Published on Feb 27, 2024 Updated 0 Hours ago

मोदी सरकार ने जो 4.30 करोड़ के करीब जो उज्वला गैस कनेक्शन बांटे हैं उनमें से 48% कनेक्शन उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बांटे गए.

भारतीय लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान करने में महिलाओं की भूमिका

भारत में महिलाओं की स्थिति हमेशा एक समान नहीं रही है. इसमें समय-समय पर हमेशा बदलाव होता रहा है. यदि हम महिलाओं की स्थिति का आंकलन करें तो पता चलेगा कि वैदिक युग से लेकर वर्तमान समय तक महिलाओं की सामाजिक स्थिती में अनेक तरह के उतार-चढ़ाव आते रहे हैं और उसके अनुसार ही उनके अधिकारों में बदलाव भी होता रहा है. इन बदलावों का ही परिणाम है कि महिलाओं का योगदान भारतीय राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं में दिनों-दिन बढ़ रहा है जो कि समावेशी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक सफल प्रयास है.

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव के नतीजे अभी हाल ही में हम सभी के सामने आये हैं, इन नतीजों ने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम प्रदान किया है कि एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता में एक स्थिर सरकार के रूप में वापसी हुई है. ऐसा भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू एवं इंदिरा गाँधी के बाद हुआ है. परंतु इस चुनाव का यदि हम ललैंगिक द्रष्टिकोण से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि, देश कि आधी आबादी कि इस चुनावी समर में मुख्य़ भूमिका रही है.उसका ही परिणाम है कि इस आम चुनाव के नतीजे में देश की महिला मतदाताओं ने सिर्फ़ अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज कराई है, बल्कि इस बार भारतीय लोकतंत्र में पहली बार ऐसा हुआ है कि कि 78 महिलाए सांसदद के रूप में निर्वाचित होकर आईं हैं. वहीं पुरुष सांसदों की संख्या 2014 में 462 थी जो 2019 में घटकर 446 रह गई है इससे उनकी संख्या में करीब 3% की कमी आई है. इस बार आम चुनाव के लिए खड़े हुए 8,000 उम्मीदवारों में से महिला उम्मीदवारों की संख्या 10% से भी कम थी परन्तु संसद में जीतकर पहुंचने वाली महिलाओं का 14 प्रतिशत है. यह भारत की चुनावी राजनीति में आ रहे सकारात्मक बदलाव का ही संकेत है कि  ये चुनाव महिला उम्मीदवारों से जुड़े कई राजनैतिक पूर्वाग्रहों को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है. साथ ही महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण करने भी कारगर सिद्ध होगा.

बतौर मतदाता यदि हम महिलाओं कि चुनावी भागीदारी पर चर्चा करें तो हमें पता चलता है कि कि साल 2009 और फिर 2014 के आम-चुनाव में महिलाओं की मतदान के माध्यम से जो भागीदारी थी उसमें 2019 में वृद्धि हुई है. इस चुनाव में महिलाओं ने पहली बार पुरुषों से अधिक मतदान किया. यह भी तथ्य गर ग़ौर करने लायक है, कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि 67.11% मतदाताओं ने अपने मतदान अधिकार का इस्तेमाल किया है. पिछले भारतीय चुनावों का अध्ययन न करें तो पता चलता है कि स चुनाव में देश कि 13 सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक थी. 1962 के आम चुनावों में महिला मतदाताओं का प्रतिशत 45 था, वहीं 2014 में यह बढ़कर 66 हो गया और 1962 के आम चुनावों में पुरुष एवं महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत का अंतर 17% था वो 2014 में 1.4% और इस बार 2019 के चुनावों में घटकर मात्र यह 0.4% रह गया है. इस बार के चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में 8.35 करोड़ पिए महिला वोटरो थे. यदि हम इन आंकड़ो को राज्यों के संन्दर्भ में अध्ययन करें तो ज्ञात होता ही कि इसमें उत्तर प्रदेश से 54 लाख के करीब, महाराष्ट्र में 48 लाख, बिहार में 42.8 लाख, पश्चिम बंगाल 42.8 लाख तमिलनाडु 39 लाख़ मतदाता शामिल थे.

