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Published on Aug 31, 2024 Updated 0 Hours ago

जेनेटिक इंजीनियरिंग एक उम्मीदों से भरा भविष्य पेश करता है जहां उत्पादन में बढ़ोतरी के ज़रिए भुखमरी में कमी होगी. हालांकि ये भरोसा ऐसी ज़िम्मेदारियों और ख़तरों के साथ आता है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. 

GMO को कानून के दायरे में लाना: खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित कर और कृषि-आतंक पर लगाम कसना!

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वैश्विक प्रयासों के बावजूद खाद्य सुरक्षा और कुपोषण पिछले तीन वर्षों से लगातार अधिक बना हुआ है, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व और दक्षिण एशिया में. कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में भुखमरी और कुपोषण का स्तर बहुत ज़्यादा बढ़ाया है और ये स्तर 2020 से काफी हद तक बदला नहीं है. भारत में वर्ष 2021-2023 के लिए कुपोषण का औसत स्तर 16.6 प्रतिशत पर बना हुआ है जबकि वैश्विक औसत 9.2 प्रतिशत है.  

भरोसेमंद खाद्य सुरक्षा कई तरह के फैक्टर से प्रभावित होती है. इनमें राजनीतिक, पर्यावरण से जुड़ी एवं सामाजिक-आर्थिक स्थिति, प्राकृतिक आपदाएं और युद्ध शामिल हैं. बायोटेक्नोलॉजी और जेनेटिकली मॉडिफाइड ऑर्गेनिज़्म (GMO) ने खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. लेकिन क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पेलिनड्रॉमिक रिपीट्स (CRISPR) टेक्नोलॉजी का उदय अकाल और वायरस के मामले में कृषि की असुरक्षा को कम करने में मदद कर सकता है और पौधों के उत्पादन की क्षमता को बढ़ा सकता है. इस तरह ये तकनीक सटीक जेनेटिक बदलाव के ज़रिए खाद्य सुरक्षा में संभावित रूप से क्रांति ला सकती है. 

भारत जैसे देश में, जहां खाद्य असुरक्षा और कुपोषण बहुत अधिक है, खेती में GMO का उपयोग एक सहज समाधान की तरह लगता है. लेकिन दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों की तरह भारत के लोगों में भी GMO को लेकर नकारात्मक धारणाएं हैं.

कृषि उपयोग में CRISPR के कई लाभ हैं. इनमें कीड़ों, बीमारियों और पर्यावरण से जुड़े दबाव को लेकर फसलों के प्रतिरोध में बढ़ोतरी; अधिक फसल उत्पादन; बायोफोर्टिफिकेशन के माध्यम से फसलों की अधिक पोषण सामग्री; और फसलों के पालन-पोषण और उपज का कम समय शामिल हैं. भारत जैसे देश में, जहां खाद्य असुरक्षा और कुपोषण बहुत अधिक है, खेती में GMO का उपयोग एक सहज समाधान की तरह लगता है. लेकिन दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों की तरह भारत के लोगों में भी GMO को लेकर नकारात्मक धारणाएं हैं. इसका कारण हाइब्रिड बीटी कॉटन मामले को लेकर पहले का अनुभव है. 

GMO फसलों को लेकर भारत का प्रतिरोध

हाइब्रिड बीटी कपास, जो कि भारत का एकमात्र व्यावसायिक GM फसल है, को 2022 में प्राइवेट कंपनी मोनसेंटो ने पेश किया था और ये पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. इसकी वजह से लोगों और पशुओं की सेहत को काफी नुकसान झेलना पड़ा. इसके बाद हर्बिसाइड-टोलरेंट (HT) सरसों को व्यावसायिक बनाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव से भारतीय सरसों की खेती और लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर ख़तरा है. हितों के टकराव से ग्रस्त नियामक निकायों ने वायरल और बैक्टीरिया से जुड़े पक्षपात और असुरक्षा समेत GMO के ख़तरों के ठोस प्रमाण के बावजूद लगातार उसे बढ़ावा दिया है. 2005 से याचिकाकर्ताओं ने भारत में GMO को शुरू करने का विरोध किया है. इसके लिए उन्होंने बीटी कॉटन के वेरिएंट की नाकामी का हवाला दिया है जिसकी वजह से कई राज्यों में फसलें संक्रमित हो गईं.  

