालांकि, भले ही इस सुझाव को वित्तीय और तकनीकी तौर पर ज़्यादा समर्थन मिलता है. लेकिन, असल समस्या सामुदायिक और राजनीतिक स्वीकार्यता की कमी है.

कंजेशन प्राइसिंग के विचार की कुछ समूह पुरज़ोर वकालत करते हैं, तो कुछ समूह उतनी ही शिद्दत से इसका विरोध करते हैं. यातायात की समस्या और इसके साइड इफेक्ट, ख़ास तौर पर इंसानों की सेहत पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को लेकर शहरों में फ़िक्र बढ़ रही है.

कंजेशन प्राइसिंग को लेकर जनता की प्रतिक्रिया के लिहाज से स्टॉकहोम का उदाहरण ख़ास तौर से प्रासंगिक है. एक बार स्टॉकहोम में कंजेशन प्राइसिंग का प्रस्ताव रखा गया, और जब इसे छह महीने के लिए प्रायोगिक तौर पर लागू किया गया, तो स्वीडन में इसके फ़ायदे और नुक़सान को लेकर गर्मागर्म बहस छिड़ गई. सबसे बड़ा इल्ज़ाम तो यही था कि ये तो ‘राजनीतिक आत्महत्या का सबसे महंगा नुस्खा’ ईजाद किया गया है. शुरुआत में तो कंजेशन चार्ज का मीडिया से भी कड़ा विरोध देखने को मिला, लेकिन बाद में मीडिया ने इस बदलाव को ‘कामयाबी की मिसाल’ के तौर पर प्रचारित किया. बाद में इसके बहुत विस्तार से किए गए अध्ययनों में पता चला कि कंजेशन चार्ज से यातायात के बोझ में काफ़ी कमी आई थी और जहां शुरुआत में बहुत बड़ी संख्या में लोग इसका कड़ा विरोध कर रहे थे, वहीं बाद में इसके नतीजे देखने के बाद विरोध करने वाले कुछ मुट्ठी भर ही रह गए थे.

भारत में महत्व 

भारत के बहुत से आर्किटेक्ट, परिवहन के विशेषज्ञ और शहरी योजनाकारों ने आगे आकर ये तर्क दिया है कि भारत के शहरों को भी ऐसे की कंजेशन चार्ज लगाने चाहिए. भारत के बड़े शहरों में ट्रैफिक की समस्या न्यूयॉर्क से भी भयंकर है. लेकिन, इनमें से किसी भी शहर ने अब तक कंजेशन चार्ज लगाना ज़रूरी नहीं समझा है. 2018 में दिल्ली के उप-राज्यपाल ने इसका प्रस्ताव ज़रूर रखा था, मगर इस पर कोई काम नहीं हुआ. इसी तरह की कोशिशें मुंबई रीजनल डेवेलपमेंट अथॉरिटी (MMRDA) ने भी की हैं. MMRDA ने भागीदारों को इस बात पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया था कि मुंबई महानगर क्षेत्र (MMR) में कंजेशन चार्ज को किस तरह से लागू किया जा सकता है. कम से कम आज की तारीख़ में तो भारत के किसी भी शहर या महानगर ने अपनी सड़कों पर कंजेशन चार्ज नहीं लगाया है.

भारत के बहुत से आर्किटेक्ट, परिवहन के विशेषज्ञ और शहरी योजनाकारों ने आगे आकर ये तर्क दिया है कि भारत के शहरों को भी ऐसे की कंजेशन चार्ज लगाने चाहिए.

यहां ये बात माननी होगी कि पिछले एक दशक के दौरान भारत के बहुत से शहरों के एजेंडों में भारी यातायात की समस्या और इससे निपटने के तरीक़े ऊंची पायदान पर रहे हैं. टॉमटॉम द्वारा हर साल दुनिया में ट्रैफिक कंजेशन के आंकड़े जारी किए जाते हैं. ये आंकड़े भी बताते हैं कि भारत के शहर बड़ी तेज़ी से दुनिया के सबसे ज़्यादा ट्रैफिक कंजेशन वाले शहरों में शुमार होते जा रहे हैं. भारी यातायात की समस्या से किसी भी शहर पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं. इससे सामान और लोगों की आवाजाही में देर होती है; इसकी वजह से गाड़ियों से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है और खड़ी गाड़ी की वजह से ईंधन की खपत भी बढ़ती है; इससे शहरों की आर्थिक उत्पादकता पर बुरा असर होता है और इससे सांस की बीमारियों में भी इज़ाफ़ा होता है. वहीं दूसरी तरफ़ शहरों में कंजेशन चार्ज लगाने के फ़ायदे साफ़ नज़र आते हैं. ख़ास तौर से तब जब तकनीक ने इस टैक्स की वसूली के तरीक़ों को पूरी तरह से स्वचालित बना दिया है, जिससे यातायात में कोई बाधा नहीं आती है. इससे ट्रैफिक की समस्या में कमी आने के साथ साथ शहरों की आमदनी भी बढ़ती है. इस रक़म को कंजेशन चार्ज लागू करने और इसकी वसूली की लागत कम करने में लगाया जा सकता है. इस बचत के पैसों को आवाजाही के नए मार्ग विकसित करने और सड़कों के रख-रखाव पर भी ख़र्च किया जा सकता है. कंजेशन चार्ज लगाने से लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने को प्रेरित होते हैं और फिर निजी गाड़ियों के ईंधन की खपत भी कम होती है. 

निष्कर्ष

कंजेशन चार्ज के तमाम फ़ायदों के बावजूद, अभी कुछ गिने चुने शहर ही हैं, जो अपने यहां इसे लागू करने में सफल हो सके हैं. किसी भी नए बोझ का जनता की ओर से विरोध किया जाना तो स्वाभाविक है. लेकिन, इस मुद्दे पर तमाम भागीदारों से खुलकर चर्चा की जा सकती है और लोगों की चिंताओं को दूर किया जा सकता है. हालांकि, लोकतांत्रिक सरकारें जनता की आलोचना करने से डरती रही हैं और इसी वजह से वो कंजेशन चार्ज लगाने के प्रस्ताव को लेकर उत्साह नहीं दिखाती हैं. दुनिया के तमाम शहरों में कंजेशन चार्ज लगाने के प्रस्ताव अगर लागू नहीं किए जा सके हैं, तो इसके पीछे शायद राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही सबसे बड़ी वजह रही है.

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