इस चुनाव में महिलाओं ने पहली बार पुरुषों से अधिक मतदान किया. यह भी तथ्य गर ग़ौर करने लायक है, कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि 67.11% मतदाताओं ने अपने मतदान अधिकार का इस्तेमाल किया है.

इस बार के चुनाव में पहली बार महिला प्रतिनिधि एवं मतदाताओं की संख्या में जो बदलाव आया है उसमें राजनीतिक दलों ने भी अपनी चुनावी रणनीति एवं घोषणा पत्रों के माध्यम से मुख्य भूमिका निभाई है, जिसने महिला-पुरुषों के बीच में मतदान करने के अंतर को कम किया है जैसे उड़ीसा के मुख्यमंत्री, बीजेडी नेता नवीन पटनायक ने आम चुनाव की तारीख़ घोषणा होने से पूर्व ही ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में 33% सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करेगी. उसके बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी 40% टिकट महिलाओं को देने की घोषणा कर डाली. इसके साथ बीजेपी एवं कांग्रेस ने भी पहले कि अपेक्षा महिला प्रतिनिधियों को अधिक मौका दिया. इसका ही परिणाम है कि यह स्वतंत्र भारत में पहली बार होगा कि जहाँ सोलहवीं लोकसभा में करीब 11% महिलाएं थी, वहीं प्रथम लोकसभा में 5% महिलाएं थी. वहीँ इस बार के लोकसभा में 78 महिला सांसद यान कुल संख्या का 14% महिला लोकसभा में जनप्रतिनिधित्व करेंगी एक बात और ध्यान देने वाली है ली है वो ये कि इन 78 महिला सांसदों में से एक तिहाई तो ऐसी हैं जिनको जनता ने दोबारा संसद में भेजा है इनमें से 11 उत्तर प्रदेश से 11 ही पश्चिम बंगाल से निर्वाचित हुई हैं वहीं दलों के हिसाब से देखें तो 22 टीएमसी के सांसदों में से 9 महिलाएं, उड़ीसा में बीजेडी ने 7 महिलाओं को टिकट दिया था और उसमें से 5 ने जीत दर्ज की. भाजपा ने देश भर में कुल 54 महिलाओं को टिकट दिए और उनमें से 40 को जनता ने लोकसभा में भेजा साथ ही कांग्रेस ने 53 महिलाओं को टिकट दिया इनमें से 6 जीत कर आई हैं.

भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की भूमिका

21 वीं सदी शुरुआत से महिलाओं कि रही है. इन सालों में महिलाओं का भारत कि आर्थिक व्यस्था में योगदान बढ़ा है इसका ही परिणाम है कि आज भारत कि महिलाएं राजनीति, कारोबार, कला तथा नौकरियों में पहुँच कर नये आयाम गढ़ रही हैं. भूमण्डलीकृत विश्व में भारत की नारी ने अपनी एक नितांत सम्मानजनक जगह कायम कर ली है. आंकड़े दर्शाते हैं कि प्रतिवर्ष कुल परीक्षार्थियों में 50 प्रतिशत महिलाऐं डॉक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण करती हैं स्वतंत्रता के बाद लगभग 12 महिलाएएं विभिन्न राज्यों की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं. भारत के अग्रणी सॉफ्टवेयर उद्योग में 21 प्रतिशत पेशेवर महिलाऐं हैं. फौज, राजनीति, खेल, पायलट और उद्यमी सभी क्षेत्रों में जहाँ वर्षों पहले तक महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां सिर्फ़ महिलाओं ने स्वयं को स्थापित ही नहीं किया है बल्कि वहां सफल भी हो रहीं हैं.

महिलाओं को शिक्षा देने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिये जो सुधार आन्दोलन शुरू हुआ उससे समाज में एक नयी जागरूकता पैदा हुई है. बाल-विवाह, भ्रूण-हत्या पर सरकार द्वारा रोक लगाने का का काफ़ी प्रयास हुआ है. शैक्षणिक गतिशीलता से पारिवारिक जीवन में परिवर्तन हुआ है. गाँधी जी ने कहा था कि एक लड़की की शिक्षा एक लड़के की शिक्षा की उपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है क्यों लड़के को शिक्षित करने पर वह अकेला शिक्षित होता है किन्तु एक लड़की की शिक्षा से पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है. शिक्षा ही वह कुंजी है जो जीवन के वह सभी द्वार खोल देती है. शिक्षित महिलाओं को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने में बहुत मदद मिली. महिलाएएं अपनी स्थिति व अपने अधिकारों के विषय में सचेत होने लगी हैं, आज देखने में आया है कि महिलाओं ने स्वयं के अनुभव के आधार पर, अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के आधार पर अपने लिए नई मंजिलें, नये रास्तों का निर्माण किया है.