तकनीकी विशेषज्ञ समिति (TEC) और दो संसदीय स्थायी समितियों (2012 और 2017) ने इन चिंताओं पर ज़ोर दिया है. GMO, जिसमें प्रयोगशाला आधारित आनुवंशिक बदलाव शामिल हैं, अनायास प्रभाव के साथ जीवों का निर्माण करता है जो पारंपरिक पालन-पोषण की पद्धतियां नहीं करती हैं. प्राकृतिक पर्यावरण में प्रदूषण, ख़ास तौर पर भारत जैसे जैव विविधता वाले देश में, और अधिक लागत एवं कीड़ों की फिर से वापसी की वजह से किसानों पर आर्थिक बोझ जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है. वैसे तो GMO के कई लाभ हैं लेकिन लोगों के नज़रिए को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इसके कारण मौजूदा समय में भी खेती में GMO अनाज को अपनाने का विरोध हो रहा है.     

GMO को लेकर दूसरे देशों का नज़रिया 

कृषि में GMO का उपयोग विशेष नैतिक और रेगुलेटरी विचारों की याद दिलाता है. एक विचार है जिम्मेदारी से इस्तेमाल को सुनिश्चित करना. GMO के बारे में हर देश का एक ज़िम्मेदार उपयोग और जागरूकता है. यूरोपियन यूनियन अभी भी काफी हद तक GMO खाद्य का विरोध करता है. अफ्रीका एक और क्षेत्र हैं जिसने GMO को अपनाने के बारे में अपना रवैया अभी तक निर्धारित नहीं किया है. गंभीर खाद्य असुरक्षा के बावजूद अफ्रीका में GMO को लेकर लोगों के दृष्टिकोण के कारण इसको अपनाने का विरोध हुआ है. 

GMO अपनाने के विरोध के मामले में एक उल्लेखनीय अपवाद गंभीर खाद्य असुरक्षा के इतिहास वाला देश वियतनाम है. वियतनाम युद्ध, जो 1975 में ख़त्म हुआ, के दौरान एजेंट ऑरेंज (जिसका मुख्य रूप से उत्पादन मोनसेंटो के द्वारा किया जाता था) के ख़राब असर के बावजूद वियतनाम अब खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए GMO, जिनमें मोनसेंटो के द्वारा विकसित GMO शामिल है, और 45 खाद्य किस्मों के लिए दरवाज़ा खोल रहा है

खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए CRISPR से जहां बहुत ज़्यादा उम्मीदें हैं, वहीं इसके इस्तेमाल पर सतकर्ता से नियंत्रण होना चाहिए ताकि नैतिक उपयोग सुनिश्चित किया जा सके और गैर-इरादतन नतीजों से बचा जा सके. 

खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए CRISPR से जहां बहुत ज़्यादा उम्मीदें हैं, वहीं इसके इस्तेमाल पर सतकर्ता से नियंत्रण होना चाहिए ताकि नैतिक उपयोग सुनिश्चित किया जा सके और गैर-इरादतन नतीजों से बचा जा सके. अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, चिली और कोलंबिया जैसे देशों ने उत्पाद आधारित रेगुलेशन को अपनाया है जो बाहरी DNA नहीं होने पर जीन-एडिटेड फसलों को GMO निगरानी से छूट देते हैं. इसके अलावा, यूरोपियन यूनियन, जापान और न्यूज़ीलैंड जैसे कुछ क्षेत्रों में उपयोग करने वालों की सतर्कता सुनिश्चित करने के लिए सभी GMO खाद्य पर लेबल लगाना आवश्यक है.  

फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन एवं पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के दबावों और लोगों की बढ़ती चिंताओं से प्रेरित होकर अमेरिका भी GMO खाद्य पर अनिवार्य लेबलिंग की तरफ झुक रहा है. 2016 में अमेरिका ने नेशनल बायोइंजीनियर्ड फूड डिस्क्लोज़र लॉ पारित किया जिसके तहत अनिवार्य अनुपालन (कंप्लायंस) 2022 से प्रभावी है और जिसमें बायोइंजीनियर्ड प्रक्रियाओं का खुलासा करने के लिए उन उत्पादों के बारे में बताना भी ज़रूरी है जो CRISPR का उपयोग नहीं करते हैं लेकिन बिना आनुवंशिक दखल के पैदा नहीं किए गए हैं. ये रेगुलेटरी दृष्टिकोण सुरक्षा मानकों को बरकरार रखते हुए CRISPR तकनीक को अपनाने की सुविधा देता है. 

रेगुलेटरी विचार 

हालांकि ये रेगुलेशन जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसे हमेशा विकसित हो रहे उद्योग के बारे में सभी चिंताओं का समाधान नहीं कर सकते हैं, विशेष रूप से रिसर्च और डेवलपमेंट के चरण में. CRISPR या किसी दूसरी जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक की चुनौती गलत अनुमानों के असर को लेकर है जहां उम्मीद से हटकर आनुवंशिक बदलाव होते हैं. बायोसेफ्टी रेगुलेशन गलत अनुमानों के असर जैसी R&D चिंताओं का हमेशा समाधान नहीं करते हैं; इन्हें वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स के लिए नैतिक गाइडलाइन के तहत अधिक उचित रूप से शामिल किया गया है. नीतियों का लक्ष्य गाइड RNA (sgRNA), कैस प्रोटीन और डिलीवरी पद्धति को बेहतर बनाकर गलत अनुमानों के असर से जुड़े बदलाव को कम-से-कम करना है. बेहद विशिष्ट sgRNA को शामिल करने और sgRNA के सीक्वेंस में फेरबदल करने जैसी तकनीकों ने गलत अनुमानों को कम करने का भरोसा दिया है. 

लेकिन तीन क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें जैव सुरक्षा नीतियों को शामिल करना चाहिए. पहला है बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR). जेनेटिक इंजीनियरिंग और कृषि के संदर्भ में IPR GMO और उससे संबंधित तकनीकों के स्वामित्व और नियंत्रण के बारे में है. जो कंपनियां जेनेटिकली इंजीनियर्ड बीज विकसित करती हैं वो अक्सर अपने आविष्कार का पेटेंट कराती हैं. इससे उन्हें बीज के उत्पादन और बिक्री का विशेष अधिकार हासिल होता है. इससे बाज़ार में महत्वपूर्ण ताकत मिल सकती है और कृषि पद्धतियों पर असर पड़ सकता है. वैसे तो GMO में IPR के आलोचक संभावित एकाधिकार का हवाला देकर इसकी ज़रूरत का विरोध करते हैं लेकिन गलत अनुमानों के असर के मामले में जवाबदेही बढ़ाने और भविष्य के आविष्कार के उद्देश्य से जानकारी पता लगाने के लिए IPR ज़रूरी है. इस क्षेत्र में एकाधिकार का मुकाबला मौजूद प्रतिस्पर्धा कानूनों के साथ तालमेल बिठाने की आवश्यकता डाल कर या एक बायोटेक्नोलॉजी इनोवेशन और प्रतिस्पर्धा नीति बनाकर किया जा सकता है. 

जैसा कि चर्चा की गई है, GMO ज़्यादा पैदावार और अधिक विश्वसनीय खाद्य आपूर्ति में योगदान कर सकता है. लेकिन ऐसी चिंताएं हैं कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों पर निर्भरता जैव विविधता में कमी ला सकती है, कुछ विशेष कीड़ों एवं बीमारियों के मामले में खेती की प्रणाली को अधिक असुरक्षित बना सकती है

दूसरा क्षेत्र है खाद्य सुरक्षा का वादा. जैसा कि चर्चा की गई है, GMO ज़्यादा पैदावार और अधिक विश्वसनीय खाद्य आपूर्ति में योगदान कर सकता है. लेकिन ऐसी चिंताएं हैं कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों पर निर्भरता जैव विविधता में कमी ला सकती है, कुछ विशेष कीड़ों एवं बीमारियों के मामले में खेती की प्रणाली को अधिक असुरक्षित बना सकती है और जो छोटी जोत वाले किसान इन तकनीकों पर खर्च करने या उन तक पहुंचने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें हाशिए पर धकेल सकती है. घरेलू जैव सुरक्षा नीतियों को स्थानीय विविधता पर ज़रूर विचार करना चाहिए जैसा कि HT सरसों के मामले में वकालत की गई थी. 