वर्तमान समय में भारतीय सरकार द्वारा महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रम एवं योजनाओं का संचालन किया जा रहा हैं इससे स्त्रियों की स्थिति में काफी बदलाव आए हैं, इसका ही परिणाम है कि इस बार के चुनाव में बीजेपी को जो अविस्मरणीय जीत हासिल हुई है उसको दिलाने में महिलाओं कि बहुत बड़ी भूमिका रही है. इसकी रूपरेखा का निर्माण कहीं न कहीं प्रधानमत्री मोदी के द्वारा जो देश व्यापी योजनायें चलाई गईं उनका काफी योगदान है. केंद्र में एनडीए सरकार ने जो उज्जवला योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सौभाग्य, जनधन, मुद्रा लोन आदि के रूप में जो योजनायें चलाई उन्होंने सीधे तौर पर महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया है. इसको हम चुनावी परिणामों के माध्यम से भी देख सकते हैं कि मोदी सरकार ने जिन पांच राज्यों उत्तर-प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार, मध्य-प्रदेश, राजस्थान की 216 सीटों पर जीत हासिल की है उसमें से भाजपा ने 156 यानी 66% सीटों पर जीत हांसिल कि है. ध्यान देने वाली बात है कि मोदी सरकार ने जो 4.30 करोड़ के करीब जो उज्वला गैस कनेक्शन बांटे हैं उनमें से 48% कनेक्शन उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बांटे गए. इससे इस बात का अनुमान लगया जा सकता है कि चुनाव परिणाम आने से पूर्व उत्तर प्रदेश में बीजेपी को एसपी बीएसपी गठबंधन के चलते भारी नुकसान के जो कयास लगाये जा रहे थे उनको गलत साबित करने में उज्ज्वला योजना तथा अन्य महिला केंद्रित योजनाओं ने मुख्य भूमिका निभाई है.

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानन्द का मानना है — कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है, वहाँ की महिलाओं की स्थिति. हमें महिलाओं को ऐसी स्थिति में पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से ख़ुद सुलझा सकें. हमारी भूमिका महिलाओं की ज़िंदगी में उनका उद्धार करने वाले की न होकर उनका साथी बनने और सहयोगी की होनी चाहिए. क्योंकि भारत की महिला इतनी सक्षम है कि वे अपनी समस्याओं को ख़ुद सुलझा सकें. कमी अगर कहीं है तो बस इस बात की, हम एक समाज के तौर पर उनकी क़ाबलियत पर भरोसा करना सीखें. ऐसा करके ही हम भारत को उन्नति के रास्ते पर ले जा पाएंगे. ऐसे में भारतीय राजनैतिक परिवेश में फ़िलहाल वक्त़ जो 78 महिला सांसद चुन कर आई हैं उन्हें देश की अन्य महिलाओं कि आवाज को संसद में मज़बूती से उठाना चाहिए. इसके साथ ही सालों से सदन में जो महिला आरक्षण बिल लंबित है उसको भी पारित कराने की कोशिश करनी चाहिए. और साथ ही महिलाओं से जुड़े समकालीन ज्वलंत मुद्दों को भी सदन में मज़बूती से रखें. यदि — ये निर्वाचित सांसद इन सभी विषयों को गंभीरता से सदन में उठाती हैं और इस दिशा में कुछ ठोस निर्णय लिया जाता है तो यह देश कि एक बड़े नागरिक वर्ग के साथ न्याय होगा ही साथ ही भारतीय लोकतंत्र को और मज़बूती प्रदान करेगा जो देश और समाज सभी के हित में होगा.


लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के अफ्रीका अध्ययन विभाग में एक शोध छात्र है.

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