अंत में, संभावित कृषि-आतंक की आशंका का मामला है. कृषि-आतंक का अर्थ कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने के इरादे से जान-बूझकर खेतों में कीड़ों, बीमारियों और ज़हरीले पदार्थों को छोड़ना है. कृषि में जेनेटिक इंजीनियरिंग कृषि-आतंक के बारे में विशेष चिंता पैदा करती है क्योंकि इसमें फसलों की आनुवंशिक संरचना में हेरफेर शामिल है. उन खेतों का जान-बूझकर संक्रमण जो वायरस को लेकर प्रतिरोधी नहीं हैं, जैसे कि GMO फसलें व्यापार, खाद्य सुरक्षा और यहां तक कि पेटेंट किए गए GMO बीजों के लिए प्राइवेट कंपनियों पर निर्भरता को प्रभावित करने के लिए प्रतिरोधी हो सकती हैं, का नतीजा किसानों के लिए आर्थिक विस्थापन और उपभोक्ताओं के लिए परेशानी में बढ़ोतरी के रूप में निकल सकता है. 

वैसे तो 1912 से दो मामले सामने आए हैं लेकिन इन्हें आम तौर पर जैविक या रसायनिक एजेंट उपयोग के तहत रखा गया है. कृषि में GMO का रिकॉर्ड किया गया उपयोग वियतनाम में एजेंट ऑरेंज के साथ देखा गया था जो अभी भी लोगों को प्रभावित करता है. इसे सीधे तौर पर कृषि-आतंक के मामले के रूप में नहीं बल्कि एक जैविक एजेंट के उपयोग के रूप में देखा गया क्योंकि खेती की ज़मीन पर हर्बिसाइड (शाकनाशक) का इस्तेमाल नहीं किया गया जबकि फसलें प्रभावित हो गईं. लेकिन बढ़ती तकनीकों एवं जैव-प्रौद्योगिकी और विषाणु की बढ़ती जानकारी के साथ हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि फसलों को प्रभावित करने वाले ऐसे हमलों को भी जैव सुरक्षा की नीतियों में शामिल किया जाना चाहिए. जेनेटिकली इंजीनियर्ड जीवों को विकसित करने और अलग-अलग जगह फैलाने में मज़बूत सुरक्षा उपायों और नैतिक दिशा-निर्देशों को सुनिश्चित करना ज़रूरी है ताकि ऐसे दुर्भावना से भरे कामों को रोका जा सके और वैश्विक खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा की जा सके. भारत समेत 173 देशों ने कार्टाजेना प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं जो घरेलू नियमों और नीतियों समेत जैव विविधता और जैव सुरक्षा में लोगों की सेहत की देखरेख करता है लेकिन राष्ट्रीय स्तर की संचालन समितियों के द्वारा कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने से बीटी कॉटन जैसे मामलों के दोबारा न होने में मदद मिलेगी. 

 जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना अधिक ज़रूरी होता जा रहा है. कृषि उत्पादकता और सामर्थ्य बढ़ाने में जेनेटिक इंजीनयरिंग उल्लेखनीय क्षमता पेश करती है, ऐसे भविष्य का वादा करती है जहां भुखमरी और कुपोषण को काफी कम किया जा सकता है. लेकिन ये भरोसा ज़िम्मेदारियों और ख़तरों के साथ आता है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. GMO से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार का निपटारा सावधानी से किया जाना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि बायोटेक्नोलॉजी का लाभ सभी किसानों को उपलब्ध हो, भले ही उनके खेत का आकार या उनकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो. फसलों और पशुधन को नुकसान पहुंचाने के लिए जेनेटिक तकनीक का दुरुपयोग एक वास्तविक और मौजूदा ख़तरा है. इसने जैविक हमलों की आशंका को रोकने के लिए मज़बूत सुरक्षा उपायों और नैतिक दिशा-निर्देशों को आवश्यक बना दिया है. वैश्विक स्तर पर सतकर्ता और सहयोग ये सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि बायोटेक्नोलॉजी में तरक्की उभरते ख़तरों के ख़िलाफ़ सुरक्षा देते हुए सचमुच में मानवता को लाभ पहुंचाए. आगे का रास्ता मुश्किल है लेकिन सावधानी से आगे बढ़ने पर ये एक उज्ज्वल, अधिक सुरक्षित भविष्य का भरोसा देता है. 


श्राविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं. 

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